Ek Nayi Subha
Ek Nayi Subha

Short Story in Hindi: श्वेता मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली, होशियार, आत्मनिर्भर और महत्वाकांक्षी लड़की थी। नोएडा की भागती-दौड़ती ज़िंदगी, ऑफिस मीटिंग्स, टार्गेट्स और ट्रैफिक में वो उलझ कर रह गयी थी। बाहर से उसके चेहरे की मुस्कान देखकर शायद ही कोई समझ पाता, वो अंदर से कितनी बेचैन है। एक दिन ऑफिस में अचानक उसे पैनिक अटैक आ गया।

चेकअप के बाद डॉक्टर ने कहा, “तुम्हें ब्रेक की ज़रूरत है, खुद पर थोड़ा ध्यान दो। पहले तो श्वेता ने डॉक्टर की इस बात पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब एक रात उसे फिर से बेचैनी और घुटन महसूस हुई तब उसने फैसला किया, अब पहले अपने आप पर ध्यान देना जरुरी है। उसने फटाफट इंटरनेट पर ढूंढना शुरू किया , तभी उसकी नज़र पड़ी उत्तराखंड के एक छोटा-सा गांव, कौसानी पर , जहाँ शान से खड़े पहाड़, लहराते हुए ऊंचे हरे-भरे पेड़, और शांति पसरी हुई है। अगले ही दिन उसने सीधे कौसानी के लिए टैक्सी पकड़ी और निकल पड़ी। इस बार वो बिना किसी प्लानिंग के भी सुकून से निकल पड़ी थी।

Short Story in Hindi
Love yourself

अक्टूबर के महीने में कौसानी के हरे-भरे पहाड़, साफ चमचमाते नीले आसमान और हवा में घुली भीनी-भीनी मिट्टी की खुशबू श्वेता को अंदर तक सुकून का एहसास दे रही थी। हर बार जब भी श्वेता किसी ट्रिप पर जाती तो सबसे पहले मोबाइल नेटवर्क के बारे में पता लगाती ताकि वहां से भी ऑफिस का काम करने में परेशानी ना हो। लेकिन इस बार वहां मोबाइल नेटवर्क ना होने की वजह से श्वेता बहुत खुश थी। वह एक होमस्टे में रुकी, जहाँ एक महिला बसंती दीदी उस जगह का ख्याल रखती थीं।

पहले तो श्वेता को वहां की सादगी थोड़ी अजीब लगी । न इंटरनेट, न टीवी, न ट्रैफिक का कोई शोर। पर अगले दिन सुबह, जब उसने सूरज को हिमालय की चोटियों से अंगड़ाई लेकर बाहर आते हुए देखा, तो उसके दिल में पहली बार एक सुकून की लहर दौड़ गई। धीरे-धीरे उसकी दिनचर्या ही बदल गयी। सुबह बिना किसी आलस और बेचैनी के जल्दी उठना, पहाड़ी रास्तों पर दूर तक चलना, वहां के बच्चों के साथ कंचे खेलना, और शाम को बसंती दीदी के साथ बैठकर गाँव की अलग-अलग कहानियाँ सुनना।

बसंती दीदी ने एक दिन पूछा, शहर में क्या करती हो बेटी?

श्वेता ने जवाब दिया, “काम करती हूँ… बहुत सारा काम।

दीदी हॅसने लगी, फिर बोलीं ,काम तो ज़रूरी है, लेकिन खुद से दूर होकर नहीं। वहां सब कुछ है, फिर भी तसल्ली नहीं, और यहां कुछ नहीं, फिर भी चैन है।

श्वेता चुपचाप उनकी साधारण पर गहरी बात को सुनती रही।

अगली शाम वह अकेली ही एक पहाड़ की चोटी पर जा पहुंची और वहां बैठकर आँखें बंद कर के अपने मन की उलझन को बाहर निकालने लगी। ठंडी हवा के झोंके के साथ मन की बेचैनी भी कहीं दूर जा कर उड़ गयी।

हर बार आँख बंद करने पर उसके मन में उलझन बेचैनी और ऑफिस के काम की टेंशन ही चलती थी, लेकिन आज उसने अपने आप को महसूस किया था।

nature
Stay connected with nature

उसके अंदर कुछ बदलने लगा था , अगले दिन उसने गांव के बच्चों को कहानी सुनाने के लिए बुलाया । बच्चों ने उसे घेर लिया। उनकी मासूम आँखों में जो जिज्ञासा थी, उसने श्वेता का दिल छू लिया। उस दिन वो समझ पाई असली खुशी देना है, पाना नहीं। उसने बसंती दीदी से कहा, “आपका गांव तो मुझे धीरे-धीरे बदल रहा है।

दीदी मुस्कराईं, “और बोलीं , अब  तू खुद को सुन पा रही है, अपने बारे में कुछ अच्छा महसूस कर पा रही है, क्या ये बदलाव तुझे ख़ुशी नहीं दे रहा है। श्वेता ने दीदी के गालों को प्यार से खींचा और उन्हें कस कर गले लगा लिया। दो हफ्ते बाद जब श्वेता वापस लौटी, तो उसके चेहरे पर चमक लिए हुए अलग ही तरह की मुस्कान थी।  उसने ऑफिस जॉइन किया, पर अब वह हर तीसरे महीने एक हफ्ते की छुट्टी लेकर डिजिटल डिटॉक्स पर जाती है, खुद से मिलने, पहाड़ों से बात करने।

उत्तराखंड से ताल्लुक रखने वाली तरूणा ने 2020 में यूट्यूब चैनल के ज़रिए अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद इंडिया टीवी के लिए आर्टिकल्स लिखे और नीलेश मिश्रा की वेबसाइट पर कहानियाँ प्रकाशित हुईं। वर्तमान में देश की अग्रणी महिला पत्रिका...