विवेक की आंखें खुलीं तो उसके शरीर में टूटन थी…उसने अंगड़ाई के लिए हाथ उठाने चाहे तो उसका हाथ अंजला के शरीर से टकराया और…दूसरे ही क्षण वह झटके से उठकर बैठ गया‒”अरे बाप!”
विवेक हड़बड़ाकर धड़कते दिल के साथ बाहर आ गया‒ड्राइंग रूम में आया तो काउंटर पर देवयानी बैठी धीरे-धीरे घूंट ले रही थी…उसकी आंखें गहरी लाल हो रही थीं…विवेक को देखकर वह मुस्कराई और बोली‒”हैलो!”
कच्चे धागे नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1
“वो…वह…अंदर…अंजला।”
“वह रात भर तुम्हारे ही साथ रही थी।”
“यानी…के…अपन…अपन।”
“तुमने रात जी भरकर उसके साथ एनज्वॉय किया है।”
“ओ गॉड…वह क्या सोचेगी?”
“वह खुद ही गई थी…तुम्हें देखकर खुश हो गई थी।”
“और…अब जागेंगी तो…?”
“तुम्हारा ‘उपाय’ तो हो चुका…अब तुम्हें काहे की चिन्ता।”
“कैसा उपाय?”
“तुम्हें ज्योतिषी ने बताया था न कि अगर तुम किसी दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर डालो तो तीसरी शादी कर सकते हो।”
“क…क… क्या मतलब?”
“अंजला अभी महेश की पत्नी है, मतलब दूसरे की पत्नी और तुमने उस पर बुरी नजर डाली।”
“पर अपन तो ज्योतिषी को नहीं मानता।”
“मानना पड़ेगा विवेक‒अंजला भी पहले ऐसी बातों को नहीं मानती थी, लेकिन जिस दिन ज्योतिष ने उसे बताया था कि आज का दिन उस पर भारी है…और वह मरते-मरते बची थी…तब से अंजला ने ज्योतिष विद्या और हाथ में लिखी भाग्य की रेखाओं को मानना शुरू कर दिया है…जब तुमने मुझसे शादी करके भी सुहागरात नहीं मनाई तो मैंने भी अपना हाथ ज्योतिषी को दिखाया था तो उसने कहा था तुम्हारा लग्न जिससे होगा उसके साथ सम्भोग का सुख तुम्हारे भाग्य में नहीं है।”
“नहीं…!”
“यह सच है विवेक…मैं जब तुम्हारी पत्नी नहीं थी तब तुम्हें मैं केवल बैडरूम पार्टनर बनाना चाहती थी और शादी होने पर तुम बैड पार्टनर नहीं बने…ज्योतिषी की बात पर तब भी मुझे भरोसा नहीं हुआ‒मैंने तुम्हारी मांजी की बहू बनकर तुम्हें जीतने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई…इसी बीच मैं न केवल तुमसे मुहब्बत करने लगी बल्कि अपनी पिछली ‘आवारा’ जिन्दगी से मुझे घृणा होने लगी।”
“धीरे-धीरे मैंने अपने आपको संभाला…मुझे मम्मी के उन उसूलों से नफरत हो गई जिन्होंने मेरी मां होते हुए मुझे गलत रास्ते पर डाला‒कभी सही रास्ता नहीं दिखाया…मैंने फैसला कर लिया कि मैं केवल तुम्हारी मुहब्बत के लिए जिन्दा रहूंगी..जब तक कि मेरी जिन्दगी है, क्योंकि मुझे यह भी विश्वास था कि तुम्हारी पहली पत्नी होने के नाते मुझे मरना भी है।”
थोड़ी देर रुककर उसने फिर घूंट भरा और गहरी सांस लेकर कहा‒”अब मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य रह गया है…तुम्हें और अंजला को मिलाना। इसके लिए मुझे चाहे कुछ भी करना पड़े। तुमने मुझे बताया कि ज्योतिषी ने यह कहा है कि अगर तुम किसी दूसरे की पत्नी पर बुरी नजर डालते हो तो तुम्हारी ‘तीसरी’ शादी हो सकती है…तब मैंने फैसला किया था कि मैं तुम्हारे लिए यह काम भी करूंगी।”
मैं यह जानती थी कि तुम किसी दूसरे की पत्नी के साथ ऐसा नहीं कर सकते…इसलिए मैंने यह नाटक रचाया और तुमने मेरी स्कीम पर अमल तो कर लिया…अंजला को यहां तक ले भी आए, लेकिन मैं जानती थी कि तुम अंजला से महेश के जिन्दा होते हुए ऐसा काम नहीं करोगे…इसलिए मैंने तुम्हें विस्की पिलाकर मदहोश कर दिया।”
“अर्थात हाथ की लकीरों पर विश्वास रखना ही चाहिए।”
“एकदम…नसीब के लिखे को कोई शक्ति नहीं मिटा सकती।”
“यानी महेश मर जाएगा।”
“महेश को तो मरना ही होगा, क्योंकि अंजला को हर हाल में से तुम्हारे जीवन में आना है‒तुम दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हो।”
“साली! अपन आज ही ज्योतिषी से इस बात की पुष्टि करेगा‒।” यह कहकर विवेक जल्दी-जल्दी बाहर निकल गया।
तभी टेलीफोन की घंटी बजी और देवयानी के हैलो कहने के बाद दूसरी ओर से आवाज आई‒”मैं महेश बोल रहा हूं।”
“ओहो…तुम्हें अंजला की तलाश होगी?”
“क्या वह तुम्हारे यहां है?”
“हां…अकेली बोर हो रही थी, मेरे पास आ गई…बातों-बातों में थोड़ी विस्की पीते रहे…और हम दोनों सो गए…मेरी अभी नींद टूटी है टेलीफोन की घंटी सुनकर।”
“अंजला सो रही है?”
“हां‒गहरी नींद।”
“ठीक है…सोने दो…यही पता करना था वह कहां है।”
दूसरी ओर से डिस्कनेक्ट हो गया। देवयानी रिसीवर रखकर मुड़ी तो ठिठक कर रुक गई…उसने अंजला को देखा जो कपड़े पहने ‘कॉरिडोर’ के पास खड़ी थी। देवयानी ने धीरे से रिसीवर रख दिया और उसकी ओर बढ़ते हुए बोली‒
“तो तुम जाग रही थीं?”
“मैं तभी जाग गई थी जब विवेक जागा था।”
“तो तुमने मेरी और विवेक की बातें भी सुन ली होंगी।”
“हां, सब कुछ सुन लिया है।”
“कुछ कहना चाहती हो?”
“नहीं…।”
“फिर सो जाओ।”
“मैं उस छत के नीचे एक मिनट भी नहीं ठहर सकती जिसके नीचे मेरी एक अच्छी सहेली ने एक बार पहले मेरी इज्जत लुटवा कर अपनी जैसी बनाने की कोशिश की थी…आज फिर मेरी इज्जत लुटवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।”
“तुमने इसी छत के नीचे सुहागरात भी तो मनाई थी।”
“तब मैंने स्वयं को विवेक की सुहागिन समझा था, वह मेरे साथ हुए बलात्कार की रात नहीं थी‒मगर आज…आज मैं महेश की पत्नी हूं…आज तुमने जो कुछ करवाया, उसने जितना तुम्हें मेरी नजर में गिरा दिया‒उतना ही स्वयं मुझे अपनी नजरों में भी गिरा दिया।”
“और अब तुम महेश के योग्य नहीं रहीं।”
“मैं ऐसा नहीं समझती…क्योंकि जब मेरे साथ यह सब हुआ तब मैं खुद अपने होश में नहीं थी। मगर तुमने पूरे होशो-हवास में रह कर मुझे धोखा दिया…विश्वासघात…।”
“मैं केवल विवेक से उपाय कराना चाहती थी।”
“इसके लिए क्या कोई और औरत नहीं मिली थी।”
“अंजला, क्या सिर्फ तुम्हारी ही ‘इज्जत’ इज्जत है…किसी और की पत्नी की इज्जत को तुम इज्जत नहीं समझतीं।”
“देवयानी!”
“अंजला! तुम और विवेक एक-दूसरे से प्यार करते हो…तुम दोनों की शादी इसी छत के नीचे हुई थी‒यहीं तुम दोनों ने ‘गोल्डन नाइट’ मनाई थी‒आज जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ वह बलात्कार नहीं था…उपाय है।”
अगर यही कुछ दूसरी औरत के साथ हो जाता तो हो सकता है वह आत्म हत्या कर लेती…या उसके पति को मालूम हो जाता तो निकाल ही देता तो उसका अपना घर बर्बाद हो जाता मगर…यह सब अगर महेश को मालूम भी हो जाए तो वह तुम्हें नजरों से गिराएगा नहीं, क्योंकि वह जानता है कि तुम और विवेक एक-दूसरे से प्यार करते हो और विवेक ने किन हालात में तुम्हें महेश से शादी करने पर मजबूर किया था।
थोड़ी देर बाद मौन रहकर फिर कहा‒
“तुम क्या समझती हो…जो कुछ मैंने विवेक के हाथों कराया है, अगर किसी और औरत के साथ करने को कहती तो वह तैयार हो जाता? अगर मैं धोखे से भी कुछ करा देती तो शायद होश आने पर मुझे भी मार डालता और खुद भी आत्म हत्या करके मर जाता।”
अंजला, वह फरिश्ता है जिसकी छाया में रहकर मैं जानवर से इन्सान बन गई हूं…क्या तुमने मेरी शादी से पहले की ‘आवारगी’ नहीं देखी थी…और जब से विवेक से मेरा बंधन जुड़ा है तुमने मुझे किसी लड़के के साथ देखा है।”
अंजला के होंठों से भर्राई-सी आवाज निकली‒
“उसने कुछ नहीं किया मेरे साथ।”
फिर वह आगे बढ़कर देवयानी से लिपट कर सिसक पड़ी‒देवयानी की आंखें भी छलक पड़ीं और वह धीरे-धीरे अंजला की पीठ थपकने लगी।
विवेक बस से उतर कर तेज-तेज जुहू बीच पर आया तो वह ज्योतिष कुछ लड़कियों के हाथ देख रहा था। लड़कियां खिल-खिला रही थीं जैसे ज्योतिषी का मजाक उड़ा रही हों।
विवेक को गुस्सा आ गया…वह पास पहुंचकर बोला‒”यह क्या होएला है?”
लड़कियों ने उसे देखा…एक लड़की ने बड़े मीठे स्वर में कहा‒”हाय हैंडसम!”
“शटअप।” विवेक दहाड़ा‒”साली बाबा का मजाक उड़ाएली है मारेंगा एक झापड़…दांत बाहर निकल पड़ेंगी।”
लड़कियां घबरा कर उठ गईं। ज्योतिषी ने उसे ध्यान से देखकर मुस्करा कर कहा‒
“आओ बच्चा।”
“बच्चा! उधर का नुकसान अपन भरेंगा।”
“बच्चा! कोई किसी का नुकसान नहीं करता। जिसके भाग्य में जितना जिससे मिलना होता है उतना ही उससे मिलता है।”
“तुम ठीक बोलेला है बाबा…फिर अपन का हाथ देखने का है।”
ज्योतिषी ने विवेक का हाथ देखकर कहा‒”अब तुम तीसरी बार ब्याह कर सकते हो…लगता है तुमने ‘उपाय’ कर लिया है।”
“हां बाबा…पर अपन का ‘उपाय’ पाप में शामिल नहीं किया…अपन को सजा तो नहीं मिलेेंगा।”
“नहीं…क्योंकि तुमने किसी दूसरी औरत का नहीं, उसी औरत का बलात्कार किया है जिससे तुम एक बार फेरे कर चुके हो और वह अब पराई है।”
“धन्य हो बाबा।”
“बच्चा! धन्य ऊपर वाला है…उसकी लीला अपरम्पार है।”
“अपन की प्रेमिका विधवा हो जाएंगी न?”
“उसकी भाग्यरेखा तो यही बताती है।”
“पर कब तक?”
“यह केवल भगवान ही जानता है।”
“अरे जब भगवान इत्ता धन्य है तो सब कुछ ठीक करेंगा।”
विवेक ने ज्योतिषी के हाथ पर तीन बार हाथ देखने के फीस रख दी, लेकिन बाबा ने एक बार की फीस रख ली और बाकी लौटा दी‒”बच्चा! मेरे पास तेरे हाथ का इतना ही ‘धन’ आना था।”

विवेक उठ खड़ा हुआ…वह बहुत खुश नजर आ रहा था, क्योंकि उसे विश्वास था कि महेश का ऑपरेशन अब सफल नहीं होगा। वह सोच रहा था कि उसके हाथ में तीसरी बार लग्न की रेखा न उभरती‒इस काम के लिए उसे देवयानी ने सलाह दी थी…उसी की मदद से वह कुछ कर भी सका वरना उससे तो कुछ भी नहीं होता।
विवेक ने सोचा कि उसे यह खुशखबरी सबसे पहले देवयानी को सुनानी चाहिए कि अब वह विश्वासी हो गया है और उसका ‘उपाय’ सफल रहा…अब वह तीसरी बार शादी कर सकता है।
यही सोचता हुआ वह आगे बढ़ा कि अचानक उसकी निगाह एक अधेड़ आयु सूटिड-बूटिड आदमी पर पड़ी…जिसके हाथ में सेल्यूलर फोन था…साथ में एक बहुत सुन्दर नौजवान लड़की…वो दोनों आपस में इस प्रकार बातें कर रहे थे कि कोई भी समझ सकता था कि उन दोनों के बीच क्या रिश्ता होगा।
“सर! मेरी सेलरी तो बढ़ जाएगी न?”
“ऑफकोर्स…बल्कि हम तो सोच रहे हैं कि तुम्हें एक फ्लैट और कार भी कम्पनी की ओर से दिलवा दें।”
“हाउ स्वीट ऑफ यू, सर।”
लगता था वह लड़की बूढ़े की सैक्रेटरी थी…विवेक ने उसके पास पहुंचकर बड़ी शिष्टता से कहा‒”सर…!”
बूढ़े ने चौंक कर देखा…लड़की की निगाहें जैसे विवेक पर जमी-सी रह गईं।
“क्या है?” बूढ़े ने कुछ कड़े स्वर में कहा‒”तुम हट्टे-कट्टे होकर धोखे से भीख मांगते हो या कि तुम्हारा बटुवा किसी ने मार लिया…नौकरी ढूंढ़ने आए थे, वापस घर जाना है…मेरी मदद कर दीजिए।”
“ओ बुड्ढे…अपन इधर का ही रहने वाला है…अपन को थोड़ी देर के वास्ते मोबाइल मंगता है तेरा…अपनी घरवाली को फोन मारने का है।”
बूढ़ा गुस्से से आग-बबूला हो गया और बोला‒
“शटअप! यू बास्टर्ड! किसी शरीफ आदमी से बात करने की तमीज नहीं।”
विवेक ठहाका लगाकर बोला‒
“शरीफ आदमी! क्या शरीफ आदमी तेरे जैसा होएला है। साला खूसट-लंगूर ‘हूर’ को बगल में लिए फिरेला है।”
बूढ़ा जैसे आपे से बाहर हो गया‒”मैं…मैं तुझे गोली मार दूंगा।”
विवेक ने झपट्टा मार कर उसके हाथ से मोबाइल छीन लिया…बुड्ढा झपटता हुआ दहाड़ा‒”हरामी…चोर…चोर।”
“हे-हे-हे…हे-हे-हे।” विवेक उसे चिढ़ाता हुआ भागता रहा…कभी इधर कभी उधर…कभी उसकी बगल से निकल जाता…लड़की भी अपनी हंसी रोक न सकी।
थोड़ी देर में बूढ़ा बुरी तरह हांफने लगा था…विवेक उसके सामने उकड़ूं होकर बैठ गया। उसने मोबाइल पर देवयानी का नम्बर मिलाया और रिसीवर कान से लगा लिया….लड़की हंस-हंसकर लोट-पोट हुई जा रही थी।
मोबाइल पर विवेक को दूसरी ओर से आवाज आई‒
“हैलो!”
“हैलो देवयानी…अपन बोलेला है।”
“अरे विवेक…कहां से बात कर रहे हो?”
“टेलीफोन एक्सचेंज के सामने से।” विवेक मुंह चिढ़ाकर बुड्ढे को देखता हुआ बोला‒”अपन तेरे को एक खुशखबरी देने का है…अपन का ‘उपाय’ सफल हो गएला…अपन के हाथ में तीसरी शादी का लकीर बन गए ला।”

“अब तो खुश हो न?”
“हां…ओ. के…फिर मिलेंगे।”
विवेक फोन बंद करके जेब से पांच का नोट निकाल कर बूढ़े के सामने रखकर बोला‒
“सर…दो रुपये कॉल…बाकी टिप।”
बूढ़ा दांत पीस कर रह गया। विवेक ने उठकर लड़की से कहा‒”ऐ छोकरी…ले जाओ अपने पापा को…जो फ्लैट दिलाएंगे, कार दिलाएंगे…सेलरी दोगुनी करेंगा।”
