सोच का फर्क.........दोष किसका???: Sock ka Fark
Soch ka Fark...Dosh Kiska

Sock ka Fark: हाय दईया घोर कलयुग अरे क्या हुआ छुटकी काकी यह पूछो का नहीं हुआ???? बस इस बुढ़ापे में यही दिन देखना बाकी रह गया था सो देख लिया। कौशल्या के बरका बेटबा इतना सुंदर बहुरिया और बेटी के रहते दूसरा ब्याह कर लिया। यह तो बहुत गलत हुआ छुटकी काकी, माही ने कहा। मैं इतनी उम्र दराज हूं पुराने ख्यालात के भी तब भी मुझे यह गलत लगता है । लोग मिट्टी के सौतन भी ना बर्दाश्त करें है यह तो जीते जी सौतन ले आया। माही तुम तो पढ़ी लिखी हो, तुम्हें क्या लगता है ।माही ने कहा लोगों की सोच बहुत निम्न स्तर के होते हैं । बेटा हो या बेटी नाम दोनों ही रोशन कर सकते हैं और बेटा हो या बेटी दोनों नाम डूबा भी सकते हैं जरूरी नहीं की इज्जत सिर्फ बेटियों से ही गिरता है इज्जत बेटे भी गिराते हैं। यह तो सिर्फ हमारी सोच का फर्क है उसी का हिस्सा और उसी की उपज है कि सारे दोष महिलाओं पर ही पर मढ दिया जाता है……….।

माही काफी पढ़ी-लिखी लड़की है और जॉब करती हैं पुणे में । जॉब करने की वजह से उसकी मानसिकता भी खुली हुई है। छुट्टियों में अभी अपने गांव आई हुई है। परिवार बहुत बड़ा था बचपन में सब साथ थे तो एक जगह समय बीता , अब घर अलग भी हो गए तब भी माही कभी भी आती है तो उसकी सभी चाची ने उसे इतना प्यार दिया बचपन में उसे वह भूल नहीं पाती। खैर अब दो चाची तो नहीं रही बस ले देकर रह गई छुटकी काकी। ज्यादा समय समय बिताती है काकी के साथ, माही को मां जैसा प्यार छुटकी काकी ने दिया था। माही की मां कभी मना भी नहीं करती है खुले विचारों की हैं वो भी। तभी तो माही इतना पढ़ लिख कर इतने अच्छे जॉब कर रही हैं…………।

तभी छुटकी काकी पेड़ा लेकर आती हैं  मुंह में खिलाते हुए अपनी माही के लिए बनाई हूं। लो खाओ कैसा है बताओ । बताने की क्या बात है इसमें इतना प्यार है, इतना प्यार है कि इससे बढ़कर कुछ और हो ही नहीं सकता काकी। कितनी मेहनत की आपने, सब तुम्हारे आने की खुशी में हंसते हुए। चलो थोड़ा सहारा दे दो कौशल्या के यहां चलते हैं। पता करती हूं कि आखिर सारा माजरा क्या है??????? जब हम कौशल्या चाची के यहां पहुंचते हैं हमारी छूटकी काकी दबंग जैसे तेज़ आवाज में कहा यह क्या सुन रही हूं कौशल्या। जो सुन रही है सही सुन रही है इसमें दिक्कत ही क्या है। दिक्कत क्या है ????कैसी औरत हो तुम कौशल्या औरत के नाम पर कलंक ! नाम कौशल्या और बन गई परिवार को तबाह करने वाली केकई………।

औरत के दर्द को समझा करो सबसे बड़ी इंसानियत यही है फिर भी वह जिद करते रही मेरा बेटा इतना पढ़ा लिखा है स्मार्ट है उसके लायक थी ही नहीं यह बहुरिया । अच्छा तो यह बात है और वह नाचनेवाली उसके लायक हो गई। जिस के ना जात का ठिकाना, ना जिसके समाज का ठिकाना ??क्या रमाकांत जी बेटे ने शादी कर ली और आप कुछ भी नहीं बोले बेचारे शर्म से सिर झुकाए हुए थे । उनकी कौशल्या के आगे चलती ही कहां थी ,उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला । छुटकी काकी कहती हैं अब समझी इसमें कौशल्या का ही हाथ है तभी तो छोड़े को मन चढ़ा हुआ था…………।

खैर छोड़ो यह बातें पंचायत में जाएगी अगर पंचायत ने सही सही फैसला नहीं किया तो कोर्ट कचहरी के भी चक्कर लगेंगे । हम अपने समाज को खराब नहीं होने देंगे आज एक घटना घटी है कल इसकी पुनरावृत्ति ना हो| इसके लिए हमें एक सही कदम उठाना ही पड़ेगा । तब तक लड़की के माता-पिता रोते हुए मेरी बेटी का क्या होगा हाय दईया मेरी बेटी का क्या होगा??? क्या होगा तभी माही ने कहा कि रोने कल्पने से कुछ भी नहीं होगा अब ठंडे दिमाग से इसका निर्णय लीजिए।

तब तक आस पड़ोस के और लोग भी भीड़ देखकर जमा हो गए। इतने लोगों की भीड़ देखकर  कौशल्या जी के परिवार और उनके बेटे रविराज को भी डर लगने लगा। धीरे-धीरे भीड़ और भी बढ़ने लगी, यह भीड़ उग्र रूप धारण कर चुकी थी…..….।

माही समझदारी से उग्र भीड़ को काबू करते हुए  इसका फैसला कल पंचायत में होगी, आप सभी अपने अपने घर जाइए। इधर रविराज की पत्नी मोहिनी से माही एकांत में मिलती है। देखती है की अपनी 2 साल की बच्ची को लेकर मोहिनी बुत बनी हुई थी जैसे उसके शरीर में जान ही ना हो । बहुत ही सुंदर से माही ने कहा ऐसे करने से कुछ काम नहीं चलेगा आगे का सोचो और एक बच्ची है जहां तक पढ़ाई की हो उससे आगे की पढ़ाई कंटिन्यू करो तुम्हारे और तुम्हारी बच्ची के लिए बेहतर भविष्य का निर्माण करेगा। जो कोई नहीं दिलाएगा वह शिक्षा दिलाएगी क्योंकि शिक्षा में बहुत ताकत है, आज का लिया हुआ निर्णय तुम्हारे कल के भविष्य को संभाल देगा। इससे निपट लो फिर सोचना कहते हुए माही चली जाती हैं कल के फैसले  का इंतजार रहेगा………….।

सुबह-सुबह पंचायत बैठी, दोनों परिवार वालों के बातों को सुनने के बाद चर्चा परिचर्चा बहुत देर तक हुई। सरपंच, मुखिया पंचायत के सभी गणमान्य सदस्यों ने मिलकर एक फैसला लिया। उन्होंने कहा पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी अमान्य है । सारा हक सारा अधिकार सिर्फ और सिर्फ मोहिनी और उसके बच्चे का ही होगा। किसी को कोई एतराज! रविराज भड़कते हुए मुझे यह लड़की पसंद नहीं है आप लोग कहिए तो मैं अपनी जमीन इसके नाम कर दूं। पंचायत के लोगों ने कहा जमीन नाम करने की आवश्यकता नहीं है तुम्हारी पत्नी है और इसका यह अधिकार है। यही आज की पंचायत का फैसला है। किसी को और कुछ कहना है इस संबंध में सभी चुप थे ।मोहिनी से सवाल किया गया क्या तुम्हें कुछ कहना है जी नहीं तुम्हें परिवार वालों से कोई शिकायत जी नहीं। यह तो हमारे सोच का फर्क है, जब अपना ही सनम बेवफा निकला तो मैं दोष किसको दूं?????….

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