भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
एक बड़ी-सी झील में कई रंग-बिरंगी छोटी-बड़ी नावे किनारे पर लगी रहती थीं। वहाँ पर बहुत छोटी-सी एक नाव थी। वह झील के सामने बहती नदी को बड़ी हसरत से देखती रहती थी। उसको इस तरह नदी की ओर देखते हुए बड़ी नाव ने पूछा, “ओ छुटकी नाव! तुम हर दिन उस नदी की ओर क्यों देखती हो? कहीं तुम वहाँ जाने की तो नहीं सोच रही हो?”
“मैं क्या सोच रही हूँ? इससे तुम्हें क्या? वह मेरी मर्जी है कि मैं क्या सोच?” छटकी नाव को बडी नाव का टोकना अच्छा नहीं लगा। पर बडी नाव कहाँ चुप रहने वाली थी? उसने छुटकी का मजाक उड़ाते हुए कहा-अरे छुटकी! पहले इस झील में तो अच्छी तरह तैर कर दिखा फिर नदी में तैरने की सोचना। तू क्या नदी में तैरेगी? नदी की एक लहर में ही डूब जाएगी। मुझे देख मैं इतनी बड़ी हूँ। इस झील में सबसे तेज दौड़ सकती हूँ, पर नदी में जाने की मेरी हिम्मत नहीं है। मेरे आगे तेरी क्या औकात है?
बड़ी नाव की बात सुनकर छुटकी नाव बहुत दुखी हुई। शाम को उसने सारी बात अपनी छोटी बहन इंजन को बताई। पूरी बात ध्यान से सुनकर छोटी बहन ने कहा- दीदी, बड़ी नाव घमंडी है, पर उसकी बात में सच्चाई तो है। आप जो भी फैसला लेंगी, मैं आपके साथ हूँ। यह सुनकर छुटकी नाव की हिम्मत बढ़ी और कहा- चलो, अब आराम करते हैं। कल बहुत दूर की यात्रा करनी है।
अगले दिन सुबह छुटकी नाव अपनी छोटी बहन इंजन को लेकर नदी के सामने आकर रुकी। पहली बार नदी के अथाह पानी को देख कर वह डर गई। वह तो ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। उसे लगा इतनी बड़ी नदी में तैरकर मंजिल तक पहुँचना असंभव है! वह डर के मारे काँपने लगी। रह-रहकर उसे बड़ी नाव की चेतावनी याद आ रही थी। वह पीछे भी नहीं लौट सकती थी क्योंकि उसे देखकर बड़ी नावें उसका मजाक उड़ाएंगी, वह सबका सामना कैसे करेगी? फिर सोचा- शर्मिंदा होने से अच्छा है कि कोशिश करनी चाहिए।
उसने डरी हुई नजर से अपनी छोटी बहन इंजन की तरफ देखा। वह भी डरी हुई थी। उसे देखकर छुटकी नाव ने कहा- मेरी प्यारी बहन, मैंने अपनी जिद पूरी करने के लिए तुम्हारी जान भी जोखिम में डाल दी है। चलो, लौट चलते हैं। क्या होगा? सब हम पर हँसेंगे न? पर हम जिन्दा तो रहेंगे। छोटी बहन अपनी दीदी को हारते हुए नहीं देखना चाहती थी। उसने अपने डर को दबाकर मुस्कराते हुए अपनी दीदी से कहा- “डरो मत दीदी, चलो आगे बढ़ते हैं। आप अकेली नहीं हैं, मैं तो आपके साथ हूँ। दोनों मिलकर मंजिल की ओर बढ़ते हैं।” यह सुनकर छुटकी नाव में साहस आया और वह डरते-डरते तैरने के लिए तैयार हो गई।
दूसरी ओर छोटी बहन इंजन भी डरी हुई थी, इसलिए दोनों एक-दूसरे का हाथ पकडे बहुत ही धीरे-धीरे चल रही थीं। नदी के तट पर एक मीनार खड़ी थी, जो इन दोनों को ध्यान से देख रही थी। इनकी धीमी चाल और सहमे हुए चेहरे देखकर नदी के तीर पर खड़ी मीनार की समझ में आ गया कि छोटी नाव डरी हुई है। उसे देखकर मीनार ने जोर से कहा- “बेटा नाव लगता है, तुम पहली बार यहाँ आई हो?”
“जी हाँ दादीजी, पर मुझे और मेरी बहन को बहुत डर लग रहा है। हमें तो झील के पानी में ही तैरने की आदत है, यह तो बहुत बड़ी नदी है,” छुटकी ने उत्तर दिया। यह सुनकर मीनार दादीजी ने हिम्मत बँधाते हुए कहा- पहली बात, तुम बहुत ही सुन्दर और दूसरे, साहसी भी हो, नहीं तो इतनी तूफानी नदी में कौन तैरने आते हैं? वाह! तुम आगे बढ़ो बेटा, तुम मंजिल तक जरूर पहुँचोगी।
छुटकी नाव को मीनार दादी की बात अच्छी लगी। उसने मुस्कराते हुए मीनार की ओर देखा और “धन्यवाद” देते हुए, अपनी चाल थोड़ी तेज करती हुई आगे बढ़ने लगी। कुछ देर चलने के बाद उसने देखा, एक बत्ती-खम्भा है, जो छोटी-सी नाव को तैरते देख खुश होकर तालियाँ बजा रहा था। उसकी चमचमती लाईट मानो छुटकी नाव का स्वागत कर रही हो। छुटकी नाव और उसकी छोटी बहन इंजन को बत्ती-खम्भा का ये अंदाज बहुत ही अच्छा लगा। दोनों में और हिम्मत आ गई। उन्होंने अपनी चाल को और तेज कर दिया। अब वे मंजिल के बहुत करीब थीं।
कुछ आगे बढ़ने के बाद उसने देखा, नदी के दोनों तरफ बड़ी-बड़ी इमारतें नाव को देखकर ताली बजा रही थीं। सब की सब इमारतें छुटकी नाव के स्वागत के लिए खड़ी थी। चारों ओर तालियों की गूंज सुनकर नाव और इंजन खुशी से झूम उठे और तेजी से कदम बढ़ाते अपनी मंजिल तक पहुंच गए।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
