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पेरेंट्स बच्चों पर अपना पूरा हक मानते हैं और उनके भविष्य को डिजाइन करने की जिम्मेदारी भी उठा लेते हैं। लेकिन इस दौरान वे बच्चों की रुचियों पर गौर करना भूल जाते हैं। अक्सर पेरेंट्स बच्चों के जरिए अपने सपने पूरा करना चाहते हैं।
Parenting Tips for Teenagers: 8वीं क्लास में पढ़ने वाला रोहन हर समय सिंगिंग करता रहता है। वह यूट्यूब पर देखकर तरह तरह की राग और सिंगिंग टेक्नीक्स सीखता। कई ऐप्स पर उसने अपना अकाउंट बनाया था, जिन पर वे अपने सिंगिंग वीडियोज डालता था, इन वीडियोज पर हजारों लाइक्स भी थे। रोहन बड़ा होकर यूट्यूबर बनना चाहता है। लेकिन रोहन का यही शौक उसके पेरेंट्स के लिए सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है। क्योंकि उसके पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बेटा क्रिकेटर बने। खासतौर पर रोहन के पिता, जो खुद क्रिकेट के शौकीन हैं, अपने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए उत्साहित हैं। लेकिन रोहन है कि उनकी एक नहीं सुनता। वो रोज क्रिकेट एकेडमी तो जाता है, लेकिन परफॉर्म नहीं कर पाता। सिर्फ रोहन के पेरेंट्स ही नहीं आज के समय में ऐसे लाखों करोड़ों पेरेंट्स हैं, जिनके सामने ऐसी ही समस्याएं हैं। वे अपने बच्चों के लिए कुछ और सपने देखते हैं और उनके बच्चों की चाहतें अलग होती हैं। इसमें कौन सही है, कौन गलत, आइए जानते हैं।
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आप डिजाइन करना चाहते हैं बच्चे की लाइफ

आमतौर पर लोगों की यह धारणा होती है कि माता-पिता बच्चों को पालना अपने आप सीख जाते हैं। इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं होती। लेकिन असल में ऐसा नहीं होता। पेरेंटिंग एक गुण होने के साथ ही कला भी है। हर पेरेंट को इसे सीखना चाहिए। पेरेंट्स बच्चों पर अपना पूरा हक मानते हैं और उनके भविष्य को डिजाइन करने की जिम्मेदारी भी उठा लेते हैं। लेकिन इस दौरान वे बच्चों की रुचियों पर गौर करना भूल जाते हैं। अक्सर पेरेंट्स बच्चों के जरिए अपने सपने पूरा करना चाहते हैं। वो सपने जिन्हें वे खुद पूरा नहीं कर सके या जिन्हें उनके पेरेंट्स से जरूरी नहीं समझा। लेकिन वे ये नहीं समझ पाते कि यहां वे ठीक वही गलती कर रहे हैं, जिससे बचपन में वे खुद गुजरकर आए हैं। कई बार तो पेरेंट्स बच्चों की रुचियों तक को अपने अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे उन्हें बोझ समझने लगते हैं। अपने बच्चों का फ्यूचर सिक्योर करने की चाहत में पेरेंट्स अनजाने में उन्हें खुद से दूर कर देते हैं।
जो मैंने नहीं किया, वो मेरे बच्चे करेंगे
मैं क्रिकेटर नहीं बन पाया तो क्या मेरा बेटा मेरा सपना पूरा करेगा। बचपन में मैं बहुत अच्छा गाती थी अब मेरी बेटी सिंगर बनेगी। मैं तो अपने बेटे को एथलीट बनाउंगा, बच्चे जब बहुत छोटे होते हैं उस समय से ही पेरेंट्स ऐसे सपने देखना शुरू कर देते हैं। जब बच्चे थोड़ा बड़े होते हैं तो पेरेंट्स अपने इन सपनों को उनके जरिए पूरा करने की तैयारी कर लेते हैं। लेकिन इस बीच वे बच्चों की रुचियां पहचानने और जानने की कोशिश ही नहीं करते। वे बच्चे की क्षमताओं को भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे में बच्चे अपनी पहचान खो सकता है। इतना ही नहीं इसका असर उसके पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर भी पड़ता है। कई बार पेरेंट्स का यह प्रेशर बच्चों की जिंदगी बनाने की जगह उसे खराब कर सकता है।
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खुद को अपडेट करना जरूरी
ये बात सोलह आने सच है कि कोई भी माता-पिता अपने बच्चे का बुरा नहीं चाहता है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि अधिकांश पेरेंट्स बच्चों पर अपने वो सपने थोपना चाहते हैं जो खुद उन्होंने अपने बचपन में देखे थे। लेकिन अक्सर वे खुद को अपडेट करना भूल जाते हैं। यानी आज के समय में उन रुचियों, करियर, रुझानों का क्या भविष्य है, उनमें कितना कॉम्पिटिशन है, क्या बच्चा उतना सक्षम है आदि बातों पर पेरेंट्स ध्यान ही नहीं देते। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में पेरेंट्स को काफी आगे तक की सोच अपनाने की जरूरत है। शायद इसलिए बच्चे पेरेंट्स से कहते हैं कि आप कुछ नहीं समझते।
प्यार से जीते बच्चे का दिल

कोई भी बच्चा सबसे ज्यादा विश्वास अपने पेरेंट्स पर करता है। उसे पूरा भरोसा होता है कि इस दुनिया कोई उसे समझे या न समझे उसके पेरेंट्स उसे जरूर समझेंगे। लेकिन जब पेरेंट्स बच्चे पर सिर्फ पढ़ाई ही नहीं रुचियां भी थोपने लगते हैं तो विश्वास की वो मजबूत नींव हिल जाती है। बच्चा खुद को ठगा सा महसूस करता है। उसे लगता है कि उसे समझने वाला कोई भी नहीं है। धीरे-धीरे यह खाई बढ़ती जाती है और बच्चे के संबंध पेरेंट्स के साथ खराब होने लगते हैं। इसका असर पेरेंट्स बुढ़ापे तक देखते हैं। आप ये गलती न करें, बच्चों को बताएं कि वो आपके लिए सबसे ज्यादा जरूरी हैं। आप प्यार से दुनिया ही नहीं बच्चे भी जीत सकते हैं। जिद या गुस्से से नहीं।
तर्क के साथ रखें अपनी बातें
पेरेंट्स और बच्चों के बीच एक इमोशनल बॉन्ड होता है। लेकिन जब पेरेंट्स बच्चों के इमोशन नहीं समझ पाते हैं तो बच्चे दिल से दुखी हो जाते हैं। कई बार बच्चे इस बात से इतने परेशान हो जाते हैं कि वे पेरेंट्स से बात करना बंद या कम कर देते हैं। धीरे-धीरे दोनों के बीच का इमोशनल बॉन्ड खत्म होने लगता है। दरअसल, बच्चे जब छोटे होते हैं तो वे अपने पेरेंट्स के नजरिए से सोच नहीं पाते। ऐसे में उन्हें बंदिश महसूस होने लगती है। उन्हें लगता है कि पेरेंट्स उनसे कम और अपने सपने से ज्यादा लगाव रखते हैं। इसलिए आप अपनी बात और पक्ष बच्चों के सामने हमेशा पूरे तर्क के साथ रखें।
प्रेरित करें, आजादी दें
बच्चे को आगे बढ़ने की प्रेरणा देना अच्छी बात है, लेकिन उसे अपनी मर्जी से राह चुनने की आजादी देना उससे भी बेहतर है। साल 2020 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की ओर से की कई एक स्टडी में सामने आया कि अधिकांश टीनएजर्स अपने पेरेंट्स की रुचियों को अपनाने के प्रेशर के कारण चिंता और डिप्रेशन में रहते हैं। इस डिप्रेशन का असर उसपर जिंदगीभर रहता है। ऐसे में पेरेंट्स की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों की रुचियों को स्वीकार करें और उन्हें पूरा करने में उनका साथ दें।
दोस्त बनकर समझें
हर माता-पिता की यही इच्छा होती है कि उनका बच्चा पढ़ाई के साथ—साथ अन्य गतिविधियों में भी सबसे आगे रहे। लेकिन जब आप बच्चे को किसी भी क्षेत्र को चुनने की आजादी नहीं देते हैं तो इसका असर उसकी परफॉर्मेंस पर पड़ता है। साल 2022 में नेशनल लाइब्रेरी आॅफ मेडिसिन के एक शोध के अनुसार जिन बच्चों को अपनी रुचियां चुनने की आजादी नहीं मिलती वे पढ़ाई में भी पिछड़ जाते हैं। उनका ध्यान किसी भी काम पर नहीं लग पाता है। इसलिए बच्चों को दोस्त बनकर समझें और उन्हें प्रोत्साहित करें।
इच्छा थोपते नहीं जानते हैं अच्छे पेरेंट्स
बुक गुड पेरेंटिंग की लेखिका स्टीला मार्क बताती है कि गुड पेरेंटिंग वो नहीं है जिसमें माता—पिता अपने बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपें। बल्कि गुड पेरेंटिंग वो है, जिसमें पेरेंट्स बच्चों की रुचियों को जानें, पहचानें और उनका सम्मान करें। इन रुचियों को जेंडर, उम्र, स्तर के आधार पर जज न करें। स्टीला के अनुसार जब पेरेंट्स बच्चों पर सख्ती करते हैं या उन्हें हमेशा अनुशासन में रखने की कोशिश करते हैं तो इसका बच्चों पर नेगेटिव असर पड़ता है। बच्चे को गलती पर सजा देना या मारना गलत है। इससे बच्चे का कॉन्फिडेंस कम होने लगता है। वह डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और अपनी भावनाओं के बारे में किसी को बता नहीं पाते। वहीं समझदार पेरेंट्स अपने बच्चों की रुचियों को जानने की कोशिश करते हैं और उनके अनुसार ही उन्हें एक्टिविटीज में जाने की छूट देते हैं। वे बच्चे को खुलकर जीने की आजादी देते हैं। ऐसे बच्चे जीवन में ज्यादा सफल होते हैं। वे दूसरे बच्चों के मुकाबले ज्यादा क्रिएटिव होते हैं। वह हर क्षेत्र में बेहतर परफॉर्म करते हैं। इतना ही नहीं कॉन्फिडेंस से भरे ये बच्चे किसी से बात करने में या अपनी भावनाएं बताने में झिझकते नहीं हैं।
