मां नीलेश्वरी

इस पृथ्वी पर धरा एक ऐसी शक्ति है जिसमें सभी बुद्धिजीवी प्राणी कृपा पाते हैं, जिसके रूप अनेक हैं, कोई किसी नाम से तो कोई किसी नाम से मां आदि शक्ति की पूजा करता है। ये वही मां आदि शक्ति हैं जिन्होंने कालीदास को अज्ञानी से ज्ञानी बना दिया और गुरु रामकृष्ण परमहंस को अजर और अमर कर दिया। वे आदिशक्ति से बालक की तरह लाड़ करते हैं। वह आदि शक्ति ही मां की तरह हमें दुलार प्यार देती है।

कोई कहता है ऐसे पूजा करो, वैसे करो, विधि विधान से पूजा करो, सत्य है कि अनजान और अज्ञानी बनकर मां मां कहो, नासमझ छोटे से बालक की तरह मां आदि शक्ति हमेशा साथ रहेंगी और अपने भक्तों को गोद में बैठा कर अपने आंचल में छुपा लेंगी। मां से प्यारा कोई रूप नहीं है और ना ही कोई भी शक्ति है। चाहे जन्म देने वाली मां हो या जगत का पालन करने वाली मां हो ,मां हमेशा बच्चों पर प्यार दुलार व आशीर्वाद देती है। हमसे लाख गलतियां हो जाएं पर मां क्षमा करती है। हमें समय-समय पर सही मार्ग दिखाती रहती है। मां से बढ़कर इस संसार में कोई शक्ति नहीं है। मां हमारी प्रथम गुरु मानी जाती है।

मां शिव अर्धांगिनी, शिव धात्री, शिवपत्नी, मां निलेश्वरी काली, धरती, अंबर, पाताल तीनों लोकों की, ब्रह्मांड की, जर्रे-जर्रे की, कण-कण की, पत्ते-पत्ते की, हवाओं, फिजाओं, हर इंसान की, पशु और पक्षी के सांसों की मालिक है। इस प्रकृति की भी, जिसकी इच्छाओं से संसार के सब कार्य सुचारू रूप से पूर्ण होते हैं, जिनके बिना देवों के देव महादेव भी अधूरे हैं। शास्त्रों में नारी को नारायणी कहा गया है। वह शक्ति की पुंज है, श्री है, चिति है, विदुषी, यशोमयी है, ज्ञान के आलोक से परिपूर्ण वीरांगना है, आदर्श माता है, वीरों की जननी है, संतान की प्रथम शिक्षिका है, कर्तव्यनिष्ठ पत्नी है, गृहिणी है, सम्राज्ञी है, अध्यापिका के रूप में कन्याओं को सदाचार और ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा देने वाली है।

नारी की मुस्कान में सृजन, उसके दुग्ध में अमृत और उसकी आहा में प्रलय है। वह अपूर्ण में पूर्ण है, पूज्या है, रमणीय है, सुशील है, तेजस्विनी देवी के रूप में आराध्य है, धैर्य और सहनशीलता की दृष्टि से वह धारित्री है। इसलिए उसे धारण शक्ति का प्रतीक भी कहा गया है।

नर अग्नि है तो नारी ज्वाला है, नर आदित्य है तो नारी प्रभा है, नर तरु है तो नारी लता है, नर पुष्प है तो नारी उसकी पंखुड़ी है, नर धर्म है तो नारी धीरता है, नर सत्य है तो नारी श्रद्धा है, नर करम है तो नारी विद्या है, नर सत्व है तो नारी सेवा है, नर स्वाभिमान है तो नारी क्षमा है, दोनों के सामंजस्य से ही जगत बना है, दोनों के सामंजस्य से ही जीवन के संगीत की मिश्रित झंकार होती है। नर यदि नदी का एक तट है तो नारी उसका दूसरा तट है। दोनों के बीच में ही व्यक्ति और सामाजिक विकास की अविरल धारा बहती है। दोनों की समझ से ही पूर्णता है, वेदों में नारी को ज्ञान दायिनी, सुख-समृद्धि की दात्री, विदुषी सरस्वती जैसे अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं। वेदों के अनुसार वह सदा विजयनी है, यज्ञीय अर्थात यज्ञ के समान पूजनीय है तथा घर की संभागीय है। मनुस्मृति में कहा गया है कि ‘यत्रनार्यस्तु पूज्यंते नमंते तत्र देवता:’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवी-देवता वास करते हैं।

आपको बता दें कि मां दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति व कलश की स्थापना क्यों की जाती है। नवरात्रों के पहले दिन मिट्टी की मूर्ति और घड़े रूपी कलश की स्थापना की जाती है क्योंकि मिट्टी की मूर्ति एवं कलश ही शुभ माने जाते हैं। भगवान ब्रह्मा और उनके पुत्र विश्वकर्मा ने सृष्टि का निर्माण मिट्टी से ही मां की आज्ञा से किया क्योंकि मिट्टी में पांच तत्त्व पाए जाते हैं। इसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी पांच तत्त्वों से बना हुआ है और अंत में पांच तत्त्वों में ही मिल जाता है। इसलिए शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रों के शुभ अवसर पर हम सभी अपने घरों को साफ सुथरा कर मां की मिट्टी की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा से स्थापना करते हैं। उसके साथ मिट्टी के कलश में पानी भरकर व जौ इत्यादि बो कर उसकी पूजा अर्चना करते हैं ।

नौ दिन पूजा कर मां दुर्गा का विसर्जन किया जाता है। इस संसार में सभी जीव-जंतु पेड़-पौधे आदि जहां तक आप देखते हैं सब कुछ मिट्टी से निर्मित है। मां ने मिट्टी की मूरत में व जीव जंतुओं में प्राण डालकर इस संसार का निर्माण किया है।

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