Mulla Nasruddin ki kahaniya: जब नयाज कुम्हार और उसकी बेटी गुलजान वहाँ से चल पड़े तो सूदखोर जाफ़र उनके पास जाकर कहने लगा, ‘ऐ मेरी हसीना फ़ैसला हो चुका है और अब तुम पूरी तरह मेरे कब्ज़े में हो। आज ठीक एक घंटे बाद तुम मेरे घर पहुँच जाओगी। अगर तुमने मेरे साथ नर्मी का व्यवहार किया तो मैं तुम्हारे पिता को बढ़िया खाना दूँगा । हल्का काम दूँगा । लेकिन अगर तुमने ज़िद की तो मैं उससे पत्थर तुड़वाऊँगा, खाने के लिए कच्ची फलियाँ दूँगा और खीवा में ले जाकर बेच दूँगा। तुम जानती हो कि खीवा के लोग गुलामों के साथ कितनी बेरहमी का बर्ताव करते हैं। ज़िद मत करो गुलजान, अपना चेहरा दिखा दो । ‘
उस कामांध ने गुलजान का नकाब थोड़ा सा उठाया। गुलजान ने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया।
लेकिन नसरुद्दीन ने गुलजान के चेहरे की एक झलक देख ली। वह इतनी सुंदर थी कि नसरुद्दीन अपनी सुध-बुध खो बैठा। उसके दिल की धड़कनें रुक गईं। घबरा कर उसने आँखें मूँद लीं।
कुछ पल बाद वह सँभला और गुस्से से सोचने लगा – ओह यह लँगड़ा, कुबड़ा,
काना बंदर इस सुंदरी को चाहने की गुस्ताख़ी करता है। मैंने कल उसे तालाब .से क्यों निकाला ?
अबे गंदे सूदखोर, तू इसका मालिक कभी नहीं बन सकता। उन्हें एक घंटे की मोहलत मिली है और नसरुद्दीन एक घंटे में वह कर दिखाएगा, जो दूसरे एक साल में भी नहीं कर सकते।
तभी जाफ़र ने जेब से धूपघड़ी निकालकर समय देखा । ‘ऐ कुम्हार, इसी पेड़ के नीचे मेरा इंतज़ार करना । छिपने की कोशिश मत करना। मैं तुम्हें समंदर की तह में भी खोज लूँगा । हसीन गुलजान, तुम्हारे बाप की तकदीर अब इस बात पर निर्भर है कि तुम मेरे साथ कैसा बर्ताव करती हो । ‘
अपने बदसूरत चेहरे पर इत्मीनान की मुस्कान बिखेरते हुए वह गुलजान के लिए ज़ेवर ख़रीदने के लिए सर्राफ़ों के टोले की ओर चल पड़ा।
दुखों का मारा नयाज अपनी बेटी के साथ सड़क के किनारे पेड़ की छाया में रुक गया।
नसरुद्दीन ने उसके पास पहुँचकर कहा, ‘कुम्हार भाई, मैंने फ़ैसला सुन लिया है। तुम बहुत बड़ी मुसीबत में हो लेकिन शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।’
नयाज ने नाउम्मीदी से कहा, ‘नहीं मेहरबान, मैं तुम्हारे पैबंद लगे कपड़ों से देख रहा हूँ कि तुम मालदार नहीं हो। मुझे चार सौ तके चाहिए लेकिन कोई दौलतमंद मेरा दोस्त नहीं है। दोस्त गरीब हैं और टैक्सों ने उन्हें बर्बाद कर डाला है।’
‘मेरा भी यहाँ कोई दौलतमंद दोस्त नहीं है। फिर भी मैं यह रकम जुटाने की कोशिश करूँगा।’
‘एक घंटे में चार सौ तंके? तुम सचमुच मेरा मज़ाक उड़ा रहे हो। यह काम तो सिर्फ़ नसरुद्दीन ही कर सकता था। ‘
गुलजान ने अपनी बाहें अपने पिता के गले में डालकर रोते हुए कहा, ‘ऐ अजनबी, हमें बचा लो, हमें बचा लो। ‘
गुलजान ने नक़ाब के अंदर से नसरुद्दीन को देखा। उसकी आँखों में पानीदार चमक थी, दुआ और उम्मीद थी। गुलजान को देखते ही नसरुद्दीन का खून तेज़ी से दौड़ने लगा। उसने नयाज से कहा, ‘बुजुर्गवार, आप यहीं ठहरकर मेरा इंतज़ार करें। अगर मैं घंटे भर में चार सौ तंके लेकर न लौहूँ तो मुझे दुनिया का सबसे गया- बीता इन्सान समझना । ‘
यह कहकर वह अपने गधे पर सवार हुआ और बाज़ार की भीड़ में गुम हो गया।
