Lord Ram: वैवस्वत मनु ने सरयू नदी के तट पर सौ वर्ष तक तप किया। एक पाटीय तपस्या से उन्हें इक्ष्वाकु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम विकुक्षि था। सौ वर्ष तक तपस्या करने पर वह स्वर्ग लोक चला गया। उसके पुत्र का नाम रिपुंजय था। रिपुंजय के पुत्र का नाम कुकुत्क्षथ बताया गया है। उसका पुत्र अनेनौस तथा उसके पुत्र का नाम पृथु था।
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इसी क्रम से अगले राजाओं तथा उनके पुत्रों में बिम्बगशय, अर्दनाम भद्राख युवननाश्व, सत्वपाद, श्रवस्थ वृहदस्व, कुवलयावश्यक, भिकुम्भक, संकटाश्व, प्रसेनजिनु, तद्र्रवाणाश्व, मान्यता, पुरूकुत्स चिशतश्व, अनरणय के नाम उल्लेखनीय हैं।
अनरण्य सतयुग के द्वितीय चरण का राजा बताया है। इसने अ_ाईस सहस्र वर्ष तक राज्य किया था।
इसके पश्चात पृषदश्व, हर्तश्व, वासुमान तथा तात्विधन्वा के नाम बताए गए हैं।
द्वितीय पाद की समाप्ति पर त्रिघन्वा, त्रयारणय, त्रिशंकु, रोहित, हवरीत, जंचुभुप, विजय, तद्ररूक तथा उसका पुत्र सगर बताए गए हैं।
वैवस्वत आदि राजाओं के काल में व्यवस्था की ओर अधिक ध्यान दिया गया और उस काल में मणि, स्वर्ण आदि की स्मृद्धि थी। सत्युग के तृतीय चरण के मध्य में सगर नामक राजा हुआ था। वह शिव का परम भक्त था तथा सदाचार वाला था। उस सगर राजा के पुत्रों को सागर कहा जाने लगा।
सागरों के नष्ट हो जाने पर असंजस ने राज्य किया। उनके पुत्र का नाम अंशुमान था। इसके पुत्र का नाम दिलीप था।
इसके बाद भगीरथ, श्रुतसेन, नाभाग, अम्बरीश आदि के नाम वर्णित हैं। श्रुतसेन के बाद के छह राजाओं को शैव बताया गया है जबकि आरम्भिक राजा वैष्ण थे। नाभाग को वैष्णव कहा गया है। सतयुग का तीसरा चरण समाप्त होने पर चौथे चरण के 18 सहस्र वर्ष बताए गए हैं। अम्बरीश के पुत्र का नाम सिन्धुद्वीप, उसके पुत्र का नाम अयुताश्व तथा उसी क्रम में श्रतुपर्ण, सर्वकाम, काव्याषपाद, सुदास आदि बताए गए हैं। सुदास के समय तथा बाद के सात राज्यों के समय में वैष्णव धर्म का प्रभाव रहा।
अतिश्योक्ति तथा अतिरेक
पुराणों में इन राजाओं की वंशावलियों का उल्लेख उपलब्ध है परन्तु उनमें यदा कदा मतैक्य नहीं दिखाई देता क्योंकि उनका सही इतिधरूवृत अंकित न होकर वहां अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन किया गया है। गणना भी अतिरेक से युक्त है।
युग की समाप्ति तथा अगला युग
किसी युग की समाप्ति होने पर दूसरा युग मात्र कल्पना से ही आरम्भ हुआ प्रतीत होता है। न तो पूर्ण व्यवस्था एकदम खण्डित होती है और न ही सीमित अवधि में नई व्यवस्था आरम्भ हो सकती है अत: मुख्य पात्र तथा सहायक पात्रों के मानसिक चिन्तन व क्रियाकलापों के माध्यम से ही काल विशेष का आभास किया जा सकता है। पुराणकारों ने यही पद्धति अपनाई है।
कब क्या हुआ
पृथु ने समग्र पृथ्वी पर हल चलाया। राम ने पिता दशरथ की आज्ञा मानी और वनवास स्वीकार किया। परीक्षित ने सोने के मुकुट के कारण ऋषिमुनियों को खूब तंग किया। आदि-आदि बातें सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था से जुड़ी हैं और काल परिवर्तन को इंगित करती हैं। अत: किसी विशेष घटना के घटित होने पर काल अथवा युग परिवर्तन इंगित किया गया है।
शम्बूक वध की घटना
सतयुग में धर्म 20 बिस्वे था परन्तु धर्म की परिभाषा क्या थी और उस समय क्या पाप बिल्कुल ही नहीं था? हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल डॉ. सूरजभान ने शम्बूक वध की घटना का उल्लेख करके एक गोष्ठी में श्रोताओं को पूछा था कि राम-राज्य में शम्बूक ऋषि जो असवर्ण जाति का था, उसका वध राम ने इसलिए करवा दिया था कि वह वर्णाश्रम व्यवस्था में वर्णित शूद्रधन का निर्वाह न करके तपस्या कर रहा था। तो क्या उस समय की मर्यादा यह थी कि अपने वर्णधर्म को छोड़ कर जो व्यक्ति अन्य वर्ण के लिए निर्धारित धर्म पर चले वह अधर्मी तथा पापी होता था? ये सब विषय समय तथा व्यक्तिय सापेक्ष हैं। कुंठित व्यक्ति का साहित्य भी कुंठाग्रस्त होगा जबकि सन्तुलित मन वाला साहित्यकार उसी प्रकार के साहित्य की रचना करेगा।
सरल शब्दों में
सतयुग से त्रेतायुग तक श्री राम के प्रथम पूजनीय पूर्वज थे महाराज मनु। इस पीढ़ी में प्रथम थे महाराज मनु तथा श्री राम थे 65वें वंशज। महाराजा मनु ने ही सरयु नदी के तट को चुना और वहां पर लम्बे समय तक तप किया। उन्होंने ही बाद में वहां पर एक नगरी बसाई और नाम दिया अयोध्या। यह वही अयोध्या है जो श्री राम की जन्म भूमि बनी। वहां मंदिर बना। बाबर ने अपने नाम की मस्जिद बनवाई। यह मस्जिद श्री राम जन्म भूमि पर बनी। संघर्ष हुए। 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराया गया। कोर्ट कचहरियों में दोनों पक्षों ने लड़ाई लड़ी। अंतत: 9 नवम्बर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया। जिस निर्णय को हिन्दू तथा मुसलमानों ने सहर्ष स्वीकार किया।
