Dwarka Story: गुजरात राज्य में समुद्री किनारे स्थ्ति द्वारका नगरी को भगवान श्रीकृष्ण की नगरी कहकर पुकारा जाता हैं। हिंदू धर्म के चार धामों में सम्मिलित द्वारका धाम गुजरात के काठियावाड क्षेत्र में अरब सागर के नजदीक है। इसके अलावा सात पुरियों से एक द्वारका पुरी एक ऐसी प्राचीन धार्मिक नगरी है, जिससे कई एतिहासिक घटनाएं और रहस्यमयी बातें जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं की मानें, तो यहां पर पहले महाराजा रैवतक की कुशस्थली हुआ करती थी। दरअसल, महाराज ने समुद्र तट पर कुश बिछाकर यज्ञ किया था, जिसके बाद से इस स्थान को कुशस्थली कहकर पुकारा गया।
ऐसा माना जाता है कि कुशस्थली के उजड़ने के बाद इस जगह पर विश्वामित्र और मयासुर ने एक खूबसूरत नगरी का निर्माण किया, जिसे द्वारका नगरी कहा गया। जहां श्रीकृष्ण आकर बसे और 36 वर्षों तक यहीं रहे। कहा जाता है कि इस नगरी की भव्यता के किस्से दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। इस नगरी में झील, हीरे, सोने और अन्य रत्नों से जड़े विशाल महल मौजूद थे। इसके अलावा व्यापार के लिए बंदरगाह भी बने हुए थे। आइए जानते हैं कैसे और क्यों श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी जल में विलीन हो गई। आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं।
ऋषियों ने दिया था यदुवंश को श्राप

एक बार महर्षि विश्वामित्र और देव ऋषि नारद आदि गणों के साथ द्वारका नगरी पहुंचे। जहां कुछ नवयुवकों ने उनका उपहास करने का प्रयास किया। कुछ युवकों ने मिलकर श्री कृष्ण के पुत्र सांब को स्त्रियों की वेशभूषा पहनाई और उसे ऋषियों के समक्ष ले गए और कहने लगे कि ये स्त्री गर्भ से है। हम इसके गर्भ में पल रहे बच्चे को लेकर चिंतित है। कृप्या हमें बच्चे के बारे में कुछ बताइए। अब ऋषियों ने जब साधना की ओर ध्यान में लीन हो गए, तो पाया कि ये औरत के भेस में श्रीकृष्ण का पुत्र है। इस मजाक से व्यथित होकर ऋषियों ने खुद को अपमानित महसूस किया और यदुविंशयों को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि इस बालक के गर्भ से मुसल यानि शस्त्र उत्पन्न होगा, जो यदुवंशी कुल का विनाश करेगा। अब यदुवंशी आपस में लड़कर मरने लगे। बलराम ने भी अपनी देह को त्याग दिया। अब श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए। धीरे धीरे अब द्वारका नगरी पर मायूसी का साया छाने लगा और श्रापित नगरी रहस्यमयी ढ़ंग से समुद्र में विलीन हो गई।
गांधारी का श्राप
महाभारत के युद्ध में विजय हासिल करने के बाद पाण्डवों में खुशी की लहर थी। कौरवों को युद्ध में मार गिराने के बाद हस्तिनापुर में राजगद्दी पर युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था। राजतिलक के मौके पर श्रीकृष्ण भी वहीं मौजूद थे। इस दृश्य को देखकर गांधारी बेहद दुखी थीं। उस वक्त गांधारी श्रीकृष्ण से बेहद रूष्ठ थी और उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया था, कि जिस प्रकार से मेरा कुल नहीं रहा। ठीक उसी तरह तुम्हारी आंखों के सामने ही तुम्हारे कुल का नाश हो जाएगा। ऐसा माना जाता है कि गांधारी के श्राप की वजह से श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी पानी में समा गई थी।