साले के साथ इस मंदिर में विराजमान हैं भोलेनाथ, जानें इसके पीछे की कहानी: Sarang Nath Temple
Sarang Nath Temple

Sarang Nath Temple: काशी के कण-कण में भगवान शिव किसी ना किसी रूप में विराजते हैं। दरअसल काशी भगवान शिव को बेहद प्रिय है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भी मौजूद है। इसके अलावा और भी कई शिव मंदिर है जो बेहद प्रसिद्ध है। आज हम आपको बनारस के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां 2 शिवलिंग मौजूद है। खास बात ये है कि उस मंदिर में भोलेनाथ अपने साले के साथ विराजमान है।

जी हां, ये भारत का एक एकलौता मंदिर है जहां दो शिवलिंग में एक से एक भगवान शिव का है तो दूसरा उनके साले का है। इस मंदिर में माता पार्वती विराजित नहीं है। यहां दूर-दूर से भक्त भोलेनाथ के दर्शन के लिए आना पसंद करते हैं। कहा जाता है कि यहां सावन में मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण होती है। चलिए जानते हैं इस मंदिर के बारे में विस्तार से –

बनारस से 10 किमी दूर है सारंगनाथ मंदिर

Sarang Nath Temple Distance
Sarang Nath Temple Distance

हम जिस मंदिर की बात कर रहे हैं वह बनारस से 10 किलोमीटर दूर सारनाथ में स्थापित सारंगनाथ मंदिर है। सारंगनाथ मंदिर आने वाला हर वक्त पहले यहां बने शिव कुंड में स्नान करने जाता है। उसके बाद इसी कुंड के पानी से 44 सीढ़ियां चढ़कर सारंग नाथ मंदिर में विराजे भोलेनाथ का जल अभिषेक करता है। श्रावण मास में इस मंदिर में पूजा करने का काफी ज्यादा महत्व माना गया है।

जानें मंदिर के बारे में विस्तार से

आपको बता दें सारनाथ स्थित सारंग नाथ मंदिर के गर्भ ग्रह में दो शिवलिंग स्थापित है। इसमें से एक शिवलिंग भोलेनाथ का प्रतीक है तो दूसरा शिवलिंग उनके साले सारंगदेव का प्रतीक है। जी हां इस मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव माता पार्वती के साथ नहीं बल्कि अपने साले के साथ विराजत है। इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। मंदिर से जुड़ी 2 कहानियां मौजूद है जिसमें भोलेनाथ का साला सारंगदेव को बताया गया है। पहली कहानी के मुताबिक सारंग नाथ प्रजापति दक्ष के पुत्र और सती के भाई हैं। वहीं दूसरी कहानी के मुताबिक सारंग नाथ देव हिमालय के पुत्र माता पार्वती के भाई।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव का विवाह देवी सती के साथ हुआ था। उस समय सारंगदेव कहीं तपस्या करने गए थे। जब वह तपस्या करके वापस घर लौटे तो उन्हें पता चला कि उनकी बहन का विवाह कैलाश में रहने वाले एक अघोरी के साथ कर दिया गया है। इस वजह से वह काफी ज्यादा दुखी हुए और वह अपनी बहन को ढूंढने के लिए काशी निकल पड़े। ऐसे में रास्ते में वह एक स्थान पर रहे जहां उन्हें नींद आ गई। वहीं उन्हें उस वक्त सपना आया कि काशी सोने की नगरी बन गई। जब उनकी नींद खुली तो उन्हें काफी ज्यादा पश्चाताप हुआ क्योंकि उन्होंने अपने बहनोई के बारे में काफी ज्यादा गलत सोच लिया था।

इसके बाद उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। जब वह तपस्या करने लगे तो उस दौरान उनके शरीर से गोंद निकलने लगा। लेकिन सारंगदेव ने इसकी परवाह नहीं की और वह तपस्या करते रहे। उनकी इस तपस्या को देखकर भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया भगवान शिव ने उन्हें कहा सावन के महीने में जो भी चर्मरोगी भी उनपर सच्चे मन से गोंद चढ़ाएगा, उसे सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी आशीर्वाद दिया कि वह हर साल सावन के महीने में वह माता पार्वती और काशी को छोड़कर सारनाथ के सारंगनाथ मंदिर में अपने साले के साथ निवास करेंगे।