World Toilet Day 2022: रोजाना सुबह टाॅयलेट सीट पर बैठे आपनेे कभी सोचा है कि टाॅयलेट सीट का भी म्यूजियम हो सकता है, वो भी इंटरनेशनल लेवल पर। जी हां, दिल्ली के पालम इलाके में स्थित ‘सुलभ इंटरनेषनल म्यूजियम ऑफ टाॅयलेट्स‘ ऐसा ही म्यूजियम है। ‘सुलभ‘ नाम से मशहूर यह म्यूजियम हमारी दिनचर्या के अहम हिस्से टाॅयलेट के उद्भव और ऐतिहासिक विकास को दर्शाता हैे।
इस म्यूजियम का लक्ष्य लोगों को पर्सनल हाइजीन के प्रति जागरुक करना और टाॅयलेट सीट के निर्माताओं को कुछ नया सीखने में मदद करना है। यूं तो आज दुनिया भर में कला, इतिहास, संस्कृति, विज्ञान, ऑटोमोबाइल के तो कई मशहूर म्यूजियम हैं, लेकिन यह म्यूजियम अपने-आप में अकेला और अनोखा है। जर्नीमार्ट नामक ट्रेवल वेबसाइट ने तो इसे पूरे विश्व के शीर्ष 10 अनोखे और विचित्र म्यूजियम की सूची में शामिल किया है।
टाॅयलेट म्यूजियम की स्थापना गैर-सरकारी संस्था ‘सुलभ इंटरनेषनल सोशल सर्विस आर्गेनाइजेशन‘ के संस्थापक डाॅक्टर बिंदेश्वर पाठक ने 1992 में की थी। वे मूलतः महात्मा गांधी की स्वच्छता के सिद्धांत को लेकर चले। सुलभ टाॅयलेट म्यूजियम नई दिल्ली के पालम-डाबरी रोड पर महावीर एन्क्लेव में है। यह केवल एक हाॅल में बना छोटा-सा म्यूजियम है, फिर भी इसे देखने में काफी समय लग जाता हैं। इसमें अलग-अलग दौर (2500 ई.पू. से लेकर आज तक) में टाॅयलेट के विकास से जुड़े तथ्यों, फोटोग्राफ, माॅडलों और देशी-विदेशी टाॅयलेट सीट्स की प्रतिकृतियों (रेपलिका) का दुर्लभ संग्रह है।
म्यूजियम में क्यूरेटर मिल जाएंगे जो म्यूजियम की पूरी जानकारी देते हैं। हाॅल की दीवारों पर टाॅयलेट के उद्भव-विकास की जानकारी और फोटोग्राफ देखने को मिलेगी। इनसे यह तथ्य सामने आता है कि पूरी दुनिया में भारत ऐसा देश है जहां घरों में सीवेज सिस्टम वाले टाॅयलेट का निर्माण सबसे पहले हुआ था। म्यूजियम में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, तक्षशिला जैसी प्राचीन भारतीय सभ्यताओं में भी सीवेज सिस्टम को दर्शाती फोटोग्राफ देख कर आपको सदियों पहले की कुशल सफाई-व्यवस्था (सेनिटेशन प्रोसीजर)के बारे में पता चलेगा लेकिन मध्य युग में सफाई-व्यवस्था को अनदेखा-सा कर दिया गया था। 500-1500ई. में खुले मैदान और नदी में कचरा फेंका जाने लगा, जिससे प्लेग जैसी महामारी दुनिया में फैल गई थी।
18वीं शताब्दी में दुबारा टाॅयलेट तकनीक पर बल दिया गया और फ्लश टाॅयलेट का विकास हुआ। म्यूजियम में 18वीं सदी के बाद अमरीका,ब्रिटेन, वियना, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में प्रयोग किए जाने वाले चीनी मिट्टी के नक्काशीदार बर्तन और टाॅयलेट सीट, फर्नीचर, फ्लश में पानी की सप्लाई जैसी कई चीजें प्रदर्शित की गई हैं।
म्यूजियम का प्रमुख आकर्षण है- वहां प्रदर्शित अनोखे टाॅयलेट। इनमें फ्रांस के सम्राट लुई 16वें के ‘रंबल सिंहासन‘ की प्रतिकृति (रेपलिका) है जो काफी आकर्षक है। इसकी गद्दी के नीचे टाॅयलेट बना हुआ है। कहा जाता है कि राजा अपना इसी सिंहासन पर बैठ कर अपना दरबार चलाता था। जरूरत पड़ने पर वह सिंहासन में बनी टाॅयलेट सीट पर बैठ जाता था और अपना दरबार बंद कर देता था। म्यूजियम में कुछ फर्नीचर में बनाए गए पोर्टेबल टाॅयलेट भी हैं जो देखने लायक हैं। यूरोपीय देश में बने लकड़ी का संदूक, कुर्सी, मेज और नरम सोफे में छिपा टाॅयलेट देखने लायक है। आप आसानी से इनके अंदर बने टाॅयलेट का अंदाज भी नहीं लगा पाओगे। म्यूजियम में ब्रिटिश पुस्तकों के ढेर की तरह दिखने वाला टाॅयलेट भी इसी तरह का है जो हैरान कर देने वाला है। यहां नक्काशीदार फूल की शेप वाला चीनी मिट्टी के टाॅयलेट बर्तन भी है जिसे इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया इस्तेमाल करती थी।
आज के आधुनिक युग में विज्ञान की प्रगति से टाॅयलेट के डिजाइन और तकनीक में आए परिवर्तनों को माॅडलों के जरिये म्यूजियम में दिखाया गया है। हीटिंग काॅयल वाले इलेक्ट्रिक माइक्रोवेव टाॅयलेट, वर्किंग टाॅयलेट, स्पेसफ्राफ्ट या सबमैरीन में उपयोग होने वाले ओर्गेनिक टाॅयलेट के पैकेट के माॅडल हंै। इनकी खासियत यह है कि एक बटन दबाने पर न केवल टाॅयलेट की धुलाई खुद-ब-खुद होती है, बल्कि फ्लश में बिना पानी बहाए मानव-अपशिष्ट खत्म हो जाता है।
क्या आप सोच सकते होे कि ‘टाॅयलेट‘ पर कोई कविता लिख सकता है? देश-विदेश में लिखी गईं कई हास्य-कविताएं म्यूजियम में प्रदर्शित की गई हैं, जिन्हें पढ़ कर आपको मजा जरूर आएगा। म्यूजियम की दीवारों पर टाॅयलेट के बारे में कई कहानियों की चर्चा भी की गई हैं। पुराने जमाने में राजा अकबर अपने टाॅयलेट में काफी समय गुजारता थे, रोमन राजा हैलियोगेबेलस और इंग्लैंड के राजा जेम्स तो अपने टाॅयलेट में मारे गए थे।
यही नहीं म्यूजियम हाॅल के बाहर एक प्रयोगशाला भी बनाई गई है जहां कम लागत के टाॅयलेट और सीवेज सिस्टम भी बनाए गए हैं। इनसे उन लोगों को फायदा हो सकता है जिनके घर में टाॅयलेट कीे सुविधा नहीं है और वे खुले में टाॅयलेट जाने के लिए मजबूर हैं। क्यूरेटर इनके बारे में पूरी जानकारी देते हैं।
कब जाएं?
सुलभ टाॅयलेट म्यूजियम सोमवार से शनिवार को सुबह 10.30 से शाम 5.00 बजे तक खुलता है।
कैसे जाएं?
म्यूजियम जाने के लिए आप मेट्रो ब्लू लाइन पर उत्तम नगर ईस्ट मेट्रो स्टेशन पर उतरकर महावीर एंक्लेव के लिए आॅटो ले सकते हो या बस से भी जा सकते हो। अगर आप अपने वाहन से जा रहे हो तो सुलभ टाॅयलेट के एरिया में पार्किंग की व्यवस्था भी है।