भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
गोमती नदी के किनारे बैराज के पास पेड़ के नीचे अजब दृश्य था। पानी में किनारे पर एक नाव आ लगी थी। उसके साथ एक मछली और एक कछुआ भी दिखाई पड़ रहे थे।
बाँध द्वारा नदी का पानी रोककर, नदी के दोनों पाटों को सुखा दिया गया था। दोनों पाटों को नदी के भीतर तक खोदा और सँवारा जा रहा था। उसके पाटों पर बड़ी-बड़ी मशीनें और क्रेने दौड़ रही थीं।
यह सब देखकर नदी के कुछ साथी बेचैन होकर इधर-उधर भटक रहे थे। उनके लिए नदी का पानी अब कम पड़ने लगा था। पतली होकर नाले के रूप में दिखाई पड़ रही नदी को देखकर सभी साथी दुःखी और चिन्तित थे।
गोमती-बैराज से गुजरते समय अधिकतर लोगों की निगाहें इधर ही लगी रहती थी लेकिन यहाँ जो हो रहा था वह किसी को दिखाई नही दे रहा था।
पेड़ के नीचे खड़ी नाव दु:खी होकर पेड़ से कह रही थी- “हरितराज! तुम मुझमें से अपनी लकड़ी निकाल लो। मेरी तली से मुझे खोखला कर दो जिससे नदी का पानी मेरे भीतर भर जाए और मैं उस पानी के साथ ही नदी में डूब जाऊँ। मैं और मेरी पतवार, इस नदी के साथ शहीद हो जाना चाहते हैं।”
पेड़ चकित भाव से नाव को देख रहा था, वह बोला “जो लकड़ी मैं एक बार दे देता हूँ उसे मैं वापस नहीं लेता। मेरे पास जो लकड़ी है मैं केवल उसे ही बचा सकता हूँ।”
पेड़ पुनः बोला “लेकिन तुम अपनी लकड़ी मुझे देकर नदी में शहीद क्यों होना चाहती हो?”
कछुआ और मछली, पेड़ और नाव की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
यह सब सुनकर वे दोनों और दुःखी हो गये थे। उनसे रहा नही गया।
मछली बीच में आकर नाव से कहने लगी “नाव चाची! तुम तो कितनी अच्छी हो। गर्मी में तो मैं तुम्हारे नीचे-नीचे ही जल में तैरती हूँ । कितनी बार तुम्हारे तले से मैं अपनी पीठ भी खुजा लेती थी। तुम नही रहोगी तो मैं भी कहाँ जाऊँगी? तुम्हारे साथ ही मैं भी नदी में शहीद हो जाऊँगी।” कहते-कहते मछली भावुक हो गयी थी।
तभी कछुआ भी रुआँसा-सा बोल पड़ा था “गर्मियों में मैं भी तो तुम्हारी ही ओट में नदी के किनारे जल के ठण्डे पानी में बैठा रहता हूँ। मैं तो पहले से ही दुःखी हूँ। तुम भी चली जाओगी तो मैं तो जरूर इस नदी के साथ ही शहीद हो जाऊँगा।”
मछली और कछुआ नाव को ढाँढ़स बंधाने में पहले ही असफल हो चुके थे। लेकिन अब वे अधिक निराश और कमजोर पड़ गये दिख रहे थे।
यहाँ से थोड़ी दूर पर नदी के सूखे किनारे पर एक मछुआरा बैठा था। वह चुपचाप सूखती नदी को बार-बार एकटक देख रहा था । मछुआरा बड़ी देर से बस, बैठे-बैठे नदी को निहारता ही जा रहा था।
बैराज पुल पर जा रहे मनुष्यों की कभी-कभी आवाज आती “नदी को यह क्या हो गया ? कितनी अच्छी-भली थी। पानी से लहराती नदी कितनी अच्छी लगती थी। ये तो बरसात में भी उजड़ी और सूखी है। क्या ऐसे इसकी सफाई हो रही है?”
पेड हरितराज सब कुछ बड़ी देर से देख–सुन रहा था।
नदी की दशा देखकर वह भी बहुत दुःखी था लेकिन नाव, मछली और कछुआ सभी हिम्मत हार चुके हैं, यह देखकर उसे घोर चिन्ता होने लगी।
हरितराज इन सबको बचाने की फिराक में कोई युक्ति ढूँढ़ने लगा था।
उसने एक आखिरी प्रयास कर लेना बेहतर समझा। हरितराज ने उनसे कहा “तम लोग बेवजह परेशान न हो। यह तो नदी की सफाई हो रही है इसलिए यह सब हो रहा है। बाद में सब ठीक हो जायेगा।”
तभी मछली बोल पड़ी “हरितराज! कुछ ठीक नही होगा। मुझे पता है।”
कछुआ भी बोला “हाँ! अब नदी पहले जैसी नही हो पायेगी। मुझे भी सब पता हो गया है। मछली मित्र ठीक कह रही है।”
मछली और कछुआ से ऐसी बातें सुनने के बाद हरितराज ने नाव से पूछा “ये लोग ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं? यह सब किसने कहा इनसे? नदी ने तो कहा नहीं? फिर इसे सच क्यों माना जाय? तम लोग जाओ यहाँ से।” कहते-कहते पेड़ हरितराज स्वंय भी दुःख और आक्रोश से भर गया था।
नाव शान्त स्वर में बोली ” अपना दुःख मत छुपाओ हरितराज! तुम भी जानते हो कि यह सब सच है।”
“हरितराज! वो देखो, सूखे किनारे पर बैठा वह मछुआरा कितना दुःखी है। वह मुझ पर ही सवार होकर नदी के चौड़े पाटों के बीच दूर-दूर तक मछलियाँ पकड़ने जाया करता था। उसका पूरा परिवार इस नदी से ही पलता था। देखो ऊपर से तुम्हारी तरह ही वह भी शान्त दिख रहा है लेकिन हम सब जानते हैं कि वह शान्त नही है, बल्कि निराश और चिन्तित है।
हरितराज का ओढ़ा हुआ सारा धीरज अचानक छूट गया था।
नाव बताती जा रही थी-
नदी कहती थी “मानवों ने पहले तो मेरी सारी स्वतन्त्रता छीन ली। फिर मुझे कुरूप बना डाला। मेरे केश ‘जंगल’ को काट डाला। मानवों ने मेरे धानी आँचल ‘खेत–बाग’ को भी, तार-तार कर दिया। अब उसने मुझे बन्धक बना लिया है। निर्दयी मानवों ने मेरे दोनो हाथों को बाँध कर, पीछे मेरी पीठ से बाँध दिए है। मेरे दोनो ओर से पत्थरों की दीवारें खडी करके मेरी कमर और देह को कस दिया है। मानव मेरे सीने पर बुलडोजर चलवाता है। मुझ पर कूड़ा, गन्दगी और कचरा फेंकता है। उस ने मेरी सारी शक्ति छीन ली है। मेरी आवाज मर गयी है। मेरा पानी इतना कम हो गया है कि अब मैं कल-कल का गीत नही गा पाती हूँ।”
सब कुछ सुनते-सुनते पेड़, मछली और कछुआ जैसे जड़ हो गये थे।
नाव आगे भी बताती जा रही थी।
नदी कराहती हुई कह रही थी “मानवों ने मुझे इतना क्षीण कर दिया है कि अब मैं ठीक से साँस भी नहीं ले पाती हूँ। इतनी गुलामी में मुझे मेरा जीना दुश्वार लग रहा है। मेरे हाथ फैलाने की जगहों पर कब्जा करके मानव दोंनो तरफ से पत्थरों के चौड़े-चौड़े पाट बना रहा है। वह उस पर दुकान और हाट लगाने वाला है।”
पेड़, कछुआ और मछली सबकी आँखे नम हो आयीं थी। वे अपने हालात से बेखबर हो नाव की बातों को सुनते जा रहे थे। नाव जैसे यहाँ पर थी ही नही। वह तो नदी के ख्यालों मे डूबी हुई नदी के शब्दों को दुहराती जा रही थी
“मैं अपने दर्द के साथ क्षण भर एकान्त मे भी नहीं रह सकती। मनुष्य मेरी ही जमीन पर मेरी ही दुर्दशा पर कहकहे लगायेगा। मुझ पर हँसेगा और प्रसन्न होने का स्वांग रचेगा। खा-खाकर मुझमे दोने और पत्तल फेंकेगा। यह सब मैं नही सह पाऊँगी। मानव का ‘सौन्दर्य’ अब समाप्त हो चुका है। उसने मेरा भी ‘सौन्दर्य’ समाप्त कर दिया है। अब मैं उसके लिए कोई सृजन नहीं करना चाहती। अब मैं जल्दी ही अपना अन्त कर लूंगी। मेरे बच्चों ! तुम सब मुझे छोड़कर चले जाओ। नही तो, तुम सब भी मारे जाओगे।”
कछुआ, मछली और पेड़ सभी, नदी की पीड़ा सुनकर सन्न रह गये थे।
“नदी हमेशा-हमेशा के लिए चुप हो गयी थी।”
यह आखिरी वाक्य बताते-बताते, नाव की आँखों का बरसता पानी बेहिसाब तेज हो गया था। नाव बहुत अधिक दुःखी थी। मछली और कछुआ, सुनते-सुनते दुःखी पेड़ के नीचे वहीं धप से बैठ गये थे। वे बहुत देर तक नही हिले थे।
थोड़ी देर बाद वे सब एक साथ उठ कर बोले ” हरितराज! अब आप ही बताइये हम सब और क्या कर सकते हैं?”
पेड़ कुछ न बोल सका था।
चारों तरफ सन्नाटा था। पेड़ भी अब चुप था। मछुआरा जा चुका था। बैराज पुल की सड़क वैसे ही भागती जा रही थी।
नाव ने सोच लिया था कि इन्हीं पत्थरों से टकरा-टकरा कर वह स्वंय को भी तोड़ लेगी।
नाव, कछुआ और मछली दुःखी मन से नदी के साथ शहीद हो जाने के लिए आगे बढ़ रहे थे। वे नदी को इन हालातों में अकेला नहीं छोड़ सकते थे। वे नदी के जनम-जनम के साथी थे। वे सभी सदैव-सदैव के लिए नदी के साथ रहना चाहते थे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
