jeevan mai khalipan

Short Story in Hindi: गर्मियों की छुट्टी में सारे बच्चे घर आए हुए हैं ।चारों तरफ मस्ती का माहौल बना हुआ है। उसी मस्ती में उम्र के साठवे दशक में, भी मैं अपनी नाती पोते के साथ मस्ती के माहौल में डूब गया हूं। समय कैसे कट रहा है पता ही नहीं चल रहा है । एक महीने की छुट्टियों में दोनों बेटियां नाती नतनी, बेटे बहू, पोती सभी आए हुए हैं । पूरा घर हरा-भरा गुलजार सा है मेरा। इन बच्चों को किसी की नजर ना लगे। यह सोच शशिकांत जी अपने बच्चों को देखकर मंद मंद मुस्कुरा भी रहे थे। तभी उनकी बड़ी बेटी गौरी पापा एक सप्ताह हो गए हम लोग को आए हुए। इस बार तो हमें बच्चों के साथ अपनी पुश्तैनी घर देखने जाना है। छोटी बेटी सिद्धि उसने भी कहा पापा बच्चे सभी कहने लगे हां नानू हां नानू चलना है ,चलना है । कुछ तो घूमना बनता है …..गांव जाएंगे तो आम के पेड़ पर चढ़ेंगे शैतानियां करेंगे । अचानक शशिकांत जी को बड़ी बेटी के यह शब्द झटका सा दे गया ।मस्ती कर रहे शशिकांत जी अचानक से मौन हो गए थोड़ी देर के लिए……।

गौरी और सिद्धि दोनों एक स्वर में क्या हुआ पापा चुप क्यों हो गए?????? इसी बहाने चाचा- चाची लोग से भी मिल लेंगे। पुनः बच्चे जिद करने लगे चलिए ना नानू चलिए ना…… थोड़ी देर खामोश रहकर शशिकांत ने जी ने कहा ठीक है कल सुबह चलेंगे हम लोग ।अपनी पत्नी सुशीला को आवाज लगाते हुए शशिकांत जी कहते हैं कल सुबह की तैयारी कर लेना…। साथ ही साथ कुल देवता की पूजा की भी सारी सामग्री तैयार कर लेना। हम लोग अपनी पुश्तैनी घर चलेंगे । सारे बच्चे हिप हिप हुर्रे अब तो मजा आ जाएगा । सुबह-सुबह जल्दी-जल्दी से सभी तैयार हो गए। दो गाड़ियों से पूरा परिवार और शशिकांत जी  गांव के लिए रवाना हुए………।

गाड़ी की तेज रफ्तार के साथ अपनी जिंदगी के 32 साल की रफ्तार को यादों में समेटते हुए आज फिर उसी पथ पर एक बार वापस जा रहे हैं…… खो गए शशिकांत जी 32साल पहले की यादों के खुबसूरत झरोखों में। शशिकांत जी पांच भाई बहनों में ,तीसरे नंबर पर थे एक बड़ी बहन और एक छोटी बहन थी। मां बाबूजी , दादा दादी ,चाचा चाची पूरा परिवार भरा पूरा था। अपनी चंचल स्वभाव के कारण पूरे घर के चहेते बने फिरते थे। समय अपनी गति से चलता है इनकी भी बचपन से जवानी आई। जवानी का समय   होता ही है ऐसा, कि लोग आकर्षण फिर प्रेम जाल में फंस जाते हैं।जवानी पर जोर कहां चलता है कुछ ऐसा ही हुआ इनके साथ भी सामूहिक परिवार था। दुर्गा पूजा के अवसर पर मेला देखने चाची की भतीजी आई हुई थी सुनैना। नाम के अनुरूप ही बहुत ही खूबसूरत थी सुनैना । जवानी के इसी आकर्षण में यह भी खुद को रोक नहीं पाए और खींचे चले गए सुनैना के नैनों की गहराइयों में……….।

सुनैना भी इस डोर में खींचती चली गई… बातें बढ़ते देर नहीं लगी । पूरे परिवार में इस बात की चर्चा होने लगी सबके चहेते शशिकांत जी अचानक से अपने एक फैसले से सबसे दूर होते नजर आने लगे। पूरे परिवार वालों के सामने में कहा कि मैं ब्याह करूंगा तो सिर्फ सुनैना से, वरना कुंवारा ही रहूंगा। उनके इस फैसले से कोई भी व्यक्ति सहमत नहीं था सिवाय चाची के…….। शाम के समय शशिकांत जी मां और चाची के पास उदास बैठे हुए। किसी तरह सबको मनाओ ना चाची , मां तुम चाहोगी त बाबूजी मान जाएंगे रोते हुए……..।

शशिकांत जी को रोते हुए देख मां का तो कलेजा छलनी हो गया। किसी तरह मां रात के खाने में, सबके सामने दबी जुबान से इस बात को रखती है हिम्मत करके। बहुत देर कहा सुनी चलने के बाद बड़े ताऊ जी ने विवाह की स्वीकृति देते दे दी। मां चाची के संग संग खुशी से शशिकांत जी का चेहरा देखने लायक था। आनन-फानन में ही ब्याह की तैयारियां जमीनदारी अंदाज में होने लगी। एक सप्ताह के अंदर ब्याह कर सुनैना हमेशा के लिए मेरी होकर इस घर में आ गई। हमारा घर, घर नहीं स्वर्ग लग रहा था उसके रौनक से……।

चार-पांच इसी तरह हंसी खुशी समय पंख लगाकर बीत गया, लेकिन अभी तक सुनैना मां नहीं बन पाई थी सब लोग ताना देने लगे थे। मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था मुझे तो बस सुनैना का साथ चाहिए था , इस जन्म से लेकर हर जन्म-जन्म तक। लेकिन हमारे ईश्वर को हमारी खुशी इस जन्म में भी मंजूर नहीं थी । एक दिन सुनैना सोई तो सो ही रह गई सदा के लिए…..। सुबह पूरे घर में हल्ला होने लगी आखिर क्या हुआ??????? सुनैना को, सुनैना अभी तक जगी नहीं। वैद जी  को बुलाया गया उन्होंने देखा तो हक्का-बक्का  रह गए अब तो बहुत देर हो चुकी थी । उसके तलवे के पास किसी भयंकर जहरीले सांप ने डस लिया था। खुद तो चली गई,हमेशा के लिए शशिकांत जी के जीवन में खालीपन दे गई…….।

एकांत में रहने लगे शशिकांत जी, लेकिन घरवालों के जिद के आगे मजबूर होते हुए उन्होंने दूसरी शादी सुशीला से की। 3 बच्चों की मां बनी सुशीला और वह बन गए पिता शरीर का मिलन तो हुआ, मन का मिलन हो नहीं पाया आज तक। बच्चे छोटे ही थे तभी अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर हमेशा के लिए इस पुश्तैनी घर से काफी दूर चले गए थे । जहां सुनैना की यादें उन्हें झकझोरे नहीं। अचानक से गाड़ी का हाॅर्न कई बार बजने से यादों की पटल से धरातल पर आए ।बड़ी बेटी पापा पहुंच गए घर ,कब से उतरने को आवाज लगा रही थी, कहां खोए हुए थे । बेटी को क्या पता कि आज भी यहां कदम रखते हुए मुझे सुनैना की आहट महसूस हो रही है । दिल कहता है आ जाओ सुनैना फिर एक बार सूना सूना है जहां……….।