sainik bana shahanshaah
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एक बहुत ही निर्धन परिवार में पैदा हुआ बालक नेपोलियन बोनापार्ट! मन में कुछ विशेष करने की इच्छा थी किंतु हालात ऐसे नहीं थे। आजीविका कमाने के लिए भी कोई बड़ा काम अथवा नौकरी हाथ नहीं लगी। एक साधारण सैनिक की नौकरी मिली, इसे स्वीकार कर लिया। सेना में रहते हुए भी वह आगे से आगे बढ़ना चाहते थे। कोशिशें जारी रखीं। दृढ़ संकल्प का साथ नहीं छोड़ा। पुरुषार्थ का हाथ थामे रहे। प्रयत्न पर प्रयत्न जारी रख कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने दिया।

और एक समय ऐसा भी आया कि नेपोलियन बोनापार्ट “रांस का शहंशाह बन गए। नेपोलियन इतना शक्तिशाली हो गया कि उसने पूरे यूरोप पर पंद्रह वर्ष तक एकछत्र राज किया। वह दृढ़संकल्प वाला व्यक्ति था। प्रबल पुरुषार्थ किया करता। इस व्यक्ति ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आगे से आगे बढ़ता गया। नेपोलियन ने सफलता के जो मूलमं=ा दुनिया को दिए, वे थे ‘इच्छाशक्ति वाले मन के लिए कुछ भी असंभव नहीं।” और मूर्ख लोगों, के शब्दकोष में ही असंभव शब्द हो सकता है, हमारे शब्दकोष में कभी। नहीं।’ इन सबसे बड़ी बात कही, “असंभव” शब्द हमारी “रेंच भाषा का है ही नहीं। यह कहते हुए उन्होंने पूरे “रांस को संदेश दे दिया कि उनके लिए, उन सबके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं। इन बातों के कारण ही निर्धन घर में पैदा हुए नेपोलियन बोनापार्ट ने उन्नति के शिखर को छू लिया।

एक साधारण सैनिक से महान सम्राट बन गया यह दृढ़ संकल्पवाला व्यक्ति और एक हम हैं कि चींटी की चाल चलते रहते हैं अथवा जहां हैं, वहीं पड़े रहते हैं। कुछ खास करने की सोचते ही नहीं हैं। तरक्की कैसे होगी। एक बार सोच लें कि हम किसी से कम नहीं। फिर देखें सफलता मिलती है या कि नहीं। नईम नामक एक प्रसिद्ध हकीम थे। उनके नुस्खे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। एक दिन एक युवक उनके पास आया और बोला कि पेट दर्द ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है। मैंने अपने गाँव के कई हकीमों को दिखाया पर कोई मेरा मर्ज पकड़ नहीं पाया। कृपया मुझे बचाएं। हकीम ने युवक के शरीर का मुआयना किया तो पाया कि उसके शरीर की अनेक नसें तनाव से ग्रस्त हैं। वे युवक से बोले कि तुम्हें घर, रोजगार या परिवार की ऐसी कौन सी बात परेशान कर रही है, जिसके बारे में तुम अकसर सोचते रहते हो? युवक बोला कि आपको कैसे पता लगा कि मैं किसी बात की फिक्र कर रहा हूँ? दरअसल पिछले महीने मेरा एक रिश्तेदार तपेदिक से मर गया, तब से मैं हर वक्त यही सोचता रहता हूँ कि कहीं मुझे भी यह बीमारी न हो जाए।

उसकी बात पर नईम बोले कि जिस मर्ज का दूर-दूर तक फिलहाल तुमसे कोई वास्ता ही नहीं है, तुम उसे सोचकर तनावग्रस्त होते रहोगे और चिंता में घुलते रहोगे तो जरूर तुम्हें तपेदिक हो जाएगा। जीवन में अधिकतर लोग ऐसी चिंताओं में डूबे रहते हैं, जिनका उनसे कोई वास्ता नहीं होता। इसी चिंता में अनेक रोग उनके शरीर में लग जाते हैं। जीवन में सुख-दुख, बीमारी आदि चलती ही रहती है। उनका सामना करना चाहिए। तुम्हें अगर सोचना ही है, तो अच्छी- अच्छी बातें सोचो जैसे तुम्हें कुछ दिनों में अपना कारोबार बढ़ाना है या कोई और मकसद हासिल करना है। युवक को बात समझ में आ गई और उसी क्षण से उसने बेवजह फिक्र करना छोड़ दिया।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)