shram ka mahatva
shram ka mahatva

एक बार नेपोलियन बोनापार्ट अपनी पत्नी के साथ संध्या समय घूमने निकला। वे एक सँकरे रास्ते से गुजर रहे थे कि एक लकड़हारा सिर पर बोझा उठाये आता दिखाई दिया। जब वह बिल्कुल समीप आ गया, तो नेपोलियन ने अपनी पत्नी को संकेत से हटने के लिए कहा और उसने स्वयं भी रास्ता छोड़ दिया…

पत्नी राजसी स्वभाव की थी, उससे न रहा गया। झुंझलाकर बोली, “एक तो इस उद्दण्ड ने हमें अभिवादन तक नहीं किया और फिर इस नीच को आपने रास्ता भी दे दिया।” नेपोलियन ने गम्भीर स्वर में कहा, “देवीजी! आप श्रम का महत्त्व नहीं जानतीं, इसीलिए आप श्रम को ऐश्वर्य से तुच्छ समझ रही हैं। ध्यान रखो, श्रम का अभिवादन सम्राट् के अभिवादन से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है!”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)