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जिस राज्य के राजा स्वयं नारायण थे, जिसके निर्माण के लिए समुद्र ने खुद जगह दी थी, भगवान विश्वकर्मा ने जिसका स्वयं निर्माण किया था, बलराम जैसे बलवान योद्धा जिसके रक्षक थे, वो द्वारका डूबने और यादव वंश का अंत होने के पीछे आज भी कई कहानियां छिपी हैं।
Dwarka Nagari History: श्री कृष्ण की द्वारका पानी में कैसे डूबी और यदुवंश का अंत कैसे हुआ यह बात आज भी लोगों के जहन में घूमती है। जिस राज्य के राजा स्वयं नारायण थे, जिसके निर्माण के लिए समुद्र ने खुद जगह दी थी, भगवान विश्वकर्मा ने जिसका स्वयं निर्माण किया था, बलराम जैसे बलवान योद्धा जिसके रक्षक थे, वो द्वारका डूबने और यादव वंश का अंत होने के पीछे आज भी कई कहानियां छिपी हैं। इन्हीं में से एक मान्यता है कि यादव वंश के अंत का एक प्रमुख कारण स्वयं श्रीकृष्ण का बेटा भी था। कैसे, आइए जानते हैं।
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गांधारी के श्राप ने किया यदुवंश का अंत

मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के करीब 40 साल बाद श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी और यदुवंश दोनों का अंत हो गया था। श्रीकृष्ण और बलराम के सामने ही यदुवंश खत्म हुआ और उसके बाद श्रीकृष्ण की नगरी समुद्र में समा गई। माना जाता है कि इसका एक कारण था गांधारी का श्राप। महाभारत के युद्ध में गांधारी और धृतराष्ट्र के सभी 100 पुत्रों की मृत्यु हो गई थी। जिसके कारण गांधारी बहुत ही शोक और क्रोध में थी। जब युद्ध खत्म होने के बाद श्री कृष्ण गांधारी से मिलने पहुंचे तो इस दुखी मां ने श्राप दिया कि जिस तरह मेरे वंश का अंत हुआ, उसी तरह तुम्हारे वंश का भी अंत हो जाएगा। तुम्हारा यदुवंश खत्म हो जाएगा और उसका नाम लेने वाला भी कोई न होगा।
श्री कृष्ण का बेटा बना कारण
माना जाता है कि गांधारी के श्राप के 40 साल बाद द्वारका पर विपत्तियां आने लगीं। ऐसे में एक दिन महर्षि विश्वामित्र, देव ऋषि नारद और कई अन्य महर्षी व सिद्ध मुनि द्वारका आए। उन्हें देख श्री कृष्ण के बेटे सांब ने उनके साथ मजाक करने की योजना बनाई। सांब ने एक गर्भवती स्त्री का भेष धारण किया और फिर ऋषि-मुनियों के पास पहुंच गया। सांब ने उनसे कहा कि मैं गर्भवती स्त्री हूं, मुझे बताइए कि मेरे गर्भ से क्या होगा। इस तरह के उपहास से सभी ऋषि-मुनि क्रोधित हो गए। उन्होंने सांब से कहा कि उसके गर्भ से एक मूसल जन्म लेगी, जो यदुवंश के अंत का कारण बनेगी। ऋषि-मुनियों की वाणी सत्य हुई, कुछ माह बाद सांब के गर्भ से एक मूसल उत्पन्न हुई। माना जाता है कि सांब ने उस मूसल को समुद्र में फिंकवा दिया।
और ऐसे हुआ यदुवंश का अंत
श्री कृष्ण यह भलीभांती जानते थे कि ऋषिवाणी सत्य होगी। इसलिए उन्होंने सभी यदुवंशियों को तीर्थ पर भेज दिया, जिससे सभी सुरक्षित रहें। लेकिन वहां पर सभी यदुवंशियों ने आपस में लड़ना शुरू कर दिया। वह एक दूसरे पर वार करने के लिए जो भी चीज उठाते थे, वह अपने आप मूसल में बदल जाती थी। यहां तक कि पेड़, पौधे और घास तक मूसल जैसी कठोर हो गई। और इसी लड़ाई में संपूर्ण यदुवंश समाप्त हो गया। जब श्री कृष्ण और बलराम को इस घटना का पता चला तो वे दोनों ही वहां पहुंचे। घटना से दुखी होकर बलराम समाधि में लीन हो गए और समुद्र में समा गए।
पृथ्वीलोक छोड़ गए श्री कृष्ण
अपनी आंखों के सामने अपने ही वंश का अंत देखकर श्रीकृष्ण बहुत ही दुखी हो गए। वह एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। यहां एक शिकारी ने उनके पैर को हिरण समझ कर तीर चला दिया। यह तीर भी मूसल के लोहे का ही बना था। तीर लगते ही श्री कृष्ण ने पृथ्वीलोक छोड़ दिया और बैकुंठ लोक की ओर प्रस्थान किया। माना जाता है कि इस घटना के बाद अर्जुन द्वारका आए और वहां से सभी महिलाओं व बच्चों को अपने साथ ले आए। इसके बाद पूरी द्वारका नगरी समुद्र में समा गई।
