Mulla Nasruddin ki kahaniya: काम पूरा हो जाने के बाद अमीर अपने दरबारियों के साथ महल लौट गए। इस बात का ख़तरा भाँपकर कि अपराधी के पूरी तरह डूब जाने से पहले ही उसे बचाने की कोशिश की जा सकती है, अर्सला बेग ने तालाब के चारों ओर पहरेदार तैनात कर दिए थे। उन्हें हुक्म दे दिया था कि कोई भी तालाब के किनारे फटकने भी न पाए।
भीड़ कुछ आगे बढ़ी। लेकिन पहरेदारों को देखकर पीछे हट आई। फिर गुस्से में एक बड़ी और काली दीवार की तरह खड़ी हो गई। अर्सला बेग ने भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की। लोग वहाँ से दूसरी जगह हटकर अँधेरे में छिप गए। लेकिन थोड़ी देर बाद फिर उसी जगह आ खड़े हुए।
महल में खुशी के नगाड़े बज रहे थे। अमीर दुश्मन पर फतह का जश्न मना रहे थे।
लेकिन महल के बाहर शहर में सन्नाटा छाया हुआ था। शहर ने अँधेरे और उदास ख़ामोशी का कफ़न ओढ़ रखा था।
अमीर ने उस दिन बड़ी उदारता से इनाम बाँटे । बख्शीशें दीं। कसीदे गाते-गाते शायरों के गले थक गए। बार-बार झुककर सोने चाँदी के सिक्के बटोरने वालों की पीठ में हल्का दर्द होने लगा।
‘मुहर्रिर को बुलाया जाए।’ अमीर ने हुक्म दिया।
मुहर्रिर दौड़ता हुआ आ गया और तेज़ी से क़लम घसीटने लगा ।
‘बुखारा के सुल्तान, अजीमुश्शान अमीर की तरफ़ से खीवा के अजीमुश्शान ख़ान को सलाम के गुलाब और दोस्ती की लिलि कबूल हो। अपने प्यारे शाही भाई को हम एक ऐसी इत्तिला दे रहे हैं, जिसकी खुशी के जोश से उनका दिल धड़क उठेगा। दिल को सुकून मिलेगा ।
वह खुशख़बरी यह है कि आज के महीने की सत्रहवीं तारीख़ को बुखारा के अमीरे-आज़म माबदौलत ने सारी दुनिया में कुफ्र और नापाक कारनामों के लिए बदनाम बदमाश नसरुद्दीन को, अल्लाह की उस पर मार, सरेआम मौत की सज़ा दे दी। हमने अपने सामने एक बोरे में बंद करके और डुबोकर उसे मौत की सज़ा दी। इसलिए अपने शाही बयान की हम तस्दीक करते हैं कि अमन में खलल डालनेवाला, बगावत करनेवाला वह काफ़िर अब ज़िंदा लोगों में शामिल नहीं है। अपनी नापाक हरकतों से हमारे प्यारे भाई को अब कभी भी परेशान नहीं कर पाएगा।’
इसी प्रकार के पत्र बगदाद के ख़लीफ़ा, तुर्की के सुल्तान, ईरान के शाह, अफ़गानिस्तान के अमीर और पास-दूर के सभी देशों के शासकों के नाम लिखवाए गए। वज़ीर बख्तियार ने पत्रों का लिफ़ाफ़ा बनाया, शाही मुहर लगाई और हरकारों को फौरन रवाना कर दिया। उसी रात हरकारे इस्ताम्बूल, बगदाद, काबुल और दूसरे शहरों को दौड़ पड़े। उनके घोड़ों की टापों से पत्थर तितर-बितर हो रहे थे। नालों की रगड़ खाकर पत्थरों से चिंगारियाँ निकल रही थीं।
आधी रात के सन्नाटे में तालाब में थैला फेंके जाने के चार घंटे बाद अर्सला बेग ने तालाब पर से पहरा उठा लिया।
‘खुद शैतान ही क्यों न हो चार घंटे पानी में रहने के बाद ज़िंदा नहीं बच सकता।’ अर्सला बेग ने कहा, ‘उसे निकालने की ज़रूरत नहीं। जो चाहे उसकी बदबूदार लाश निकाल सकता है। ‘
रात के अँधेरे में जैसे ही आखिरी पहरेदार गायब हुआ शोर मचाती भीड़ किनारे पर पहुँच गई। झाड़ियों में छिपी मशालें निकालकर जला ली गईं। नसरुद्दीन की क़िस्मत पर मर्सिया पढ़ती आँखें मातम करने लगीं।
‘हमें चाहिए कि एक दीनदार मुसलमान की तरह उसे दफनाएँ ।’ नयाज ने कहा, ‘उसके कंधे का सहारा लिए सकते की हालत में खड़ी गुलजान ख़ामोश थी।
हाथों में कँटिया लेकर कहवाखाने का मालिक अली और यूसुफ लुहार पानी में कूद पड़े। काफ़ी देर तक तलाश करने के बाद उन्होंने बोरे को पकड़ लिया और कँटिया में फँसाकर किनारे पर घसीट लाए। काई और खरपतवार में लिपटा बंद बोरा सतह पर आया तो औरतें ज़ोर-ज़ोर से रोने लगीं। महल से उठती जश्न की आवाज़ें उसमें डूब गई।
दर्जनों हाथ एक साथ बढ़े और बोरे को उठा लिया।
एक बड़े पेड़ के नीचे बोरा रख दिया गया। लोग उसे घेरकर खड़े हो गए। यूसुफ ने चाकू से बड़ी सावधानी से बोरे को लंबाई में काट दिया। फिर जैसे ही लाश के चेहरे पर नज़र डाली, चौंककर पीछे हट गया। उसकी आँखें बाहर निकली पड़ रही थीं। मुँह से बोल नहीं फूट रहा था।
यूसुफ की सहायता के लिए अली दौड़कर उसके पास पहुँच गया। लेकिन उसकी भी यही हालत हुई।
‘क्या हुआ? क्या माजरा है?’ भीड़ में से आवाजें उठने लगीं, ‘हमें भी देखने दो भाई । हटो – हटो। हम भी देखें । ‘
रोती हुई गुलजान घुटने पकड़कर लाश के पास जा बैठी। लेकिन जैसे ही किसी ने लाश की ओर मशाल बढ़ाई डरकर अचंभे से पीछे हट गई।
बहुत सी आवाज़ें एक साथ उभरी।
‘यह तो सूदखोर जाफ़र है । ‘
‘यह नसरुद्दीन नहीं है।’
‘यह सूदखोर जाफ़र है। कसम से। यह देखो, यह रहा उसका बटुआ । ‘ ‘लेकिन नसरुद्दीन कहाँ है?’
शोर मच गया।
‘नसरुद्दीन कहाँ है?’
‘यहाँ है नसरुद्दीन।’ एक जानी-पहचानी आवाज़ आई ।
सबने घूमकर देखा । सामने जीता-जागता मुल्ला नसरुद्दीन चला आ रहा है। बड़े आराम से जम्हाई लेते हुए ।
‘लो यह रहा नसरुद्दीन।’ वह बोला, ‘जो कोई मुझसे मिलना चाहता हो यहाँ आ जाए। ऐ बुखारा के शरीफ़ बाशिंदो, तुम सब तालाब पर क्यों इकट्ठे हुए हो और यहाँ क्या कर रहे हो?’
‘क्या कर रहे हैं? तुम पूछते हो| हम यहाँ क्या कर रहे हैं?” सैकड़ों आवाज़ों ने जवाब दिया, ‘ऐ नसरुद्दीन, हम लोग तो तुम्हें अलविदां कहने आए थे। तुम्हारा मातम करने, तुम्हें दफ़नाने।’
‘मुझे दफ़नाने ?बुखारा के नेक बाशिंदो, क्या तुम इतना भी नहीं जानते
कि नसरुद्दीन का मरने का वक्त अभी नहीं आया है। न अभी उसका मरने का इरादा है। कब्रिस्तान में मैं आराम करने के लिए लेट गया था। तुम लोग समझ बैठे कि मैं मर गया हूँ।’
कहवाख़ाने का मालिक अली और यूसुफ लुहार खुशी से चिल्लाते हुए उससे लिपट गए। उसे भींचकर अधमरा कर दिया। नयाज भी लड़खड़ाता हुआ आगे बढ़ा। लेकिन भीड़ का धक्का खाकर एक ओर जा गिरा ।
नसरुद्दीन एक-एक से गले मिलता हुआ ठीक उस ओर बढ़ रहा था जिस ओर गुलजान की बेताब और नाराज़गी भरी आवाज़ सुनाई दे रही थी। फिर जब दोनों आमने-सामने हुए तो गुलजान ने उसके गले में बाहें डाल दीं। नसरुद्दीन ने उसका नकाब उलट दिया और इतने लोगों के सामने उसे चूम लिया। वहाँ मौजूद लोगों में से किसी को भी, यहाँ तक कि तहजीब और कायदों के हिमायतियों को भी इसमें कोई बेवजह बात दिखाई नहीं दी, जिस पर वे ऐतराज करते ।
‘तुम लोग मेरा मातम करने के लिए यहाँ जमा हुए थे। बुखारा के शरीफ़ बाशिंदो, तुम नहीं जानते कि मैं मर नहीं सकता।’
‘मुल्ला नसरुद्दीन यह बताओ, तुमने अपनी जगह सूदखोर जाफ़र को कैसे डुबा दिया?’ किसी ने चिल्लाकर पूछा ।
यूसुफ भाई, तुम्हें मेरी कसम याद है ना?’ अचानक नसरुद्दीन को याद आ गया।
‘ज़रूर याद है । और तुमने अपनी कसम पूरी कर दी। ‘ यूसुफ ने कहा ।
‘वह है कहाँ? क्या तुमने उसका बटुआ ले लिया?’
‘नहीं। हमने बटुए को छुआ तक नहीं है।’
‘अरे-रे-रे।’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘बुखारा के शरीफ़ बाशिंदो, शराफ़त और नेक ख़याल तो तुम्हें खुले हाथों मिले हैं लेकिन मामूली अक्ल कम मिली है। क्या तुम नहीं जानते कि अगर यह बटुआ सूदखोर के वारिसों को मिल गया तो वे पाई-पाई क़र्ज़ वसूल कर लेंगे। उसका बटुआ लाकर मुझे दो। ‘
कुछ लोगों ने बटुआ लाकर नसरुद्दीन को दे दिया।
बटुए में रसीदें भरी थीं।
नसरुद्दीन ने एक मशाल ली और कहा, ‘मैं तुम से रुखसत चाहता हूँ।लंबे सफ़र पर रवाना होने का वक्त आ गया। गुलजान, क्या तुम मेरे साथ चलोगी?’ ‘तुम जहाँ जाओगे मैं तुम्हारे साथ चलूँगी । ‘ गुलजान ने कहा।
बुखारा की सरायों के मालिकों ने गुलजान के लिए रूई जैसा सफ़ेद गधा दिया। उसकी खाल पर एक भी काला धब्बा नहीं था। यह नसरुद्दीन की आवारगी के वफादार साथी से ईर्ष्या नहीं थी। वह चुपचाप खड़ा बड़े मज़े से रसीली घास खा रहा था। कभी-कभी थूथनी से सफ़ेद गधे को दूर भी हटा देता था । मानो उसे यह बताना चाहता हो अपनी खूबसूरती के बावजूद सफ़ेद गधा अभी वफ़ादरी में उसके सामने कुछ भी नहीं है।
लुहार अपने औज़ार ले आए और दोनों गधों के नए नाल लगा दिए। गधों पर दो बढ़िया जीनें कस दीं। सुनहरी मुल्ला नसरुद्दीन के लिए और दूसरी चाँदी जड़ी गुलजान के लिए। कहवाख़ाने के मालिक ने बहुत बढ़िया चीनी के प्याले ओर बेशक़ीमती कहवादानियाँ दीं। छिपलीगरों ने इस्पात की एक तलवार भेंट की, जिससे वह डाकुओं से अपनी सुरक्षा कर सके। कालीन बनानेवालों ने ज़ीन पर बिछाने के लिए कालीन दिए । रस्से बनानेवाले घोड़े के बालों का ऐसा रस्सा तैयार करके लाए, जिससे मुसाफ़िर सोते समय अपने चारों ओर घेरा बना देते थे। इससे ज़हरीले साँप आदि रस्से के कटीले बालों के ऊपर से आने की हिम्मत नहीं कर पाते थे और इस तरह मुसाफ़िर को कोई हानि नहीं पहुँचा पाते थे।
जुलाहे, दर्जी, मोची सभी अपनी-अपनी कारीगरी के तोहफ़े लाए। मौलवियों, अफसरों और रईसों को छोड़कर बुखारा के सभी बाशिंदों ने नसरुद्दीन की यात्रा के लिए सामान इकट्ठा किया।
बेचारे कुम्हार मन मारे अलग खड़े थे। नसरुद्दीन को देने के लिए उनके पास कुछ भी नहीं था। भला कोई आदमी मिट्टी के बर्तनों का क्या करता जबकि उसके पास ताँबें के बर्तन थे।
अचानक सबसे बुजुर्ग कुम्हार ने ऊँची आवाज़ में कहा, ‘कौन कहता है कि हम कुम्हारों ने नसरुद्दीन को कुछ नहीं दिया? क्या इसकी हसीन दुल्हन गुलजान कुम्हारों के शरीफ़ और मशहूर ख़ानदान की बेटी नहीं है?’
कुम्हार खुशी से चिल्ला उठे, ‘वाह – वाह, खूब कहा ! ‘
सभी ने गुलजान को हिदायत दी कि वह नसरुद्दीन की वफ़ादार और सच्ची हमराही बने ताकि उसके ख़ानदान के नाम और शोहरत को बट्टा न लगे।
‘सुबह होनेवाली है,’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘थोड़ी देर में ही शहर के फाटक खुल जाएँगे। मेरा और मेरी दुल्हन का चुपचाप निकल जाना ज़रूरी है। अगर तुम लोग मुझे रुख़सत करने चले तो पहरेदार समझेंगे कि बुखारा की पूरी आबादी कहीं दूसरी जगह बसने के इरादे से शहर छोड़कर जा रही है। तब वे फाटक बंद कर देंगे। और कोई भी बाहर न जा पाएगा। इसलिए तुम लोग अपने-अपने घर जाओ। अल्लाह करे तुम्हें चैन की नींद आए। बदकिस्मती का काला साया तुम्हारे सिर पर कभी न पड़े। तुम्हें कामयाबी मिले। अब नसरुद्दीन तुमसे रुखसत होता है। कब तक के लिए, यह बात खुद नहीं जानता । ‘
एक बारीक, हल्की-सी किरण पूरब में फूटी । तालाब पर हल्का-सा कोहरा उठा। भीड़ छँटने लगी। मशालें बुझाई गईं।
‘अल्लाह करे तुम्हारा सफ़र ख़ैरियत और हँसी-खुशी के साथ पूरा हो । ‘ लोगों ने दुआ देते हुए कहा, ‘अपने वतन को मत भूल जाना नसरुद्दीन । ‘
यूसुफ लुहार और कहवाखाने के मालिक अली से रुख़सत दिल हिला देने वाली थी। मोटा अली आँसुओं पर काबू नहीं कर पा रहा था।
फाटक खुलने तक नसरुद्दीन नयाज के मकान में रहा। जैसे ही शहर के मुअज्जिम की गमजदा आवाज़ शहर के ऊपर गूँजी नसरुद्दीन और गुलजान अपनी मंज़िल पर चल दिए । बूढ़ा नयाज उनके साथ सबसे पास के कोने तक गया। नसरुद्दीन उसे और आगे नहीं जाने देना चाहता था। वह बेचारा वहीं खड़ा आसुँओं के परदे के पीछे से उन्हें तब तक देखता रहा, जब तक मोड़ पर पहुँचकर वे दोनों गायब न हो गए। सुबह की हल्की-सी हवा उठी और बड़ी सफाई से सड़क साफ़ करती हुई सारे सुराग मिटाती चली गई।
नयाज दौड़कर वापस घर पहुँचा। वह छत पर जा चढ़ा। वहाँ से शहर के परकोटे के पार दूर तक देखा जा सकता था। वह बहुत देर तक खड़ा खड़ा देखता रहा। फिर उसे दूर बहुत दूर दो छोटे-छोटे साए से दिखाई दिए। एक भूरा और एक सफेद । वे धीरे-धीरे छोटे होते चले गए।
पहला पहर बीत रहा था। अचानक अपने पीछे कोई आवाज़ सुनकर नयाज ने चौकते हुए पीछे मुड़कर देखा। तीनों पड़ोसी भाई एक-एक कर सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। वे तीनों कुम्हार खूबसूरत और तंदुरुस्त थे। नयाज के पास पहुँचकर तीनों भाई अदब से झुक गए।
बड़ा भाई बोला, ‘नयाज साहब, आपकी बेटी नसरुद्दीन के साथ चली गई। लेकिन आपको इस बात से दुखी नहीं होना चाहिए। भला कोई हसीन लड़की एक सच्चे और वफ़ादार शौहर के बिना कैसे रह सकती है। हम तीनों भाइयों ने तय किया है कि जो नसरुद्दीन का रिश्तेदार है, हमारा रिश्तेदार है। बुखारा में रहने वालों का रिश्तेदार है। आप जानते हैं कि आपके दोस्त और अपने प्यारे वालिद मुहम्मद अली साहब को हमने पिछले बरस रोते- कलपते दफ़नाया था। तभी से हमारे घर में ख़ानदान के बुजुर्ग की जगह ख़ाली है। इसलिए नयाज साहब, हम आपसे इल्तिजा करने आए हैं कि आप हमारे घर चलिए। हम लोगों के वालिद और हमारे बच्चों के दादा बन जाइए। ‘
उन तीनों भाइयों की ज़िद के आगे नयाज इन्कार नहीं कर पाया। बुढ़ापे में उसे ईमानदारी और नेक ज़िंदगी का सबसे बड़ा इनाम मिला, जो बहुत बड़ी नियामत है। वह उनके ख़ानदान का दादा बन गया। उसे पूरा सम्मान दिया गया।
