जौनी और फ्रैडा हाउस बोट में पहुंचे। बांस की बुनी एक कुर्सी पर बैठते हुए जौनी ने कहा – ‘लॉकरों की निगरानी की जा रही है।’
फ्रैडा की आंखों में निराशा-सी दौड़ गई। बेचैनी-सी महसूस करते हुए वह उसके नजदीक पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। जौनी समझ गया कि वह बेहद लालची औरत थी।
‘अब क्या करेंगे हम?’ उसने बेचैन स्वर में पूछा।
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जौनी ने उसकी ओर निगाहें डालीं और फिर झील की ओर आंखें घुमाता हुआ विचारपूर्ण ढंग से बोला – ‘सुनो। जब मैंने इस चोरी की योजना बनाई थी तो मैं पक्का निश्चय कर चुका था कि अत्यंत धैर्य से काम लूंगा। मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि लगभग दो वर्ष तक उस रकम को खर्च करना सुरक्षित नहीं होगा’
वह चौंक गई।
‘क्या कह रहे हो – दो वर्ष!’
‘हां। वह धन जब तक लॉकर में है, तभी तक सुरक्षित है। उसको वहां से निकलने की कोशिश करना, अपनी मौत को दावत देना है। हमारी जरा-सी चूक हमें मौत के मुंह में धकेल देगी और धन वापिस मसीनो के पास पहुंच जाएगा। कुछ दिनों बाद वह निगरानी करा-कराके जरूर ऊब जाएगा और फिर निगरानी खत्म करा देगा। इसमें वक्त जरूर लग सकता है। हो सकता है एक महीने का समय लग जाए और ये भी मुमकिन है कि छः महीने गुजर जाएं।’
‘तुम्हारा छः महीने तक यहीं ठहरने का इरादा है क्या?’
‘नहीं। मैं कोई नौकरी खोज लूंगा। मुझे नावों के बारे में अच्छी जानकारी है – अतः टाम्पा जाकर कोई नौकरी कर लूंगा।’
‘और मेरा क्या होगा?’ उसके स्वर में कटुता थी।
जौनी ने उसकी ओर देखा। फ्रैडा चमकीली आंखों से उसे घूर रही थी।
‘मेरे पास कुछ धन है।’ जौनी ने कहा – ‘परन्तु इस तरह यहां नहीं रहा जा सकता। यदि तुम चाहो तो मेरे साथ चल सकती हो।’
‘तुमने कितने धन की चोरी की थी, ये तो मुझे नहीं बताया’
और जौनी उसे वास्तविक संख्या बताना भी नहीं चाहता था, अतः झूठ का सहारा लेते हुए वह बोला -‘लगभग पचास हजार डॉलर।’
‘सिर्फ पचास हजार डॉलर के लिए तुमने अपनी जान की बाजी लगा दी।’ फ्रैडा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा।
‘हां। क्योंकि इतनी ही रकम से मेरा सपना साकार हो जाएगा।’
फ्रैडा ने अविश्वास से उसे घूरा फिर बोली – ‘तुम शायद मुझ पर यकीन नहीं कर पा रहे हो इसीलिए वास्तविक संख्या नहीं बताना चाहते। रकम इससे जरूर ज्यादा है। ज्यादा है न?’
‘हो सकता है। मैंने उसे गिना तो था नहीं। कम भी हो सकते हैं और ज्यादा भी।’
वह विचारमग्न हो गई।
जौनी ने शांत स्वर में पूछा-‘तुम शायद दस हजार डॉलर को लॉकर में रखे पचास हजार डालरों से ज्यादा अच्छा समझ रही हो।’
फ्रैडा चौंककर उसकी ओर देखने लगी। वह बोली -‘नहीं, असल में मैं स्वयं भी तुम्हारे साथ बोट पर होने की कल्पना कर रही थी।’
मगर जौनी जानता था कि वह झूठ बोल रही थी। अतः वह बोला-‘कोई ऐसा काम मत कर बैठना कि बाद में जिसके लिए तुम्हें पछताना पड़े।’ जौनी का स्वर गंभीर था। ‘मान लो तुमने इन अटार्नीज को फोन कर भी दिया तो जानती हो क्या होगा। पांच-छः आदमी यहां आएंगे और मुझे जीवित पकड़ने की कोशिश करेंगे, क्योंकि मेरे मर जाने के बाद तो उन्हें धन का पता चलने से रहा और एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझे जिन्दा पकड़ लेना उनके लिए असंभव होगा। मसीनो के साथ डबल क्रॉस करने वालों का अंत मैंने अपनी आंखों से देखा है। उन्हें कुर्सी से बांधकर बेस बाल के बैट द्वारा पीटा जाता है और उल्टा लटका दिया जाता है, वे घोर यातनाएं सहते हुए तड़प-तड़पकर मर जाते हैं। मैं स्वयं को जिन्दा उनके हाथों नहीं पड़ने दूंगा – यहां गोलियों की वर्षा होगी – रक्तपात मचेगा और उसी में किसी न किसी की गोली का तुम भी निशाना बन जाओगी। मेरी बात का यकीन करो बेबी। दस हजार डॉलर का इनाम हासिल करने के लिए कोई जिन्दा नहीं रहेगा। यह तो मात्र उनकी चाल ही है। अतः मैं कहता हूं कि कोई ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हें बाद में पछताना पड़े।’
फ्रैडा ने सिहरते हुए उसका हाथ थाम लिया- वह बोली -‘मैं तुमसे दगा नहीं करूंगी जौनी -मैं कसम खाती हूं कि तुम्हें धोखा नहीं दूंगी, मगर एड का क्या होगा?’
‘उसके बारे में मैंने सोच लिया है। तुम उससे कहोगी कि जब मैं मछली पकड़ने के लिए गया हुआ था तो तुमने मेरे सामान की तलाशी लेनी चाही, मगर सूटकेस में ताला लगा हुआ था। अतः जब मैं वापस लौटा तो डाक देखने और अखबार खरीदने चली गईं। स्टोर से तुमने अटार्नीज को फोन किया कि जिस आदमी की उन्हें तलाश थी वह लिटिल क्रीक में मौजूद है परन्तु जानती हो जवाब में उन्होंने क्या कहा – उन्होंने कहा कि वह आदमी मियामी में मिल चुका है। एड पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी?’
फ्रैडा के मुंह से चैन की सांस निकल गई। वह बोली, ‘तुम्हारी कहानी ठीक लगती है लाँग डिस्टेंस कॉल में दोबारा पैसे खर्च करना वह नहीं चाहेगा और बात खत्म हो जाएगी।’
‘मैं इस सप्ताहांत तक यहीं ठहरूंगा। फिर उससे कह दूंगा कि मैं जा रहा हूं। जिस कार की बातें तुम कर रही थीं- उसे किराये पर लेकर हम टाम्पा चले जाएंगे।’
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‘इतने दिन इंतजार करने की क्या तुक है – हम कल ही क्यों नहीं चल पड़ें।’
‘हर काम योजनानुसार ही ठीक रहता है। अगले पांच दिन में तुम मुझसे मुहब्बत करने लगोगी, फिर इसी आशय का पत्र लिखकर यहां छोड़ दोगी कि मुझसे मुहब्बत हो जाने के कारण तुम मेरे साथ जा रही हो। जल्दबाजी की तो सारा काम बिगड़ जाएगा। उसे शक हो जाएगा और वह इन अटार्नीज को फोन कर सकता है। गांव में पता करने पर उसे जानकारी मिल जाएगी और फिर हम अधिक दूर नहीं जा सकेंगे। मेरा यकीन करो, मौत का यह खेल बहुत ही धैर्यपूर्वक खेला जाएगा।’
‘इंतजार…इंतजार आखिर कब तक।’ फ्रैडा खड़ी हो गई।
‘हे भगवान, मैं इस जिन्दगी से ऊब चुकी हूं।’
‘ऊब भरी जिन्दगी से फिर भी मौत बेहतर है।’ जौनी खड़ा होते हुए बोला – ‘मैं शाम को खाने के लिए कुछ ढूंढने जा रहा हूं।’
उसे वहीं छोड़कर जौनी अपने कमरे में जा पहुंचा। अंदर से दरवाजा बंद करके उसने चटखनी लगा दी। अपनी दूसरी खाकी कमीज की जेब से उसने लॉकर की चाबी निकाली। कुछ क्षण तक उसे घूरता रहा। चाबी पर लॉकर का नम्बर 186 खुदा हुआ था। यह चाबी एक लाख छियासी हजार डॉलर की थी। उसकी किस्मत के ताले की थी, जिसमें उसका सपना साकार होना था।
पलंग पर बैठकर उसने अपने जूते के तस्मे खोले और चाबी जूते में
डालकर पुनः तस्मा बांध लिया। यद्यपि वह पैर में चुभ रही थी मगर सुरक्षित थी।

कुछ मिनट बाद वह डैक पर आ गया।
फ्रैडा लिविंग रूम में थी।
‘मैं थोड़ी देर में आऊंगा।’ उसने कहा और मोटरबोट की ओर बढ़ गया। कुछ ही देर बाद वह मोटरबोट को झील में दौड़ा रहा था।
दौलत आई मौत लाई भाग-24 दिनांक 11 Mar.2022 समय 08:00 बजे रात प्रकाशित होगा

