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बुजुर्गों की चुप्पी के पीछे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी फेक्टर्स जुड़े हैं। ऐसे में यह हर बच्चे की जिम्मेदारी है कि वह उम्र के इस पड़ाव पर माता-पिता का पूरा साथ दे और उन्हें फिर से जीना सिखाए।
Old Parents Caring: अक्सर पेरेंट्स जैसे-जैसे बुढ़ापे की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे गुमसुम और उदास रहने लगते हैं। उनका स्वास्थ्य लगातार कमजोर होने लगता है और वे अपने आपको मॉर्डन जमाने के बीच अनफिट सा महसूस करने लगते हैं। मानों वे चुपचाप शून्य की ओर देखते हैं। इस चुप्पी के पीछे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी फेक्टर्स जुड़े हैं। ऐसे में यह हर बच्चे की जिम्मेदारी है कि वह उम्र के इस पड़ाव पर माता-पिता का पूरा साथ दे और उन्हें फिर से जीना सिखाए, जिससे उनकी सेकंड इनिंग खुशनुमा हो सके। यह कोई मुश्किल काम नहीं है, बस आपको कुछ छोटी-छोटी कोशिशें करनी हैं। उम्र के साथ आने वाली चुनौतियों में अपने पेरेंट्स का सहारा बनकर आप उन्हें सच्ची खुशी दे सकते हैं।
1. फिजिकल एक्टिविटी को दें बढ़ावा

यह बात सच है कि उम्र के साथ-साथ शारीरिक श्रम भी कम हो जाता है। लेकिन शारीरिक गतिविधियां शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए बहुत जरूरी हैं। अपने पेरेंट्स को नियमित वॉक, योग, मेडिटेशन और हल्की एक्सरसाइज के लिए बढ़ावा दें। इससे उनकी मांसपेशियों को ताकत मिलेगी, शरीर की ऐंठन खत्म होगी साथ ही हृदय संबंधी परेशानियां और डायबिटीज जैसे खतरे भी दूर होंगे। सुबह-शाम की ताजी हवा और हरियाली से उनका तनाव, डिप्रेशन और एंग्जायटी भी कम होगी। अगर पेरेंट्स इसके लिए तैयार न हों तो आप खुद उनके साथ जाएं, इससे उन्हें बेहतर महसूस होगा और आप कुछ समय उनके साथ बिता सकेंगे।
2. पोषण पर दें पूरा ध्यान
एक उम्र के बाद शरीर के पोषण पर दोगुना ध्यान देने की जरूरत होती है। क्योंकि बुढ़ापे में सेहत में तेजी से गिरावट आती है। इसलिए पेरेंट्स की डाइट में ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज, ड्राई फ्रूट्स, सीड्स आदि को शामिल करें। क्योंकि बुजुर्गों के भोजन में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन डी, आयरन, मैग्नीशियम और एंटीऑक्सीडेंट को शामिल करना बहुत जरूरी होता है। इससे उनकी इम्यूनिटी बढ़ती है और वे कई रोगों से बचे रहते हैं। बॉडी को हाइड्रेट रखने के लिए दिनभर में पर्याप्त पानी का सेवन करना भी जरूरी है।
3. दूर करें अकेलापन
कहते हैं बुढ़ापे में सबसे बड़ी बीमारी होती है अकेलापन। अधिकांश बुजुर्ग इसे महसूस करते हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त होते हैं। ऐसे में कई बार वे चाहते हुए भी पेरेंट्स को भरपूर समय नहीं दे पाते हैं। धीरे-धीरे बुजुर्ग गुमसुम और उदास रहने लगते हैं और उनकी बौद्धिक व संज्ञानात्मक कार्यक्षमता कम होने लगती है। इसका सबसे अच्छा उपाय है पेरेंट्स को सामाजिक रूप से एक्टिव रखना। सोसायटी के काम, मंदिर के आयोजन, शिविरों का आयोजन, शाम की गपशप, गेम्स टाइम जैसी कई एक्टिविटीज में अपने पेरेंट्स को शामिल करें। इससे उनका खुद का सर्कल बनेगा और रिटायरमेंट के बाद का अकेलापन अपने आप दूर हो जाएगा। ये सभी एक्टिविटी पेरेंट्स को बिजी और खुश रखेंगी। सबसे जरूरी है दिनभर में थोड़े समय उनके साथ बैठकर आप भी बातें करेंं।
4. पर्याप्त नींद है जरूरी
अक्सर बुजुर्गों की एक शिकायत होती है कि उन्हें रात में नींद नहीं आती। इसका सबसे बड़ा कारण यह होता है कि एक उम्र के बाद नींद के पैटर्न में बदलाव आने लगते हैं। पहले आॅफिस या अन्य कामों में बिजी रहने के कारण आप दिन में सो नहीं पाते थे। लेकिन रिटायरमेंट के बाद आप दिनभर में कई बार छोटी-छोटी झपकी ले लेते हैं। ऐसे में रात को सोने में परेशानी आती है। इसलिए एक रूटीन सेट करें। उसी के अनुसार समय पर सोने की आदत डालें। सोते समय बिस्तर साफ और माहौल शांत होना चाहिए।
