चाय दुनिया भर में पानी के बाद सर्वाधिक पिया जाने वाला पेय है। प्राय: डॉक्टर इसे कम पीने अथवा छोड़ने का परामर्श देते हैं परंतु चाय का प्रचलन अब इतना बढ़ चुका है कि यह अमीर-गरीब दोनों के लिए जिंदगी की जरूरत बन गई है। अब तो किसी के यहां बैठते ही चाय पीना-पीलाना आम रिवाज सा बन गया है। बिना इसके व्यक्ति स्वयं को खाली-खाली अनुभव करता है। आज हर गांव-शहर में चाय की दुकानों का बोलबाला है। थोड़ी सी थकावट हुई नहीं कि चाय को जी ललचाया।

कहां हुआ चाय का पहला उपयोग?

चाय जो वनस्पति शास्त्र में ‘कैमोलिया साइनेन्सिस’ कहलाती है का पहला पौधा कहां उपजा और सर्वप्रथम चाय का उपयोग कहां हुआ, इस संबंध में अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चाय का प्रचलन चीन से हुआ। चीन में चाय का उपयोग चौथी शताब्दी से शुरू हुआ।

चाय के पहले पौधे की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मत होने पर भी इस बारे में प्राय: सभी सहमत हैं कि चाय का पहला पौधा एशिया में उपजा और चाय का प्रयोग भी एशिया में ही हुआ। लेकिन चाय को संसार में फैलाने का श्रेय यूरोपीय देशों को जाता है। सोलहवीं शताब्दी में जब यूरोपीय देशों का ध्यान एशियाई देशों की ओर गया और वहां के यात्री भारत, जावा, सुमात्रा, चीन आदि देशों तक पहुंचने लगे, तो सन् 1559 में चाय यूरोप की जानकारी में आयी। तदोपरांत डच व्यापारी चाय को यूरोप ले जाने लगे और वहां के विभिन्न नगरों में चाय का प्रयोग आरंभ हुआ किन्तु उन दिनों चाय का पीना साधारण व्यक्ति के बस की बात न थी। यह इतनी महंगी थी कि केवल सम्पन्न व्यक्ति ही विशेष अवसरों पर चाय पीते थे।

सन् 1664 में इगलैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय को भेंट करने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी के गवर्नर से 2 पौंड 2 औंस (लगभग 900 ग्राम) चाय 85 शिलिंग में खरीदी थी। शुरू-शुरू में चाय के महंगेपन के कारण यह अमीर लोगों तक ही सीमित थी। प्रो. नार्थकोट पर्किसन के अनुसार संभवत 1784 और 1780 के बीच चाय महलों से निकल कर झोंपड़ियों तक पहुंची। इन दिनों चीन देश की चाय ईस्ट इण्डिया कंपनी द्वारा विदेशों में पहुंचती थी। इस बीच ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी इस बारे में -सोच -विचार कर रहे थे कि चाय का उत्पादन भारत में ही बड़े पैमाने पर क्यों न आरम्भ कर दिया जाए। सन् 1788 में सर जोसफ बैक्स ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सुझाया था कि ‘चाय की खेती कंपनी के संरक्षण में भारत में आरम्भ की जाये’ किन्तु कंपनी इस बात पर सहमत न हुई क्योंकि चीन के चाय के व्यापार पर उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार था ।

ईस्ट इंडिया कंपनी अमेरिका के ब्रिटिश उपनिवेशों को चाय बेचकर बहुत लाभ कमाती भी। सन् 1766 ई में ब्रिटेन ने उस चाय पर एकाएक कर बढ़ा दिया तो उपनिवेशियों ने चाय खरीदने से इन्कार कर दिया और बोस्टन की बदंरगाह पर चाय की सैकड़ों पेटिया विद्रोहियों ने समुद्र के हवाले कर दीं। यह घटना अमेरिका के इतिहास में ‘बोस्टन टी पार्टी’ के नाम से जानी जाती हैं।

चाय के समर्थक

  • ब्रिटिश म्यूजियम में सन् 1868 का एक दुर्लभ हस्तलेख हैं जिसमें चाय की प्रशंसा करते हुए लिखा है- ‘यह बिना वक्त आने वाली नींद को भगाती है तथा नजर को तेज करती है।’
  • विलियम चतुर्थ के शासनकाल में दोपहर बाद चाय पीने का फैशन बैडफोर्ट डचैस ने चलाया। दोपहर और शाम भोजन के बीच जब दिल बैठने लगता तब उसके इलाज के लिए चाय का प्रयोग किया गया था।
  • विश्वविख्यात लेखक जॉन रस्किन चाय को इतना पंसद करते थे कि उन्होंने लंदन के पैड्रिनाटन स्ट्रीट में गरीबों के लिए चाय की एक दुकान खोली थी।
  • द्य डॉ. सैम्युअल जॉनरान अपनी चाय पीने की आदत का जिक्र कर बहुत खुश हुआ करते थे। वह अपने बारे में कहा करते थे कि ‘मैं तो चाय के बिना रह ही नहीं सकता। मुझे तो आधी रात में इससे आराम ही मिलता है और मैं सुबह अपनी आंख चाय पीकर ही खोलता हूं।’
  • विश्वविख्यात सेना नायक वैलिंगटन के ड्यूक जितनी भी लड़ाइयों में गए अपने साथ बोरियों में भरकर चाय ले गए। वे अपने फौज के अफसरों से कहा करते थे कि ‘चाय पीने से मेरा दिमाग ठीक रहता है।’
  • महारानी विक्टोरिया के प्रधानमंत्री ग्लैडस्टन अपने साथ हमेशा चाय की बोतल रखते थे। वे उस बोतल के साथ अपने पांव गर्माया करते थे और रात को बीच-बीच में चाय की चुस्कियां लिया करते थे।
  • चाय के शौकीन सिडनी स्मिथ कहा करते थे – ‘मैं तो ईश्वर को हजार धन्यवाद देता हूं, जिसने मुझे दुनियां में चाय के रिवाज से पहले पैदा नहीं किया।’
  • लार्ड माउंटबैटन कहा करते थे कि ‘अगर कोई मुझसे पूछे कि पानी के अलावा आप कौन सा दूसरा पेय चुनेंगे और मुझसे जिंदगी के शेष दिनों के लिए केवल एक ही पेय चुनने को कहा जाए, तो मैं बेझिझक चाय को ही चुनूंगा।’
  • कनयूशियस चाय की प्रशंसा में कहते हैं – ‘अगर कोई अजनबी आपसे कहे कि वह प्यासा है तो उसे एक प्याला चाय दे दें।’

चाय के विरोधी

यह बातें तो चाय के पक्ष में थी लेकिन इसके विपक्ष में भी बहुत कुछ कहा गया है। 

  • गांधीवादी, चिंतक, योग्य एवं अनुभवी राजनीतिज्ञ पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई का कहना है – ‘यदि कोई मुझे संसार की विषैली चीजों की सूची बनाने को कहे तो मैं चाय को प्रथम स्थान पर रखूंगा।’
  • डॉ. हैनरी मिलर के अनुसार – ‘चाय सेवन करने वालों को स्वप्नदोष, वीर्य शैथिल्य, नपुंसकता आदि बिमारियां हो जाती हैं।’
  • डॉ. मारिश फिशबैन – चाय से ब्लड प्रेशर बढ़ता है।
  • महर्षि दयानंद – चाय से बुद्घि का नाश होता है।
  • डॉ. बी. डब्यू. रिचर्डसन – थके हुए मस्तिष्क को विश्राम की जरूरत होती है तो चाय उसे बलात् कार्य करने के लिए बाध्य करती है, जिसका परिणाम धीरे-धीरे मस्तिष्क को निकम्मा बनाता है।
  • डॉ. एडवर्ड स्मिथ – चाय पीते ही चुस्ती लगती है किन्तु बाद में जो थकान आती है, उससे शरीर बहुत दुर्बल हो जाता है।

भारत चाय का सबसे बड़ा उत्पादक

भारत मे चाय अमीरों और गरीबों का प्रमुख पेय है। भारत चाय का सबसे बड़ा उत्पादक ही नही बल्कि उपभोक्ता भी है। यहां चाय की खेती सर्वप्रथम असम में की गयी। दार्जिलिंग में चाय की खेती अंग्रेजों ने 1840 ई के आसपास आरम्भ की। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले की चाय विश्व प्रसिद्घ तथा भारत के प्रमुख निर्यातों में से एक है। दार्जिलिंग जिले में करीब 90 चाय बागान हैं जिनमें करीब 2 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन प्रतिवर्ष होता है। यहां पैदा होने वाली चाय ‘आर्थोडोक्स टी’ कहलाती है। इसे लम्बी पत्ती वाली चाय भी कहा जाता है। इस चाय में रंग कम आता है लेकिन इसका फ्लेवर (महक) सारे विश्व में प्रसिद्ध है। इसी कारण इस चाय की बहुत मांग है। 

चाय आज भारत का महत्त्वपूर्ण उद्योग है। अनुमानत: 25 लाख लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। भारत इंगलैंड, संयुक्त अरब गणराज्य, रूस, अमेरिका, पूर्वी यूरोप, सूडान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, ईरान, ट्यूनिशिया, पश्चिमी जर्मनी आदि देशों को चाय का निर्यात करता है। भारत राष्ट्रीय आय का 15 प्रतिशत भाग चाय द्वारा अर्जित करता है। विदेशी मुद्रा अर्जित करने में चाय उद्योग को श्रीलंका के पश्चात भारत को विश्व में दूसरा स्थान प्राप्त है।

चाय के प्रकार

भारत में तीन प्रकार की चाय बनायी जाती है -आर्थोडोक्स, सी.टी.सी. तथा ग्रीन टी।

भारत में अधिकांशत: सी. टी. सी. चाय का ही उपयोग होता है। आर्थोडोक्स चाय महंगी होने के कारण धनाढ्य वर्ग तक सीमित है। इन दोनों प्रकार की चाय से भिन्न ग्रीन टी अफगानिस्तान, चीन, जापान आदि देशों में निर्यात की जाती है। भारत में इसका उपयोग बहुत कम होता है। 

ठंडी चाय के जनक

ठंडी चाय रिचर्ड ब्लेचिम्डेन नामक अंग्रेज की सूझ थी। 1904 ई. में सेंट लुई विश्व चाय मेले में श्रीलंका की एक चाय कंपनी का जन सम्पर्क अधिकारी था। गर्मी के दिन थे, अत: कोई दर्शक उसके मंडप में आकर गरम चाय पीने को तैयार न था। उसने गरम चाय बर्फ के टुकडों पर उडेलकर नींबू और चीनी के साथ परोसी और चाय पान का एक नया तरीका ईजाद किया। 

थैली वाली चाय के जनक

चाय की छोटी-छोटी थैलियां प्यालों में डालकर चाय बनाने की बात न्यूयॉर्क के थोक चाय विक्रेता टॉम्स सलीवन की सूझ है। पहले थेलियां रेश्म की बनायी जाती थीं। अब सेलोऌफेन की बनायी जाती हैं। 

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