मैं पराजिता नहीं हूँ-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Mein Parajeeta Nahi Hoon

Hindi Kahani: सविता  एक फौजी की पत्नी है जो अपने दो बच्चों के साथ अपने ससुराल में रहती है और उसके पति रामकेश जम्मू में तैनात है। उसके पति 4- 5 महीनों में अपनी पत्नी और बच्चों से मिलने गांव आते हैं। सविता के बच्चे ज्यादा बड़े नहीं है , बड़ा बेटा 7 वर्ष का और छोटा बेटा 5 वर्ष का है।
   अचानक भारत और पाकिस्तान में सीमा पर युद्ध छिड़ता है जिसमें सविता के पति शहीद हो जाते हैं। उसके पति का मृत शरीर लेकर सेना की गाड़ी गांव में आती है जहां पूरे सरकारी सम्मान के साथ उसके पति का दाह संस्कार किया जाता है और इस अवसर पूरे गांव के लोगों के साथ साथ सरकारी अधिकारी एवं सेना तथा पुलिस भी मौजूद होती है।पूरे गांव को अपने गांव के फौजी की कुर्बानी पर गर्व होता है और फौजी की जलती चिता देखकर गांव वालों की आँखों में भी आँसू आ जाते हैं।
         फौजी की मृत्यु के बाद कुछ दिन तक तो गांव वाले और उसके रिश्तेदार सविता की मदद की बात करते नहीं थकते थे , लेकिन अचानक सविता पर एक ऐसी बहुत बड़ी विपदा आती है जिसमें उसके बच्चों की मृत्यु उसका मकान जल जाने से हो जाती है। ऐसी मुसीबत में सविता का साथ देने के लिए उसके रिश्तेदार और गांव वाले नहीं आते हैं और उसके रिश्तेदार और गांव वाले सविता पर कई प्रकार की फब्तियां कसते है , सविता को डायन बताते हैं एवं सविता को गांव से बाहर निकाल देते हैं। गाँव वालों और उसके रिश्तेदारों के ऐसे व्यवहार से सविता के मन को धक्का लगता है लेकिन सविता अपने मन में एक आत्म विश्वास और उम्मीद भरकर फिर से जीवन को जीने का संकल्प लेती है।
 सविता संघर्ष करके एक सरकारी अधिकारी बनकर गांव वालों और उसके रिश्तेदारों के तानों का जवाब देती है। गांव वाले और उसके रिश्तेदार सविता के साथ किये गए उनके बुरे व्यवहार के लिए माफी मांगते हैं और सविता को अपने गांव के लिए आदर्श मानकर हर कार्य उसकी सलाह लेकर सविता को सम्मान देने लगते हैं।

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