Hindi Kahani: रात के लगभग बारह बज रहे थे। शकुन की आंखों से नींद गायब थी। कुछ देर तो वह पलंग पर यूं ही लेटी रही, शायद नींद आ जाए पर नींद तो जैसे रूठ गई थी। पलंग के सामने की दीवार पर लगी बड़ी सी घड़ी की सुइयां अपनी दूरी पर घूम रही थी धीर-धीरे। साइड की दीवाल पर लगी बड़ी सी पेंटिंग में लड़का फूलों का गुच्छा लिए अपनी प्रेयसी को निहार रहा था और प्रेयसी रूठने वाले अंदाज में खड़ी थी, समंदर की लहरों को देखते हुए।
कुछ देर शकुन उस पेंटिंग को देखती रही लेकिन नींद ने कसम ही खा ली थी कि वह नहीं आएगी तो उठकर वह बालकनी में आ गई। सारा शहर रोशनी से जगमग-जगमग कर रहा था। वैसे भी कहा जाता है कि मुंबई रात को सोती नहीं है। मुंबई रात भर जागती है। शकुन ने सोचा कि चाय ही बनाकर पी लेती है नींद तो आ नहीं रही है।
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बेटे बहू ने कमरे में ही गर्म पानी की केतली, दूध, शुगर, चाय पत्ती के छोटे-छोटे पैकेट रखे थे। टेबल पर सजा कर। कर मग में डाला चम्मच से मिलाने लगी।
अब बेटे बहू को कौन समझाए कि गैस पर खोलती चाय अदरक-इलायची के साथ कितनी स्वाद देती है? लेकिन महानगरों में इन सब चीजों से समय बचता है। एक बार बेटे ने समझाया था, ‘मां अब इन कामों के लिए समय नहीं है। समय कितना आगे चल रहा है।
वह चुप रह गई थी। वह यह बोलना चाह रही थी कि बेटा समय के साथ तूने मॉम बोलना नहीं सीखा बोलता तो मां ही है। सुबह जब नींद खुली तो देखा बेटा गीत उसके कमरे की बालकनी में खड़ा है। शकुन ने देखा सुबह के सात बजने वाले थे। आज नींद लेट खुली शायद रात को नींद टूट जाने से।
‘मां क्या हुआ? तबीयत ठीक है तुम्हारी? गीत थोड़ा परेशान होकर बोला।
‘हां बेटा, तबीयत तो ठीक है, रात में नींद टूट गई थी। इसलिए थोड़ी थकावट है। बाकी कुछ खास नहीं शकुन बोली।
‘चलो, फिर आ जाओ फटाफट डायनिंग रूम में। सुरभि ने चाय नाश्ता रेडी कर दिया है।
‘ठीक है बेटा कहकर शकुन वॉशरूम में घुस गई। चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे पड़े तो चेहरा थोड़ा फ्रेश मालूम हुआ, फिर अच्छे से चेहरा धो कर वह डाइनिंग रूम में आ गई। सुरभि ने चाय और नाश्ता टेबल पर सजा रखा था पोहे और सैंडविच। सुरभि ने शकुन को आते देखा तो तुरंत ही बोल उठी, ‘मम्मा नाश्ता कर कीजिए।’
‘ना बेटा, अभी मैं सिर्फ चाय लूंगी, नाश्ते का मन नहीं है। शकुन बोली। ‘क्यों क्या हुआ? आपकी तबीयत तो ठीक है? सुरभि घबरा गई।
‘हां, बेटा तबीयत ठीक है तुम लोग नाश्ता करो, फिर तुम लोगों को ऑफिस भी जाना है। शकुन ने चाय का कप हाथ में लेते हुए कहा।
‘बेटा सुरभि, आज लंच में क्या बनेगा? तुम कहो तो मैं कुछ बना लूं शकुन ने जैसे गिड़गिड़ाने वाले स्वर में कहा।
‘मां, तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुम आराम करो बस। गीत मुस्कुराता हुआ बोला। बेटे को मुस्कुराता देख शकुन खुश हो गई बोली, ‘बेटा, मैं सारा दिन बोर हो जाती हूं।
‘अरे मां, टीवी देखो घूमने-फिरने निकलो मुंबई। दोनों ऑफिस निकल जाते हैं।
मेड भी आने वाली थी। शकुन ने सोचा मेड के आने के पहले वह नहा-धोकर फ्रेश हो ले। यह सोचकर वह वॉशरूम में घुस गई। तभी उसे लगा कि आईने में उसकी छवि के साथ एक छवि दूसरी भी है राकेश की, उसके पति की। शकुन को लगा जैसे राकेश उसे बोल रहे हैं शकुन क्या हुआ? क्यों इतनी टूटी-बिखरी हो? मैं चला गया तो क्या मेरी यादें हैं तुम्हारे साथ। मैं हमेशा ही तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे दिल में। लेकिन यादों के सहारे रहा तो जा सकता है। साथ जीने के लिए तुम्हारा साथ चाहिए था और तुम बीच मझधार में छोड़ कर चले गए। शकुन की आंखों से आंसू निकल कर गालों पर बह निकले।
शकुन वॉशरूम से निकलकर बाहर आई तो थोड़ी फ्रेश महसूस कर रही थी। उसने सोचा किचन में जाकर एक कप बढ़िया-सी चाय बनाकर पी ली जाए। यह सोचकर वह किचन में चली गई। चाय का पानी चढ़ा कर उसने अदरक-इलायची कूटकर चाय में डाली और उबलने के लिए रख दी। इतने में डोर बेल बजी, शकुन समझ गई मेड होगी, दरवाजा खोल कर किचन में आ गई।
शकुन की चाय लगभग खत्म हो रही थी कि मीना अपना कप लेकर ड्राइंग रूम में आ गई। आते ही उसने स्टार प्लस चैनल लगा दिया फिर चैनल बदलने में लग गई। शकुन जानती थी कि वह अगर किचन के कामों में हाथ भी बताएगी तो भी मीना कुछ करने नहीं देगी। बेटा-बहू ने साफ-साफ समझा रखा था कि मां को आराम करने दो परेशान मत करो। वह परेशान हो उठी है। इस आराम से उसे हाथ-पैरों में जकड़न-सी महसूस होती है। वैसे ही जैसे अच्छी खासी मशीन को चलने के बजाय एकदम बंद कर दिया जाए।
वह सोचती है कि लंच बनाने के बाद वह डाइनिंग टेबल सजा दे। लेकिन बहू को ये भी पसंद नहीं, एक बार उसने किया था लेकिन बहू ने कहा, ‘मॉम किसी भी बर्तन में खाना सर्व नहीं करना है। ना ही कोई भी डोंगे यूज करने हैं।
‘बेटा तू ऑफिस से थक जाती होगी। शकुन समझाने की कोशिश की थी।
‘नहीं, मैं नहीं थकती, मैं कर लूंगी सुरभि बोली।
कुछ भी काम नहीं है, उसके लिए अंदर ही अंदर वो उदास हो जाती है।
शकुन ने सोचा पेपर पढ़ लेती है पर उसमें भी उसका मन नहीं लगा। फिर वह उठकर बालकनी में आ गई। समंदर चमकीला हो उठा था और धूप से चमचमा रहा था। शाम के सुरमई अंधेरे में भीड़ बढ़ने लगती थी। कई बार शकुन बेटे बहू के साथ मरीन ड्राइव टहलने गई थी। बाकी तो दोनों बहुत व्यस्त रहते हैं अपने जॉब में।
समंदर की लहरों के साथ उसके दिल की लहरें उठ रही थीं। वो लगभग डेढ़ साल पहले ही मुंबई आई थी। उसके सामने घूमने लगी वह सभी तस्वीरें, जिसमें वह अपने पति राकेश के साथ राजेंद्र नगर (इंदौर के नजदीक) के बड़े से मकान में रहती थी। बेटे गीत का जन्म भी उसी मकान में हुआ था। उसे घर के आंगन में पलता-बढ़ता देखकर वह बहुत खुश होती थी। घर उसका उसकी पसंद से ही बना था, जिसमें आंगन उसने बनवाया था। सारे पौधे उसी की पसंद के थे। उनकी कॉलोनी के सड़क के उस पार दिहाड़ी मजदूर और फैक्टरी में काम करने वाले लोगों की बस्ती थी।
उस बस्ती के बच्चों को शकुन पढ़ाया करती थी जिससे उसकी शिक्षा का उपयोग भी होता था और मन में एक सुकून भी रहता था। वो वह समाज के लिए कुछ सकारात्मक कर रही है।
शकुन के पति राकेश की इंदौर में मोबाइल की बड़ी सी शॉप थी। रुपये-पैसे की कोई कमी नहीं थी। रोज सुबह ग्यारह बजे वह शॉप पर जाते थे और रात में लगभग दस बजे तक घर आते थे। दो वर्कर भी थे शॉप पर।
जब भी मौका मिलता नन्हे गीत को लेकर दोनों लॉन्ग ड्राइव पर निकल जाते थे। देखते-देखते कब गीत बड़ा हो गया पता ही नहीं चला। कहते हैं कि सुख के दिन पंख लगाकर उड़ जाते हैं और दुख की एक रात भी भारी लगती है पहाड़ जैसी।
गीत ने इंदौर के ही प्रसिद्ध कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग किया था और मुंबई की एक अच्छी कंपनी में उसे जॉब भी मिल गया था। जबकि राकेश चाहते थे कि गीत मोबाइल शॉप पर उनके साथ काम करे जो गीत को पसंद नहीं था। राकेश ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई, उसे तो बस गीत की इच्छा और खुशियों का ध्यान रखा था। गीत ने जॉब लगने के लगभग सात महीने बाद ही उसी कंपनी में काम करने वाली सुरभि को पसंद कर लिया था। राकेश ने बड़े ही धूमधाम से शादी भी करवा दी। सुरभि के माता-पिता भोपाल के थे। उनका खुद का कपड़ों का व्यापार था। गीत जैसा दामाद पाकर वो भी खुश थे। सुरभि का एक बड़ा भाई था। उसे भी गीत पसंद आया था।
सब कुछ बढ़िया चल रहा था कि शादी के कुछ दिनों बाद ही गीत सुरभि के साथ मुंबई चला गया उसकी जॉब मुंबई में ही थी।
जीवन हंसी खुशी से गुजर रहा था। गीत की शादी को कुछ महीने ही हुए थे। शकुन के जीवन में वह मनहूस रात आ गई थी। एक रात जब राकेश इंदौर से राजेंद्रनगर आ रहे थे तो उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। चार दिन जीवन और मौत से संघर्ष करने के बाद राकेश ने शकुन को सदा के लिए अकेला छोड़ कर संसार को अलविदा कह दिया। शकुन के जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
लगभग महीने भर बाद गीत और सुरभि ने इंदौर वाली शॉप किराये पर दे दी। राजेंद्र नगर वाले घर में ताला लग गया।
‘मॉम, क्या बालकनी में ही बैठी रहोगी? लंच नहीं करना है? पीछे देखा तो सुरभि, गीत लंच के लिए आ गए है। वह उसी समय खड़ी हुई और डाइनिंग रूम में आई।
डाइनिंग टेबल सुंदर तरीके से सजी हुई थी, वेजिटेबल रायता, आलू-गोभी-मटर की सब्जी, परतदार परांठे, मसाला खिचड़ी, मिक्स दाल, गीत और सुरभि ये देख रहे थे कि शकुन अनमनी सी है।
‘मां क्या हुआ? उदास क्यों हो? गीत ने प्यार से पूछा। खाना खाओ मां। ये कहकर गीत, शकुन के लिए खाने की प्लेट सजाने लगा।
शकुन बेटे का प्यार देखकर ममता से भर उठी, बोली, ‘बेटा अब तुम लोग भी खाओ, फिर तुम लोग ऑफिस भी जाओगे। शकुन ने खाना शुरू किया। खाने के बाद फ्रूट कस्टर्ड मीना कटोरिया में सजा कर ले आयी। इसके बाद वो दोपहर के जूठे बर्तनों को साफ करने में लग गई। सुरभि और गीत ऑफिस जा चुके थे।
शकुन जानती थी कि लगभग पांच बजे मेड भी डिनर की तैयारी कर चली जाएगी। शाम को सुरभि डिनर बनाएगी उसने कहा भी कई बार कि डिनर वह बना लेगी लेकिन फिर भी सुरभि पसंद नहीं करती थी कि मॉम कोई भी काम करें, वो कहती थी किचन में हर एक चीज उसकी पसंद की है। हर बर्तन, क्रॉकरी सजी हुई चाहिए, थोड़ा भी डिस्टर्ब करना उसे पसंद नहीं आता। वह चाहती है कि सब कुछ वही करे, उसे किचन में बिखराव पसंद नहीं था। सजा सजाया खूबसूरत किचन वो पसंद करती है। इतना साफ कि मानो यूज ही न हुआ हो।
लंच के बाद वह अपने रूम में आ गई थी। आराम के लिए मोबाइल हाथ में लिया उसने सोचा कुछ पुराने गीत सुन लेती हूं ईयर फोन लगाकर।
पुराने गीत राकेश को भी पसंद थे। दोनों जब लॉन्ग ड्राइव पर जाते थे पुराने गीत ही सुनते थे।
‘तुम ही मेरी मंजिल, तुम्ही मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो….।
यह गीत बहुत पसंद था। शकुन को भी और राकेश को भी। आज शकुन ने कई बार गीत सुना उसकी आंखों से आंसू बह कर तकिया भीगने लगा। फिर इयरफोन निकाल कर उसने आंखे बंद कर ली और सोने की कोशिश करने लगी।
जब उसकी आंखें खुली तो सिर भारी-भारी लग रहा था। मोबाइल देखा तो शाम के साढे पांच बज रहे थे। मतलब वह ढाई घंटे सोती रही। चाय बनाने के इरादे से उसने केतली में पानी गर्म किया।
चाय का कप लेकर वह बालकनी में आ गई। शाम हल्की-हल्की सुरमई होने लगी थी। शकुन सोच रही थी कि इतनी मानसिक उथल-पुथल के बीच खुद को मजबूत बनाए रखना बहुत कठिन है।
इतने में शकुन का मोबाइल बज उठा देखा तो बेटे गीत का फोन था।
‘हां बेटा, शकुन बोली।
‘मां मेड डिनर की तैयारी करके गई क्या?
‘हां बेटा, करके गई होगी। शकुन बोली।
‘तो ऐसा करो मां हम आज यहां के फेमस रेस्टोरेंट से खाना लेकर आ रहे हैं। वो सब फ्रिज में रख दोÓ उसके बाद गीत का फोन कट गया।
‘ठीक है बेटा, कहकर शकुन चुप हो गई।
फिर चाय का कप लेकर किचन में सिंक में रखने के लिए गई तो देखा मेड ने डिनर के लिए सब्जी काट रखी थी। आटा लगा रखा था। वो सब फ्रिज में रखकर वह फिर बालकनी में आ गई।
लगभग साढे सात बजे गीत सुरभि दोनों आ गए थे। हाथों में खाने के पैकेट लिए शकुन पैकेट हाथ में लिए डाइनिंग टेबल पर रख कर बोली, ‘बेटा तुम दोनों फ्रेश हो लो। मैं खाना लगा देती हूं, ये कहती हुई किचन में जाने लगी।
‘नहीं-नहीं मां, आप बैठो मैं लगा दूंगी सुरभि बोली।
‘तू थकी है, ऑफिस से आई है, बहू को प्यार से देखते हुए शकुन ने कहा।
‘आप रहने दो मां। आप परेशान ना हो। प्यार से कह कर सुरभि चेंज करने अपने रूम में चली गई।
शकुन के भीतर कहीं कुछ टूट सा गया। क्या उसे सलीका नहीं टेबल सजाने का? क्या वो पहली बार टेबल सजा रही है? राकेश के फ्रेंड फैमिली सहित घर पर आते थे। खाने की तारीफ तो करते थे, साथ ही टेबल की सजावट की तारीफ भी करते थे। क्या वह भूल गई है सब डेढ़ साल में?
इतने में सुरभि चेंज करके आ गई थी। गीत भी आ गया था। इतने में गीत के मोबाइल पर उसके ऑफिस से फोन आया और वह उठकर बालकनी में बात करने चला गया।
सुरभि खाने के पैकेट खोल कर टेबल पर सजाने में लगी थी। साथ ही साथ बात भी करती जा रही थी, ‘मॉम, यह मेरा फ्लैट है। मेरा सपना था कि मेरे घर को मैं ही सजाऊ-संवारूं। एक-एक चीज मेरी पसंद की हो, हर रूम में मेरी पसंद का सामान और सजावट हो। आपने गीत और मेरे लिए बहुत कुछ किया है। घर के लिए हमेशा खटती रही हो। अब आप आराम करो सिर्फ आराम।
शकुन के होठों पर एक फीकी मुस्कान आकर चली गई। वह सोचने लगी उसकी उम्र कुल बावन साल की है। बावन साल इतने अधिक भी नहीं होते कि दिन भर आराम ही आराम करती रहे। सरकार भी नौकरी से रिटायर नहीं करती आठ दस घंटे काम लेती है। फिर वह क्यों इतना आराम करे? उसकी हॉबी उसकी खुशियां क्या राकेश के साथ ही मर गईं, फिर इस उमर में भी लोग अपनी हॉबी की शुरुआत भी करते हैं। वह खुद क्यों इतनी अपाहिज हो गई है? जीवित रहना छोड़ दे?
‘आओ मां, गीत की आवाज कानों में पड़ी। गीत ने मां के कंधे पर हाथ रखा।
‘क्या हो जाता है मां आपको? गीत परेशान था।
खीर का डोंगा उठाते हुए गीत बोला, ‘मां मोबाइल की शॉप निकाल दें? क्या करना है उसका? आपको तो यहीं रहना है। अकेले आपको वहां नहीं रहने देंगे। गीत बोला ।
‘हां मॉम, आपको कोई तकलीफ है यहां? सुरभि बोली।
‘हम दोनों आपका पूरा ध्यान रखते हैं। आपको कोई काम नहीं करने देंगे हम। सुरभि प्यार से बोली।
‘बेटा मुझे यहां कोई तकलीफ नहीं है। तुमने मुझे बहुत प्यार से रखा है लेकिन मुझे भी मेरा कोना चाहिए। मेरा घर, मेरी हॉबी जो राजेंद्र नगर में है। मेरे आंगन वाले घर में है। शकुन ने प्यार से गीत को कहा।
‘मां, यह क्या कह रही हो तुम? गीत के चेहरे पर आश्चर्य था।
‘हां बेटा, मैं भी एक्टिव रहना चाहती हूं, मेरी उम्र इतनी भी ज्यादा नहीं कि मैं दिन भर आराम करती रहूं। घर का कोई काम भी ना करूं।
‘बेटा मेरा राजेंद्रनगर के लिए टिकट रिजर्वेशन करवा दे, मैं वहीं रहूंगी और तुमसे मिलने भी आती जाती रहूंगी। तेरे पापा की भी यादें जुड़ी हैं उस घर से। मोबाइल शॉप के लिए किरायेदार को नोटिस दे दो। दो महीने बाद वो शॉप खाली कर दे। शॉप पुराने वर्कर के साथ मैं देखूंगी। शाम को बस्ती के बच्चे भी पढ़ने आएंगे। शकुन ने अपना निर्णय सुनाया। गीत मां को जानता था। मां अपने निर्णय पर हमेशा अडिग रहती थी। शकुन संतुष्ट थी, उसे उसका कोना मिल गया था।
