Gut Bacteria for Kids: गट हेल्थ का अच्छा होना हर उम्र के लोगों, खासकर बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। बढ़ती उम्र में हर तरह के पोषक तत्वों की जरूरत होती है ताकि उनका समुचित विकास हो सके, यदि अगर उनकी इम्यूनिटी मजबूत होगी तो वे संक्रमण और अन्य बीमारियों से बच पाएंगे।
आमतौर पर बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके पेट में बैक्टीरिया नहीं होते। जन्म के बाद गट बैक्टीरिया बढ़ने लगते हैं और तीन साल की उम्र तक उसका गट माइक्रोबायोम एक व्यस्क के समान विकसित हो जाता है। ये बैक्टीरिया हेल्दी और बैलेंस डाइट लेने, बैक्टीरिया के संपर्क में आने पर और एंटीबायोटिक मेडिसिन के उपयोग के कारण बढ़ते हैं। गट शरीर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र है, जिसे ईएनएस (एंटरिक नर्वस सिस्टम) कहा जाता है। गट सिर्फ हमारा पेट ही नहीं है, यह मुंह से शुरू होता है, गले से जाता हुआ, पेट, छोटी आंत, बड़ी आंत, मलाशय तक जाता है। इसमें अनगिनत माइक्रोबायोम या गट माइक्रोबायोटा बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
ये बैक्टीरिया दो तरह के होते हैं- एक गुड बैक्टीरिया जो नसों की ताकत देकर पेट को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। साथ ही शरीर के मेटाबॉलिज्म को ठीक रखकर इम्यूनिटी बूस्ट करने, खाना पचाने, शरीर को एनर्जी प्रदान करने, हैप्पी हार्मोन सिराटोनिन बनाने, अच्छी नींद लाने में भी सहायक होते हैं। और पेट की नसों की ताकत देकर पेट को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करते हैं। दूसरे बैड बैक्टीरिया पाचन प्रक्रिया में बाधा डालता है, जो कमजोर इम्यूनिटी, शरीर में मोटापे, अनिद्रा, चिड़चिड़ेपन का कारण बनता है।
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गट हेल्थ किस पर निर्भर करती है
गट हेल्थ हमारे लाइफ स्टाइल और गट फ्लोरा पर निर्भर करता है। हमारे खान-पान में थोड़ी-सी भी गड़बड़ हो जाए, तो बीमारियों से बचाने वाले गुड बैक्टीरिया कम हो जाते हैं। दूसरी ओर हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक पैथोजेनिक बैड बैक्टीरिया का लेवल बढ़ जाते हैं। यानी आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का संतुलन बिगड़ जाता है और कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। ध्यान न दिए जाने पर बच्चों में बड़े होकर भी कई समस्याएं बनी रहती हैं। मूड स्विंग से लेकर स्ट्रेस, मानसिक बीमारियां, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट स्ट्रोक, इम्यूनिटी, डायबिटीज, मोटापा, थायरॉयड जैसी इंडोक्राइन डिजीज, ऑटो इम्यून डिजीज जैसी गंभीर बीमारियां गट हेल्थ से जुड़ी हुई हैं। इसके साथ ही एग्जिमा जैसे त्वचा रोग, कैंसर जैसे रोग भी इसी के कारण होते हैं।
बच्चों में लक्षण
बच्चों की गट हेल्थ अच्छी न होने के कारण बच्चे की इम्यूनिटी कमजोर हो जाती है जिससे उसमें कई तरह की समस्याएं देखने को मिलती हैं-
द्य भोजन ठीक तरह डायजेस्ट नहीं हो पाना। शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है और इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है, जिसका असर उनकी दिनचर्या और उनकी एक्टिविटी पर पड़ता है। जैसे- एनर्जी लेवल कम होना, बच्चे का सुस्त रहना, बहुत जल्दी थक जाना, ज्यादा सोना।
द्य इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से इंफेक्शन की चपेट में जल्दी आना। ये इंफेक्शन बदलते मौसम, पर्यावरणीय घटकों, पर्सनल हाइजीन की कमी जैसे किसी भी कारण से हो सकते हैं।
द्य पेट से जुड़ी समस्याएं होती हैं जैसे- गैस बनना, पेट फूलना, पेट दर्द होना, कब्ज या डायरिया होना, उल्टी होना।
द्य स्टूल पास करने में दिक्कत होने की वजह से घबराना। स्टूल पास करते समय दर्द होना, स्टूल पास करने में थकावट होना और उसके बाद लेट जाना।
द्य बच्चों की त्वचा बहुत ज्यादा रूखी होना और फटने लगती है। त्वचा में खुजली होना, छोटे-छोटे दाने निकलना, जलन होना, रैशेज होना जैसी समस्याएं हो जाती हैं।
गट हेल्थ सुधारने के लिए क्या करें
बच्चों की गट हेल्थ उनके स्वास्थ के लिए बहुत जरूरी है। अगर बच्चे को गट में कोई परेशानी होती है तो उसका पूरा स्वास्थ खराब हो सकता है।
बच्चे को दिन में नियत समय पर 3 मेन मील (ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर) में भरपेट खाने के बजाय दो मिनी मील खाने की आदत डालनी चाहिए। ब्रेकफास्ट-लंच के बीच मिड डे मील और लंच-डिनर के बीच इवनिंग में हेल्दी स्नैक्स देने चाहिए। उन्हें सुबह का नाश्ता और सोने से करीब 3 घंटा पहले रात का भोजन करने की आदत डालें। ध्यान रखें कि 2 मील के बीच में कम-से-कम 3 घंटे का अंतराल जरूर रखें। जिद के बावजूद इन- बिटवीन मील यानी चिप्स, बिस्कुट, चॉकलेट जैसी चीजें खाने को न दें। इससे बच्चे का पेट भर जाएगा और वह मेन मील नहीं खा पाएगा।
बच्चों को शुरू से हेल्दी खाना खाने की आदत डालें। खाने की अच्छी आदतें आगे चलकर उन्हें गट से संबंधित किसी भी तरह की परेशानी से बचाएंगी। सबसे जरूरी है- पूरे दिन के भोजन में कोशिश करें कि आहार में ज्यादा से ज्यादा विविधता लाएं। गट में मौजूद गुड बैक्टीरिया हमारे भोजन से पोषक तत्वों को लेकर पूरे शरीर तक फैलाने में मदद करते हैं।
बच्चे को बताना चाहिए कि प्लेट के एक-चौथाई हिस्से में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर साबुत अनाज, दूसरे एक-चौथाई हिस्से में प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ, तीसरे हिस्से में मौसमी फल-सब्जियां, सलाद और चौथे एक-चौथाई से कम हिस्से में कैल्शियम युक्त दूध और दूध से बनी चीजें होनी चाहिए। यानी खाने की प्लेट में एनर्जी गिविंग (कार्बोहाइड्रेट), बॉडी बिल्डिंग (प्रोटीन, कैल्शियम) और प्रोटेक्टिव (विटामिन और मिनरल) फूड शामिल करने के लिए समझाना चाहिए। इससे उन्हें हेल्दी डाइट का सेवन करने की आदत बचपन से ही पड़ जाएगी।
आहार में बहुत अच्छी मात्रा में मोटे अनाज, ओट्स जैसे- फाइबरयुक्त फूड, दालें, बीन्स, सोयाबीन जैसे लीन प्रोटीन और प्लांट-बेस्ड खाना यानी फल-सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा सेवन की आदत डालें।
बच्चों को बचपन से ही हर मील में प्रो-बायोटिक्स और प्री-बायोटिक बैक्टीरिया वाले खाद्य पदार्थ ज्यादा से ज्यादा खाने की आदत डालें। प्री-बायोटिक फूड हमारे गट में गुड बैक्टीरिया को बढ़ाने में सहायक होते हैं जैसे- फल-सब्जियां, मोटे अनाज, मिलेट्स, एलोवेरा, एप्पल साइडर विनेगर, इडली डोसा-वड़ा जैसे खमीरयुक्त फूड। प्रो-बायोटिक वो फूड हैं जिनसे हम खराब बैक्टीरिया को हटा सकते हैं जैसे- दही, छाछ, लस्सी, एप्पल साइड विनेगर, अचार, चटनियां।
रिफाइंड फूड, फास्ट फूड या जंक फूड से यथासंभव परहेज करने की आदत डालें। अगर जरूरी हो तो 10-15 दिन में एक दिन चीट डे का फंडा अपनाएं। जिस दिन बच्चे को उनकी पसंद के मुताबिक जंक फूड खाने के लिए दे सकती हैं। उसमें भी बच्चों के पसंदीदा जंक फूड घर पर हेल्दी तरीके से बनाकर दें ताकि बच्चे के न्यूट्रीशन में कमी न आए।
डायजेशन सिस्टम को साफ रखने और गट बैक्टीरिया भी सही मात्रा में बनाए रखने के लिए हाइड्रेशन का पूरा ध्यान रखें। रोजाना कम-से-कम 8 गिलास पानी या घर में बने तरल पदार्थ पीने की आदत डालनी चाहिए।
बच्चे को बचपन से खाना चबा-चबाकर कर खाने की आदत डालनी चाहिए, क्योंकि जब हम खाना चबाकर खाते हैं, तो हमारे मुंह में मौजूद सलाइवा खाने के 80 प्रतिशत भाग का डायजेशन मुंह मे कर देता है।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं। नियमित रूप से व्यायाम करें।
रोजाना 7-8 घंटे की नींद जरूर लें।
प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति भी कारगर
इसमें माना गया है कि शरीर में होने वाली लगभग विभिन्न बीमारियों का इलाज गट हेल्थ को दुरूस्त करके किया जा सकता है। इसे बेहतर बनाने के लिए ये थेरेपी इस्तेमाल की जाती हैं-
डाइट थेरेपी : यह पद्धति भोजन करने को ही औषधि मानती है। यानी किसी बीमारी के उपचार के लिए दवाई भोजन से ही मिल सकती है। भोजन में मौजूद औषधीय गुणों का इस्तेमाल करके बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। इसमें दिन में लिए जाने वाले आहार के बारे में बताया जाता है ताकि हर तरह की फूड वैराइटी, पूरे पोषक तत्व खाने में आए और बच्चे को पूरा पोषण मिले। प्राकृतिक चिकित्सक बच्चे के हिसाब से डाइट प्लान बना देते हैं।
मड थेरेपी : नदी के तल से ली गई मिट्टी के लेप से उपचार किया जाता है।
हाइड्रो थेरेपी : इसमें टब बाथ, लपेट, जैसी जल क्रियाएं कराई जाती हैं जिससे गट को क्लीन करके हेल्दी बनाया जाता है।
जूस थेरेपी : विभिन्न तरह की सब्जियों के जूस और हर्ब्स मिलाकर जूस दिया जाता है।
जड़ी-बूटियां : गट की क्लींजिंग और मजबूती के लिए विभिन्न तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है।
योगासन : कई यौगिक क्रियाएं की जाती हैं, जिससे गट साफ होता रहेगा तो बच्चा आहार लेगा और उसे पोषक तत्व मिलते रहेंगे।
बच्चों को शुरू से हेल्दी खाना खाने की आदत डालें। खाने की अच्छी आदतें आगे चलकर उन्हें गट से संबंधित किसी भी तरह की परेशानी से बचाएंगी। सबसे जरूरी है- पूरे दिन के भोजन में कोशिश करें कि आहार में ज्यादा से ज्यादा विविधता लाएं।
(डॉ. लोकेश नाथ झा,
गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, गैस्ट्रो केयर क्लीनिक, दिल्ली और डॉ. अंजलि शर्मा, नेचुरोपैथ एक्सपर्ट,
शुद्धि नेचुरोपैथी क्लीनिक, दिल्ली)