होली की मस्ती-गृहलक्ष्मी की कविता
Holi ki Masti

Holi Poem: फागुन लेकर आ गया, रंग अबीर गुलाल।
होली के इस रंग में,रंगे बाल गोपाल।।1
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
होली के इस पर्व में,प्रीत घुला है रंग।
भीग रहीं हैं राधिके,मनमोहन के संग।।2
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
होली के इस पर्व में,झूम रहे घनश्याम।
ताके सुंदर सँवरा, बरसाने का धाम।।3
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
प्रीत के इस रंग में, भीग रहा है गात।
खेल रही सारी सखियाँ,होली की बरसात।।4
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
बरसाने की राधिका,गोकुल का गोपाल।
ग्वाल बाल के संग में, लगती जमकर ताल।।4
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
होली के हुड़दंग में, बहे प्रेम अनुराग।
रहता जो सद्भाव से,खुलते उसके भाग।।5
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
राग द्वेष को त्याग दो, सब होली के संग।
जो बनता प्रह्लाद है, उसमें ही घुलता रंग।।6
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…
मनभावन होली लगे, मन में बसते श्याम।
नित नारायण प्रीत में, लगता है सुखधाम।।7
जोगीरा.. सा.. रा.. रा ..रा…

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