जौनी की गर्लफ्रेंड मैलानी कारेली नेपल्स की गंदी बस्ती में पैदा हुई थी। वह चार वर्ष की थी तभी से उसने बस्ती के अन्य बच्चों की तरह टूरिस्टों से भीख मांगने का धंधा आरंभ कर दिया था। उसके माता-पिता बहुत ही निर्धन थे और उन्हें तथा स्वयं मैलानी को भी जीवनयापन के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता था। उसका पिता, तो अपाहिज था, मध्यम श्रेणी के होटलों के सामने पोस्टकार्डों की दलाली और नकली पार्कर पैन बेचने का काम किया करता था और उसकी माता लोगों के घर जाकर कपड़े धोया करती थी।
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पन्द्रह वर्ष की उम्र में उसके दादा ने उसे अपने पास ब्रुकलिन में बुला लिया। वहां वह दर्जी के काम की एक छोटी-सी दुकान चला रहा था। मैलानी के वहां से चले जाने पर उसके माता-पिता बहुत खुश थे, क्योंकि मैलानी पन्द्रह वर्ष की आयु में ही अपने हमउम्र लड़कों में बहुत दिलचस्पी ले रही थी। माता-पिता को यह डर था कि कहीं मैलानी किसी अनचाही औलाद को जन्म देकर उसका भी बोझ उन पर न लाद दे।
मैलानी कुल तीन साल तक ही अपने दादा के पास टिक सकी, क्योंकि दादा का कड़ा अनुशासन उसे सख्त नापसंद था। वह स्वच्छंद जीवन की आदी हो चुकी थी और अपने ऊपर कोई अंकुश नहीं चाहती थी। अतः उसने एक रात दादा की जेब से पचास डॉलर चुराए और ब्रुकलिन को छोड़ दिया।
न्यूयार्क से काफी फासले पर स्थित ईस्ट सिटी में जहां जौनी भी रहता था, रहना उसे ज्यादा सुरक्षित लगा।
उसे एक मामूली-से स्नैकबार में वेटर की नौकरी मिल गई किन्तु काम मेहनत का था अतः वह ज्यादा दिन न टिक सकी। इसके बाद तो वह एक के बाद एक नई नौकरियां करती और छोड़ती रही। साल-भर तक सिलसिला कायम रहा। अंत में उसे एक घटिया से स्टोर में काम मिला।
वहां उसकी तनख्वाह तो बेशक कम थी किन्तु उसे आजादी से काम करने की पूरी छूट थी। उसके ऊपर कोई अंकुश नहीं था। रहने के लिए एक छोटा-सा कमरा उसके पास था।
मैलानी यद्यपि खूबसूरत नहीं थी किन्तु उसमें गजब की सैक्स अपील थी। यही कारण था कि लोग उसकी ओर आकर्षित हो उठते थे। उसके काले-काले बाल, कजरारी आंखें, उठे हुए उन्नत वक्ष और पुष्ट नितम्ब, लोगों को अनचाहे ही आमंत्रित करते स्पष्ट प्रतीत होते थे। स्टोर का मालिक एक मोटा-सा चुगद सा लगने वाला व्यक्ति था, जो सहज ही मैलानी के आकर्षण का शिकार बन गया था। एक बात और भी थी – वह अपनी बीवी से बेहद खौफ खाता था। मैलानी कभी-कभी उसे स्कर्ट के ऊपर ही ऊपर अपना शरीर सहलाने की इजाजत दे देती थी – वह चुगद इसी में खुश था – इतना ही नहीं बल्कि उसने मैलानी की तनख्वाह भी बढ़ा दी थी तथा उसे पुरुषों की कमीज वाले डिपार्टमेंट का इंचार्ज भी बना दिया था।
जौनी वियान्डा भी कमीज खरीदते समय उसे नजरअंदाज नहीं कर सका।
उन दिनों उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी, अतः वह किसी गर्लफ्रेंड की तलाश में था और मैलानी को तो उसके स्वभाव के मुताबिक कोई पुरुष चाहिए ही था। इसलिए उससे शीघ्र ही परिचय हो गया। उसके बाद परिचय घनिष्ठता में तब्दील हो गया। अब पिछले तीन वर्षों से उनके संबंध बराबर चले आ रहे थे।
जौनी से परिचय होने के दो ही महीने बाद मैलानी ने अपना कमरा छोड़ दिया और एक-दो कमरे वाले अपार्टमेंट में रहने लगी जो उसे जौनी ने दिया था। अपार्टमेंट के किराए आदि समस्त बिलों का भुगतान जौनी के जिम्मे था।
मैलानी उसे पसन्द तो जरूर करती थी किन्तु जौनी की ज्यादा उम्र और उसके भारी शरीर के कारण उसे उसमें आकर्षण कम नजर आता था परन्तु जौनी का उसके साथ व्यवहार बहुत अच्छा था। वह खुले हाथों उसकी हर इच्छा की पूर्ति के लिए कभी हिचकता नहीं था। सप्ताह में तीन बार उनकी मुलाकातें होती थीं और इन तीन दिनों में वह कभी तो मौलानी को डिनर तथा सिनेमा दिखाने ले जाता था और कभी मैलानी अपने हाथ के बनाए हुए उन स्वादिष्ट व्यंजनों से घर पर ही उसका स्वागत करती थी जो इटैलियन ढंग के होते थे। प्रोग्राम चाहे जो भी रहता हो किन्तु उसकी समाप्ति एक ही चीज पर आकर होती थी। आखिर में वे दोनों एक-दूसरे की बांहों में बांह डाले यौन-तृप्ति में मग्न हो जाते थे। अपने खिलन्दड़े हमउम्र साथियों के साथ काम-कला में खेली-खाई मैलानी को जौनी के साथ हम-बिस्तर होने में अतीव आनन्द प्राप्त होता था। मैलानी की दृष्टि में सिर्फ वही एक पूर्ण पुरुष था जो उसकी कामेच्छा को पूरी तरह से संतुष्ट करने में समर्थ था।
जौनी से उम्र में कम होने के बावजूद भी मैलानी उसके लिए विश्वसनीय थी। उसकी जिंदगी में बहुत-सी लड़कियां आई थीं किन्तु उन लालची और झूठी लड़कियों की अपेक्षा मैलानी इन दुर्गुणों से मुक्त थी। आकर्षण-विहीन होने पर भी जौनी को उसके साथ हम-बिस्तर होने में पूर्ण तृप्ति प्राप्त होती थी। मैलानी की एक और भी बात जो जौनी को सबसे ज्यादा पसन्द थी, वह यह थी कि शारीरिक सुख देने के बाद भी उसने कभी जौनी को अपने से शादी कर लेने को मजबूर नहीं किया था और तो और उसने कभी शादी के बाबत इशारा तक नहीं किया था।
जौनी शादी के नाम पर चिढ़ता था। उसकी निगाह में शादी एक बंधन था जो किसी पुरुष को हमेशा के लिए औरत के बंधन में बांध देता और वह किसी बंधन का सख्त विरोधी था। औरत उसके लिए शारीरिक भूख शांत करने का साधन थी। वह यह बात भी अच्छी तरह से जानता था कि मैलानी भी ज्यादा दिनों तक साथ न दे पायेगी, क्योंकि किसी भी वक्त वह स्वयं से ज्यादा पैसे वाले हैंडसम व्यक्ति के साथ नाता जोड़कर उससे किनारा कर सकती थी, यही वजह थी कि जौनी ने उससे अपनी महत्त्वाकांक्षा का आज तक कोई जिक्र नहीं किया था। यह भी उसे अपनी योजना का एक अनुकूल अंग लगा था। उसे पता था कि मसीनो अपने तरीकों से सच उगलवाना जानता था। यदि स्कीम में जरा बराबर भी गड़बड़ रह गई और उसे जौनी पर शक भी हुआ तो भी वह यह न समझ पायेगा कि किस जरूरत के हाथों मजबूर होकर जौनी को यह चोरी का काम करना पड़ा।
जौनी मैलानी से खुलेआम मिलता रहता था – अतः मसीनो के गैंग के हर व्यक्ति को इस बात की जानकारी थी। यद्यपि उसे अपनी फुलप्रूफ योजना की कामयाबी पर पूरा विश्वास था, किन्तु वह यह नहीं चाहता था कि योजना के असफल होने पर मैलानी पर कोई आंच आए। वह मैलानी से लगाव रखता था किन्तु प्यार नाम की चीज से उसे चिढ़ थी। उसके विचारानुसार प्यार इंसान को बंधनों में जकड़कर रख देता है और जैसा कि पहले लिखा जा चुका है जौनी को किसी भी प्रकार के बंधन से सख्त चिढ़ थी।
प्रत्येक शुक्रवार को मैलानी को डिनर खिलवाना, उसे सिनेमा आदि दिखाना उसकी नियमित चर्या थी। अगले शुक्रवार को भी वह ऐसा ही करेगा। डिनर के लिए तो वह उसे आज भी ले जाने वाला था परन्तु अगले शुक्रवार का कार्यक्रम कुछ भिन्न होगा और आज रात मैलानी से उसकी चर्चा करना उचित भी नहीं, वरना हो सकता है, वह बिदक उठे। भले ही इस बारे में वह किसी से जिक्र न करे, परन्तु उसे शक तो हो सकता था।
जौनी लगभग दो घंटे तक अपनी योजना पर चिन्तन और मनन करता रहा और फिर कपड़े उतारे और गुसलखाने में घुस गया।
एक घंटे बाद वह मैलानी के साथ ल्यूगीज रेस्तरां में उपस्थित था। उन्होंने डटकर इटैलियन व्यंजनों का आहार किया। डिनर की समाप्ति तक दोनों खामोश बैठे रहे। अपनी आदत के अनुसार मैलानी तो डिनर सर्व होते ही भोजन पर पिल पड़ी, किन्तु उनतीस फरवरी की कल्पना में डूबा जौनी कुछ अधिक न खा सका। अरुचि से प्लेटें एक ओर सरकाकर वह मैलानी की ओर देखने लगा। जौनी की नजरें उसके जिस्म के ऊपर पहने कपड़ों को भेदकर मन ही मन उसके नग्न और पुष्ट शरीर की कल्पना से रोमांचित होती रही। सिनेमा के भीड़ भरे माहौल में तीन घंटे का समय नष्ट करने की बजाय जौनी, मैलानी को बांहों में समेटकर डबलबैड के ऊपर सोने के बात सोचने लगा।
‘किस सोच में डूबे हो जौनी?’ अचानक मैलानी ने उसे टोका।
जौनी की सोचो को तत्काल ब्रेक लग गया। उसने फीकी-सी मुस्कराहट से मैलानी की ओर देखा।
‘तुम्हें ही देख रहा हूं डार्लिंग – तुम्हारे शरीर की गर्मी से मेरे जिस्म की आग-सी भड़क उठी है और मैं उसे ठंडा करना चाहता हूं।’
मैलानी को अपने शरीर में कसक-सी महसूस हुई -‘मेरी भी यही इच्छा है कि पिक्चर का प्रोग्राम कैंसिल करते हैं, घर चलकर जिन्दगी का वास्तविक आनंद लूटेंगे।’
जौनी ने खुश होकर उसके हाथ को अपनी उंगलियों में कस लिया।
तभी उनकी मेज के पास कोई आकर खड़ा हो गया – जौनी ने ऊपर की ओर देखा। काले सूट तथा पीली सफेद पट्टीदार कमीज पहने सजा-संवरा टोनी केपिलो खड़ा हुआ था। सजा-संवरा रहने के बावजूद उसकी सर्प जैसी चपटी आंखों में जहरीली मुस्कराहट थी।
‘जौनी!’ केपिलो मैलानी की ओर घूरता हुआ बोला – ‘बॉस ने तुम्हें फौरन बुलाया है।’
जौनी के चेहरे पर सख्त नागवारी के भाव उभरे। जोनी और टोनी केपिलो में से कोई भी एक-दूसरे को पसन्द नहीं करते थे।
उसने देखा कि मैलानी के चेहरे पर घबराहट साफ परिलक्षित होने लगी थी। उसकी सहमी-सहमी-सी निगाहें टोनी पर जमी थी।
‘तुम्हारे कहने का मतलब?’ जौनी ने क्रोधित स्वर में पूछा।
‘मतलब वही है जो मैंने तुम्हें अभी बताया है – ‘बॉस ने तुम्हें फौरन बुलाया है।’
जौनी के मुंह से गहरी सांस निकली।
‘ओ.के.! कहां है बॉस?’
‘अपने घर पर – तुम फौरन वहां पहुंचो। इस खूबसूरत सुन्दरी को मैं इसके घर पहुंचा दूंगा।’
‘फौरन यहां से दफा हो जाओ सूअर की औलाद।’ जौनी ने ठंडे मगर ब्लेड की धार जैसे पैने स्वर में कहा -‘बॉस के पास मैं अपनी सुविधानुसार पहुंच जाऊंगा।’
‘ठीक है – मैं जाकर कहे देता हूं बॉस से।’ टोनी ने कटु स्वर में कहा और वह रेस्तरां से बाहर निकल गया।
मैलानी ने चिन्तित स्वर में पूछा – ‘क्या बात है जौनी – क्या एमरजेन्सी आ गई है?’
पर जौनी स्वयं असमंजस में था – आज से पहले इस तरह से उसे कभी मसीनो ने अपने निवास स्थान पर नहीं बुलवाया था। किसी अज्ञात आशंका के डर से उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें फूट निकलीं।
‘माफ करना डार्लिंग – मुझे जाना ही पड़ेगा।’ जौनी ने मरी-सी आवाज में कहा – ‘तुम डिनर समाप्त करके टैक्सी द्वारा घर पहुंचो – मैं शीघ्र ही लौट आऊंगा।’
‘ओह नो – जौनी डियर मैं अकेली…।’
जौनी उठकर खड़ा हो गया – ‘प्लीज डार्लिंग – मेरी खातिर तुम ऐसा ही करोगी।’
प्लीज कहने की बावजूद भी उसके लहजे में कठोरता का आभास पाकर मैलानी ने सहमी हुई दृष्टि से उसे देखा। जौनी के चेहरे पर बेचैनी थी। उसका समूचा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था।
मैलानी ने मुस्कराने की असफल चेष्टा की -‘ओ.के. जौनी डियर – मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी। शीघ्र आना।’
जौनी ने खाने का बिल चुकाया और रेस्तरां से बाहर निकलकर सड़क पर आ गया।
बीस मिनट के बाद वह मसीनो के सजे-सजाये विशाल आवास में मौजूद था। बंदर जैसी शक्ल वाले एक बैरे ने उसे मसीनो के पास पहुंचा दिया। भारी फर्नीचर और किताबों से सजे लम्बे-चौड़े कमरे में प्रवेश करके जौनी ने देखा – जोये मसीनो एक गद्देदार कुर्सी में धंसा सिगार पी रहा था। सामने मेज पर व्हिस्की से भरा हुआ गिलास रखा था। बईं और अर्नी लासीनो बैठा दांत कुरेद रहा था।
‘आओ जौनी! बैठो’ – सामने की कुर्सी की ओर संकेत करता हुआ मसीनो बोला – ‘बोलो क्या पीओगे?’
‘धन्यवाद।’ जौनी बैठते हुए बोला – ‘व्हिस्की ही ठीक रहेगी।’
‘अर्नी! जौनी के लिए व्हिस्की पेश करो – और बाहर जाकर बैठो।’
व्हिस्की का गिलास जौनी को पकड़ाकर अर्नी फौरन बाहर निकल गया।
‘सिगार’। मसीनो ने पूछा।
‘नो थैंक्स – मिस्टर मसीनो।’
मसीनो मुस्कराया – ‘इस आकस्मिक बुलावे से तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं हुई?’ उसने पूछा।
‘जरूर हुई है मिस्टर मसीनो।’
मसीनो के मुंह से एक जोरदार कहकहा फूटा – उसने जौनी के घुटने थपथपाए और हंसता हुआ बोला -‘वह तुम्हारा इंतजार करेगी और जब तुम घर पहुंचोगे तो पहले की अपेक्षा और जोरदार ढंग से तुम्हारा स्वागत करेगी।’
जौनी ने कोई उत्तर नहीं दिया। व्हिस्की का गिलास हाथ में पकड़े हुए वह अपने आकस्मिक बुलाये जाने का कारण जानने की चेष्टा कर रहा था।
मसीनो ने अपनी दोनों टांगें फैलाकर सीधी कीं – उसने सिगार का एक जोरदार कश लिया और ढेर सारा धुआं मुंह से उगल दिया। देखने में वह बिल्कुल सामान्य नजर आता था, मगर जौनी अच्छी तरह से जानता था कि उसके मिजाज का कोई भरोसा नहीं है। किसी भी क्षण वह ज्वालामुखी जैसा खौलने लगता था।
‘यह मकान बहुत अच्छा है।’ कमरे में चहुं ओर दृष्टि घुमाकर उसने कहा।
‘इसकी सजावट में मेरी पत्नी का बहुत बड़ा हाथ है। ये सब सजावट उसी के दिमाग की उपज है। उसके विचारानुसार किताबें करीने से लगी हुई हैं। तुम कभी किताब पढ़ते हो जौनी?’
‘नहीं।’
‘मैं भी नहीं पढ़ता। बकवास भरी होती है किताबों में।’ मसीनो ने अपनी छोटी आंखें घुमाकर ठंडी निगाहों से उसे देखा – ‘खैर छोड़ो इसे। मैं तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था जौनी। करीब-करीब बीस वर्ष से तुम मेरे पास काम कर रहे हो। ठीक है ना?’
‘तो यह बात थी।’ जौनी ने सोचा। रिटायर होने का समय तो न था। उसे ऐसी उम्मीद तो थी, मगर इतनी जल्दी रिटायर हो जाएगा, यह उसने कल्पना भी नहीं की थी।
‘आप ठीक कह रहे हैं मिस्टर मसीनो – मेरे विचार से भी बीस वर्ष तो हो ही गये होंगे।’
‘तुम्हें तनख्वाह कितनी मिलती है जौनी?’
‘दो सौ डॉलर प्रति सप्ताह।’
‘एन्डी ने भी मुझे यही बताया था। दो सौ डॉलर प्रति सप्ताह। मुझे आश्चर्य है जौनी, तुमने आज तक अपने इतने कम वेतन मिलने की शिकायत मुझसे क्यों नहीं की?’
‘शिकायत करना मेरी आदत में शुमार नहीं है मिस्टर मसीनो।’ जौनी
गंभीरतापूर्वक बोला -‘इसके अलावा हर आदमी को उतनी ही तनख्वाह मिलती है जितनी के वह काबिल होता है।’
मसीनो ने कनखियों से उसकी ओर देखा – ‘लेकिन तुम्हारे और साथी तो हमेशा कम तनख्वाह का रोना रोते रहते हैं।’ व्हिस्की का घूंट गले से नीचे उतारता हुआ मसीनो बोला – ‘तुम मेरे सबसे ज्यादा विश्वासी व्यक्ति हो। अगर तुमने तीन बार मेरे जीवन की रक्षा न की होती तो मैं अब तक कब का दूसरे लोक का टिकट कटा चुका होता।’
जौनी चुप रहा।
‘अगर अब से तीन साल पहले तुम मेरे पास आकर वेतन-वृद्धि की बात करते तो मैं उसे बेहिचक स्वीकार कर लेता।’ सिगार के जलते हुए सिरे को उसकी ओर लाते हुए मसीनो ने कहा – ‘लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया। क्यों नहीं किया जौनी?’
‘मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं मिस्टर मसीनो कि हर आदमी अपनी योग्यता के मुताबिक वेतन पाता है। दूसरे मैं अधिक काम भी नहीं करता – सिर्फ कभी-कभी देखो मेरी जरूरत होती है इसलिए…।’ जौनी ने जान-बूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया।
मसीनो ने विषय बदला – ‘तुम और सैमी यहां पर सहयोग से काम कर रहे हो?’
‘हां।’
‘सैमी डरपोक स्वभाव का व्यक्ति है और शायद इस काम से बचना भी चाहता है।’
‘उसे धन की आवश्यकता है।’
‘मैं भी कुछ परिवर्तन करने की सोच रहा हूं। क्या विचार है तुम्हारा इस बारे में?’
जौनी ने अपने दिमाग पर जोर डाला। यह किसी की सिफारिश करने का समय नहीं था। यदि सब-कुछ उसकी योजनानुसार हुआ तो सिर्फ छः दिन में डेढ़ लाख डॉलर की भारी रकम उसके हाथ में पहुंच चुकी होगी।
‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा मिस्टर जोये।’ जौनी ने सामान्य स्वर में कहा – ‘दस साल से मैं सैमी के साथ काम करता आ रहा हूं। आपकी इच्छानुसार उस काम को मैं किसी और के भी साथ कर सकता हूं।’
‘मैं सम्पूर्ण परिवर्तन की बात कर रहा हूं जौनी। तुम और सैमी दस साल के लम्बे अरसे तक साथ-साथ काम करते चले आ रहे हो। दस साल काफी लम्बा अरसा होता है। सैमी को कार चलानी आती है क्या?’
‘यस मिस्टर मसीनो। उसका प्रारंभिक जीवन एक गैरेज में ही बीता था।’
‘तुम्हारे विचार में, क्या वह मेरा शोफर बनना पसन्द करेगा। मेरी पत्नी अक्सर शिकायत करती रहती है कि रोल्स रायस के लिए एक वर्दीधारी शोफर का होना जरूरी है। उसके अनुसार वर्दी में रोल्स रायस की सीट पर बैठकर ड्राइविंग करता हुआ सैमी बहुत जंचेगा।
‘आप उससे बातें कर लेना मिस्टर मसीनो। मेरे ख्याल में उसे मान जाना चाहिए।’
‘नहीं, कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं है। पहले तुम उससे पूछकर विचार जान लेना उसके। वैसे उसकी तनख्वाह कितनी है?’
‘दो सौ डॉलर प्रति सप्ताह।’
ड्राइवर का काम तो बहुत आसान है। तुम उससे पूछ लेना जौनी। उसे डेढ़ सौ डॉलर प्रति सप्ताह मिला करेंगे।’
‘ठीक है मिस्टर मसीनो, मैं पता कर लूंगा।’
कुछ देर तक खामोशी छाई रही। जौनी अपने भाग्य के फैसले का इंतजार करता रहा ‘और तुम जौनी’
मसीनो ने खामोशी तोड़ते हुए कहा – ‘इस शहर के एक नामवर आदमी हो। सभी तुम्हें प्रशंसा की नजरों से देखते हैं। अच्छी-खासी प्रसिद्धि तुम्हें प्राप्त है। क्या तुम जुआ खिलाने वाली मशीनों का इंचार्ज बनना पसन्द करोगे?’
जौनी का शरीर तन-सा गया। ऐसे किसी प्रस्ताव की तो उसने कल्पना तक नहीं की थी। एक मोटा बूढ़ा-सा आदमी, जिसका नाम बर्नी शुल्ज था, इन मशीनों की देख-रेख किया करता था। उसे इस काम को करते पांच वर्ष का अरसा हो चुका था। वह हमेशा जौनी के सम्मुख रोना रोता रहता था कि एन्डी बार-बार अधिक से अधिक रकम उन मशीनों से प्राप्त करने के लिए उसे परेशान करता रहता था, जबकि वह बहुत भाग-दौड़ करता था। मगर एन्डी द्वारा बताई गई राशि कभी भी प्राप्त नहीं कर पाया था। बर्नी के अनुसार उन मशीनों द्वारा इतनी बड़ी राशि एक हफ्ते में कमाना नामुमकिन था।
उसकी आंखों के सामने बर्नी का चेहरा घूम गया। साथ ही उसे उसके द्वारा कहे गए शब्द याद आने लगे – ‘ये एक बेहद बकवास किस्म का काम है जौनी। वह हरामजादा एन्डी हमेशा नई-नई मशीनें फिट कराने के बारे में बड़बड़ाता रहता है। तुम्हीं बताओ – मैं किस-किसके दरवाजे पर फेंकता रहूं, रोज-रोज ये मशीनें। मैं तो तंग आ चुका हूं इस नौकरी से।’

जौनी ने टालने के विचार से पूछा – ‘बर्नी का क्या होगा मिस्टर मसीनो?’
‘उसकी छुट्टी कर दी जाएगी।’ ऐसा कहते वक्त मसीनो के चेहरे पर मौजूद सामान्य भावों का स्थान कठोरता और निर्दयता ने ले लिया था। – ‘तुम इस काम को बखूबी अंजाम दे सकते हो जौनी। नई मशीनों के लिए जगह तलाश करने में भी तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि शहर के सब लोगों पर तुम्हारा रौब गालिब है। तुम्हारी तनख्वाह चार सौ डॉलर प्रति हफ्ता होगी और इसके अतिरिक्त एक प्रतिशत का कमीशन भी तुम्हें दिया जाएगा। मेहनत से काम करोगे तो तनख्वाह दूनी भी हो सकती है। अब बोलो क्या विचार है तुम्हारा?’
जौनी इस प्रस्ताव का विरोध करने की हालत में नहीं था। उसे भली भांति ज्ञात था कि इंकार करने का मतलब होगा – हमेशा के लिए छुट्टी और वह इसके लिए हर्गिज तैयार नहीं था।
वह संभला। मसीनो की आंखों में झांकते हुए उसने पूछा – ‘मुझे कब से काम आरंभ करना होगा?’
मसीनो के चेहरे पर मुस्कराहट उभरी। उसने जौनी का घुटना थपथपाते हुए कहा – ‘तुम्हारी यही आदत तो मुझे बेहद पसन्द है जौनी! तुम अगले महीने की पहली तारीख से अपना काम आरंभ कर दो। तब तक मैं बर्नी का भी इंतजाम कर दूंगा। तुम एन्डी से मिल लेना। वह तुम्हें सब बातें समझा देगा। थके हुए मसीनो ने अपनी रिस्टवॉच पर नजरें डालीं और उठ खड़ा हुआ।
‘अच्छा अब मैं चलता हूं जौनी – मुझे अपनी पत्नी के साथ कहीं जाना है। तो फिर तय रहा ना? अपना भारी हाथ उसके कंधे पर रखकर दरवाजे की ओर बढ़ता मसीनो बोला -‘तुमने सैमी से भी पूछना है, अगर उसे काम पसन्द है तो एन्डी से मिलकर यूनिफॉर्म का इंतजाम करवा लेगा। अगली कलैक्शन के बाद तुम दोनों अपनी-अपनी नई नौकरियों पर काम कर सकते हो। ठीक है ना?’
‘ठीक है मिस्टर जोये!’ जौनी ने सहमति जताई और वह बाहर निकल आया।

