संस्कृत ग्रंथों के लोकप्रिय नायक हैं श्री राम: Lord Ram
Lord Ram Sanskrit Granth Story

Lord Ram: भारतीय सांस्कृतिक चेतना की प्राणरेखा ‘श्री कृष्ण’ और ‘श्री राम’ के चरित्र के साथ जुड़ी हुई है। श्री कृष्ण महाभारत एवं श्री राम रामायण के सामान्य नायक मात्र नहीं हैं, इन्हें सृष्टि रचनाकार के मानवीय रूप के रूप में भारतीय श्रद्धा के केंद्रीय तत्व के रूप में मान्यता मिली है। इन दोनों महापुरुषों में ‘श्री राम’ का चरित्र अधिक व्यापक है। भारतीय मानव मूल्यों का मानवीयकरण ही श्री राम का व्यक्तित्व है। श्री राम कथा एवं श्री राम का चरित्र वास्तविक है अथवा काल्पनिक, इस बिन्दु पर विद्वानों में मतभेद हो सकता है किन्तु श्री राम के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास ने संपूर्ण विश्व को न केवल प्रभावित किया है वरन श्री राम भारतीय सांस्कृतिक चेतना के आधार पर तत्व हैं इस सत्य से शायद ही कोई विद्वान इंन्कार कर सकेगा।

महाभारत में भी श्री राम कथा का अनेक स्थानों पर वर्णन हुआ है और वन पर्व में तो (द्रौपदी के कहने पर जब भीमसेन सौगन्धिक कमल लेने के लिए कदलीवन जाते हैं तब वहां उनकी भेंट में सुनाते हैं।) यह कथा मात्र तेइस श्लोकों में समाहित की गई है। वनपर्व के ही रामोपाख्यान उप पर्व में पूरे अठारह अध्यायों एवं सात सौ छब्बीस श्लोकों में पुन: श्री राम कथा का विस्तृत वर्णन किया गया है। ‘स्कन्दपुराण’ ‘पद्मपुराण’ में भी रामकथा का वर्णन है। राम कथा महॢष वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में रची गई थी। इस तथ्य से सामान्यजन भी परिचित हैं किन्तु इस तथ्य से संभवत: कम ही लोग परिचित होंगे कि वाल्मीकि रामायण के अतिरिक्त 50 से अधिक श्री राम कथा आधारित संस्कृत ग्रंथों का णरेखा श्री कृष्ण और श्री राम के चरित्र के साथ जुड़ी उल्लेख मिलता है।

आनन्द रामायण में प्राचीन रामायण ग्रंथों की एक लंबी सूची दी गई है और विशेष बात यह है कि जिन व्यक्तियों के नाम इन ग्रंथों के साथ रचनाकार के रूप में जुड़े हुए हैं उनमें से अधिकांश वाल्मीकि रामायण के कथापात्र देवता अथवा प्राचीन ऋषि हैं। इन ग्रंथों के नाम इस प्रकार हैं।

वायुपुत्र- रामायण, 2. नारद- रामायण, 3. वृत्त- रामायण, 4. भारद्वाज- रामायण, 5. शिव- रामायण, 6. क्रौञ्च- रामायण, 7. भरत- रामायण, 8. जैमिनी- रामायण, 9. जटायु- रामायण, 10. श्वेतकेतुकी- रामायण, 11. पुलस्त्य- रामायण, 12. देवी- रामायण, 13. विश्वामित्र- रामायण, 14. सुतीक्ष्ण- रामायण।
अब तक जिन श्री राम कथा ग्रंथों की प्रतियां उपलब्ध है वे इस प्रकार हैं।

  • अग्निवेश रामायण- श्री वाल्मीकि रामायण में वॢणत श्री रामकथा को इस ग्रंथ में एक सौ पांच श्लोकों में वॢणत किया गया है।
  • महा रामायण- इस ग्रंथ को भुशुण्डी रामायण का परिशिष्ट अथवा दूसरा नाम माना जाता है और इसका रचना काल 17वीं शताब्दी माना जाता है।
  • मन्त्र रामायण- आचार्य नीलकंड द्वारा रचित इस ग्रंथ में कुछ वैदिक मंत्रों को संग्रहित कर उन्हें रामकथा परक सिद्ध किया गया है।
  • गायत्री रामायण- विद्यरण्य स्वामी रचित इस ग्रंथ में रचनाकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि वाल्मीकि रामायण का मूल-प्रतिपाद्य और उनका कथा विस्तार गायत्री-मन्त्र पर आधारित है।
  • वेदान्त रामायण- संवत् 1964 में वाराणसी से प्रकाशित इस ग्रंथ में वाल्मीकि रामायण में वॢणत परशुराम के प्रसंगों का प्रश्नोत्तर के रूप में विस्तार किया गया है।

आइये अब तक उन संस्कृत ग्रंथों की चर्चा करें जो आज भी उपलब्ध हैं एवं महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।

  • योगवसिष्ठ रामायण- इसके रचनाकार एवं रचना काल के विषय में विद्वान एकमत नहीं हैं। अधिकतर विद्वान इसे ईसा की छठी शताब्दी में रचित मानते हैं। इस ग्रंथ में छह प्रकरण, 344 सत्र तथा 27687 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में श्री राम के जन्म से लेकर उस समय तक की कथा वॢणत है जब महॢष विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए श्री राम को अपने साथ ले जाने के उद्देश्य से अयोध्या आते हैं। इसके उपरान्त महॢष वशिष्ठ द्वारा श्री राम के मोह निवारण हेतु उनके द्वारा पूछे गए विविध प्रश्नों के उत्तरों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
  • अध्यात्म रामायण- 4175 श्लोकों वाले इस ग्रंथ के रचनाकार एवं रचना काल के संबंध में भी अनिश्चय की स्थिति है। यह श्री बाल्मीकि की रामायण का ही संक्षिप्त रूप है और इसका उद्देश्य ऐतिहासिक कथा वर्णन के स्थान पर श्री राम तत्त्व का निरूपण है।
  • अद्भुत रामायण- श्री राम के स्थान पर जानकी जी को प्रमुख पात्र बनाकर इस ग्रंथ की रचना की गई है। इसका रचना काल 13-14वीं शताब्दी माना जाता है। यह 27 सर्गों में विभाजित है।
  • आनन्द रामायण- यह ग्रंथ परम उपास्य देव के रूप में श्री राम और श्री कृष्ण के तात्त्विक एकत्व को निरूपित करने के उद्देश्य से रचा गया है। कुछ विद्वान इसे महात्मा राम दास द्वारा रचित मानते हैं। इसका रचना काल 15वीं शताब्दी माना जाता है। इसमें 12252 श्लोक एवं 9 कांड हैं। ये नौ कांड इस प्रकार हैं- 1. सार काण्ड, 2. यात्रा काण्ड, 3. याग काण्ड, 4. विलास काण्ड, 5. जन्म काण्ड, 6. विवाह काण्ड, 7. राज्य काण्ड, 8. मनोहर काण्ड, 9. पूर्णा काण्ड।
  • भुशुण्डि रामायण- पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर इन चार खंडों एवं 36000 श्लोकों वाली इस विशाल रचना के रचनाकार का नाम उपलब्ध नहीं है। इसे 14-15वीं शताब्दी का माना जाता है। इस ग्रंथ की विशेषता कृष्ण कथा के समान श्री राम के चरित्र को भी रसिक रूप में ढालने का प्रयत्न है। इस कारण इस ग्रंथ में श्री वाल्मीकि रामायण से इतर कुछ नवीन प्रसंगों को भी जोड़ा गया है। श्री राम को मधुर उपासना के उपयुक्त इष्ट के रूप में प्रस्तुत करना ही कवि का प्रमुख उद्देश्य है।

उपरोक्त ग्रंथों के अतिरिक्त श्री राम कथा के विभिन्न प्रसंगों पर केंद्रित ग्रंथों की रचना भी खूब हुई है। इन ग्रंथों की संक्षिप्त चर्चा करना भी इस संदर्भ में उचित ही होगा। ये ग्रंथ इस प्रकार हैं-

  • महाकवि भट्टि का रावण वध- इस महाकाव्य में 20 सर्ग एवं 3624 पदों में श्री राम का सरल, सरस वर्णन है। साथ ही इसका उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ संस्कृत व्याकरण का पूर्ण ज्ञान कराना भी है।
  • महाकवि कुमार दास का जानकी हरण- कुछ विद्वानों द्वारा कुमार दास को सिंघल द्वीप (श्री लंका) निवासी माना गया है। इस ग्रंथ को 6-7वीं शताब्दी का माना जाता है। कवि का उद्देश्य श्री राम के कथा के वर्णन के स्थान पर अपने विकसित भाषा ज्ञान, प्रखर कल्पना शक्ति का प्रयोग एवं आलंकारिक चमत्कार का प्रदर्शन है। इस उद्देश्य की पूॢत के लिए कवि ने विभिन्न अवसरों पर शृंगार प्रधान जल क्रीड़ा, उद्यान क्रीड़ा तथा रति क्रीड़ा के ऐसे वर्णन भी किए हैं, जो श्री राम कथा की मर्यादा के अनुकूल नहीं हैं।
  • महाकवि आनन्द कृत राम चरित- 9वीं शताब्दी रचित इस ग्रंथ में वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा काण्ड से लेकर युद्ध काण्ड तक की कथा को 36 सर्गों में प्रस्तुत किया गया है।
  • महाकवि क्षेमेन्द्र कृत रामायण मंजरी- व्यास दास उर्फ क्षेमेन्द्र कृत इस ग्रंथ को 10वीं शताब्दी का माना जाता है। यह वाल्मीकि रामायण का ही संक्षिप्त रूप है।
  • महाकवि मल्लाचार्य कृत उदार राघवम- यह ग्रंथ 13वीं शताब्दी का है और 9 सर्गों में विभक्त है। इस ग्रंथ में उन प्रसंगों को, जिनमें राम चरित के औदार्य-पक्ष की प्रमुखता के साथ अभिव्यक्ति हुई है, कवि ने विशेष महत्त्व दिया है।
  • महाकवि कालीदास कृत रघुवंश- 19 सर्गों के इस महाकाव्य में श्री राम की जीवन कथा के साथ-साथ उनके अनेक प्रतापी पूर्वजों की कथाएं भी वॢणत है।
  • धनन्जय कृत राघव पाण्डवीयम- 700वीं इस्वी के धनन्जय द्वारा रचित इस काव्य में 18 सर्ग एवं 1104 श्लोक हैं तथा इसमें 30 छंदों का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में रामायण और महाभारत दोनों की कथाएं श्लेष और यमक अलंकारों की सहायता से एक ही शब्दावली में वॢणत की गई है।
  • कवि राजपंडित कृत राघव पाण्डवीयम- 12वीं शताब्दी में रचित यह ग्रंथ 13 सर्गों एवं 668 श्लोकों वाला महाकाव्य है। इसमें भी श्लोक की सहायता से रामायण एवं महाभारत दोनों के कथानकों का समान शब्दों में निर्वाह किया गया है।
  • महाकवि क्षेमेन्द्र कृत दशावतारचरितम- इस ग्रंथ में भगवान विष्णु को मूल नायक मानकर उनके 10 अवतारों का रोचक वर्णन किया गया है। 10वीं शताब्दी में रचित इस ग्रंथ में 1794 श्लोकों में श्री राम कथा का वर्णन है।
  • हरिदत्त सूरी कृत राघवनैषधीयम-2 सर्गों एवं 146 श्लोकों वाले इस ग्रंथ में यमक और श्लेष अलंकारों की सहायता से श्री राम एवं निषध नरेश नल की कथा का वर्णन एक साथ किया गया है।
    इन सारे ग्रंथों में किसी न किसी रूप में श्री राम चरित का वर्णन किया गया है, किन्तु इन सभी का मूल आधार श्री वाल्मीकि रामायण ही है।