Hindi Kahani: मेरा तबादला शहर से गांव में हो गया। ना चाहते हुए भी मुझे गांव में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकारी नौकरी जो ठहरी। गांव में मेरी मुलाकात फौजी दीदी से हुई। फौजी दीदी अनोखी थी। लगभग सत्तर की उम्र, तन पर सूती साड़ी, माथे पर चंदन का टीका, हाथ में बेत और होठों पर मुस्कान लिए पूरे गांव का हाल-चाल पूछती रहती। अपने बगीचे में उगी पालक मेथी साफ करके मेरे लिए लेकर आयी। “आपने क्यों तकलीफ की दीदी, मै साफ कर लेती।” -मैने ने कहा।
“तुमने किया मैंने किया एक ही बात है।” कहकर फौजी दीदी मुस्कुराते हुए आगे बढ गयी।
फौजी दीदी के झोले में किसी के लिए दवाई, तो किसी के लिए साफ की हुई सब्जियां, बच्चों के लिए पेन पेंसिल, गली के कुत्तों के लिए बिस्किट और भी न जाने क्या-क्या होता था। सच में फौजी दीदी मुस्कान का पिटारा थी। कहीं झगड़ा हो रहा हो तो हक से जाकर खत्म करवा देती। कहीं मनमुटाव होता जब तक सुलह न करवा देती, तब तक चैन से नहीं बैठती। शादी ब्याह के अवसर पर लोग उन्हें आदर से बुलाते। सभी उनका बहुत सम्मान करते और उनके कहे को कभी नहीं टालते।
मेरे मन में फौजी दीदी के बारे में जानने की उत्सुकता थी। उस दिन स्कूल से लौटते समय देखा, फौजी दीदी नीम के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर अंग्रेजी उपन्यास पढ रही है। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जिज्ञासावश कदम उधर मुड़ गये। अभिवादन कर उनके समीप बैठ कर झिझकते हुए पूछ लिया- “आपको अंग्रेजी आती है दीदी? आयेगी क्यों नहीं, आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की विधार्थी रही हूं।” उन्होंने गर्व से कहा।
“आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की!!!” सहसा मेरे मुंह से निकल गया। “फिर आप इस गाँव में कैसे आयी, अपने बारे में कुछ बताइए फौजी दीदी।”
“मेरे पापा देहली के एक कालेज में प्रोफेसर थे। शिक्षा की महत्ता जानते थे। मै पढ़ने में अव्वल थी।
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मुझे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढने का प्रस्ताव आया तो पापा ने तुरंत भेज दिया। मेरे दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे अक्सर देश भक्ति के किस्से सुनाते। पढ़ाई पूरी कर जब वतन लौटी तब बड़ी बड़ी कंपनी के जाॅब ऑफरआएं, एक दो कम्पनियों में काम भी किया पर मन को संतुष्टि नहीं माली। देश सेवा की ललक के चलते आर्मी में चली गयी। कारगिल के युद्ध में अपनी भूमिका बखूबी निभाईं, सुकून और धैर्य के साथ आर्मी सेवा पूरी हुई।
आर्मी से रिटायर होने के बाद यहां घूमने चली आई। ये मेरे दादाजी का गांव है। कुछ दिन रहने के लिए ही आई थी पर यहां से वापस नहीं लौट पाई। गांव की उन्नति के लिए काम करना मेरा ध्येय बन गया। यहां के बच्चों को अंग्रेजी सिखाने लग गई तो बच्चों की मैं फौजी दीदी बन गई। इन गांव वालों ने भी मुझे बहुत प्यार दिया अब यह गांव ही मेरा परिवार है।”
“आपने शादी नहीं की दीदी?- मन में दबा हुआ सवाल आखिर पूछ लिया।
“इस गांव की मिट्टी और देश ने मुझे इतना सम्मान और स्नेह दिया, मेरा दिल से नाता जुड गया फिर विवाह की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।” फौजी दीदी के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। आज भी फौजी दीदी मुझे बेहद याद आती है।
