हमारी शालू-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Hamari Shaalu

Hindi Kahani: मैं अपनी नई कहानी लिखने बैठी ही थी कि उसका चेहरा मेरी नज़रों के सामने आ गया। एक प्रतिष्ठित पत्रिका के लिए असाइनमेंट पूरा करके भेजना था मुझे पर कुछ दिनों से घर के कामों से ही समय नहीं निकल पा रहा था।
मेरी एक लेखिका सहेली ने कई बार कहा, “रिया जी घर के काम तो होते रहेंगे पर आप लिखना मत छोड़िए।”

मैं हाथों में पेन के बटन को टिपटिपाते हुए शालू के बारे में ही सोचने लगी। साल भर में ही वो हमारे घर की एक सदस्य जैसी ही तो हो गई थी। उसका मुझसे कुछ ज्यादा ही लगाव था। कभी छुट्टी लेनी होती या आने में देरी होती तो मुझे ही फोन किया करती।

” रिया भाभी आप बड़ी भाभी और छोटी भाभी को बता दीजियेगा, आज नहीं आ पाऊंगी।”

“ठीक है , मैं बोल दूंगी। अच्छा हुआ तुमने बता दिया।” मैं इतना ही कह पाती।
वो भी जानती थी कि उसके ना आने पर झाड़ू पोंछा बर्तन सब मुझे ही तो करना पड़ेगा।

जब से मैं ससुराल आई थी इन तेईस सालों में कभी किसी काम वाली बाई रखने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
संयुक्त परिवार में काम मिल बांट कर ही करते थे पर धीरे-धीरे शरीर भी अब साथ नहीं देता था और घर में देवर जी का छोटा बच्चा आने से काम भी बढ़ गया था।

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बच्चे की मां यानी मेरी देवरानी जी की तो सरकारी नौकरी है , वो तो सुबह ऑफिस जाती है तो शाम को ही घर लौटती है।
उन्हें तो घर परिवार से कभी लगाव हुआ ही नहीं। चाहे घर में कुछ भी हो जाए, कोई बीमार पड़े या मेहमान आएं वो कभी घर की जरूरत के हिसाब से छुट्टी नहीं लेती। फिर जब अपना मन होता है या घूमने फिरने जाना होगा उस दिन छुट्टी लेंगी।

जब मेटरनिटी लीव खत्म होने के बाद मेरी देवरानी ने ऑफिस जाना शुरू किया तब शालू को बच्चे की देखभाल और घर के कामों में हमारी मदद करवाने के लिए रख लिया।

मुझे तो बड़ा अखर रहा था कि बिना मतलब के पन्द्रह हजार रुपए हर महीने खर्च करना। हमारे भी बच्चे हुए , हमने तो कभी नौकरानी नहीं रखी। घर और बाहर दोनों संभाला।
मैं तो सुबह छह बजे ही स्कूल जाया करती थी पढ़ाने। सुबह चार बजे उठती, साफ सफाई कर नाश्ता बना कर ही जाती, फिर आते ही रसोई में लग जाती।
मेरे दोनों बच्चे तो परिवार में कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला।

जब शालू पहली बार हमारे घर आई तो बिल्कुल चुपचाप घर का काम करती। थोड़ा काम करती और फिर फोन लेकर बैठ जाती।
उसके पास आई फोन देखकर मैंने एक बार ऐसे ही पूछ लिया था, यह फोन तुम्हारा है तब बोली,” हां रिया भाभी पहले जिनके यहां मैं काम करती थी उन भईया ने दिया था मेरे जन्मदिन पर।”
मैं आश्चर्यचकित थी कि घर में काम करने वाली बाई को कोई आई फोन कैसे गिफ्ट कर सकता है।

कभी उससे कुछ काम करने कहती या उसका काम पसंद नहीं आता तब लोकेश मेरे पति मुझसे कहते, “रिया तुम कुछ मत बोला करो उसे काम के लिए, जितनी तुम्हारी मदद हो जाती है वही बहुत है
छोटे भाई भाभी ने उसे काम पर रखा है अपने बच्चे की देखभाल के लिए। बच्चे के काम के साथ-साथ वो झाड़ू पोंछा बर्तन और कपड़े सभी काम में हाथ बंटाती है वहीं बहुत है।”

वैसे मुझे तो घर के सारे काम खुद ही करना अच्छा लगता है। पर अब जितना समय मिल जाता मैं अपने लेखन पठन के लिए निकाल लेती हूं।

वो धीरे धीरे मुझसे कुछ ज्यादा ही घुल मिल गई थी। काम करते करते बैठ जाती, “रिया भाभी कुछ नया सुनाईए ना।”
मैं भी उसे अपनी लिखी कविताएं और कहानियां सुनाती, जिसे वो बड़े ध्यान से सुनती और कहती आपकी कहानियां सुनकर मजा आ जाता है।

वो अपने बारे में भी बताया करती । कितना संघर्षपूर्ण रहा है उसका जीवन।

छुटपन से ही उसे काम करने की आदत थी। झारखंड वैसे भी इस मामले में जाना जाता है जहां से कम उम्र की बच्चियों को शहर के लोग अपने घरों में घरेलू काम और बच्चों की परवरिश करने के लिए ले जाते हैं।

वो भी तो आठ साल की उम्र से ही अपने माता-पिता से दूर कभी दिल्ली तो कभी राजस्थान तो कभी कलकत्ता में बड़े-बड़े घरों में काम करती रही। उसने तो पूरा भारत भ्रमण किया है और एक बार तो हफ्ते भर के लिए उसे अपने मालिक के बच्चों के साथ जापान भी जाना पड़ा था।
उसका स्वभाव ही कुछ ऐसा था कि जहां भी काम करती वहां के लोगों का लगाव उससे हो ही जाता।

दुबली-पतली सी शालू अब पैंतीस चालीस के आसपास की ही होगी पर शादी नहीं की अभी तक उसने और हमारे पूछने पर कहती,
“मैंने ठान लिय है कि जीवन भर किसी की मोहताज नहीं रहूंगी। शादी के बंधन में बंधकर मैं नहीं रह सकती। पता नहीं पति और ससुराल वाले कैसे मिलें फिर जीवन भर उनकी गुलामी करते रहो।”

पढ़ने लिखने कभी स्कूल नहीं जा पाई थी वो पर ज्ञान का भंडार है उसके पास। वाट्स अप फेसबुक इंस्टाग्राम ट्विटर सब पर अप टू डेट रहती है। छोटी उम्र से बच्चों की देखभाल के साथ साथ बिना स्कूल जाए ही उसने हिंदी के साथ साथ इंग्लिश भी पढ़ना लिखना और बोलना सीख लिया है। भारत की कई भाषाओं का ज्ञान है उसे।

अब वो अपने माता-पिता के साथ रहती है, जब से उसके भाई भाभी ने झगड़ा करके उन्हें उनके ही घर से निकाल दिया। चार भाई और तीन बहन हैं उसके पर मां बाप की देखभाल का पूरा जिम्मा उसी के कंधों पर है।

उसने अपने छोटे भाई-बहनों की शादी करवा दी और अब दोनों बहनें नौकरी करती है तो उनके बच्चों की देखभाल का जिम्मा भी उसी पर है।

हमें भी तो अब चौबीस घंटे साथ रहने वाली सहायिका की जरूरत है, कहा था कई बार उसे। हम रहने के लिए जगह और सारी सुविधाएं देने को तैयार थे पर उसने साफ इंकार कर दिया।
” नहीं भाभी हमेशा अपने परिवार से दूर रही हूं, अब मेरे मम्मी पापा बीमार रहते हैं उन्हें मेरी जरूरत है।”

जब उसे अपने मां बाप भाई बहन के प्यार उनके साथ की जरूरत थी तब उन्होंने सिर्फ पैसों के लिए उसके माता-पिता ने अपनी बच्ची को अपने से दूर रखा पर अब उनके बुढ़ापे में वही उनका सहारा बनी है।

पन्द्रह दिनों से वो काम पर नहीं आई, मेरा मन घबरा रहा था। उसने उस दिन रोते हुए मुझे ही फोन किया था कि “रिया भाभी तबियत बहुत खराब लग रही है, आज काम पर नहीं आ पाऊंगी।”
मैंने उसे घर पर आराम करने और दवाई खाने की सलाह दी, यहां की चिंता मत करो हम संभाल लेंगे। उसे हमारे घर के बच्चों से बड़ा ही लगाव हो गया था।

मेरा फोन साइलेंट पर था, अचानक उसके वाईब्रेशन से मेरा ध्यान अपने फोन पर गया। शालू का ही नाम चमक रहा था स्क्रीन पर। मैंने फोन उठाया तो उसकी आवाज में उदासी और एक डर दिखा।
” भाभी सोनू बाबा कैसे हैं और आप सब कैसे हो। बहुत याद आती है आप लोगों की।”
“सब ठीक है शालू तुम बताओ कहां हो? कब से आ रही हो यहां घर पर।”
“भाभी अब शायद कभी ना आ पाऊं, मुझे एड्स हो गया है और अब शायद कुछ दिन की ही मेहमान हूं इस धरती पर।”

“क्या बोल रही हो तुम। हर बीमारी का ईलाज है। तुम्हें कुछ नहीं होगा। तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी।”

“नहीं भाभी, यह आई फोन और सुख सुविधाओं की बहुत कीमत चुकानी पड़ी है।”

मेरी आंखों से अनायास आंसू बहने लगे। घर के काम और बच्चे की देखभाल के लिए सहायिका तो हम दूसरी भी रख लेंगे पर शालू को कभी ना भूल पाएंगे।

हफ्ते भर बाद उसका छोटा भाई हमारे घर आया और उसने बताया शालू के क्रियाक्रम के लिए पैसे चाहिए।
जो शालू बचपन से पैसे कमा कर देती रही आज उसी के अंतिम संस्कार के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।
बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी उसने अपने परिवार के प्रति लगाव के लिए।