बिल्वपत्र तोड़ने समय रखें खास ध्यान, इन मंत्रों का करें जाप
Shivratri 2022 : फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भोलेनाथ का रुद्राभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और श्रावण मास में भगवान का शिव की पूजा विशेष फल देती है। ऐसा मानना है कि इस माह भोलेनाथ की अपने भक्तों पर सीधी नजर रहती है। महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूध, जल के साथ ही बिल्वपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। भगवान को बिल्वपत्र मंत्रों के उच्चारण के साथ अर्पित किया जाता है, वहीं बिल्वपत्र तोड़ने के लिए भी मंत्र का जाप किया जाता है। बिल्वपत्र तोड़ते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
“अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रियःसदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥”
इसका अर्थ है- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष मैं तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं। शिवजी को बेलपत्र चढ़ाने के लिए सही मंत्र का उच्चारण करने से मनोकामना पूरी होती है।
“त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥”

इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है जिसका अर्थ है, तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं। यह मंत्र शिव जी को बहुत प्रिय है और शिव जी इससे प्रसन्न होते हैं।
किन मंत्रों के जाप से शिवरात्रि पर करने चाहिए?
महाशिवरात्रि का दिन भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है। महाशिवरात्रि के दिन भक्त, सुख, शांति, धन, समृद्धि, सफलता, प्रगति, संतान आदि के लिए शिवजी से कामना करते है। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने के साथ ही मत्रों के उच्चारण का विशेष महत्व है। अपनी मनोकामना के लिए आपको कुछ मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन इन मंत्रों का जाप विशेषफलदायी साबित होता है। महाशिवरात्रि के खास योग में भोलेनाथ की पूजा करने से आपकी कई असाध्य मनोकामनाएं पूरी होती है और साथ ही अगर मंत्रों का जाप किया जाए तो शिवजी का विशेष आशीर्वाद मिलता है। तो चलिए आपको बताते हैं वह मंत्र जिससे आपके उपर बरसेगी शिव कृपा
मान्यता है कि मंत्र का उच्चारण करने से हर तरह की बाधाएं दूर होती हैं। शिवरात्रि के दिन शिवजी की पूजा करते हुए, ॐ नमः शिवाय का मंत्र जप करने से व्यक्ति में साहस और उत्साह पैदा होता है। इसके अलावा-

ॐ शिवाय नम:, ॐ सर्वात्मने नम:, ॐ त्रिनेत्राय नम:, ॐ हराय नम:, ॐ इन्द्रमुखाय नम:, ॐ श्रीकंठाय नम:, ॐ वामदेवाय नम:, ॐ तत्पुरुषाय नम:, ॐ ईशानाय नम:, ॐ अनंतधर्माय नम:, ॐ ज्ञानभूताय नम:, ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:, ॐ प्रधानाय नम:, ॐ व्योमात्मने नम:, ॐ युक्तकेशात्मरूपाय नम:
मंत्रो के जाप करने चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन इन मंत्रों के जाप से अपार खुशियां मिलेगी
ओम वरुणस्योत्म्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सज्जर्नीस्थो।
वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् ।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न कराय नमः शिवाय।।
शंकराय नमसतेतुभ्य नमस्ते करवीरक।
त्र्यम्बकया नमस्तुभ्यं महेश्वरमतः परम्।।
नमस्तेअस्तु महादेवस्थाणवे च ततछ परम्।
नमः पशुपते नाथ नमस्ते शम्भवे नमः।।
विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयः प्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमाद्रधधारिणे।।
नमस्ते परमानन्द नणः सोमार्धधारिणे।
नमो भीमायचोग्राय त्वामहं शरणं गतः।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहम् भवानीपतिं भावगम्यम्।।
शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ाते वक्त किन बातों का रखें ध्यान, इस दिन भूलकर भी ना करें ये गलती
महाशिवरात्रि में भक्त भोलेनाथ को खुश करने के लिए उनके प्रिय चीजें उन्हें अर्पित करते हैं, वहीं कोई कांवड़ उठा रहा है तो कोई रोज शिवलिंग पर जल चढ़ा रहा है और कोई सोमवार का व्रत रखता है। इसी कड़ी में भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए बिल्वपत्र चढ़ाते हैं। भगवान शिव को बिल्वपत्र बहुत पसंद है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान शिव को बिल्वपत्र अर्पित करने से पहले आपको कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। धार्मिक शास्त्रों में शिवजी को बिल्वपत्र अर्पित करने के सही नियम बताए गए हैं। ऐसे में भोलेनाथ को बिल्वपत्र चढ़ाते समय भक्तों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए हम आपको बताते हैं।

बिल्वपत्र तोड़ने के ये है सही नियम
-बिल्वपत्र तोड़ते समय यध्या रखें की पेड़ को कोई नुकसान ना हो, स्नान करने के बाद पेड़ से तीन पत्ते वाला बिल्वपत्र ही तोड़ना चाहिए।
-स्कंदपुराण में बताया गया है कि अगर नया बेलपत्र ना मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए गए बिल्वपत्र को भी धोकर कई बार उनका प्रयोग किया जा सकता है।
-बिल्वपत्र तोड़ते समय पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए। पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि पेड़ को कोई नुकसान ना पहुंचे। बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए।
शिव जी को बेल ऐसे चढ़ाएं
महादेव को बिल्वपत्र ऐसे चढ़ाए, जिससे पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर हो।, बिल्वपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए।
ध्यान रखें बिल्वपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए।
बिल्वपत्र जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं। समान्य तौर पर यह 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं।
शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए।
भूलकर भी ना करें ये काम
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को अथवा संक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र को भूलकर भी नहीं तोड़ना चाहिए। हमेशा इन तिथियों से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए।
बिल्वपत्र पर राम लिखकर शिवलिंग पर क्यों चढ़ाते हैं भक्त?

भगवान शिव की अराधना के लिए सोमवार का दिन चुना गया है। वहीं सावन का पूरा महिना भगवान शिव को समर्पित है। सावन में भोलेनाथ के भक्त उनकी पूजा अर्चना करते हैं और मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन पूरे विधि-विधान से शिवजी की पूजा करने से सभी मनोकामनाए पूरी होती है। माना जाता है कि शिवजी की पूजा में सामग्री कम पड़ जाने पर भी अगर सच्चे मन से पूजा की जाए तो उन्हें वह भी भाता है। आम तौकर पर भगवान शिव को खुश करने के लिए लोग उन्हे भांग, धतुरा, बिल्वपत्र चढ़ाते हैं। धार्मिक ग्रथों के अनुसार शिवजी की पूजा में बिल्वपत्र का विशेष महत्व है और इसे अर्पित करने से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। इसके बिना इनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि बिल्वपत्र पर राम नाम लिखकर चढ़ाने से भोलेनाथ खुब प्रसन्न होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती ने सबसे पहले महादेव को राम नाम लिखकर बिल्वपत्र चढ़ाया था। सनातन धर्म के अनुसार इससे ही खुश होकर भोलेनाथ ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। क्योंकि, राम शिव के आराध्य थे। माता ने उन्हें खुश करने के लिए ही बेलपत्र पर राम नाम लिख शिव को अर्पित किया। आप भी शिवजी की पूजा के लिए 108 बिल्वपत्र पर चंदन से राम लिखें और शिवलिंग पर ऊं नम: शिवाय कहते हुए बिल्वपत्र चढ़ाएं। माना जाता है कि सावन माह वैसे भी शिव को प्रिय होता है। इसमें जो भी भक्त चंदन से राम का नाम लिखकर बेलपत्र भोले बाबा को अर्पित करते हैं, उनकी हर मनोकानमना पूरी होती है।
आखिर भगवान शिव को क्यों भाता है भस्म का चढ़ावा?
भगवान शिव सभी देवताओं से हटकर हैं उनका पहनावा, रहने का स्थान और पूजा सामग्री और विधी भी अलग है। भांग, धतुरा, और बिल्वपत्र के अलावा शिवजी के पूजन में भस्म अर्पित करने का विशेष महत्व है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में महाकाल ज्योतिर्लिंग एक महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन भस्म आरती विशेष रूप से की जाती है। जो प्राचीन काल से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि यह चिता की भस्म होती है। दरअसल भगवान शिव का एक रूप औघड़ का है जिसमें वह दिगंबर हैं। इस रूप में भगवान शिव अपने पूरे अंग पर केवल भस्म लेपन किए हुए हैं। आज हम आपको बताएंगे की भगवान शिव को भस्म क्यों चढ़ाय जाता है।
शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव ने देवी सती के देह त्याग के बाद अपनी सुध-बुध खो दी थी। और क्रोध में आकर देवी सती के शव को लेकर भगवान शिव तांडव मचाने लगे। उन्हें शांत करने के लिए और स्थिति को संभालने के लिए भगवान विष्णु ने शिव का मोहभंग करने के लिए चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए। सती के वियोग में शिव औघड़ और दिगम्बर रूप धारण कर श्मशान में बैठ गए और पूरे शरीर पर चिता की भस्म लगा लिया। माना जाता है कि तब से ही भस्म भी शिव का श्रृंगार बन गया।
बता दें कि शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टी का सार है और पूरी दुनिया को एक दिन इसी में मिल जाना है। इसमें बताया गया है कि चारों युगों के बाद इस सृष्टी का नाश होना है और सब भस्म में बदल जाएगा। भगवान शिव को मृत्यू का स्वामी माना जाता है। शिवजी का मानना है कि मनुष्य का शरीर नश्वर है और एक दिन इसे भस्म में मिल जाना है और जिवन के इसे पड़ाव में भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। इसलिए महादेव को भस्म चढ़ाया जाता है।
जानें महादेव को क्यों चढ़ाते है भांग, ग्रंथों में बताया गया है कारण
महाशिवरात्रि का पावन प्योहार इस साल एक मार्च को है। इस दिन शिव भक्त पूरी श्रद्धा से महादेव की पूजा करते है। भोलेनाथ की पूजा के लिए मिठाई या पकवान की जरूरत नहीं होती, भगवान शिव तो भांग, धतुरा और साधारण एक लोटे जल से खुश हो जाते हैं इसलिए ही इन्हे भोलेनाथ कहा जाता है क्योंकि वह अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं। ग्रंथों के अनुसार महादेव ने इंसान हो या फिर असुर महादेव सब पर अपनी कृपा बरसाई है। महाशिवरात्रि में लोग महादेव को खुश करने के लिए उनके पसंद की चीजे उन्हे अर्पित करते है जिसमें उन्हे भांग और धतूरा खुब पसंद है। आज हम इस लेख में आपको बताएंगे की आखिर क्यों महादेव को भांग-धतूरा इतना पंसद है।
एक कथा के अनुसार भांग को गंगा की बहन बताया गया है। इसके पिछे का कारण यह है कि दोनों ही भगवान शिव के सिर पर निवास करती हैं। वहीं भांग के पौधे को माता पार्वती का स्वरूप भी माना जाता है। इसलिए भी ये भगवान शिव को प्रिय है। इसके अलावा भांग को सोमरस के नाम से भी जाना जाता है।
इसकी एक कथा शिव महापूराण में है। शिव महापूराण के अनुसार अमृत प्राप्ति लिए देवताओं और असुरो ने एक साथ मिलकर सागर मंथन किया था। जिसमें अमृत से पहले सागर से हलाहल निकला था। सागर से निकला विष इतना ज्यादा विषैला था कि इससे निकले वाली अग्नी से चारों दिशाएं जलने लगी थी। इसके कारण सृष्टी में हाहाकार मच गया था। जब किसी देवताओं से इसका हल नहीं निकला तो भगवनान शिव ने इस हलाहल विष का पान कर लिया था। विष को महादेव ने गले से निचे नहीं उतरने दिया था, जिसके कारण उनका गला निला पड़ गया था इसी कारण उन्हे निलकंठ भी कहा जाता है। ज्यादा देर विष गले में रखने के कारण विष उनके मस्तिष्क में चढने लगा था और वह व्याकुल होने लगे।
महादेव को इस स्थिति से बाहर निकालना देवी-देवताओं के लिए बड़ी चुनैती बन गई थी। ऐसे में देवी आदि शक्ति प्रकट हुए और शिवजी के गले से विष निकाला। जिसमें शिवजी के उपजार के लिए जड़ी-बूटी का इस्तेमाल किया गया। आदि शक्ति के कहने पर ही देवताओं ने महादेव के सर पर भांग, धतूरा और बिल्वपत्र रखा और लगातार जलाभिषेक किया। जिससे धिरे -धिरे उनके मस्तिष्क का ताप कम हुआ। तब से महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें मांग के साथ धतूरा और बिल्वपत्र चढाया जाता है।
ये है वो 10 चमत्कारिक शिव मंदिर, जहां पूरी होती है सारी मनोकामना
भगवान शिव को भारत के अलग-अलग राज्यो और जगहों में महादेव, भेरव, महाकाल, संभु, नटराज, आदियोगी जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। महादेव की पूजा शिवलिंग, रुद्राक्ष सहित कई रूपों में की जाती है। महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर हम आपको देश में मौजूद कुछ लोकप्रिय शिव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके दर्शन करने से आपकी सारी मनोकामना पूरी होगी।
केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ शिव भक्तों के लिए भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है, और भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह उत्तराखंड के मंदाकिनी नदी के पास गढ़वाल हिमालय की श्रृंखला पर है। इस मंदिर में शिव भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ होती है। भक्तों का मानना है कि इस मंदिर की यात्रा उन्हें जीवन और जन्म के चक्र से मुक्त कर सकती है। केदारनाथ में सर्दियों के दौरान सबसे ज्यादा बर्फबारी होती है जिससे इसे यात्रियों के लिए बंद रखना पड़ता है। यहां के कपट अप्रैल के आखिर से नवंबर के मध्य तक खुले रहते हैं।
अमरनाथ मंदिर

अमरनाथ गुफा एक हिंदू तीर्थ स्थल है जो जम्मू और कश्मीर में है। लाखों की संख्या में हर साल यहां श्रद्धालु बर्फ से बने शिव लिंगम के दर्शन करने आते हैं। हिंदू तीर्थों की श्रेणियों में अमरनाथ सबसे प्रसिद्ध है। ज्यादाकर भक्त गर्मियों के दौरान गुफा की तीर्थयात्रा करने आते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव जी ने पार्वती जी को इसी गुफा में अमर कथा की कहानी सुनाई थी। लोगों को आज भी यहां दो कबूतर दिखआई देते हैं जो माना जाता है कि कथा सुनकर अमर हो गए थे।
काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में स्थित है और भारत में शिव भक्तों के लिए लोकप्रिय पवित्र मंदिरों में आता है, काशी विश्वनाथ शैव धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर में जो व्यक्ति अंतिम सांस लेता है, वह पुर्नजन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है। साथ ही भारत में स्थापित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भी है।
महाकालेश्वर मंदिर

मध्य प्रदेश के उज्जैन को महाकाल की नगरी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। इस मंदिर में देवता स्वायंभु लिंगम की मूर्ती स्थापित है, जिन्हें दक्षिणामूर्ति के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में होने वाला भस्म आरती लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय है, क्योंकि इसमें मृत के भस्म से महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। ये मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में भी आता है।
वैद्यनाथ मन्दिर

वैद्यनाथ मन्दिर झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्थान पर स्थित है। देवघर बारह ज्योतिर्लिंग में एक ज्योतिर्लिंग का पुराणकालीन मन्दिर है पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं साथ ही यह एक सिद्धपीठ है। इस कारण इस लिंग को कामना लिंग भी कहा जाता हैं। हर साल सावन के महीने में यहां स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं।
सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में उल्लेखित है। गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों से एक मंदिर है। दरअसल चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम सोमनाथ हो गया। भक्त यहां हजारों की संख्या में सोमनाथ के दर्शन के लिए आते हैं।
लिंगराज मंदिर

भुवनेश्वर शहर की सबसे पुरानी संरचनाओं में आती है लिंगराज मंदिर। इस मंदिर में कलिंग शैली की अद्भुत वास्तुकला हैं। पूरा मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर और लेटराइट से किया गया है जो विशाल है। यहां पीठासीन भगवान हरिहर हैं, जिन्हें भगवान शिव के रूपों में गिना जाता है। ऐसा माना जाता है कि लिंगराज मंदिर की स्थापना राजवंश के राजाओं द्वारा की गई थी।
त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर

त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर मंदिर भी 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और नासिक शहर से 28 किलोमीटर दूर गोदावरी नदी के तट पर मौजूद है। यहा पूरा मंदिर काले पत्थरों से बना हुआ है। त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर के शिव लिंग में भगवान विष्णु, ब्रह्मा और रुद्र के रूप में तीन मुखों को दिखाया गया है। त्र्यम्बकेश्वर मन्दिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजी राव द्वारा करवाया गया था।
ओंकारेश्वर मंदिर

मध्य प्रदेश के खंडवा में स्थित है ओंकारेश्वर मंदिर। चार धाम यात्रा के बाद ओमारेश्वर महादेव का दर्शन करना जरूरी होता है, तभी चार धाम यात्रा का पुण्य मिलता है।ओंकारेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। यह द्वीप हिन्दू पवित्र चिन्ह ओम के आकार में बना है। 12 ज्योतिर्लिंगों में ओमकारेश्वर मंदिर भी प्रमुख शिव मंदिर है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग

तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित रामेश्वरम हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ है। यह हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। इसके अलावा यहां स्थापित शिवलिंग बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण-पूर्व में है और हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ है। इसका आकार एक सुंदर शंख द्वीप का है। यहा भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक होने के साथ-साथ यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक है।