अश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। वाल्मीकि रामायण को अक्सर लोगों की पसंदीदा रामायण कथा में दर्जा दिया गया है। सुप्रसिद्घ महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना कर आदिकवि वाल्मीकि ने श्री राम के उज्ज्वल चरित्र को जन-जन तक पंहुचाया।
महर्षि वाल्मीकि ने सुप्रसिद्घ महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना की। ये संस्कृत साहित्य का आरंभिक महाकाव्य है। महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि कहा जाता है। आदिकवि शब्द आदि और कवि के मेल से बना है। ‘आदि’ का अर्थ होता है प्रथम और ‘कवि’ का अर्थ होता है काव्य का रचयिता। यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि आदिकवि कहलाए। इनके जीवन के बारे में बहुत सारी किंवदंतियां प्रचलित हैं। मनुस्मृति के अनुसार, प्रचेता, वरिष्ठ, नारद, पुलस्य आदि भी इन्हीं के भाई थे। वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं वे प्रचेता के पुत्र हैं। इनका एक नाम वरुण भी है। वरुण ब्रह्मï जी के पुत्र थे। ये भृगुकुल में उत्पन्न ब्राह्मण थे। इनकी माता का नाम चर्षणी था।
कहते हैं कि एक बार वाल्मीकि जंगल में खो गए थे और इनको भीलों ने पाल लिया क्योंकि उस भील की कोई संतान नहीं थी। वहीं, इनका नाम रत्नाकर पड़ा। कहीं-कहीं इनका नाम अग्निशर्मा भी मिलता है। इनका जन्मदिवस अश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। कहा जाता है कि भील जाति से मिले संस्कारों के कारण ये राहगीरों को लूटते थे।
एक बार सात ब्रह्मïर्षि जा रहे थे, उनमें से एक नारद मुनि भी थे। इन्होंने ऋषि-मुनियों को रोका। ऋषियों ने कहा हमारे पास तो बस एक कमण्डल है। रत्नाकर ने कहा, ‘यही दे दो’। ऋषि-मुनियों ने कहा, ‘तुम ये सारे बुरे कार्य किसके लिए करते हो?’ रत्नाकर ने उत्तर दिया ‘अपने परिवार के लिए।’ मुनियों ने कहा, ‘क्या वे इस सारे बुरे कर्म के साक्षी बनेंगे?’ रत्नाकर ने कहा, ‘क्यों नहीं?’ ब्रह्मïर्षि ने कहा ‘जाओ पूछकर आओ।’ इस पर रत्नाकर ने कहा, ‘मैं अपने परिवार से मिलने जाऊं और तुम लोग भाग जाओ तो?’ ऋषियों ने कहा, ‘यदि तुम्हें विश्वास नहीं है तो हमें इन पेड़ों से बांध दो।’ रत्नाकर ने उन्हें बांध दिया।
जब वह अपने घर गया और उसने अपने परिवार वालों से पूछा तो सबने यही उत्तर दिया, ‘बुरे कर्म तुम करते हो, हम क्यों तुम्हारे पाप कर्मों के भागीदार बने!’ रत्नाकर इससे बहुत दुखी हुआ, वह दौड़ता हुआ आया और ऋषिमुनियों के पांव में गिर पड़ा। उसने प्रायश्चित करने का मार्ग पूछा तो ऋषियों ने उन्हें राम नाम का मंत्र दिया। रत्नाकर ने राम-राम कहना चाहा पर उसने इतने बुरे कर्म किए थे कि उसके मुंह से मरा-मरा निकला।
एक समय वाल्मीकि ध्यान में मग्न थे, इनके शरीर के चारों ओर दीमकों ने घर बना लिया। जब वाल्मीकि जी की साधना पूरी हुई तो वे दीमकों के घर से बाहर निकले। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। इस प्रकार इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। एक बार ये तपस्या करने के लिए गंगा नदी के तट पर गए। वहीं पास में क्रौंच पक्षी का युगल जोड़ा प्रेम में मग्न था। उसी वक्त एक व्याध ने तीर मार कर नर पक्षी की हत्या कर दी। उस दृश्य को देख कर उनके मुख से श्लोक निकला-

‘मां निषाद प्रतिष्ठï त्वमंगम:
शाश्वती: समा:।
यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥
अर्थात् जिस दुष्टï ने यह घृणित कार्य किया उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा, उसने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया। ये प्रथम श्लोक था। इसलिए इन्हें श्लोक का जन्मदाता कहा जाता है। ये ज्योतिष व खगोल विद्या के भी प्रकाण्ड ज्ञानी थे। इन्होंने रामायण में अनेक घटनाओं के घटित होने के समय का पूर्ण वर्णन किया है। अपने वनवास काल के मध्य में भगवान राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में गए थे। गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस में लिखते हैं-
देखत बन सर सुहाए।
वाल्मीकि आश्रम प्रभु आए॥
रामचरितमानस के अनुसार जब राम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में आए थे तो वे आदिकवि वाल्मीकि के चरणों में दण्डवत प्रणाम करने के लिए जमीन पर दण्ड की भांति लेट गए। उनके मुख से निकला-
‘तुम त्रिकालदर्शी मुनि नाथा
विश्व ब्रदर जिमि तुम्हरे हाथा’
अर्थात् आप तीनों लोकों को जानने वाले स्वयं प्रभु हो। ये संसार आपके हाथ में एक बेर के समान प्रतीत होता है। सीता जी परित्यक्त होने के बाद वन देवी बनकर इनके आश्रम में रही थीं। लव-कुश का जन्म भी वाल्मीकि आश्रम में हुआ था। द्वापर युग के महाभारत काल में महर्षि वाल्मीकि का वर्णन मिलता है। जब पांडव कौरवों से युद्घ जीत जाते हैं तो द्रोपदी यज्ञ रखती है जिसके सफल होने पर शंख का बजना आवश्यक था। कृष्ण सहित सभी के द्वारा प्रयास करने पर भी यज्ञ सफल नहीं होता और श्रीकृष्ण के कहने पर सभी महर्षि वाल्मीकि से प्रार्थना करते हैं। जब वाल्मीकि वहां प्रकट होते हैं तब शंख खुद बज उठता है। इस घटना पर कबीरदास ने कहा है-
सुपच रूप धार सतगुरु आए।
पांडो के यज्ञ में शंख बजाए॥
भगवान राम की शरण में जो भी गया उसका उद्घार हो गया। राम नाम ही सत्य है यही जीवन का मूल तथ्य है, राम राम कहकर शबर कन्या माहुली शबरी बन गई, मरा-मरा कहकर रत्नाकर वाल्मीकि बन गया। जो राम की शरण में गया राम ने उसे अमर कर दिया।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन चरित्र पढ़ने से यह प्रेरणा मिलती है कि बुरा मनुष्य भी उत्तम चरित्र के आचरण को अपना सकता है, जैसा महर्षि वाल्मीकि ने किया और विश्व को ‘रामायण’ जैसा महाकाव्य दिया।
