Hindi Novel Kacche Dhage | Grehlakshmi
Kacche Dhage hindi novel by sameer

विवेक को होश आया तो वह ड्राइंग रूम के सोफे पर लेटा हुआ था…जगमोहन के चिल्ला कर बातें करने की आवाजें आ रही थीं‒

“किसलिए आया है वह मवाली, गुण्डा यहां?”

“डैडी…वह मेरा दोस्त है।” महेश की आवाज आई।

“वह तुम्हारा दोस्त है या दुश्मन? तुम्हारे पुरसे को आया था।”

कच्चे धागे नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

“इसे भी कहीं से गलत खबर मिल गई होगी जैसे किसी ने अंजला को टेलीफोन पर दे दी थी।”

“मैंने तुमसे कहा था इस नालायक की दोस्ती छोड़ दो…यह तुम्हारा ‘कैरियर’ भी चौपट कर देगा।”

“डैडी! अब मेरे कैरियर में रखा ही क्या है‒कितने दिन और…।”

“मैं डॉक्टर ‘हैमरसन’ से निराश नहीं हूं‒तुम जरूर बच जाओगे।”

विवेक अपने मुंह में बड़बड़ाया‒”तेरे मुंह में खाक बुड्ढे।”

“डैडी…प्लीज! आप जाइए‒देर हो रही है।”

“जा रहा हूं…मगर मेरी वापसी पर इसे बंगले में नहीं नजर आना चाहिए।”

“फिर कार जाने की आवाज आई…महेश अंदर आ गया‒विवेक उठकर खड़ा हो गया था…उसने रुंधी-सी आवाज में कहा‒

“यार! तू अपन को बहुत दुख पहुंचाएला है…तेरे को मरने का था…अच्छा-खासा मर…मर के जिन्दा कैसे हो गएला?”

“बैठ जाओ।”

अरे…अपन का तो सब कुछ बैठ गएला है। अपन ने तेरे से अंजू के साथ शादी करने को बोला था कि तू मर जाएंगा।

छः महीने के अंदर-अंदर…मगर अभी तो पूरे दो महीने भी नहीं गुजरे हैं।

“तेरा मतलब है अपन को चार महीने और झेलना पड़ेगा।”

“नहीं…मेरा ऑपरेशन अगले महीने अमरीका में होने वाला है।”

“मगर वह बुड्ढा तो बोलेला था कि तू जरूर बच जाएंगा।”

“विवेक…प्लीज…मेरे डैडी हैं।”

“जानता हूं…मेरे पापा-जिनको तेरा डैडी दोस्त से क्लर्क बना के रखेला था…अपन को इस बुड्ढे की सूरत से भी नफरत है।”

“देख विवेक…मैं अपने डैडी के प्रति तेरी बदतमीजी बरदाश्त नहीं कर सकता।”

“क्या करेंगा तू?”

“अच्छा यही होगा कि तू इसी समय यहां से चला जा।”

“अपन भी इधर रहने को नहीं आएला…पर साला तेरे को याद रखने का है कि तेरे को अगले चार महीने के अंदर-अंदर मरने का है…नहीं मरेंगा साला तो अपन तेरे को खलास कर देंगा-समझेला।”

फिर वह आंसू पोंछता हुआ बाहर निकल आया…पीछे से महेश की आवाज आई‒

“ठहरो विवेक।”

विवेक के कदम रुक गए। महेश पास आकर बोला‒

“अंजू से मिलकर नहीं जाओगे?”

विवेक धीरे से मुड़ा…महेश का चेहरा स्पष्ट-सा था।

“जाओ…मिल लो….वह नीचे के ही कमरे में है।”

“यार! अभी तो तू अपन को निकलने को बोला था।”

“अपने पिता का अपमान कौन सहन कर सकता है? क्या तुम अपने स्वर्गीय पिताजी के बारे में कोई ऐसी बात सुन सकते हो?”

“नहीं यार, पर वह अपन का टेम्परामेंट लूज कर देते हैं…आई एम सॉरी!”

“मैं समझता हूं, मेरे डैडी अपनी आदत से मजबूर हैं…तुम भी अपनी आदत से मजबूर हो।”

“यार! अपन दोनों इतने अच्छे दोस्त थे…यह साला कैन्सर बीच में काहे को आ गएला? अगर तेरे को कैन्सर न होता तो अपन तेरे को अंजू से शादी के वास्ते कभी मजबूर नहीं करता।”

“अब जो हो गया…होने दो…जरूरी नहीं कि मैं अब ऑपरेशन के बाद बच ही जाऊं।”

“अब तेरा मरना भी तो पक्का नहीं रहा…वैसे अपने को तेरे मरने का दुख भी बहुत होएंगा, पर क्या करें…मजबूरी है…तेरे को तो मरने का है…नहीं मरेंगा तो अंजू विधवा कैसे होएंगी…और विधवा नहीं होएंगी तो अपन की शादी उसके साथ कैसे होएंगी।”

“जाओ…तुम अंजू से मिल लो…मुझे जाना है।”

“अरे तू जा न यार…देर काहे को करेला?”

महेश ने उसके कंधे पर थपकी दी…और चला गया।

विवेक मुड़ा तो अंजला सामने ही खड़ी नजर आ गई।

विवेक के मस्तिष्क में छनाका-सा हुआ…फिर वह आगे बढ़ा।

“यह क्या हो गएला अंजू। अभी कल रात ही तो अपन दोनों की सुहागरात होएली थी और आज…।”

“धीरे बोलो विवेक…दीवारों के भी कान होते हैं।”

“अब क्या धीरे बोलें…सब कुछ चौपट हो गएला है।”

“तुम्हारी सादगी कभी-कभी बहुत कष्टदायक बन जाती है।”

“अरे साली…अपन से ज्यादा तकलीफ में कौन होएंगा…यह साला महेश दो बार मर-मर के जिन्दा होएला है‒अगर तीसरी बार जिन्दा हो गएला तो अपन इसको सचमुच मार डालेंगा।”

“विवेक!”

“अपन क्या करे अंजू‒कल रात का नशा अपन को अभी तक चढ़ेला है…ऐसा लगेला है कि अपन को स्वर्ग से उठाकर नरक में फेंक दियाला है।”

“विवेक‒तुम जाओ।”

“अरे! तू भी वही बोलेली है।”

“हां विवेक….अभी तो मैं महेश ही की पत्नी हूं।”

“अपन की भी तो है‒कल ही रात तो अपन दोनों शादी रचाए ली थी।”

“वह शादी तो गलती से हो गई थी…महेश के जिन्दा लौट आने पर वह शादी टूट गई।”

“अबे साली…अपन की शादी कोई तोड़ेंगा तो अपन उसको तोड़ देंगा…खबरदार! ऐसा शब्द जबान पर नहीं लाने का…शादी टूट गई तो वह सुहागरात भी टूट गई जो अपन दोनों ने मनाएली थी।”

“विवेक…तुम मुझसे कितना प्यार करते हो।”

“इतना, जितना पहले कभी कोई किसी से नहीं किया होएंगा।”

“तो प्यार करने वाला अपनी प्रेमिका को इस तरह बदनाम करता फिरता है।”

“अरे साली…अपन तेरे को बदनाम करेंगा।”

“तुम जिस तरह यहां आए…और जो-जो बातें तुमने डैडी और महेश से कीं…अगर वह बातें कोई नौकर या बाहर वाला सुन लेगा तो क्या मेरी बदनामी नहीं होगी।”

विवेक सिर खुजाकर बोला‒

“वैरी सॉरी…अपन से ऐसा होएला‒क्या करें, कभी-कभी अपन सैन्स में नहीं रहता।”

“मगर अब तुम्हारा सैन्स में रहना जरूरी है…तुम आज मुझे वचन दो।”

“बोलो, क्या वचन मंगता?”

“तुम कोई ऐसी बात नहीं कहोगे‒ऐसी हरकत भी नहीं करोगे जिससे मेरी बदनामी हो‒तुम इधर आओगे भी नहीं…महेश तुम्हारा दोस्त है…तुम कोई ऐसी पत्थरमार बात जबान पर नहीं लाओगे जिससे उसका अपमान हो…ऐसी कल्पना भी नहीं करना।”

“नहीं करेंगा…वचन देता हूं।”

“जायेला है…पर अपन की शादी तो नहीं टूटेगी।”

“यह बात तुम उस ज्योतिषी से पूछना जिसने हम दोनों के हाथों की रेखाओं के बारे में बताया था।”

विवेक कुछ देर खड़ा उसे देखता रहा‒फिर वह चुपचाप लौट गया‒अंजला खड़ी उसे पीछे से तब तक देखती रही जब तक वह दृष्टि से ओझल नहीं हो गया। फिर आंसू पोंछती हुई वापस कमरे में पहुंची तो देवयानी जैसे उसी के इन्तजार में खड़ी थी। अंजला की आंखें छलक पड़ीं…उसने रुंधे गले से कहा‒

“सुन लिया तूने सब कुछ?”

“हां‒सुन लिया।”

“क्या हो गया है…मैं तो समझी थी सचमुच महेश मर गया है‒इसीलिए मैंने कल रात विवेक के साथ गुप्त शादी करके सुहागरात तक मना ली थी। पता नहीं किसने वह झूठी खबर टेलीफोन पर मुझे दी थी।”

“मैंने दिलवाई थी।” देवयानी ने गम्भीरता से कहा।

“क्या?” अंजला उछल पड़ी‒”तूने?”

“हां अंजला…अगर मैं ऐसा न करती तो दूसरा रास्ता यही था कि तू महेश का गर्भ गिरा दे या विवेक से एक बार शारीरिक मिलाप कर ले…इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं था।”

“देवयानी।”

“मैंने तुझसे कहा था न कि अगर विवेक को महेश के स्वर्गवासी होने के बाद पता चला कि तू महेश के साथ सुहागरात मना चुकी है और तेरी कोख में महेश का गर्भ है तो वह तुझे स्वीकार नहीं करेगा…इसके लिए तू या तो अपना गर्भ गिरा दे या विवेक से एक बार शारीरिक मिलाप कर ले…मगर मैं जानती थी कि विवेक तुझसे शादी किए बगैर ऐसा सम्बन्ध नहीं जोड़ेगा इसलिए मैंने एक ओर यह पता लगाया कि महेश और अंकल को कब तक दिल्ली रुकना है और दूसरी ओर मैंने विवेक की जन्मकुण्डली एक ज्योतिषी को दिखाकर उसे काफी रकम देकर यह झूठ बोलने पर मजबूर किया कि वह विवेक से कह दे कि विवेक केवल चौबीस घंटे के अन्दर-अन्दर शादी कर सकता है…अगर पच्चीसवां घंटा शुरू भी हो गया तो उसकी मां मर जाएगी।”

फिर मैंने मंगली काका के नाम से तुझे महेश के ऑपरेशन टेबल पर दम तोड़ देने की खबर पहुंचा दी…फिर मैं खुद ही तेरे पास आई और तुझे विवेक से शादी करने पर राजी होना पड़ा….और इस तरह तेरी सुहागरात हो गई। अब तू विवेक से कह सकती है कि तेरी कोख में महेश का नहीं, तेरा ही गर्भ है।

“हे भगवान! तूने इतना बड़ा फ्रॉड कर डाला।”

देवयानी मुस्करा कर बोली‒”सब कुछ अपनी सहेली और अपने भोले-भाले हसबैंड की खातिर।”

“मगर क्या इस तरह विवेक की जिन्दगी खतरे में नहीं पड़ गई?”

“वह कैसे?”

“मैंने महेश को कभी दिल से हसबैंड स्वीकार नहीं किया था…कल पहली बार विवेक को ही दिल से हसबैंड स्वीकार कर लिया।”

“पर।”

“इस तरह क्या विवेक ही मेरा पहला सुहाग नहीं बन गया?”

“बड़ी भोली है तू।”

“क्या मतलब?”

“अरे तेरे हाथ की रेखा में लिखा है कि तेरा पहला पति मर जाएगा।”

“हां।”

“इसीलिए तूने विवेक की बजाए महेश से शादी कर ली।”

“हां।”

“और तूने महेश को दिल से पति नहीं माना।”

“हां।”

“इस तरह तो तू दस शादियां भी कर ले और किसी को भी दिल से हसबैंड न माने…इसके बाद विवेक से शादी कर ले…तब भी विवेक ही तेरा पहला हसबैंड होगा?”

“नहीं…।”

“पगली…दिल से माने न माने‒मगर विधिवत फेरों के बाद महेश ही तेरा पति हो गया…उसके साथ सुहागरात भी तूने मना ली…अब तेरी कोख में जो बच्चा है वह महेश का है…इसलिए क्या तू उसे अपना बच्चा नहीं मानेगी।”

“देवयानी…!”

“यह भ्रम दिल से निकाल दे‒महेश ही तेरा पहला हसबैंड है और उसके मरने के बाद तू विवेक से शादी करेगी तो विवेक तेरा दूसरा हसबैंड ही होगा।”

अंजला खुशी से देवयानी से लिपट गई।

विवेक जुहू पहुंचा तो वह ज्योतिषी अब भी वहीं बैठा किसी का हाथ देख रहा था और उसके भाग्य का हाल बता रहा था…विवेक भी उसके पास जाकर खड़ा हो गया…जब पहला ग्राहक चला गया तो ज्योतिषी विवेक की ओर देखकर बोला‒”हां बच्चा, तेरे माथे की लकीर बताती है कि तेरा लग्न हो गया।”

“बाबा! तुमने एक बार मेरा और मेरी प्रेमिका का हाथ देखकर बताया था कि मेरी पहली पत्नी मर जाएगी और मेरी प्रेमिका का पहला पति।”

“याद है बच्चा…उस दिन तेरी प्रेमिका पर ‘शनि’ की छाया थी, मगर वह दिन तेरे कारण कुशलता से गुजर गया था।”

“बाबा! मैंने अपनी शादी एक बुरी लड़की से कर ली थी जो मर जाएंगी तो समाज का कलंक मिट जाएंगा‒मगर वह अब तक जिन्दा है।”

“बेटा! तेरी पहली को तो मरना ही है।”

“मैंने अपनी प्रेमिका की शादी एक ऐसे दोस्त से करवा दी है जो कैन्सर का रोगी था और छः महीने में मरने वाला था।”

“फिर?”

“वह अपने बाप के साथ दिल्ली गया था‒वहां से किसी ने झूठी खबर भेज दी कि वह मर गया है…मुझे एक ज्योतिषी ने मेरी जन्मकुण्डली देखकर बताया कि अगर मैंने चौबीस घंटे के अंदर-अंदर शादी नहीं की तो अगले दस बरस तक मेरे ब्याह के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं है।”

“अच्छा!”

“इसलिए कल रात अपन ने अपनी प्रेमिका से शादी कर ली जिसके विधवा होने की खबर आई थी।”

“फिर?”

“पर आज उसका पति जिन्दा लौट कर आ गएला।”

“ओहो!”

“तो अपन ने अपनी प्रेमिका से कल जो शादी की थी वह टूट गएली या नहीं टूटी।”

“बच्चा! वह शादी तो कानूनन भी टूट गई और धर्म अनुसार भी…क्योंकि उसका पहला पति जिन्दा था‒शादी धोखे में कर ली गई।”

विवेक के मस्तिष्क में एक छनाका-सा हुआ…उसने पूछा‒

“अब अगर अपन उसके विधवा होने के बाद उससे शादी कर ले तो वह शादी…शादी ही होगी।”

“पर वह विधवा तो होएंगी न?”

“उसके हाथ की रेखाएं तो यही कहती हैं…मगर तुम जरा अपना हाथ दिखाना।”

विवेक ने हाथ बढ़ा दिया। ज्योतिषी ने हाथ देखा, फिर ध्यान से विवेक की ओर देखकर कहा‒”तुमने पहली शादी किसी दूसरी लड़की से की थी न।”

“हां।”

“दूसरी शादी धोखे से तुम्हारी प्रेमिका ही से हो गई और वह शादी टूट भी गई।”

“फिर…?”

“तुम्हारे हाथ में तीसरी शादी की तो रेखा ही नहीं है।”

“पर अपन तीसरी शादी करेंगा ही क्यों?”

“तुम अपनी प्रेमिका के विधवा होने के बाद उससे शादी करना चाहते हो न?”

“लेकिन लड़की तो दूसरी ही है।”

“तुम्हारी रेखाओं में पहली, दूसरी या तीसरी लड़की नहीं, दूसरी शादी लिखी है…और वह शादी तुम कर भी चुके, जो टूट भी गई।”

विवेक के मस्तिष्क में जबरदस्त छनाका हुआ‒उसने होंठों पर जबान फेर कर कहा‒”पर बाबा अपन तो उसके बगैर मर जाएंगा।”

“बेटा! भगवान की इच्छा को कोई नहीं टाल सकता।”

“ऐसा नहीं बोलने का बाबा…अपन को अपनी प्रेमिका मांगती है…हमें क्या मालूम था कि वह शादी धोखे से होएली है‒टूट जाएंगी…आप ही कोई उपाय बताओ, बताओ बाबा वरना अपन आत्महत्या कर लेंगा।”

ज्योतिषी ध्यान से उसका हाथ देखता रहा…फिर विवेक का माथा भी देखा। विवेक ने कहा‒

“बोलो न बाबा।”

“बच्चा…उपाय तो है…मगर…।”

“मगर क्या?”

“शादी तुम नहीं कर पाओगे, इसलिए कि तुम्हारा मन दर्पण के समान साफ है…तुम्हारी अंतरात्मा तुम्हें पाप नहीं करने देगी।”

“बाबा…’पाप’ भी कोई उपाय बन सकेंगा।”

“बन जाता है बच्चा…बिल्कुल ऐसा जैसे कभी-कभी जहर अमृत बन जाता है।”

“पर अपन को क्या पाप करने का है?”

ज्योतिषी ने जो भी बताया उसे सुनकर विवेक उछल कर खड़ा हो गया।

“क्या बोला? तू ज्योतिषी है या पाखंडी।”

“बच्चा! मैंने पहले ही कहा था कि तुम्हारी आत्मा ऐसा पाप तुम्हें नहीं करने देगी।”

“साला! ऐसी की तैसी तेरे ज्योतिष की…अरे पंडित होकर शैतान का काम करेला।”

फिर विवेक तेज-तेज कदम उठाता हुआ दूर होता चला गया।

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