An woman stands on her balcony with a mug, lost in thought. Inside, two kids talk quietly. The warm light and sunset hint at strength born from pain.
Wo Life Nahi Rukati

summary: एक माँ की ख़ामोशी से निकली आवाज़: नेहा की कहानी जो हर बच्चे की उम्मीद बनी

अपने बेटे को खोने के बाद नेहा ने अपने दर्द को मिशन बना लिया। अब वह हर उस बच्चे की आवाज़ है जिसे समाज अनसुना कर देता है।

Hindi Short Story: मुंबई की 14वीं मंज़िल पर बनी उस आलीशान सोसाइटी में, लिफ्ट रोज़ चलती थी। लेकिन एक दरवाज़ा रोज़ बंद रहता था A-1403। उस घर में रहती थी नेहा 45 साल की, अकेली, शांत और थोड़ी अजनबी। कभी किसी पार्टी में नहीं दिखती। न सोसाइटी मीटिंग में, न गॉसिप ग्रुप्स में। बस हर सुबह बालकनी में खड़ी मिलती चाय के साथ, और सूनी आँखों के साथ।

एक दिन उसी सोसाइटी की लिफ्ट में ब्रेकडाउन हुआ। लोग फँस गए। अफरा-तफरी मची।

तभी किसी ने कहा “A-1403 वाली नेहा मैम को बुलाओ, वो इंजीनियर हैं न? IIT की?”

सब चौंक गए “वो? वो तो बस अकेली सी औरत हैं…”

नेहा आईं, सिस्टम समझा और 15 मिनट में लिफ्ट शुरू करवा दी।

अब लोग उसके पास आने लगे। बच्चों की पढ़ाई, करियर गाइडेंस  सबमें मदद करने लगी। लेकिन कोई नहीं जानता था कि उसकी ज़िंदगी की सबसे ऊँची लिफ्ट कभी चल ही नहीं पाई थी।

5 साल पहले…

उसका बेटा मनु, 16 साल का, होशियार, तेज़, लेकिन दबाव में।

कभी उसके नंबर कम आए, और पिता ने कह दिया “नेहा, तुम ही पढ़ाती हो, और तुम्हारा बेटा फेल? ये शर्म की बात है।”

नेहा चुप रही। मनु की नींदें कम होने लगीं, उसके चेहरे से हँसी गायब।

एक रात उसने अपनी माँ के फोन में बस एक मैसेज छोड़ा, “I’m sorry माँ, मैं थक गया हूँ।”

और वो चला गया। एक 16वें मंज़िल की बालकनी से छलांग लगाकर।

lift at apartment
lift at apartment

नेहा टूट गई। पति ने दोष दिया “तुम्हारी पेरेंटिंग फेल हो गई।”और वो भी उसे छोड़कर चला गया। अब नेहा अकेली थी शहर के सबसे तेज़ रफ्तार फ्लैट में, सबसे गहरे सन्नाटे के साथ। हर दिन वो लिफ्ट देखती थी, जो उस रात उसके बेटे ने नहीं ली। जो उसे नीचे नहीं, कहीं और ले गई। नेहा ने खुद को खत्म नहीं किया, उसने मनु की कहानी को मकसद बना दिया।

अब वो स्कूलों में जाती है, बच्चों से बात करती है, सिखाती है  “अच्छे नंबरों से ज़्यादा ज़रूरी है अच्छी नींद। तुम हार नहीं हो, तुम इंसान हो।”

आज अगर कोई बच्चा डिप्रेशन में होता है, तो नेहा उसका पहला कॉल होती है। अब नेहा हर उस बच्चे की आवाज़ बन चुकी है, जिसकी चीखें कभी सुनाई नहीं दीं।

हर बार जब कोई माँ घबराकर उससे पूछती है “मैं कैसे समझूं मेरे बच्चे को?”

तो नेहा बस मुस्कुरा कर कहती है, “उससे नंबर मत पूछो, उसकी नींद पूछो।

उसके रैंक मत गिनो, उसकी धड़कनें सुनो। क्योंकि मैं एक माँ हूँ जिसने अपना बच्चा खो दिया अब मैं और नहीं खोने दूँगी।”

अब A-1403 का दरवाज़ा बंद नहीं रहता। वहाँ चाय की खुशबू होती है, बच्चों की आवाजें, और एक माँ

जो टूट कर भी इतनी मजबूत हो चुकी है कि अब किसी और की लिफ्ट रुकने नहीं देती।

कहते हैं वक्त सब ठीक कर देता है, लेकिन नेहा जानती है वक्त सिर्फ चलता है, ठीक तो माँ ही करती है।

उसने अपने आँसू बंद कमरों में बहाए, ताकि दूसरों की आंखों में उम्मीद चमक सके।आज भी जब कोई लिफ्ट बंद होती है, कोई बच्चा चुपचाप सहमा होता हैतो नेहा पहुँच जाती है…क्योंकि अब वो सिर्फ़ एक माँ नहीं, वो एक वादा है कि कोई और मनु अब खामोश नहीं जाएगा।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...