सपनेवाली बेगम: Hindi Vyang
Sapne wali Begum

Hindi Vyang: सपना प्राय: सभी देखते हैं और न जाने कितने लोगों ने उन्हें हकीकत में बदल कर अपना आसमां पा लिया। सपना देखती थीं, अमृता प्रीतमजी और सुबह जागकर ज्योतिषाचार्य राजकिशोरजी को सुनाया करतीं थी। आचार्य, उसका फलादेश वर्णित करते। वे फलादेश, अमृताजी की पुस्तकों में संकलित होकर ज्योतिष शास्त्र की अनूठी निधि हो गए। सपना देखा था, ज्ञान चतुर्वेदी जी ने और उन्हें अपने एक उपन्यास का बेहतरीन अंत सूझ गया। सपना देखा था, रसायन शास्त्री के कुले सर ने कि कुछ सांप तथा बंदर एक-दूसरे की पूंछ पकड़ कर, गोल-गोल नृत्य कर रहे हैं और उन्हें बेंजीन रिंग का सूत्र मिल गया। सपना इस खाकसार की अदद बेगम साहिबा देखती हैं लेकिन उनका ख्वाब अदद नहीं बल्कि ऐसा होता है कि अपने को थरथरी आ जाती है। कायदे से एक खाविंद को बीवी के सपनों से दिक्कत नहीं होनी चाहिए। मुझे भी नहीं होती बशर्ते वे कायदे के होते। बशर्ते, वे उनके अपने हों। बशर्ते उनका वजन मेरे पर न आता लेकिन जनाब, जब वे अपना सपना मुझे सुनाती हैं तो मेरी सांसें थम जाती हैं।
एक अल्लसुबह मोहतरमा ने घबराई हुई आवाज में मुझे झिंझोड़ दिया, ‘सुनोजी! अरे सुनते हो कि…।’ अपन समझ गए कि आज फिर कोई कहर बरपने वाला है। उनींदा सा बोला, ‘सुनाओ।’
‘अभी-अभी मैंने सपना देखा है और मेरा जी घबरा रहा है।’ इसके बाद वे फूट-फूट कर रो पड़ीं। मैं बैठा हो गया, ‘क्या हुआ?’
‘मम्मी की तबियत…ऊं…हूं…हूं…। वे हॉस्पिटल में भर्ती हैं।’ नैनों से सावन-भादो बरसने लगा।
मैंने दिलासा दिया, ‘रात के सपने उल्टे सिद्ध होते हैं। मम्मीजी बिल्कुल स्वस्थ होंगी। सुबह फोन करके पूछ लेंगे।’
मैं, बिस्तर पर पसरने वाला था कि उन्होंने हाथ पकड़ लिया, ‘नहीं, यह सुबह का सपना है। ये देखो, घड़ी में सवा चार बज गए।’
‘सर्दियों की रातें हैं डियर! मंदिरों में आरती और खुदा की बंदगी भी साढे पांच बजे होती है।’

उन्हें मानना नहीं था और न मानी, ‘मुझे मम्मी के पास जाना है, अभी।’
‘पर…।’ मैं हिचकिचाया, ‘फोन कर लेते हैं।’
‘नहीं…मम्मी-पापा फोन पर सही बात कभी नहीं बताते। चलना ही है।’
‘इतनी दूर…आज तो रिजर्वेशन मिलने से रहा।’
उन्होंने आंखें तरेरी, ‘तो…कार का आचार डालोगे?’
‘यार! आज शाम तो मुझे एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करनी है। पहली बार मौका मिला है। कल चलते हैं।’ मैंने बड़े प्यार से उनकी हथेली सहलाते हुए, अपना अरमान बयां किया।
‘हुं…हं…।’ मेरी गिरफ्त से हथेली छुड़ाकर अर्धांगिनी ने कहा, ‘देख लेना इस बार भी तुम्हारे साथ धोखा होगा। पिछली बार मेरी बात नहीं मानी थी तो मुख्य अतिथि आपकी जगह दूसरे को बना दिया था।’
बात सही थी पत्नी ने कहा था कि आज पड़वा (प्रतिपदा) है, मत जाओ। लेकिन मैंने तर्क दिया, ‘कल वाले निमंत्रण पत्र में अध्यक्ष के तौर पर मेरा नाम भी दिया है।’
उन्होंने मुंह बिचका दिया, ‘व्हॉट्स एप कार्ड की क्या अहमियत है? ठीक है, साथ मत चलो लेकिन मुझे टैक्सी करा दो।’
मैं निरूत्तर था। मेरी चुप्पी देखकर बीवी बोली, ‘फ्रेश हो लीजिए, मैं चाय बनाती हूं। जल्दी ही हमें निकलना है।’ नित्यकर्म निपटा कर, कार सड़क पर निकाली, तब तक मैडम अभूतपूर्व फुर्ती से अपना असबाब पैक करके बाहर आ गईं। उनकी उस चुस्ती पर मैं दंग था। शीत से अलसाए हुए सूर्यदेव अपनी दैनिक यात्रा पर निकलने की हिम्मत बटोर ही रहे थे कि हम निकल लिए। वे मोबाइल पर मम्मी का नंबर ट्राई कर रही थी।
मैंने एफ.एम. ऑन किया। मन्ना डे गा रहे थे, ‘टूट गया मेरा सपना सुहाना…।’ उफ…ये बोल, कहीं बेटरहॉफ के कान में न पड़ जाएं? सो मैंने रेडियो का स्विच, ऑफ कर दिया।

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