गृहलक्ष्मी की कहानियां : टिफिन बन गया कि नहीं ? मुझे देर हो रही है।” राजाराम ने चिल्लाकर राजरानी से कहा। उधर से कोई जवाब नहीं आया। राजाराम अंदर देखने गया राजरानी बिस्तर पर लेटी थी। इसका मतलब था, आज भी खाना नहीं बनेगा। महाभारत की रचना शुरू हो चुकी थी।
महारानी लेटी पड़ी है खाना क्यों नहीं बनाया?
मैं तुम्हारी नौकरानी नहीं हूं जो हर समय तुम्हारी सेवा में लगी रहूं।”
इसमें नौकरानी की क्या बात है, आखिर मैं तुम्हें ब्याह कर लाया हूं।”
गर्मी में सड़ाने के लिए”
‘‘पंखा लाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं है।”
‘‘ तो शादी क्यों की थी?”
महाभारत शुरू तो हो गयी थी, लेकिन अंत का पता नहीं था। पड़ोस के एक वकील साहब जो रास्ते से गुजर रहे थे, उन्हें घर के अंदर की आवाजें सुनायी पड़ रही थी। उन्होंने पुकारा, राजरानी सुबह से बैठी-बैठी क्यों रो रही हो?
वकील साहब जी, इस आदमी से मुझे छुटकारा दिलाओ। मैं इस आदमी के साथ नहीं रह सकती।” वकील साहब ने अपने आप पक्षी को फंसते देखा तो बाहें खिल गयी। बैठे-बिठाए बिना हाथ-पैर मारे केस जो मिल गया था? ‘क्या हो गया, पूरी बात तो विस्तार से बताओ।”
वकील साहब सुनकर गंभीर हो गए। सिर हिलाकर बोले, ‘‘बात तो वास्तव में गंभीर है। राजाराम तुम्हारे साथ बड़ी ज्यादती कर रहा है। इतनी गर्मी में कोई कैसे रह सकता है। वकील साहब ने खूब नमक मिर्च लगाकर राजरानी से फीस ऐंठी और राजाराम पर मुकदमा ठाेंक दिया। दो-तीन पेशी भी हो गयी। आज भी पेशी थी। दोनों लोग तो कोर्ट पहुंच गये थे, लेकिन वकील साहब अभी तक नहीं आये थे। दोनों पति-पत्नी के नाम की पुकार हुई । मजिस्ट्रेट साहब ने पूछा-‘तुम्हारा क्या केस है क्या’ ?
‘साहब दो साल शादी के हो गये हैं, यह हमें पंखा तक लाकर नहीं दे रहे हैं।………मजिस्ट्रेट साहब ने राजरानी की पूरी विस्तार से बातें सुनी। उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। फिर कुछ सोचकर बोले, ‘‘देखो यहां हाॅल में पंखे लगे हैं, ढेर सारे, लेकिन बिजली नहीं आ रही है। हम सब गर्मी में है कि नहीं।” हां, साहब बात तो आपकी सच है।
फिर मजिस्ट्रेट साहब राजाराम की तरफ मुखातिफ हुए,-‘‘ऐ मिस्टर, शादी तो तुमने कर ली। एक पंखा तक लाकर नहीं देते हो।”
हुजूर…‘‘राजाराम हाथ जोड़कर खड़ा था।
एक महीने के अंदर पंखा खरीदो और उसकी रसीद दिखाओ, नहीं तो तुम्हें जेल भेज दूंगा।
‘‘हुजूर माफी दे दो। महीना भीतर पंखा खरीद कर रसीद आपको दिखा दी जाएगी” राजाराम हाथ जोड़े खड़ा रहा।
‘‘तो जाओ दोनों लोग।”
पति-पत्नी तो खुशी-खुशी चले गये। जब वकील साहब आए तो उनका चेहरा उतर गया, लेकिन कुछ कह न सके। मियां- बीबी राजी, कोर्ट राजी, वकील खारिज। मजिस्ट्रेट साहब बोले, हम सबका एक ही उद्देश्य होना चाहिए, कोई घर न टूटे। घर बसे रहने में ही आनंद है। समाज का भी इसी में भला है।
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