Daulat Aai Maut Lai Hindi Novel | Grehlakshmi
daulat aai maut lai by james hadley chase दौलत आई मौत लाई (The World is in My Pocket)

उसने थैले उठाये और तेज रफ्तार से उस ओर लपक लिया जहां उसने कार पार्क की थी। कुछ दूर पहुंचने पर उसने स्टेयरिंग व्हील पर तैयार बैठी फ्रैडा को स्पष्ट रूप से देख लिया। उसके कदमों में और तेजी आ गई।

मगर तभी मौत के इस खेल में उसकी जीत हार में बदल गई। उसका सुहाना सपना साकार होने की जगह खूनी आकार में तब्दील हो गया। मौत ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया।

फ्रैडा ने उसे अपनी ओर आते देखा और वह सांसें रोककर उसकी प्रतीक्षा करने लगी। तभी उसने देखा-जौनी के घुटे सिर पर एक लाल धब्बा प्रगट हुआ। थैले उसके हाथ से छूटकर नीचे जा गिरे। उसका भारी जिस्म हवा में लहराया और फिर भरभराकर नीचे फर्श पर गिर गया।

जौनी के सिर से खून का फव्वारा छूटता देखकर फ्रैडा के होश फास्ता हो गए। वह मूर्ति की तरह स्थिर होकर रह गई-उसका मस्तिष्क विचार-शून्य हो गया-तभी एक औरत की चीख ने उसके विचार-शून्य मस्तिष्क को क्रियाशील कर दिया। उसने देखा-तीन आदमी न जाने कहां से भूत की तरह प्रगट हुए-उन्होंने थैले उठाये और तुरन्त गायब हो गये।

सब-कुछ पलक झपकते ही हो गया।

‒इसी उपन्यास में से

दौलत आई मौत लाई

नोटों से भरा भारी थैला उठाये सैमी घिसट-घिसटकर चल रहा था। वर्षा की हल्की-हल्की बूंदों से उसका काला चेहरा तर हो रहा था। सैमी ऊंचे कद का, लगभग तीस वर्ष की उम्र का एक हृष्ट-पुष्ट नीग्रो था। उसके चौड़े कंधे, भारी-भारी मजबूत हाथ-पैरों को देखकर, कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ऊपर से इतना हृष्ट-पुष्ट, मजबूत किस्म का दिखने वाला यह व्यक्ति, अंदर से चूहे के मानिंद डरपोक किस्म का व्यक्ति होगा।

उसके कंधे पर लदे भद्दे थैले में उस समय करीब-करीब साठ हजार डॉलर के नोट रखे हुए थे और इसी भारी रकम के कारण उसका दम खुश्क हुआ जा रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों से डर साफ-साफ परिलक्षित हो रहा था क्योंकि पूरा शहर इस तथ्य से भली-भांति परिचित था। आज शुक्रवार का दिन जो था।

हरेक शुक्रवार को उसे चार घंटे का सफर, निरंतर पैदल ही तय करना पड़ता था। इन चार घंटों में वह विभिन्न बार, न्यूज स्टैंड्स तथा मशीन द्वारा जुआ खिलाने वाले आदमियों से रकम इकट्ठी किया करता था। इस पूरी प्रक्रिया के मध्य उसका चेहरा पसीने से तर रहता, उसे हर क्षण किसी अनिष्ट की आशंका बनी रहती कि कहीं कोई उसे गोली मारकर यह रकम न हथिया ले।

पिछले दस वर्षों से वह निरंतर इस काम को करता आ रहा था, तिस पर भी वह अभी तक भय-मुक्त नहीं हो पाया था। प्रत्येक शुक्रवार को उसकी जान सूली पर टंगी रहती थी। वह इस चिंता से मुक्त नहीं हो पाया था कि ये शुक्रवार गुजर गया, पर अगले शुक्रवार को अवश्य कुछ न कुछ होकर रहेगा।’ इस पूरे अरसे के दौरान वह जोये मसीनो की ताकत पर यकीन नहीं कर पाया था कि लगभग पांच लाख की आबादी वाले इस छोटे-से शहर में कोई ऐसा सिरफिरा था, जो सैमी से नोटों का भरा थैला हथियाने का हौसला कर सकता था।

सैमी अक्सर सोचता रहता था कि जौनी वियान्डा के मौजूद रहते उसे इतना डरने की कोई वजह नहीं है। जौनी वियान्डा से तेज और अचूक निशानेबाज और कोई व्यक्ति मसीनो के गिरोह में नहीं था और जौनी अक्सर उसकी हौसला-अफजाई भी करता रहता था। वह सैमी से कहता रहता कि अगर तुमसे कोई थैला हथियाने की दुश्चेष्टा करे भी तो तुम सिर्फ थैले का ध्यान रखना, उससे कैसे निपटा जाए, यह काम मेरा रहा।

किन्तु जौनी का ये उत्साहवर्द्धन भी सैमी को भयमुक्त करने में पूरी तरह असमर्थ था, स्वयं जौनी भी इस हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ था।

पिछले दस वर्षों से वह दोनों जौनी मसीनो के लिए रकमें इकट्ठी करने का काम करते चले आ रहे थे। सैमी की उम्र लगभग बीस वर्ष की थी, तभी से उसने यह काम करना आरंभ कर दिया था। जौनी मसीनो से वह इसके बदले एक अच्छी पगार पाता था और चूंकि उसके अंदर काम करने का उत्साह था अतः इस भय के बावजूद भी इस बात पर गर्व महसूस किया करता था कि मसीनो उसे अपना विश्वासपात्र समझता है, तभी तो उसे इतना महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है, मसीनो के द्वारा।

परन्तु हकीकत यह थी कि सैमी यदि चाहता भी, तो भी वह कोई गड़बड़ नहीं कर सकता था। पहली बात तो यह थी कि जौनी वियान्डा साये की तरह हरदम उसके साथ चिपका रहता था। दूसरे सारा सिलसिला एकदम साफ-सुथरा था।

सैमी को नोटों से भरा सीलबंद लिफाफा दिया जाता था तथा जौनी के सीलबंद लिफाफे में हस्ताक्षर युक्त चिट पर नोटों की संख्या अंकित रहती थी। मसीनो के कार्यालय में पहुंचकर जब एकत्र की गई रकम की गिनती होती उस समय ही उन्हें रकम की सही संख्या का पता चलता था, उससे पहले नहीं।

दस वर्षों के इस लम्बे अरसे में वह रकम निरंतर बढ़ती जा रही थी। बीते शुक्रवार को तो सैमी यह जानकर हैरान हो गया था कि इकट्ठी की गई उस धनराशि की संख्या तिरेसठ हजार डॉलर थी।

हालांकि उसे विश्वास था कि मसीनो जैसे बदमाश का धन और वह भी जौनी वियान्डा जैसे निशानेबाज की मौजूदगी में उससे छीन पाने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता था फिर भी इसी पेशोपश में खोए, थके-थके पैरों से कदम उठाते हुए सैमी ने बेचैनी से चारों ओर देखा। सड़क पर चलते राहगीर उसके लिए रास्ता छोड़कर, व्यंग्य से मुस्कुराते हुए उस पर फब्तियां कसते जा रहे थे।

एक अन्य नीग्रो ने अपने मकान के दरवाजे पर खड़े होकर हांक लगाई – ‘ऐ सैमी, इस थैले को मत गिरा देना। इसमें मेरी जीती हुई रकम भी बंद है।’

वहां मौजूद व्यक्ति सुनकर हंस दिए।

सैमी के मसानों ने ढेर सारा पसीना एक बार ही उगल दिया। किसी आशंका से उसके कदम स्वयं ही तेजी से आगे बढ़ने लगे। अब सिर्फ एक ही व्यक्ति शेष बचा था जिससे रकम हासिल करनी थी और वह व्यक्ति था सौली जेकब।

सौली जेकब ने रकम का लिफाफा उसे पकड़ाते हुए कहा – ‘इस सप्ताह की भी रकम कम तो नहीं है, किंतु मिस्टर जोये से कहना कि अगली बार वह तुम्हारे साथ नोटों को ले जाने के लिए ट्रक का प्रबन्ध कर दें, क्योंकि अगले शुक्रवार को फरवरी की उनतीस तारीख है और उस दिन शहर का हर आदमी अपनी किस्मत जरूर आजमाना चाहेगा, समझ गए? इस गलतफहमी में मत रहना कि उस दिन भी सारी जगहों की उगाही तुम्हीं दो लोग कर लोगे।

सुनकर सैमी सिहर उठा। लिफाफा बैग में डालते समय उसके हाथ कांप गए। सौली कहता गया – ‘और जौनी, मेरे विचार से अगले हफ्ते सैमी की सुरक्षा का प्रबन्ध भी बहुत तगड़ा होना चाहिए। इस बारे में अगर मिस्टर जोये बेहतर समझें तो तुम मेरे विचारों से उन्हें अवगत करा देना।’

सुनकर जौनी के मुंह से सिर्फ गुर्राहट निकली – वह बहुत कम बोलता था, बिना कोई जवाब दिए वह मुड़ गया और गेट से बाहर निकलकर सड़क पर आ गया। सैमी भी उसके साथ-साथ निकल आया।

कुछ ही गज के फासले पर जौनी की फोर्ड कार खड़ी थी। कार में बैठते ही सैमी की जान में जान आई। उसने राहत की सांस ली। उसकी चौड़ी कलाई में कसी हथकड़ी खाल में धंस रही थी। हथकड़ी द्वारा थैला बंधा रहना भी उसके डर का कारण था। उसने किसी अखबार में पढ़ा था कि एक बैंक कर्मचारी इसी प्रकार नोटों के भरे थैले को अपने हाथ में बांधकर रखता था। उसे लूटने के लिए किसी लुटेरे ने बैंक कर्मचारी का वह हाथ ही काट दिया था उसके कंधे से। बेचारा बैंक कर्मचारी, बैंक की रक्षा करते-करते जिन्दगी भर के लिए अपने एक हाथ से महरूम हो गया था।

जौनी वियान्डा ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर इंजन स्टार्ट कर दिया।

सैमी अपनी बेचैन नजरों से उसे देखता रहा। उसे ऐसा लगा मानो जौनी विचारों के चक्र में फंसा किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा था। स्वयं उसकी भी पिछले हफ्तों से यही मनोदशा थी। वह पहले की उपेक्षा कुछ अधिक ही शान्त नजर आता था जैसे कोई चीज अंदर ही अंदर उसे सालती जा रही थी और सैमी उसकी ऐसी हालत देखकर काफी चिन्तित रहता था क्योंकि उसे जौनी से बेहद लगाव था। सैमी, ठिगने मगर गठीले बदन वाले, भूरी आंखों तथा सख्त चेहरे के मालिक जौनी को बेहद पसन्द करता था। जौनी की शारीरिक शक्ति और फुर्ती का वह प्रशंसक था। उसे आज भी वह दृश्य याद है जब वह जौनी के साथ एक बार में बैठा बीयर का आनंद ले रहा था तो एक शक्तिशाली गुण्डे ने जो शक्ति में जौनी से कहीं ज्यादा ताकतवर था, खामख्वाह जौनी पर व्यंग्य कसते हुए उससे उलझने की चेष्टा की थी। जौनी ने बड़े शांत स्वर में उसे ऐसा करने से मना किया था किन्तु वह मानने की बजाय बदतमीजी और बेहूदी हरकतों पर उतर आया था। सैमी तो लड़ाई-झगड़े की संभावना मात्र से घबरा उठा था परन्तु जौनी शांत और लापरवाह ही बना रहा था। जब वह गुण्डा किसी तरह से न माना, तो जौनी आराम से खड़ा हो गया और अपने दाएं हाथ से एक प्रचंड मुक्का उसके मुंह पर दे मारा।

मुष्ट प्रहार इतनी तीव्रता से किया गया था कि सैमी उसे हाथ चलाते देख भी न सका था, मगर उसका परिणाम फौरन उसके सामने था। एक ही घूंसे के वार में वह गुण्डा जमीन पर धराशायी हो चुका था।

जौनी पत्थर की तरह एक कठोर दिल का व्यक्ति था, परन्तु उसका व्यवहार सैमी के प्रति बहुत अच्छा था। वह कम बोलता था और यद्यपि उन्हें साथ-साथ काम करते दस वर्ष का लम्बा वक्त बीत चुका था, पर सैमी को जौनी के बारे में अभी तक सिर्फ मामूली-सी जानकारी थी। उसके अनुसार जौनी बीस वर्ष से मसीनो का गनमैन था। बयालीस वर्षीय जौनी अभी तक कुंवारा था तथा अकेला ही रहता था। उसका कोई सगा संबंधी नहीं था। दो कमरों के अपार्टमेंट में रहता था, तथा मसीनो उससे विशेष रूप से प्रभावित था। जब कभी सैमी को अपने छोटे भाई अथवा किसी बाजारू औरत की समस्या का सामना करना पड़ता तो वह हमेशा जौनी की सलाह लिया करता था। हालांकि सैमी को अपनी समस्या का हल तो नहीं मिलता था, फिर भी जौनी द्वारा दी गई सलाह और सांत्वना उसे उत्साह प्रदान करती थी।

जौनी द्वारा दी गई एक सलाह उसे अच्छी तरह याद थी। जौनी ने कहा था – ‘सुनो सैमी इस धंधे में तुम्हारी पगार तो काफी है किन्तु यह कोई स्थायी धंधा नहीं है। इस धंधे में कब क्या हो जाए, कुछ पता नहीं है। अतः तुम हर हफ्ते कम से कम दस डॉलर में से एक डॉलर की बचत करते रहो तो तुम्हारे लिए बहुत अच्छा रहेगा। इस अनुपात से की गई बचत कुछ ही वर्षों में एक अच्छी-खासी रकम बन जाएगा, शर्त यही है कि तुम इस जुड़ी हुई रकम को किसी भी कीमत पर खर्च करने की चेष्टा न करो तो। इस तरह से ये जोड़ी हुई रकम उस वक्त तुम्हारे बहुत काम आएगी जब तुम इस धंधे से अलग हो जाओगे, क्योंकि यह निश्चय है कि देर-सवेर तुम स्वयं ही इस धंधे से किनारा करने की इच्छा करने लगोगे।’

सैमी ने इस नसीहत को अपने दिमाग में बिठा लिया था। वह अपनी कमाई का दस परसेंट नियमित रूप से एक लोहे के बक्से में जमा करने लगा और बक्सा अपने बिस्तर में छुपाये रखता था। कई बार उसे मजबूरी में इस बक्से से रकम निकालनी भी पड़ी। अपने छोटे भाई की सहायता के लिए जिसे पांच सौ डॉलरों की सख्त जरूरत थी, वरना उसे जेल जाना पड़ता। अथवा फिर क्लोम के लिए जो एबॉर्शन करना चाहती थी परन्तु दस साल में ऐसे मौके अधिक नहीं आए और जमा राशि बढ़ती ही गई। पिछली बार सैमी ने जब रकम को गिना तो वह चकित रह गया। थोड़ा-थोड़ा करके जमा की गई यह रकम तीन हजार डॉलर की हो गई थी और वह दस डॉलर के नोटों से भरे बक्से को देखकर नया बक्सा खरीदने की जरूरत महसूस करने लगा। वह इस बारे में जौनी से मशविरा लेना चाहता था परन्तु जौनी तो स्वयं ही किसी गहन चिन्ता में खोया हुआ था। अतः न चाहते हुए भी सैमी ने अपनी इस तीव्र इच्छा को दबा लिया।

रास्ते-भर दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई और फिर वे मसीनो के दफ्तर जा पहुंचे।

दफ्तर के नाम पर एक लम्बे-चौड़े कमरे में बड़ा-सा डेस्क, कुछ कुर्सियां तथा फाइल रखने की ट्रे के अलावा कुछ नहीं था। वजह यह थी कि इस छोटे-से शहर में, मसीनो सादगी में यकीन रखता था। हालांकि उसके पास रोल्स रायस कार थी, सोलह बैडरूम का विशाल भवन था।

मगर यहां नहीं, नजदीक के बड़े शहर में था। इसके अलावा उसके पास मियामी में दस बैडरूम का एक और भवन तथा एक बहुत बड़ी याट (मशीन से चलित नौका) भी थी।

जिस समय जौनी तथा सैमी ने उसके दफ्तर में प्रवेश किया, तो वह डेस्क पर मौजूद खड़ा था। उसका एक अंगरक्षक टोनी केपीलो दीवार पर हाथ टिकाए खड़ा था। छरहरे जिस्म तथा कोबरा सांप की तरह गोल आंखों वाला टोनी पिस्तौल के मामले में जौनी जैसा ही फुर्तीला व्यक्ति था। मसीनो का दूसरा अंगरक्षक अर्नी लेसीनी बेवकूफ की तरह कुर्सी पर बैठा अपना दांत कुरेद रहा था। भारी-भरकम विशालकाय अर्नी के बाएं गाल पर चाकू के जख्म का गहरा निशान था। निशानेबाजी के मामले में वह स्वयं भी किसी से कम नहीं था।

सैमी ने आगे बढ़कर बैग मसीनो के सामने रख दिया। उसके होंठों पर धूर्ततापूर्ण मुस्कुराहट तैरने लगी। पचपन वर्षीय जोये मसीनो शारीरिक रूप से खूब हृष्ट-पुष्ट था। कद मध्यम, चौड़े कंधों पर टिका गर्दन रहित सिर, भारी चेहरे पर चपटी नाक तथा छितराई-सी मूंछों वाला मसीनो बिल्कुल ऊबड़-

खाबड़-सा आदमी था। उसकी आंखें भूरी तथा चमकीली थीं, जिन्हें देखकर आदमियों के मन में तो दहशत भर उठती, किन्तु औरतें अक्सर उसके इन्हीं नैनों के जाल में फंस जाया करती थीं। मसीनो स्त्रियों को बेहद पसन्द करता था और खासतौर पर युवतियों को। मोटा होने के बावजूद भी उसमें काफी ताकत थी। कई बार उसने व्यक्तिगत रूप से गड़बड़ करने वाले अपने ही आदमियों का ऐसा हुलिया खराब किया था कि उन्हें महीनों तक चारपाई से उठना तक मुश्किल हो गया था।

‘कोई परेशानी तो पेश नहीं आई सैमी?’ मसीनो ने पूछा और चमकीली आंखें जौनी की ओर घुमा दीं। जौनी ने भी इंकार में सिर हिला दिया।

‘ठीक है, एन्डी को बुलाओ।’

लेकिन मसीनो का एकाउंटेंट एन्डी कुकास उसके बुलावे से पहले ही ऑफिस में पहुंच चुका था।

एन्डी की आयु पैंसठ वर्ष की थी। उसका शरीर हल्का था किन्तु उसका दिमाग एक कम्प्यूटर की तरह तेज था। पन्द्रह साल पहले जालसाजी के जुर्म में वह सजा काटकर जेल से आया था। तभी मसीनो की नजर उस पर पड़ी और वह उसकी बुद्धिमानी से प्रभावित हो गया। उसने एन्डी को अपनी कारोबार संबंधी आर्थिक समस्याओं को निपटाने का काम सौंप दिया। अन्य कामों के अलावा एन्डी का चुनाव करके भी मसीनो ने अपनी अक्लमंदी का परिचय दिया था। टैक्सों की चोरी, नए व्यापार में धन लगाना तथा धन कमाने की नई-नई स्कीमें बनाना, उन्हें क्रियान्वित कराने में एन्डी के जोड़ का कोई दूसरा व्यक्ति इस समय पूरे अमेरिका-भर में न था।

एन्डी ने सैमी की कलाई से हथकड़ी खोलकर एक कुर्सी घसीट ली और मसीनो के समीप बैठकर थैले से निकली रकम संभालने लगा। मसीनो सिगार मुंह में दबाए उसे देखता रहा।

सैमी तथा जौनी पीछे हटकर खड़े हो गए। नोटों की संख्या तिरेसठ हजार तक पहुंच गई।

एन्डी ने दोबारा से नोट थैले में डाल दिए और मसीनो की ओर देखकर निश्चिन्ततापूर्वक सिर हिला दिया। उसने थैला उठाया और अपने दफ्तर में पुराने ढंग की बनी मजबूत अलमारी में रख दिया।

एन्डी के जाने के पश्चात् मसीनो उन दोनों से संबोधित हुआ -‘ओ.के.मैन। अब दोनों छुट्टी मनाओ। अगले शुक्रवार से पहले मुझे तुम लोगों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और अगले शुक्रवार को कौन-सी तारीख पड़ेगी यह तुम जानते हो ना।’ – कहकर मसीनो की सांप जैसी कठोर आंखें जौनी पर केन्द्रित हो गईं।

‘उनतीस फरवरी।’

‘बिल्कुल ठीक!’ कुटिलतापूर्वक मुस्करा मसीनो-फिर बोला -‘लीप ईयर डे है। मुझे पूरा विश्वास है कि अगले शुक्रवार की रकम डेढ़ लाख डालर से हर्गिज कम नहीं रहेगी।’

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‘सौली भी यही कह रहा था।’

मसीनो ने बुझा हुआ सिगार रद्दी की टोकरी में फेंक दिया।

लगभग फुंफकारती आवाज में बोला – ‘अगले शुक्रवार को अर्नी और टोनी भी तुम्हारे साथ जाएंगे और रकम कार द्वारा एकत्र की जाएगी। तुम लोग ट्रैफिक के नियमों की कोई चिन्ता नहीं करोगे, मैं पुलिस कमिश्नर से बात कर लूंगा। ट्रैफिक पुलिस का कोई आदमी तुम्हारी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखेगा। तुम्हारी जहां मर्जी हो, कार पार्क कर सकते हो। हां, सावधान जरूर रहना है। डेढ़ लाख डॉलर की रकम कम नहीं होती, मुमकिन है कोई दुस्साहसी बदमाश तुमसे रकम छीनने की कोशिश कर ही बैठे।’

मसीनो सैमी की ओर घूमा और बोला -‘घबराओ मत सैमी – तुम्हारी सुरक्षा का सबसे तगड़ा इंतजाम कर दिया जाएगा। अभी से चिन्ताग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं है।’

सैमी को वाकई पसीने छूट रहे थे – उसने मुस्कराने की असफल चेष्टा करते हुए कहा –

‘आपके रहते मुझे किस बात की चिन्ता है बॉस। आप तो बस हुक्म कीजिये -मैं हर खतरे में खुशी-खुशी कूदने के लिए तैयार हूं।’

मसीनो आश्वस्त हुआ। फिर दोनों आज्ञा लेकर मसीनो के कार्यालय से बाहर निकल आए।

बाहर बूंदा-बांदी हो रही थी -जौनी ने सैमी का हाथ थामा और बोला – ‘आओ सैमी बीयर पीएंगे।’

प्रत्येक शुक्रवार को रकम सौंपने के बाद साथ-साथ बैठकर पीना दोनों की आदत बन चुकी थी।

दोनों फ्रेडी के बार में जा बैठे। बीयर की चुस्कियां भरते हुए सैमी ने सहमते हुए पूछा-

‘क्या बात है मिस्टर जौनी, इस बार तुम बहुत परेशान से नजर आ रहे हो? मुझे बताओ, शायद मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूं।’

जौनी बहुत कम मुस्कराता था, किन्तु सैमी के कथन पर जब वह

मुस्कराया तो सेमी को बड़ी प्रसन्नता हुई।

‘नहीं-नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है सैमी।’ जौनी कंधे उचकाता हुआ बोला – ‘मुमकिन है मेरी बुढ़ापे की ओर बढ़ती उम्र को देखकर तुम्हें ऐसा अहसास हुआ हो।’ फिर उसने सिगरेट निकाली और सैमी को पेश की। सिगरेट सुलगाते हुए बोला – ‘दरअसल कभी-कभी मुझे ऐसा अहसास होने लगता है…।’ उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

‘क्या अहसास होने लगता है मिस्टर जौनी….?’ सैमी ने पूछा।

‘यही कि हम लोगों की जिन्दगी भी क्या जिन्दगी है। बिल्कुल नीरस…कोई भविष्य नहीं है हम लोगों का। तुम्हारा क्या ख्याल है, ठीक कह रहा हूं न मैं?’

सैमी ने स्टूल पर बैठे-बैठे अपना पहलू बदला। बोला, ‘अच्छा-खासा वेतन तो मिलता है हम लोगों को मिस्टर जौनी और दूसरी बात है कि इसके अलावा मैं कर ही क्या सकता हूं।’

‘हां ठीक कह रहे हो सैमी-इसके अलावा तुम्हें और आता भी तो क्या है।’ जौनी क्षण-भर रुका फिर उसने सैमी से पूछा – ‘अच्छा यह बताओ सैमी – क्या तुमने कुछ बचत भी की है अभी तक?’

सैमी प्रसन्नता से मुस्कराया।

‘हां। दस प्रतिशत के हिसाब से बचत करने का तुम्हीं ने तो मुझे सुझाव दिया था। अब तक यह बचत की हुई रकम लगभग तीन हजार डालर हो गई है जो मैंने एक लोहे के बक्से में बंद करके रखी हुई है पर…।’ सैमी थोड़ा हिचकिचाया – ‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि अब इस रकम का क्या इस्तेमाल करूं।’ जौनी के चेहरे पर मुस्कराहट उभरी।

‘लोहे के बक्से को तुम कहां रखते हो?’

‘अपने बिस्तर के नीचे और कहां रखता।’

‘तुम बेवकूफ हो सैमी – भला इतनी बड़ी रकम भी कहीं बिस्तर के नीचे रखी जाया करती है।’

‘फिर और क्या करूं मैं?’

‘किसी बैंक में जमा करा दी होती।’

सैमी ने घृणा से मुंह बिचकाया -‘मुझे बैंकों में धन जमा करने की दिलचस्पी नहीं है मिस्टर जौनी-सच बात तो यह है कि बैंक केवल गोरे लोगों की सहूलियत के लिए बनाए जाते हैं।’ मेरे जैसे काले लोगों के लिए बक्से आदि में धन रखना ही ठीक है। ज्यादा से ज्यादा अब ये करूंगा कि एक और बक्सा खरीद लाऊंगा।’

सैमी ने हालांकि इस आशापूर्ण दृष्टि से जौनी से पूछा था कि वह शायद इस रकम के सही इस्तेमाल का कोई कारआमद तरीका सुझा दे, किन्तु जौनी तो स्वयं ही अपनी किसी समस्या में उलझा हुआ दीख रहा था। सैमी को कोई सुझाव देने का उसका मूड ही कहां था।

जौनी ने बियर की अंतिम चुस्की भरी और स्टूल से उठता हुआ बोला –

‘रकम तुम्हारी है सैमी – तुम इसका जिस तरह चाहो उपयोग कर सकते हो – अच्छा तो फिर मैं चला। अगले शुक्रवार को फिर मिलेंगे।’

‘क्या अगले शुक्रवार को कोई अनहोनी घटना घट सकती है मिस्टर जौनी?’

जोनी के उठते ही सैमी ने डरे हुए स्वर में पूछा।

‘तुम बेकार ही परेशान हो रहे हो सैमी ’ -जौनी उसका कंधा थपथपाता हुआ बोला – ‘कुछ भी नहीं होगा – और फिर मैं, अर्नी तथा टोनी तुम्हारे साथ रहेंगे। तुम्हें चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है?’

जौनी चला गया तो सैमी काफी देर तक उसकी दूर होती जा रही कार की ओर देखता रहा। कार के दृष्टि से ओझल होते ही वह उठा और थके-थके कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ा। अगले शुक्रवार को घटने वाली किसी अनहोनी आशंका से वह अब भी बेचैन था।

जौनी वियान्डा अपने दो कमरों वाले अपार्टमेंट में पहुंचा। उसने अपनी जैकेट उतारकर एक ओर उछाल दी तथा दीवार के साथ पड़ी कुर्सी को बंद खिड़की के पास घसीटकर बैठ गया। उसकी दृष्टि खिड़की के धुंधले शीशों के बाहर कुछ देखने का प्रयास करने लगी। बाहर से शोरगुल की हल्की-हल्की आवाजें आ रही थीं, किन्तु जौनी को इसकी परवाह नहीं थी। ऐसे शोरगुल को सुनने का वह आदी हो चुका था।

सैमी का यह अंदाजा बिल्कुल सही था कि जौनी किसी गंभीर चिंता में डूबा हुआ था। पिछले अट्ठाइस महीनों से वह चिन्ता में घुला जा रहा था। चिन्ता की शुरुआत तो उसके चालीसवें जन्मदिन के साथ ही आरंभ हो गई थी। उसने अपनी वर्षगांठ अपनी गर्लफ्रेंड मेलाना कोराली के साथ मनाई थी। रात को जब वह खा-पीकर निवृत हो गए तो कोराली तो निद्रा में निमग्न हो गई, परन्तु उसे नींद न आ सकी। वह अपनी विगत जिन्दगी के विचार में डूब गया -आज उसे पहली बार अहसास हुआ था कि उसका भविष्य कुछ भी नहीं था। उसके जीवन का आधा हिस्सा यूं ही गुजर गया था। चालीस वर्ष का अरसा बहुत होता है और अब वह ज्यादा से ज्यादा चालीस ही वर्ष तक और जी सकता है बशर्ते कि वह किसी खतरनाक बीमारी का शिकार अथवा किसी की गोली का निशाना बनने से बच जाए तो!

अनायास ही उसे अपने माता-पिता की याद हो आई। उसकी मां जो बहुत ममता भरी थी सदैव ही जौनी पर अपनी स्नेह की छाया रखा करती थी और पिता जो एक फल विक्रेता था अनपढ़ जैसा ही था। मतलब यह कि वह पढ़ तो सकता था किन्तु लिख नहीं पाता था पर जैसा भी था जौनी के लिए हमेशा एक आदर्श पिता की भूमिका निभाता रहा। दोनों इटैलियन थे और ईश्वर में आस्था रखते थे। अब दोनों खुदा के प्यारे हो चुके थे। मरते दम तक दोनों के दिलों में जौनी की खुशहाली और बहबूदी का जज्बा कायम रहा था।

उसकी मां ने मरने से पहले उसे एक लॉकेट दिया था। चांदी की चेन में लिपटी सैट क्रिस्टोफर की प्रतिमा वाला यह लॉकेट पिछले सौ वर्षों से उसके परिवार में धरोहर के रूप में चला आ रहा था।

मां ने मरते वक्त उसे लॉकेट सौंपते हुए कहा था – ‘ये लॉकेट रख लो जौनी – तुम्हें देने के लिए मेरे पास इससे बढ़कर और कोई वस्तु नहीं है। यह हमारे परिवार का एक पवित्र लॉकेट है, जब तक यह लॉकेट तुम्हारे गले में पड़ा रहेगा, दुनिया की कोई भी विपत्ति तुम्हारा कुछ न बिगाड़ सकेगी। इसे हमेशा अपने गले में पहने रहना।’

मां तो गुजर गई किन्तु तब से अब तक वह उस लॉकेट को अपने गले में पहने रहता था। अंधविश्वास के कारण वह मां के दिए हुए उस लॉकेट को उस वक्त भी छुए बिना न रह सका। आराम से सोती हुई अपनी गर्लफ्रेंड के बराबर में लेटा हुआ जौनी अपने विगत जीवन का लेखा-जोखा टटोलने में चिन्ताग्रस्त रहा। मां की मृत्यु के पश्चात उसके जीवन में कहीं भी स्थिरता नहीं आ सकी थी। पिता के कुछ कटु व्यवहार के कारण उसे घर छोड़ना पड़ा। तब उसकी उम्र सत्रह वर्ष की थी। वह घर छोड़कर जैक्शन विले पहुंचा और एक बॉरटैंडर की नौकरी कर ली। इस नौकरी के दौरान उसका तरह-तरह के लोगों से – जिनमें अधिकांशतः जरायमपेशा अथवा कानून के डर से भागे हुए मुजरिम अथवा गैर-कानूनी काम करने वाले व्यक्ति थे, परिचय होने लगा। इन्हीं लोगों में एक व्यक्ति था फर्डी सायनो। जौनी का उससे परिचय हुआ और उसके बाद उन दोनों में खूब घनिष्ठता बढ़ने लगी।

दोनों मिलकर काम करने लगे। उनका मुख्य काम था पेट्रोल पम्पों को लूटना, पेट्रोल पम्पों से नकद पैसा आसानी से मिल जाता। पर आखिर एक दिन पुलिस के हत्थे चढ़ गए, दो साल की कैद के बाद जब जौनी जेल से बाहर निकला तो वह भविष्य के लिए अपना कार्यक्रम निश्चित कर चुका था। जेल में रहकर जुर्म करने की जो शिक्षा उसने हासिल की थी, उसकी वजह से उसे विश्वास था कि वह अगली बार पुलिस के चंगुल में नहीं फंसेगा। कुछ सालों तक वह अकेला ही बटमारी करता रहा, पर इससे उसे बहुत कम रकम प्राप्त होती थी। उसने हिम्मत नहीं हारी, किसी मोटी आसामी को झटकने की आशा में वह अपना धंधा जारी रखे रहा। तभी पुनः उसकी भेंट सायनो से हो गई।

वह तब तक मसीनो के गिरोह में शामिल हो चुका था। सायनो ने से मसीनो से मिलवा दिया।

मसीनो उसे देखकर बेहद प्रभावित हुआ। मसीनो को अपने अंगरक्षक के रूप में किसी जवान, विश्वस्त और अचूक निशानेबाज की तलाश थी। जौनी को देखकर वह आश्वस्त हो गया कि उसे जैसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, मिल गया है परन्तु जौनी पिस्तौल आदि के बारे में कुछ जानकारी नहीं रखता था। बटमारी, राहजनी करते समय वह नकली पिस्तौल का ही इस्तेमाल किया करता था, मगर मसीनो को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने जौनी को बाकायदा ट्रेनिंग दिलवाई। तीन महीने बाद ही जौनी एक कुशल निशानेबाज बन गया। मसीनो के शक्तिशाली और सम्पन्न होने के दौर में जौनी ने तीन व्यक्तियों को अपनी फुर्ती और अचूक निशानेबाजी के कारण मौत की नींद सुलाया।

इस तरह उसने तीन बार मसीनो की प्राण-रक्षा की, जबकि निश्चित था कि तीनों ही बार मसीनो का मौत से बचना असंभव था। अब वह पिछले बीस सालों से मसीनो के साथ था किन्तु उन घटनाओं के बाद और कोई खून-खराबे का नया वाकया पेश नहीं आया था। उसकी वजह थी – मसीनो अपने धंधे में पूरी तरह से जम चुका था। वह इस शहर में गैर कानूनी ढंग से होने वाले धन्धों का एकछत्र सम्राट था। किसी की मजाल नहीं थी कि उसे चैलेंज कर सके। जौनी को भी अब बॉडीगार्ड के काम से हटकार सैमी के साथ रकम वसूली के काम पर लगा दिया था, क्योंकि मसीनो के विचार से नवयुवक ही बॉडीगार्ड के काम के लिए ज्यादा उपयुक्त थे। जौनी की अब उम्र भी अधिक हो चली थी और यूं भी तीस साल के बाद आदमी में चुस्ती-फुर्ती की कमी हो ही जाती है। अतः वह बॉडीगार्ड जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए अयोग्य साबित हो जाता है।

मैलानी के साथ लेटे जौनी ने अपनी बीती जिन्दगी और भविष्य की ओर झांककर देखना चाहा। वह चालीस वर्ष का हो चुका था, अतः कुछ न कुछ शीघ्र ही करना आवश्यक था, अन्यथा बहुत देर हो चुकी होगी। अगर कुछ दिनों बाद उसे सैमी की सुरक्षा के काम से भी हटा दिया गया, तब क्या होगा। जौनी को रिटायर करते वक्त मसीनो उसे कोई भारी रकम तो देने से रहा, इसका मतलब गरीबी में एड़ियां रगड़-रगड़कर उसे मौत का इंतजार करना पड़ेगा। इस कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठा। उसका मुंह कड़वाहट से कसैला होने लगा। साथ ही उसे अपने द्वारा सैमी को दी गई नसीहत भी याद हो आई, जिस पर वह स्वयं ही कोई अमल नहीं कर सका था।

उसका पैसा उसकी जेबों से निकलकर या तो उन मक्कार और फरेबी औरतों के पास पहुंच गया था जो अपनी दुखपूर्ण कथाएं सुनाकर उसके दिल में हमदर्दी के भाव जगाकर उसे ठग लिया करती थीं, या फिर वह रेस के घोड़ों पर दांव लगाने में अपना धन बर्बाद करता रहा था। स्त्रियां उसकी कमजोरी थीं और रेस का वह शौकीन था। इसी तरह से वह अपना सब – कुछ बर्बाद करता रहा और जब बुढ़ापे की भयानक तस्वीर उसे नजर आने लगी तो वह एकदम कड़का हो चुका था। अमीर बनने के जिस सपने को वह बचपन से संजोये आ रहा था, उसके पूरे होने के कोई लक्षण उसे नजर नहीं आ रहे थे।

उसका एकमात्र सपना था कि किसी तरह से नौका हासिल की जाए। अपने बचपन में वह अपना अधिकांश समय बंदरगाह पर गुजारता था, जहां अमीर लोग अपनी विलासपूर्ण सामग्री से सजी नौका में ऐशो-आराम करते रहते थे और मछेरे छोटी नावों से मछलियां पकड़ने में व्यस्त नजर आते थे। आरंभ से ही समुद्र उसे अपनी ओर चुम्बक के मानिंद आकर्षित करता रहा था। जो उम्र उसकी पढ़ने के काबिल थी वह उसने समुद्र में दौड़ने वाली नावों पर गुजार दी थी डेस्क की सफाई आदि के काम वह साधारण तनख्वाह पर भी बड़ी लगन और मनोयोग से किया करता था। बचपन के वे दिन आज उसे अपने जीवन के सबसे सुनहरे दिन प्रतीत हो रहे थे।

समुद्र में लौटने की उसकी इच्छा फिर से सिर उठाने लगी, किन्तु इस बार वह किसी मजदूर के रूप में नहीं, अपितु एक तीस फुट लम्बी नौका का मालिक के रूप में लौटना चाहता था जिससे कि वह एक कप्तान की तरह अपने नाविकों पर हुक्मरानी करते हुए मछली पकड़ने के धंधे को अपना सके।

परन्तु इस स्वप्न को साकार करने की सबसे आवश्यक वस्तु थी पैसा – जो इस समय उसके पास नहीं था। उसने अनुमान लगाया, कम से कम साठ हजार डॉलर की रकम होनी चाहिए थी इस धंधे को चलाने के लिए।

यदि कहीं से उसके हाथ इतनी रकम आ जाए तो उसका सपना,

वास्तविकता में तब्दील हो सकता था। मगर इतना धन कैसे हासिल होगा – कहां से हासिल होगा – यही मुख्य प्रश्न था जिस पर वह माथापच्ची कर रहा था।

लगभग छः माह पहले धन हासिल करने का एक विचार उसके दिमाग में पनपा था किन्तु उसने जान-बूझकर उसे अपने दिमाग से निकाल फेंका। मगर यादों और सोचों पर तो किसी का वश नहीं होता। यही विचार उसके दिमाग में पनपता रहा।

आज उस विचार को न जाने क्यों, उसने दबाने का कोई प्रयास नहीं किया। किसी विश्वसनीय आदमी के सम्मुख अपने उस विचार को प्रस्तुत करके वह उसमें कमियां निकालने के लिए इच्छुक था परन्तु अफसोस की उसके पास कोई नहीं था, वह अकेला ही खिड़की के सामने बैठा था। अपने अकेलेपन से आज उसे परेशानी महसूस हुई, क्योंकि आज तक तक वह किसी विश्वसनीय व्यक्ति के संसर्ग में नहीं आया था। उसका एक मात्र मित्र नीग्रो सैमी हो सकता था, पर उससे इस विषय पर बातें करना बेकार था।

मैलानी से इस विषय में विचार-विमर्श करना फिजूल था, क्योंकि वह समुद्र, नावों आदि से घृणा करती थी और उसका विचार जानकर वह उसे पागल की संज्ञा से संबोधित करने में नहीं चूक सकती थी।

अतः वह स्वयं ही अपनी योजना पर विचार-विमर्श करने को विवश हो गया।

योजना इस विचार पर आधारित थी कि नम्बर मेन क्लैक्शन की अधिक से अधिक धन राशि पर हाथ साफ किया जाये और इस अवसर की वह बड़े धैर्य से प्रतीक्षा करता रहा था।

और अब मौका आ गया था कि उनतीस फरवरी को कैलक्शन की रकम का अनुमान डेढ़ लाख डालर लगाया जा रहा था।

डेढ़ लाख डॉलर की रकम से उसका वर्षों से संजोया सपना साकार हो सकता था। यह सोचकर जौनी ने गुदगुदी अनुभव की तथा मन ही मन प्रण करने लगा कि भविष्य में न तो किसी औरत की बेबसी का रोना ही सुनेगा और न ही किसी रेसकोर्स में कदम रखेगा।

उसने कुर्सी पर बैठे-बैठे पहलू बदला और पुनः सोचने लगा – उनतीस तारीख को उसे मसीनो से यह धन हथियाना ही होगा। अपनी योजना पर कई -कई बार विचार कर चुका था। किसी सीमा तक उसे कार्य रूप में परिणित करने का भी उसने प्रबंध कर लिया था। एन्डी की तिजोरी के ताले से चाबी की छाप उतारकर वह डुप्लीकेट चाभी भी बनवा चुका था। उसके दो वर्ष के जेल जीवन का अनुभव इस कार्य में बहुत सहायक सिद्ध हुआ था। चाबी की छाप हासिल करके उससे डुप्लीकेट चाबी बनाना उसने जेल में ही सीखा था।

चाबी की छाप लेने का स्मरण करते ही उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। वास्तव में यह बेहद जोखिम भरा कारनामा ही था।

जिस सेफ के ताले की चाबी की छाप उसने एन्डी के छोटे-से दफ्तर से उतारी थी वह बेहद पुराने ढंग की थी। मसीनो के कहे अनुसार सेफ उसके दादा की निशानी थी जो अब एन्डी के दफ्तर में दरवाजे के ठीक सामने रखी हुई थी। एन्डी उस सेफ के बारे में अक्सर मसीनो से शिकायतें करता रहता था, जिसे कई बार जौनी ने स्वयं अपने कानों से सुना था।

‘इस पुराने ढंग की तिजोरी को बदलिए बॉस।’ एन्डी ने कहा था – ‘इसे तो कोई बच्चा भी आसानी से खोल सकता है – कोई नई आधुनिक किस्म की मजबूत-सी सेफ होनी चाहिए इसके बदले।’

जौनी को मसीनो द्वारा दिया गया उत्तर भी अच्छी तरह से याद था।

मसीनो ने कहा था – ‘यह तिजोरी मेरे दादा की निशानी है और मेरी शक्ति की सूचक है। तुम्हारे तथा मेरे अलावा किसी में इतनी हिम्मत नहीं है जो इसे छूने की कोशिश करे। सारा शहर इस तथ्य से बखूबी परिचित है, तुम हर शुक्रवार को इसमें मोटी रकम रखते हो तथा शनिवार को सुबह तक जब तक कि तुम लोगों की तनख्वाह नहीं बंट जाती, वह रकम उसी में बंद रहती है। तुम जानना चाहते हो कि इसकी क्या वजह है? इसकी वजह यही है कि सभी को यह अच्छी तरह पता है कि मेरी किसी भी चीज को हाथ लगाना अपनी मौत को न्यौता देना है। यह तिजोरी उतनी ही मजबूत है जितना कि मैं शक्तिशाली हूं और मैं कितना शक्तिशाली हूं इसे इस शहर का बच्चा-बच्चा जानता है।’

‘लेकिन-’ एन्डी ने एक बार फिर कोशिश करते हुए कहा -‘यह सब तो मैं भी अच्छी तरह से जानता हूं मिस्टर मसीनो, मगर हो सकता है कि कोई ऐसा बाहरी व्यक्ति जो इस शहर का न हो और जिस पर आपके नाम का रौब न पड़ा हो, ऐसा दुस्साहस कर सकता है। अतः हमें मौका नहीं देना चाहिए।’

प्रत्युत्तर में मसीनो ने ठंडी निगाहों से एन्डी को घूरा।

‘तुम्हारा ख्याल है कि ऐसी मूर्खता करने वाला व्यक्ति मुझसे बचकर निकल पाएगा। याद रखो एन्डी, मुझसे गद्दारी करने वाला या मेरे माल पर हाथ साफ करने वाला कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न छुप जाए, उसे खोजकर दोजख पहुंचाना मेरे लिये बिल्कुल मुश्किल नहीं है-समझ गये।’

लेकिन मसीनो ने शुक्रवार की रात को तिजोरी अकेली न छोड़ने का भी प्रबंध कर रखा था। उस रात को एन्डी के साथ उसके दफ्तर में बैन्नो बियांका भी तिजोरी के साथ अंदर ही बंद रहता था और डरावनी आकति वाले बैन्नो से पूरा शहर दहशत मानता था।

जौनी को इस सबकी जानकारी थी – मसीनो के शब्द भी उसे बखूबी याद थे – किसी में इतनी जुर्रत नहीं है कि वह तिजोरी को छू लेने की भी कोशिश कर सके।

और जौनी, मसीनो की तिजोरी को न सिर्फ छू लेने की बल्कि उसमें रखी रकम को हथिया लेने का भी निश्चय कर चुका था। हिम्मत तो शायद उसमें भी नहीं है किन्तु वह बेहद जरूरतमंद है। उसे बचपन से देखते आये सपने को साकार रूप देना है। हिम्मत से ज्यादा महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति का प्रश्न है दोजख की आग – जौनी ने सोचा – अगर उसकी योजना सफल हो जाती है इसकी नौबत ही नहीं आने पायेगी।

लोहे की उस विशाल तिजोरी का प्रयोग केवल शुक्रवार को ही किया जाता था। हफ्ते के शेष दिनों में वह खाली ही रहती थी। उसको खोलने और बंद करने के लिए किसी कॉम्बीनेशन को मिलाना नहीं पड़ता था अपितु एक ऐसी लम्बी-सी चाबी को प्रयोग में लाया जाता था, जो बाबा आदम के जमाने की लगती थी। कई महीनों की जासूसी के बाद जौनी इस बात का पता लगा चुका था कि ताली प्रायः यों ही ताले में छोड़ दी जाती थी। शुक्रवार को रकम जमा करने के बाद एन्डी ताली को अपने साथ अपने घर ले जाया करता था। जौनी ने तीन बार कोशिश की। आधी रात के बाद वह उस इमारत में दाखिल हुआ। एन्डी ने दफ्तर में पहुंचकर बड़ी सफाई से ताला खोला।

तीसरी बार की कोशिश में उसे कामयाबी मिली। बुधवार की रात को उसने देखा कि ताली सेफ में फंसी हुई थी। चाबी की छाप उतारने के लिए वह मोम लेकर गया ही था। बस कुछ ही सैकड़ों में उसने ताली की छाप उतार ली, मगर ये कुछ सैकेंड ही उसे युगों के समान लगे थे। इस मामूली-से लगने वाले काम को करते समय उसके पसीने छूट निकले थे, क्योंकि एन्डी के दफ्तर में किसी के लिए भी प्रवेश करने पर सख्त पाबंदी थी। यदि किसी को एन्डी से बात भी करनी होती थी तो वह दरवाजे के अंदर पैर रखकर भी बात नहीं कर सकता था। बात बेहद जरूरी भी होती तो भी आगन्तुक दरवाजे से बाहर खड़ा रहकर ही एन्डी से बातचीत कर सकता था। सिर्फ बैन्न्नो ही ऐसा व्यक्ति था जो सिर्फ शुक्रवार के दिन अंदर ताले में बंद रह सकता था और एन्डी उस दिन अपने डेस्क की दराजों आदि के तालों के प्रति पूरी तरह जागरूक और चौकन्ना रहता था।

तीन रातों की मेहनत के बाद जौनी चाबी तैयार कर सका। चौथी रात उसने चाबी को ताले में डालकर आजमाया। चाबी कुछ कम फिट थी अतः उसने रेती से उसे रेतकर और तेल की बूंद से नर्म करके उसे बिल्कुल फिट कर लिया। ताली अब एकदम फिट थी।

अब रकम हथियाना कठिन नहीं था। बैन्नो को मौत के घाट उतारने में कोई दिक्कत नहीं थी। दिक्कत तो उस समय पैदा होनी थी जब मसीनो को ये पता चलता कि उसकी रकम लूटी जा चुकी थी।

मेरी चीज हथियाने वाला या मुझसे गद्दारी करने वाला कोई भी व्यक्ति दुनिया के किसी भी कोने में सुरक्षित नहीं है। मेरे हाथ बहुत लम्बे हैं। उसे खोजकर दोजख में पहुंचाना मेरे लिये कोई कठिन काम नहीं है।

किन्तु जौनी को मसीनो द्वारा कहे गये इन शब्दों की कोई परवाह नहीं थी।

वह इतनी फुलप्रूफ योजना तैयार कर चुका था कि मसीनो को रकम लूटने वाले का पता नहीं लगना था किन्तु यदि योजना में ही कोई कमी आ गई तो मसीनो अपने कथन को अक्षरशः सत्य करके दिखा सकता था, क्योंकि मसीनो का माफिया से गठजोड़ था। वह नियमित रूप से एक निश्चित धन राशि माफिया को दिया करता था। अतः इस शहर में उसका अपना गिरोह ही लुटेरे की तलाश में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसके अलावा माफिया को सिर्फ सूचना देने भर की देर थी कि उनकी पूरी ऑर्गनाइजेशन फौरन सक्रिय हो उठेगी और लुटेरे को खोजने में जमीन आसमान एक कर देगी।

माफिया का एक सिद्धान्त था – माफिया अथवा उसके किसी मित्र की कोई चीज लूटने या चुराने वाले को उसकी कीमत अवश्य चुकानी पड़ती थी। पूरे मुल्क में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां माफिया गिरोह के एजेन्ट न फैले हुए हों। जौनी को इन सब बातों की जानकारी थी अतः योजना बनाते समय उसने सबसे ज्यादा इस बात को ध्यान में रखा था कि चोर का किसी भी हालत में पता नहीं पड़ना चाहिये।

बहुत बारीकी से सोच-विचार के बाद ही वह इस योजना को बना पाया था, क्योंकि यह एक जिन्दगी और मौत के जुए जैसी बात थी।

उसकी योजना थी कि ‘रकम हाथ में आते ही वह उसको सड़क की दूसरी ओर स्थित ग्रेहाउंड बस स्टेशन के खोये हुए सामान के लाकरों में ले जाकर रख देगा और उसे तब तक वहीं पड़े रहने देगा जब तक मामला ठंडा नहीं पड़ जाता। जब मसीनो यह विश्वास कर लेगा कि अब रकम मिलनी मुश्किल है और चोर रकम लेकर किसी ऐसी जगह जा छुपा है जहां से उसे खोज निकालना मुश्किल है, उसके बाद वह लॉकर में से रकम को निकालकर किसी सेफ डिपॉजिट बैंक में जमा करवा देगा। उसकी इच्छा थी कि रकम हाथ में आते ही उसे बैंक में जमा करवा दिया जाये। मगर इस तरह से उनकी शिनाख्त (ऐलीबी) पर शक किया जा सकता था। ग्रेहाउंड बस स्टेशन और मसीनो के कार्यालय में ज्यादा दूर जाना पड़ता था और वैसे भी बैंक रात के समय बंद ही रहता था।

योजना को क्रियान्वित करने और उसे सफल बनाने के लिए बड़े धैर्य की आवश्यकता थी। बैंक में धन जमा करने के बाद भी उसे दो-तीन वर्ष की लम्बी अवधि की प्रतीक्षा करनी थी किन्तु वह इसके लिए तैयार था। उसके बाद वह रकम समेत फ्लेरिडा पहुंच जाएगा और अपना चिर-प्रतीक्षित सपना साकार कर लेगा।

इतनी बड़ी रकम की प्राप्ति के लिए दो-तीन साल का अरसा तो कुछ भी नहीं था, जबकि नौकरी करके वह जीवन भर इतना धन प्राप्त नहीं कर सकता था।

पुलिस विभाग मसीनो के कहने के अनुसार चलता था – जौनी को पता था कि चोरी की सूचना पाते ही सारा पुलिस डिपार्टमेंट सक्रिय हो उठेगा। एन्डी के दफ्तर की सेफ पर से उंगलियों के निशान उठाये जाएंगे, किन्तु जौनी को इसकी परवाह नहीं थी। वह दस्तानों का प्रयोग करेगा और उसकी ऐलीबी (जुर्म के समय घटना-स्थल से दूर रहने का प्रमाण) बिल्कुल ठोस होगी। चोरी के समय वह मैलानी के साथ उसके बिस्तर में होगा। उसकी कार मैलानी के घर के सामने खड़ी होगी। चोरी में मुश्किल से आधे घंटे का समय लगना था और इतने समय के लिये वह मैलानी पर यकीन कर सकता था।

क्योंकि तिजोरी चाबी द्वारा खोली जानी थी, अतः मसीनो का सबसे पहला संदेह एन्डी पर ही होना था। पुलिस भी सबसे पहले एन्डी को ही गिरफ्तार करेगी, क्योंकि चाबी उसी के पास होगी। साथ ही उसके अपराधी जीवन का भी पुलिस के पास रिकार्ड मौजूद था और यदि एन्डी सफाई दे भी देगा और मसीनो उसकी सफाई से आश्वस्त हो भी गया तो मसीनो दूसरे कर्मचारियों को टटोलेगा। चोरी के लिए चाबी के इस्तेमाल को वह किसी कर्मचारी द्वारा की गई करतूत ही समझेगा और कर्मचारियों की तादाद दो सौ से कम नहीं थी। जौनी स्वयं तो वह अंतिम आदमी होगा जिस पर शक किया जा सकता था, क्योंकि मसीनो का सबसे ज्यादा वफादार साथी था जिसने तीन-तीन बार मसीनो के जीवन की रक्षा की थी और हमेशा उसके आदेशानुसार कार्य किया था, वह अपने मालिक को धोखा नहीं दे सकता था।

खिड़की के समीप अपनी योजना में बार-बार कमी खोजने की असफल चेष्टा करता हुआ जौनी चिन्ताग्रस्त भाव में बेचैनी से पहलू बदलता रहा।

मसीनो के कहे हुए शब्द बार-बार उसके जेहन में हथौड़े की तरह से बज उठते थे। मेरी किसी चीज को हथियाने की चेष्टा करना अपनी मौत को दावत देना है।

जौनी ने बेचैनी के भाव में अपने गले में पड़े हुए सैंट क्रिस्टोफर के लॉकेट को छुआ और धीमे-से बुदबुदाया – ‘कभी-कभी तो चोर के घर भी चोरी हो जाती है।’

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