Holi Vyang
Holi Vyang

Holi Vyang: एक दिन सुबह सुबह पतिदेव बोले ,”सुनो! जरा आज 2-4 गिफ्ट लाकर दे देना “।

मैंने कहा,”क्यों” ?

“अरे ! याद नही चार दिन बाद होली । दो-तीन खास लोगों को देने हैं “।

मैं चौक कर बोली ,”खास, मुझसे भी ज्यादा !आज तक मुझे तो कुछ नहीं दिया। भई ये खास कौन आ गया”?  “अरे कोई नहीं। ऑफिस में दो चार लोगों को देने हैं। टेंडर जो निकलने वाला है”।

 मैंने मन ही मन सोचा ,”वाह भाई वाह ! क्या होली का हुलिया बदला है। एक सामाजिक त्योहार; जिसका समाजीकरण होने की जगह और आर्थिक करण कर डाला। अब तो त्योहार भी मुनाफा देख मिला और बांटा जाता है। वैसे देखा जाए तो त्यौहार कोई सा भी हो, दो ही तबके के लोग फायदे में रहते हैं। एक जो बहुत ऊंचे हैं और एक जो बहुत नीचे। अरे भाई सीधा सा मतलब है जिनके हम नौकर और जो हमारे नौकर। मुझे आज भी याद है, मेरी एक अध्यापिका कहती थींं बेटा कितना ही पढ़ लो, कुछ भी पढ़ लो। लेकिन बीच में मत अटकना । लेकिन ….उनकी यह बात गले में अटक कर रह गई। उफ्फफ आज जाकर गले से नीचे उतरी है। आज समझ में आया उनका  मतलब। हम अपने से बड़ी पोस्ट वालों को खुश करने के लिए मिठाई देते हैं और हमारे नौकर हमारा काम करते रहें इसलिए उन्हें मिठाई देते हैं। हम तो भैया इस देने देने में खप लेते हैं। अरे छोड़ो ! आज जैसा देश वैसा भेष। इसी में भलाई है। चलो चलो होली खेलो। पर क्या करूं ये मुआ मन है कि मानता ही नहीं। बार-बार याद दिलाये जा रहा …होली जो हो….ली।

Holi Vyang
Holi

क्या दिन थे….क्या ज़माना था….और क्या उत्साह था…? होली खेलने का! होली का नाम आते ही वह बचपन के दिन आंखों के सामने आ खड़े होते हैं!

बचपन के होली का अलग  ही मज़ा था। एक हफ्ते पहले से ही होली की तयारियां शुरू हो जाती थी।  पिचकारियां चल रही है की नहीं, गुलाल कौन-कौन सा आया, रंग पक्के तो है न? और जाने क्या क्या।

पानी  की होली तो पिचकारियां चेक करने के बहाने हफ्ते भर पहले शुरू हो जाया करती थी। पूरे  आंगन में पानी मारते रहते थे एक दूसरे पर। शाम में होलिका जली की, हमारी होली शुरू.. अजी पानी वाली। बस कोई सामने दिख जाये, उस की तो फिर खैर नहीं। होली के दिन मम्मी को हमें उठाने  की ज़हमत नहीं उठानी पड़ती थी। दबे पाँव घर के बहार भाग ही रहे होते की माँ दरवाज़े पर ही रोक देती। फिर तो ‘ढंग से नाश्ता करो, फिर ही खेलने जाने मिलेगा’ फरमान सुना दिया जाता था।रॉकेट की स्पीड से थोड़ा बहुत निकलते और मम्मी के हिदायतें सुनते-सुनते भाग जाते।  ”पूरे शरीर पर ढ़ंग से तेल मल लो।

नहीं तो रंग नहीं छूटेगा, ध्यान से खेलना, बदमाशी मत करना, जल्दी वापस आना, हार्मफुल रंगों से बच के रहना और न जाने क्या-क्या।  मम्मी के यह निर्देश गली के मोड़ तक सुनाई  देते। एक बार घर की चारदीवारी से निकले नहीं की हमारी पूरी हुड़दंग शुरू हो जाती। बस टोली जमा की और चल पड़े चाहे लड़के हों या लड़की । उस समय का जमाना भी अलग था। कोई औपचारिकता नहीं होती थी।

Holi Vyang
Holi Celebration

आस पड़ोस के बच्चे सब पक्के फ्रैंड्स हुआ करते थे। एक साथ शैतानी करते और उसकी डांट भी खाते। शाम में थक हार के घर लौटते और फिर मम्मी पीछे पड़ जाती, हमारे नीले पीले रंगों को छुड़ाने में। उस रात सबसे अच्छी नींद आती।

कुछ बड़े हुये लड़की होने के नाते टोलियों में जाना बंद हुआ। तो होली छतों से शुरू हो गई। भई हमको तो खेलने से मतलब था। सड़कों पर जा रहे राहगीरों को रंगों से भीगना तो आम बात होती थी। हम तो जानवरों को भी न छोड़ते थे, आखिर होली का दिन था भई। सुबह-सवेरे ही छतों पर चढ़ जाते, और दोपहर तक रंगों में सराबोर हो कर ही उतरते। यही नही अगर रंग बच जाते तो आपस में ही एक दूसरे को खूब पोतते कि भयी रंग बचना नही चाहिये।

Holi Vyang
Festival of Colors

चेहरे इतने पुते हुए होते कि कई बार तो माएँ मुँह धुलाने के बाद ही जान पातीं कि यह कौन सा बच्चा है और आज…सब लोगों ने जज्बातों और दिलों से खेलना शुरू कर दिया है। ऐसे में हमारी सरकारे सबसे आगे हैं। ये होली और दहन तो रोज देखने को मिलता है।

खैर छोड़ो …..हां तो मैं बात कर रही थी होली की। होली किसे नही पसंद। हम तो वही मीठी यादों के  साथ विदा हो गए। शादी के बाद जब पहली होली पड़ी तो मेरी तो वही अल्हड़ता जाग गयी। चुपचाप से एक रंग का भी इंतजाम कर लिया और तो और उस पतिदेव को भी सरोबार कर दिया। फिर तो सास-ससुर ने ऐसी क्लास लगाई और हमें फौरन हमारे घर पहुंचा दिया। होली तो हमारी हो….ली।

Holi Vyang
Holi Celebration

अब धीरे-धीरे सब को हमने होली के सही मायने समझा दिये हैं और सबके दिलों में सोये बचपन को जगा दिया है । पर अफसोस ….अब वो होली कहीं नहीं हो रही। हमारी पड़ोसन है मिसेज शर्मा। पूरे साल अपने काले नीले फेस से नए-नए एक्सपेरिमेंट करती रहती हैं और होली से हफ्ते भर पहले ही सबसे कह देती हैं,”देखो होली खेलूंगी तो हर्बल होली”! होली के दिन कुछ हर्बल फेस पैक और क्रीम ले आती हैं। उस सूजे हुए लाल, काले चेहरे को रंगने में भी मजा नहीं आता।

पतिदेव उनके गुस्से से बचने के लिए घर का सुरक्षित कोना ढूंढते रहते हैं । एक बार की बात है , उनके घर आए मेहमान से उनके पतिदेव के मुंह से बस इतना निकल गया कि, “भाई यह तो होली नहीं खेलेंगी । इनको एलर्जी है”!  बस क्या बताएं! बेचारे पति देव की तो उस दिन होली.. हो ली। अब होली नहीं रही गले मिलने की। होली हो गई गले पड़ने की। औरतें पहले से ही घर में पति और बच्चों को हुकुम दे देती हैं, “जो भी करना है घर से बाहर जाकर करो। खबरदार जो घर गंदा करा”।

Holi Vyang
Gujia

 डर के मारे आधे बच्चे और पति तो घर से बाहर निकलते ही नहीं है और जो घर से बाहर निकलते हैं उनका बर्ताव दूसरों के साथ ऐसा होता है जैसे गले मिल नहीं रहे गले पड़ रहे हैं!! एक बार  मेरे घर होलिका दहन के बाद, हमारी सोसायटी के कुछ लोग होली मिलन को आये। मैंने घर पर तैयार  पकवान सबको खिलाये। जिसे खाते ही गुप्ता जी बोले,”भई वाह! 

आज तो अपने बचपन के स्वाद की यादें ताजा हो गईं। पहले तो घर-घर ये सब ठंडाई बनाते थे, उसे याद कर अब भी मुंह में पानी भर आता है। खालिस दूध, किस्म-किस्म के सूखे मेवे, उसमें थोड़ी सी भांग। क्या जायकेदार ठंडाई बनती थी और यार दोस्तों के साथ रात भर हंसते-गाते-झूमते मस्ती करते थे।

Holi Vyang
Sweet Dishes

इस पर वर्मा जी बोले,”अब भंग का जमाना गया । अब तो शराब और कबाब के दिन हैं। अब तो दिलजले, मनचले लोग आंखों के जाम पीते हैं । बाप की उमर के अंकल लोग भी लोगों से आंख बचा कर लड़कियों को आंख मारते हैं। सिटी बजाते हैं। बुरे इशारे करते हैं।”

तभी दूसरे पड़ोसी बोले,”दुनिया बहुत बदल गई। लोगों की पसन्द भी घटिया हो गई । अब बैलून में रंग नहीं, नाली के गंदे पानी डालते हैं आज के लौंडे-लफाड़े । बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद । इनकी कलाइयों में वो दम-खम कहां जो घंटो भांग घोटें। बोतल ली और गट-गट पी गए “।

तभी गुप्ता जी बोले ,”छोड़ो यार !  इन सब को न जीने का सलीका न पीने का । हां तो भाभी जान ! ” इतना बोलते ही उनकी पत्नी ने उन्हे घूरा। जान तो हलक में ही अटक गया।

Holi Vyang
Traditional Holi Festival Drink and food

 लेकिन बात पूरी करते हुए बोले,” वो….भाभी जी! पकवान बहुत स्वादिष्ट हैं । आजकल कहां औरतें बनातीं है घरों में-ये गुंजिया, बेसन के सेव, शक्करपारे,  नमक पारे? दही वड़ा,  भल्ला और तो और यह कांजी । आजकल तो रेडीमेड का जमाना है। लिया और बाजार से मंगा लिया। आज चीजें तो सभी उपलब्ध हैं, पहले से भी ज्यादा। लेकिन उसमें वह स्वाद कहां”? 

गुप्ता जी बेचारे भावनाओं में बह कर यह तो गए। लेकिन अपनी पत्नी की शक्ल देखते ही उन्हें अपनी गलती फौरन समझ में आ गई और उन्होंने अपनी बात पर पर्दा रखते हुए कहा,”देखा जाए तो  आजकल की औरतों के पास समय भी तो नहीं है।….. और हमारी बेगम साहिबा तो इतने प्यार से परोसती हैं कि उसमें वही पुरानी संस्कृति और विरासत की खुशबू आ जाती है”।

Holi Vyang
Festival of Colors

 इस पर हम सभी अपनी अपनी हंसी को दबाकर मुस्कुराने लगे। लेकिन मेरे पतिदेव ने गुप्ता जी को कोहनी मारते हुए कहा,” बेटा अब निकल लो यहां से। तुम्हारी होली तो हो …..ली”।

वैसे गुप्ता जी गलत नहीं थे। आज संस्कृति और विरासत की उपेक्षा करना ही आधुनिकता बन गयी है। खासकर हम हिन्दुओं के सन्दर्भ में ये कडवा सच है। हम हिन्दू क्रिसमस, ईद, बकरीद जैसे त्यौहार तो मनाना सीख गए हैं और अपने त्यौहार मनाना भूल रहे हैं।

आज बड़ी-बड़ी बातें होती हैं कि होली में पानी की बर्बादी होती है, पर्यावरण को नुकसान होता है आदि आदि। लेकिन क्या यही मीडिया और समाज के ठेकेदार उन पर ऊँगली उठाएंगे जो हजारों लीटर पानी रोज स्विमिंग पूल में भरकर बर्बाद कर रहे हैं। या आधुनिक बाथरूम में उपयोग कर रहे हैं। क्या सिर्फ होली न मनाने भर से ही पानी बच जायेगा? क्या हम रोज पानी को लेकर इतने ही सजग रहते हैं? या सिर्फ त्योहारों के समय ही ऐसा शोर मचता है ? 

Holi Vyang
Festival with Family

आज की व्यस्त जिन्दगी में हम अपने तक ही सिमट कर रह गए हैं। होली मनाने के तरीके बहुत बदल गए हैं। आज हम एक छोटे से SMS को forward करके इतिश्री कर लेते हैं। जो इनबॉक्स के फुल होते ही डिलीट कर दिए जाते हैं और इस प्रकार हमारी भेजी गयी शुभकामनाओं की भी इतिश्री हो जाती है। ऐसी दी गयी शुभकामनाओं से जुड़ाव महसूस करना कठिन होता हैं। आज के वक़्त घर से बाहर निकलकर रंग में सराबोर होने में हम सकुचाते हैं, शान से कहते हैं की हम रंग नहीं खेलते और ऐसा सब कहकर हम आधुनिक होने का परिचय देते हैं। आज के वक़्त में वाट्सएप्प मैसेज और डीजे के बीट्स पर थिरकते हुए होली मानाने के बीच में हमारे अपने बचपन की होली गुम सी गयी है।

ख़ैर, वे दिन तो हवा हुए और एक ज़माना हुआ।

Leave a comment