मेरी बीबी को किसी दूसरे से इश्क हो गया था। उसने स्वीकारा नहीं लेकिन बदलते हाव-भाव, घर की तरफ उसकी बेरुखी, उसके अधिकारी मिस्टर यादव की निरंतर तारीफ और परिवार की अवहेलना से मैं समझ चुका था कि ये घर कभी भी टूट सकता है। बीबी कभी भी तलाक मांग सकती है, कभी भी जा सकती है।
अपने अधिकारी मिस्टर यादव के प्रति वह इतनी दीवानी हो चुकी थी कि हर बात में मिस्टर यादव ही आते थे। उन्हीं के ख्यालों में खोई रहती थी मेरी पत्नी बबीता। ख्वाब भी उन्हीं के देखती होगी। उसके बर्ताव से समझ आने लगा था कि घर अब टूटा कि तब टूटा। न जाने किस घड़ी बबीता फैसला सुनाकर चल दे। मेरी पत्नी जिसने अग्नि के समक्ष सात जन्म साथ निभाने की कसमें खाई थी, इसी जन्म में साथ छोडऩे पर उतारू दिखने लगी। प्यार में बहकी स्त्री किसी भी हद तक जा सकती है। मेरे लिए जरूरी था कि मैं उससे स्पष्ट बात करूं। आखिर ऐसा कब तक चलता। न घर का ध्यान, न पति का, न बच्चों की चिंता। देर रात घर आना, सुबह जल्दी चले जाना। बनाव श्रृंगार पर अधिक ध्यान देना। मानो आइने से कह रही हो- कैसी लग रही हूं मैं मिस्टर यादव। हम अब उसे पराये लगने लगे थे।
जैसे-जैसे वह मिस्टर यादव के करीब हो रही थी, हमें अपना दुश्मन समझने लगी थी। प्रेमी बेवफा हो तो दिल टूटता है, पत्नी बेवफाई करे तो दिल के साथ घर भी टूटता है। दुनियां खत्म हो गई लगती है। ऐसे में मेरे जैसा पति क्या करे? आत्महत्या भी तो नहीं कर सकता। दो मासूम बच्चों का क्या होगा जिनकी उम्र मात्र 8 और 10 साल है। बेवफा सिर्फ बेवफा होती है। वह न मां रह जाती है न पत्नी। सोचता हूं मैं कहां गलत हूं? माता-पिता ने विवाह किया। पत्नी पढ़ी-लिखी थी। शादी के बाद उसे बैंक में सर्विस मिल गई। मैं प्राइवेट जॉब में था। उससे कम कमाता था। कभी-कभार शराब पी आता था, कभी लेट हो जाता था दोस्तों के साथ। लेकिन मैंने नशे में भी कभी बदतमीजी नहीं की। गलती पर माफी भी मांग ली, फिर क्या वजह हो सकती है, उसके बेवफा होने की। मेरा कम कमाना या शराब पीना।
ये तो कोई वजह न हुई। मुझे लगता है जिसको बेवफा होना होता है, वह हो जाता है। उसकी कोई वजह नहीं होती। मेरी पत्नी सुंदर है, सरकारी नौकरी में है। हमारे विवाह को दस वर्ष से अधिक हो चुके हैं। दो प्यारे बच्चे हैं। मेरी पत्नी बबीता मेरे पूरे परिवार का ध्यान रखती आई है। दिन-रात काम और काम। कई बार मैंने उससे घूमने, सिनेमा, बाजार चलने के लिए कहा, लेकिन उसने हमेशा इंकार कर दिया कि घर पर बहुत काम है, मैं अपने घर में भली। फुर्सत मिलने पर बैंक की तैयारी में लग जाती। बुद्धिमान थी, मेहनती थी, नौकरी भी लग गई। नौकरी से आते ही वह घर के काम, बच्चों की देखरेख में लग जाती।
सब कुछ ठीक चल रहा था, पता नहीं कहां से ये यादव आ गया। अपने खूबसूरत व्यक्तित्व और मैनेजरी की पोस्ट के कारण न जाने उसने कब, कैसे बबीता का दिल जीत लिया। न जाने मेरी पत्नी पर कैसे कब्जा कर लिया। 40 की उम्र में कुंवारा था। जब मुफ्त में दूसरे की पत्नी मिल रही हो तो शादी की क्या जरूरत है।
मेरा एक दोस्त भी उसी बैंक में था। मैंने उससे बबीता के बारे में पूछा, ‘सब ठीक है? उत्तर से मैं हिल गया। उसने कहा, ‘कुछ ठीक नहीं। पानी खतरे के निशान से ऊपर है। मैं शर्म और अपमान से लाल हो रहा था। मैंने पूछा, ‘फिर क्या करूं?
उसने कहा, ‘कभी भी बाढ़ आ सकती है। कोशिश करो घर बचाने की। मैंने यादव के बारे में पूछा। उसने कहा, ‘दिलफेंक आशिक मिजाज, रंगीन तबियत का आदमी है। सुंदर औरत देखी नहीं कि जाल फेंकना शुरू कर देता है।
मैंने कहा, ‘यार शादीशुदा औरत से इश्क, शर्म नहीं आती उसे। ‘अपना सिक्का खोटा हो तो किसी को क्या दोष देना। अपने दोस्त इकबाल के सच से मुझे बुरा तो लगा लेकिन कहा तो उसने सच ही था। सच को झुठलाना मुश्किल था।
मैंने कहा, ‘यार, पहले शादीशुदा औरत को लोग भाई या दीदी कहते थे। कुंवारी लड़कियों से इश्क फरमाते थे। अब क्या हो गया है दुनिया को।
उसने कहा, ‘संबोधन तो अब भी वही रहता है, खासकर शुरुआती दिनों में, लेकिन नीयत बहुत कमजोर हो गई है लोगों की। शादीशुदा से संबंध बनाने में फायदा ये होता है कि पुरुष पर शादी का दबाव नहीं पड़ता। शादीशुदा का लेबिल होने से कोई शक नहीं करता जल्दी। औरत की अपनी सुरक्षा है और मर्द पर कोई दबाव नहीं।
‘लेकिन ये तो अनैतिक है मैंने गुस्से में कहा। ‘ताली जब दोनों हाथ से बजे तो अनैतिक कैसे हुआ। जब मर्जी से हो तो दिल की लगी है।
मैंने सोचा, जो मेरी पत्नी का शिकार कर रहा हो। मैं उस शिकारी से क्या कहूं। यह कि मेरी पत्नी को छोड़ दो, मेरे घर को मत तोड़ो, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूं। लानत है मुझ पर। तो क्या करूं, सिर तोड़ दूंगा अपनी पत्नी के प्रेमी का या हाथ-पैर तोड़ दूंगा अपनी पत्नी के। नहीं-नहीं गुस्से से बात बिगड़ सकती है। मुझे अपनी पत्नी से नरमी से बात करनी चाहिए। पूछना चाहिए। मैंने पूछा भी लेकिन मेरे हर प्रश्न पर उसके उत्तर यही होते।
‘अफवाह है, बकवास है, झूठ है। यादव जी मेरे अधिकारी हैं। मेरा उनका संबंध आफिशियल है। वे अच्छे आदमी हैं। लोग जलते हैं हमारी मित्रता से। दोस्ती से ज्यादा कुछ नहीं है हमारे बीच। तुम मुझ पर शक कर रहे हो। भरोसा नहीं मुझ पर…।
मैंने गुस्से में कहा, ‘झूठ बोल रही हो। मुझे धोखा दे रही हो। विवाह की मर्यादा को भंग कर रही हो। परिवार की इज्जत मिट्टुी में मिला रही हो उसने पलटकर कहा, ‘विश्वास नहीं है तो तलाक ले लो। मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूं। मेरा अपना जीवन है, इच्छाएं हैं, मन है। अपनी मर्जी से घूम-फिर भी नहीं सकती। अपनी पसंद के व्यक्ति से बात भी नहीं कर सकती। हां, मैं मिस्टर यादव को पसंद करती हूं। तो क्या गुनाह हो गया। क्या एक स्त्री और एक पुरुष दोस्त नहीं हो सकते। उसकी बातों से मैं सन्नाटे में आ गया। मुझे भी गुस्सा आ गया। मैंने कह दिया- ‘मेरे नाम का सिंदूर और मन में कोई और। तलाक लो और जो करना है करो। बबीता ने बात को हल्के में लिया, जैसे वह यही चाह रही हो। एक स्त्री एक पुरुष की दोस्ती का मतलब प्यार ही होता है। मुझसे तलाक के बाद उसका प्यार सम्माननीय हो जाएगा। फिर उसे झूठ बोलने की, छिपकर मिलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तलाक का प्रस्ताव उसने मान लिया।
‘बच्चों का क्या होगा मैंने पूछा।
‘तुम रख लो उसने बेशर्मी से उत्तर दिया।
‘हां, अब तो पति भी नया और बच्चे भी।
‘ये तो तुम्हारे बेटे हैं। तुम्हारे कुलदीपक।
‘मैं क्यों बच्चों का बोझ उठाऊं। अपने प्रेमी से कहना कि मुझे स्वीकारना है तो बच्चे भी स्वीकारने होंगे। ‘यादव जी का दिल बहुत बड़ा है। वो मेरी हर चीज स्वीकार लेंगे। उसने विश्वास से कहा।
मेरे सामने मेरी दुनिया उजड़ रही थी। मैं कुछ भी नहीं कर पा रहा था। एक आदमी ने मेरा सब कुछ तहस-नहस कर दिया था और मैं बस अपनी बर्बादी देख सकता था। जब अपना ही कोई घर की दीवारों में सुराख करे तो बाहर वालों को कैसे दोष दिया जा सकता था। क्या कहूं अपने मासूम बच्चों से, ये कि नया बाप मुबारक हो। क्या असर पड़ेगा इन मासूम बच्चों के मस्तिष्क पर। बच्चों को अपने साथ रखने का अर्थ था बबीता को पूरी तरह फ्री कर देना। आजाद कर देना और स्वयं को जिम्मेदारियों में जकड़ लेना। मैं इसके लिए तैयार न था।
बबीता की बेवफाई ने मुझे एक ऐसा दर्द दे दिया जो नासूर बनता जा रहा था। ऐसा नहीं है कि मैंने बबीता को समझाया नहीं। उसके सामने अनुनय-विनय नहीं की। उसे बच्चों का वास्ता नहीं दिया। मैं उसके सम्मुख गिड़गिड़ाया नहीं। मैंने अपने घर को बचाने का हर संभव प्रयास किया। लेकिन बबीता पूर्णत: निष्ठुर बन चुकी थी। मेरा होना उसकेलिए कोई मायने नहीं रखता था। वह जब मर्जी आती, जब मर्जी जाती। पूछने-टोकने की सीमा से बाहर निकल चुकी थी। एक दिन कोर्ट से तलाक का नोटिस भी आ गया।
मैंने बबीता से पूछा, ‘ये सब क्या है? तुम्हारे व्याभिचार के लिए मेरी मौन स्वीकृति तो है ही।
उसने ढिठाई से कहा, ‘मैंने प्रेम किया है सच्चा प्रेम। ये अलग बात है कि पहले मेरी शादी हुई। उसके बाद मुझे प्रेम हुआ। मुझे आजाद कर दो पूर्णत:, मैं बबीता यादव बनना चाहती हूं। तुम तलाक नहीं दोगे तो मुझे दूसरे रास्ते अपनाने पड़ेंगे। दहेज एक्ट वगैरा-वगैरा। अच्छा है सब राजी खुशी से हो जाए। बच्चे जब चाहें मेरे पास आ जाएं, जब चाहें तुम्हारे पास। मुझे कोई समस्या नहीं।
बाढ़ आ चुकी थी। घर डूब चुका था। मैं विस्थापित हो चुका था। तीसरी पेशी में तलाक हो गया। बच्चों को चालाकी से हॉस्टल में डाला जा चुका था। मेरी स्थिति बच्चों का खर्चा उठाने की नहीं थी। वो जिम्मेदारी बबीता ने उठा ली। तलाक के समय कोर्ट में मैंने यादव को देखा। विजयी मुस्कान उसके चेहरे पर थी। वह सिकंदर था। वह अपनी कार में बिठाकर बबीता को ले जा चुका था। कार से उड़ती धूल और निकलता धुआं मेरे मुंह पर हार का, तिरस्कार फेंक कर जा चुके थे।
बच्चे एक-दो बार मुझसे मिलने आए तो मेरे पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं था। छोटा सा वेतन शराब में उड़ जाता। मेरी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक स्थिति कमजोर होती गई। दोनों बच्चों को बबीता और उसके नए पति, बच्चों के नए पिता ने इतने सुख सुविधाएं दी कि बच्चे मुझे भूल गए। यादव बैंक मैनेजर था। उसके पास काफी पुश्तैनी सम्पत्ति थी। बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर सब कुछ था। बबीता मेरी नहीं रही। बच्चे भी पराये हो गए।
यादव के आकर्षक व्यक्तित्व और करोड़ों की सम्पत्ति के सामने मैं कुछ भी नहीं था। बबीता के माता-पिता शुरू में बबीता से नाराज थे। बाद में अपनी बेटी को बड़े बंगले में खुश देखकर उनकी नाराजगी दूर हो गई थी। मेरे माता-पिता को मुझसे हमदर्दी थी लेकिन मेरे उजड़ते ही वे मेरे बड़े भाई के परिवार में चले गए। उन्हें सेवा की जरूरत थी, जो मैं अकेला नहीं कर सकता था। मैं तो अपना ध्यान भी नहीं रख पा रहा था। मुझे दिलासा दी गई कि शराब छोड़, दूसरी शादी कर लो। लड़कियों की कमी नहीं दुनिया में। बेवफा के लिए शराब में डूबकर जिंदगी तबाह करना बेवकूफी है। लेकिन मैं ये बेवकूफी करता रहा और बीमारी के हवाले हो गया। मेरी दुनिया बबीता ने लूटी या किसी धनवान के धन ने।
बबीता ने अपनी भरपूर जिंदगी के लिए शादी तोड़ी। अपने उन्मुक्त आचरण से सारी खुशियां अपनी झोली में डाल ली। यादव जैसे लोगों को किसी का घर तो बर्बाद करना ही था, मेरा बुरा वक्त था। मैं आ गया उसकी चपेट में। मैं न होता तो कोई और होता। शराब पी-पीकर मेरा लिवर क्षतिग्रस्त हो गया। मैं नशे में बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ा। होश आया तो स्वयं को अस्पताल में पाया। यादव मेरे सामने खड़ा था।
नर्स ने बताया, ‘यही सज्जन आपको लेकर आए हैं। सज्जन शब्द सुनकर मुझे क्रोध आया। ये सज्जन हैं तो… जी हुआ कि गर्दन दबा दूं लेकिन उठ न सका। शरीर जर्जर हो चुका था। अस्पताल का पलंग स्थायी आवास बन चुका था।
‘क्यों किया तुमने मेरे साथ ऐसा मैंने किसी लाचार स्त्री की तरह पूछा।
यादव मेरे करीब आकर बैठ गया। उसने मेरी हथेली पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, ‘मैंने बबीता से प्यार किया था। ये इत्तेफाक था कि वो तुम्हारी पत्नी थी। मैंने जानबूझकर तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया। फिर भी मैं तुम्हारा दोषी हूं। मुझे इसकी सजा भी मिल रही है। बबीता पूरी मेरी कहां है? वह तो बंटी हुई है। तुममें, मुझमें, अपने बच्चों में। मैं तुम्हारा इलाज करवाऊंगा। तुम्हारे बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर। इतना कहकर यादव की आंखों में आंसू आ गए।
वह तेजी से उठा और निकल गया। वाह री किस्मत। राक्षस मसीहा बन रहा है। उसकी वास्तविकता तो ये थी कि उसने मुझसे मेरी पत्नी छीनी। मेरा परिवार बर्बाद किया। लेकिन अकेला यादव दोषी नहीं था। सच ही कहा है किसी ने- प्यार अंधा होता है, और मेरी पत्नी के इस अंधे प्यार ने मेरा सब कुछ नष्ट कर दिया था। पता नहीं क्या कहा था डॉक्टर ने मेरे सौतेले यादव से कि वह दूसरे दिन मेरी भूतपूर्व पत्नी को लेकर मेरे पास आ गया।
बबीता मेरी हालत देखकर फूट-फूटकर रोने लगी। यादव को शायद मेरे प्रति बबीता का रुदन अच्छा नहीं लग रहा होगा। लेकिन किसी का घर तोडऩे की इतनी सजा तो जायज थी उसके लिए। उसकी पत्नी मेरी छाती पर सिर रखकर आंसू बहा रही थी। मेरे लिए इतना काफी था। यादव अच्छा आदमी था। अगर उसका बबीता से प्रेम करने का गुनाह छोड़ दिया जाए तो। उसने केवल मौज-मस्ती नहीं की, शादीशुदा बबीता से विवाह भी किया। उसकेदो बच्चों को अपनाया भी। मेरी बर्बादी का दोष लेकर मुझे अस्पताल में भी भर्ती करवाया। कौन अपराधी था मेरा। यादव, बबीता मेरी किस्मत या मैं। शायद यही होना था सो हुआ। मैंने निश्चिंत होकर अंतिम सांस ली।
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