शोना बाबू- हिंदी व्यंग
Shona Babu

Hindi Vyang: विक्की पृथ्वी पर जब मेरा पदार्पण हुआ तो हमारे माता-पिता रिश्तेदारों ने हमें पालने से पहले मुगालता पाल लिया। मां को लगा मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा तो पूज्य पिताश्री मुझमें अभियंता का भविष्य तलाशने लगे। बड़ी बहन आईएएस का तो बुआ वर्दी धारी बनने की गैर-आधिकारिक घोषणा तक कर बैठी। सभी को हमारे गीले नैपकिन और कच्छा की बजाय सूखे करियर की चिंता ज्यादा थी।
नामकरण षष्ठी पूजा के दौरान पंडित जी को ना जाने प्रभु श्रीकृष्ण की तरह हमारे मुखमंडल में कौन-सा ब्रह्माण्ड दिख गया कि उन्होंने तत्क्षण ही मुझे ‘भविष्य में बड़ा आदमी बनने की घोषणा कर डाली।
बहरहाल उम्र बढ़ने के साथ-साथ मेरे मन मस्तिष्क में जीवन का लक्ष्य गिरगिट और दल-बदलू नेता की तरह समय और परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तनशील रहा। मुझे सबसे ज्यादा किसी ने प्रभावित किया तो वो था सरकारी बाबू! फिर क्या किशोरावस्था में ही हमने सरकारी बाबू बनने की कसम खा ली।
चहुओर ‘बड़ा बाबू, बड़ा बाबू की त्राहिमाम मध्यम ध्वनि के साथ दर्जनों आगंतुकों की भीड़ के बीच लकड़ी की कुर्सी पर विराजमान सरकारी महामानव। वो बोलते कम और थूकते ज्यादा थे। उनके दाएं-बाएं अधीनस्थ कर्मचारी बड़े बाबू का यशोगान कर रहे थे ‘अरे बाबू ने कह दिया तो हंड्रेड वन परसेंट काम हो जाएगा, अफसर का क्या, उनको तो सिर्फ हस्ताक्षर करना होता है बाकी लिखा-पढ़ी तो बाबू ही करते हैं। बाबू ने जो फाइल पर लिख दिया आज तक कभी किसी अधिकारियों ने नहीं काटा है, बाबू ये है तो बाबू वो है।
बाबू ने पिताजी की तरह कई अन्य समस्याग्रस्त लोगों की समस्या का समाधान चाय-पानी की क्षमता के अनुसार चुटकियों में कर डाला। बाबू कितनी महंगी चाय पीते है और कितना चाय पीते हैं यह उसी दिन पता चला। ‌‌
खाने-पीने की क्षमता देख मैं इतना समझ गया कि बाबू का पेट- लंबोदर से भी ज्यादा बड़ा और गहरा होता है। बाबू ने चाय पानी की सेवा ना दे सकने वाले असमर्थ पीड़ितों के लिए दूसरे सप्ताह या अगले माह दर्शन देने का प्रावधान तय कर रखा था।
बड़े बाबू का रूतबा और जलवा देख मैंने यूपीएससी, बैंकिंग, रेलवे की बजाय राज्य कर्मचारी चयन आयोग के एलडीसी/यूडीसी पद की वैकेंसी पर बगुला की तरह निगाहें टिका दी।
बड़े बाबू का काम निष्पादित करने की जो गति होती है। मैंने प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी उसी रफ्तार से जारी रखा। किंतु हमारी किस्मत भी विजय माल्या की तरह धोखेबाज निकली। पेपर अच्छा नहीं जा सकने के कारण दर्जनों बार पीटी तक पास नहीं कर पाया और जब कभी पेपर अच्छा जाता तो पता चलता कि परीक्षा पूर्व ही प्रश्न पत्र व्हाट्स के माध्यम मार्केट में उपलब्ध हो जाया करती थी।
दो महीने बाद एक दिन पिताजी हाथों में अखबार लेकर हड़बड़ाते हुए मेरे पास पहुंचे। उनके हाथों में अखबार देख मैं समझ गया कि रिजल्ट घोषित हो गया है। मैंने झट से पिताजी का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहा। अरे पहले यह खबर तो पढ़ो, पिताजी ने आशीर्वाद की बजाए ज्ञान दिया।
मैंने मुस्कुराते हुए पेपर हाथ में लिया, जैसे ही मैंने खबर पढ़ी, पैरों तले जमीन खिसक गई। राज्य सरकार ने वित्तीय संसाधन की अनुपलब्धता के कारण उच्च वर्गीय लिपिक पद को विलोपित करते हुए पुरानी वैकेंसी और ली गई परीक्षा को रद्द कर दिया था।
किंतु असफलता के दशकों बाद भी हताश और निराश होने की बजाय मैं खुशहाल जीवन जी रहा हूं। मैं खुश और आश्वस्त हूं कि ‘बाबू कुछ पैसा दे दो का उद्घोष करने वाले भिखारी और ‘शोना-बाबू का संबोधन करने वाली इकलौती बीवी के लिए कल भी मैं बाबू था, आज भी बाबू हूं और मरते दम तक बाबू ही रहूंगा।

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