Mulla Nasruddin ki kahaniya: बहुत पुराने ज़माने से कुम्हार बुखारा शहर के पूरबी फाटकों के पास मिट्टी के एक बड़े टीले के आसपास बसे हुए थे। इससे अच्छी जगह वे अपने लिए कहीं तलाश नहीं कर सकते थे। मिट्टी पास ही मिल जाती थी। शहर के परकोटे के नीचे बहने वाली सिंचाई की नहर से पानी मिल जाता था। कुम्हारों के दादा, परदादा और लकड़दादा ने मिट्टी लेते-लेते टीले को आधा कर दिया था। वे अपने घर इसी मिट्टी से बनाते। इसी मिट्टी से बर्तन बनाते और एक दिन उनके रिश्तेदार रोते-धोते उन्हें इसी मिट्टी में दफ़न कर आते।
यहीं, नहर के बिल्कुल किनारे पुराने छायादार पेड़ों के नीचे नयाज कुम्हार का घर था। पत्तियाँ हवा में झूमती रहतीं, पानी गाता-गुनगुनाता बहता रहता और घर का छोटा-सा बगीचा गुलजान के गानों से गूँजता रहता ।
मुल्ला नसरुद्दीन ने नयाज के घर रहने से इनकार कर दिया। नहीं नयाज, तुम्हारे घर में पकड़ा जा सकता हूँ। रात मैं पास ही एक जगह पर बिताया करूँगा। दिन में आकर तुम्हारे काम में मदद किया करूँगा। ‘
वह सूरज निकलने से पहले ही नयाज के घर पहुँच जाता। दुनिया का कोई भी ऐसा काम नहीं था, जिसकी बारीकियों से वह परिचित नहीं था। वह ऐसे चिकने और खनकदार बर्तन बनाता, जिनमें गर्म से गर्म
मौसम में भी पानी बर्फ जैसा ठंडा रहता था। बूढ़े नयाज की आँखें कमज़ोर होती जा रही थीं। दिन भर में वह मुश्किल से पाँच छै घड़े बना पाता था। लेकिन अब तो तीस, चालीस और कभी-कभी तो पचास घड़े तक धूप में सूखते दिखाई देते थे। बाज़ार के दिन नयाज घर लौटता तो उसकी थैली भरी होती । रात में पकते हुए पुलाव की खुशबू सारी बस्ती में फैल जाती थी। पड़ोसी उसके दिन फिरने पर बहुत खुश थे।
आख़िर नयाज की किस्मत पलट ही गई। अल्लाह की शान, उसकी ग़रीबी हमेशा के लिए दूर हो गई। वे एक-दूसरे से कहा करते-
‘सुना है, अपनी मदद के लिए उसने एक कारीगर रख लिया है। वह कुम्हारगीरी में अच्छे-अच्छों के कान काटता है । ‘
‘मैंने भी सुना है। एक दिन मैं नयाज के घर गया था, उसके कारीगर को देखने। लेकिन जैसे ही मैं बगीचे के फाटक में घुसा, कारीगर चला गया। फिर पलटकर नहीं आया। ‘
बूढ़ा अपने कारीगर को छिपाकर रखता है। उसे डर है कि उसे कोई लालच देकर फुसला न ले। अजीब आदमी है। जैसे हम कुम्हारों के आत्मा ही नहीं या हम उसकी किस्मत बिगाड़ने की कोशिश करेंगे। ‘
किसी को संदेह तक नहीं हुआ कि नयाज का कारीगर कोई दूसरा नहीं है, खुद मुल्ला नसरुद्दीन है। क्योंकि सबको पूरा-पूरा विश्वास था कि मुल्ला नसरुद्दीन तो बरसों बीते बुखारा छोड़कर कहीं चला गया था।
यह अफ़वाह खुद मुल्ला नसरुद्दीन ने फैलाई थी, ताकि जासूस परेशान हो जाएँ और उनका जोश ठंडा पड़ जाए। उसे अपने इस उद्देश्य में सफलता भी मिली थी। दस दिन बाद ही शहर के सभी फाटकों पर से आधे पहरेदार हटा दिए गए थे और रात को हथियार खड़खड़ाते मशालों की चकाचौंध फैलाते गश्त वाले सिपाहियों से बुखारा के निवासियों को छुटकारा मिल गया था।
एक दिन बूढ़े नयाज ने मुल्ला नसरुद्दीन से कहा, ‘तुमने मुझे और मेरी बेटी को गुलामी और बेइज़्ज़ती से बचाया है। तुम मेरे साथ काम करते हो। मुझसे दस गुने घड़े बना डालते हो। जबसे तुमने मेरी मदद शुरू की है, तबसे मैं तीन सौ पचास तके कमा चुका हूँ। इस रकम पर तुम्हारा हक है, तुम इसे ले लो। ‘
चाक रोककर मुल्ला नसरुद्दीन आश्चर्य से बूढ़े को देखने लगा। फिर बोला, ‘लगता है, तुम्हारी तबियत कुछ ख़राब है। तभी तुम ऐसी बातें कर रहे हो । तुम मालिक हो और मैं तुम्हारा नौकर हूँ। अगर तुम मुझे सिर्फ पैंतीस तके दे दो तो मुझे ज़रूरत से ज़्यादा तसल्ली मिल जाएगी । ‘
नयाज की फटी-पुरानी थैली मे से पैंतीस तंके निकालकर उसने बाक़ी तंके उसे वापस दे दिए। लेकिन नयाज ने रक़म न लेने की जिद पकड़ ली।
‘यह ठीक नहीं है मुल्ला नसरुद्दीन। यह रकम तुम्हारी है। पूरी नहीं तो आधी तो ले ही लो। ‘
‘यह थैली हटा लो और दुनिया का दस्तूर मत बिगाड़ो। अगर सभी मालिक अपने कारीगरों को मुनाफ़े का आधा हिस्सा देने लगेंगे तो क्या होगा। फिर न मालिक रहेंगे न नौकर। न रईस न ग़रीब, न पहरेदार और न अमीर । अमीर ऐसी बेइन्साफी कैसे बर्दाश्त करेगा।’ यह कहकर मुल्ला नसरुद्दीन फिर अपना चाक घुमाने लगा, ‘यह घड़ा बहुत ही खूबसूरत बनेगा । हमारे अमीर के सिर की तरह बोलता है। इसे मुझे महल तक ले जाना पड़ेगा ताकि अगर अमीर का सिर फिर जाए तो यह घड़ा काम आ सके।’
‘होशियार मुल्ला नसरुद्दीन ! ऐसी बातें कहकर कहीं तुम अपना सिर न खो बैठो। ‘
‘मुल्ला नसरुद्दीन का सिर उड़ा देना हँसी-खेल नहीं है।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा और एक गीत गाने लगा, जिसमें बुखारा के अमीर का खुलकर मज़ाक उड़ाया गया था।
नयाज की पीठ के पीछे अंगूर की बेलों से गुलजान का हँसता हुआ चेहरा एक पल को दिखाई दिया। मुल्ला नसरुद्दीन ने गीत अधूरा छोड़ दिया और रहस्यपूर्ण इशारे करने लगा ।
‘उधर क्या देख रहे हो?’ नयाज ने पूछा।
‘बहिश्त की चिड़िया, जो दुनिया में सबसे ज़्यादा सुंदर है। ‘
नयाज बड़ी कठिनाई से पीछे की ओर घूमा। लेकिन तब तक गुलजान बेलों के पीछे गुम हो चुकी थी। केवल दूर से आती उसकी रुपहली हँसी सुनाई दे रही थी। धूप की चकाचौंध से बचने के लिए आँखों पर हाथ की आड़ बनाए वह देर तक अपनी कमज़ोर आँखें उधर गड़ाए रहा लेकिन उसे एक डाल से दूसरी डाल पर कूदती – फुदकती गौरैया के सिवा और कुछ दिखाई नहीं दिया।
‘समझ से काम लो नसरुद्दीन। यह तो मामूली गौरैया है। यह बहिश्त की चिड़िया कैसे हो गई?’
नसरुद्दीन क़हक़हा लगाकर हँस पड़ा।
बेचारा नयाज इस हँसी की तुक न समझकर निराशा से सिर हिलाने लगा।
रात के खाने के बाद नसरुद्दीन चला गया तो नयाज ऊपर छत पर जाकर हल्की गर्म हवा के झोंकों में सोने की तैयारी करने लगा। थोड़ी देर बाद ही उसके खर्राटे गूँज उठे।
तभी छोटे जँगले के पीछे से खाँसने की हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी। नसरुद्दीन लौट आया था।
‘अब्बा सो गए है!’ गुलजान से फुसफुसाकर कहा।
एक ही छलांग में मुल्ला नसरुद्दीन ने जंगला पार कर लिया।
वे दोनों चिनार के पेड़ों के साये में आ गए। हरे लिबास में लिपटे लंबे-लंबे पेड़ धीरे-धीरे ऊँघते दिखाई दे रहे थे। नीचे आकाश में चाँद चमक रहा था। उसकी पूरी रोशनी में गुलजान नसरुद्दीन के सामने खड़ी थी।
नसरुद्दीन ने बहुत ही धीमी आवाज़ में कहा, ‘मेरी रूह की मलिका, मैंने ज़िंदगी में पहली और आख़िरी बार मुहब्बत की है। मेरी ज़िंदगी तेरा ही इंतज़ार कर रही थी। अब मैंने तुझे पा लिया है। तेरे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता । ‘
‘मुझे यक़ीन है कि तुम यह बात पहली बार नहीं कर रहे हो । ‘
‘गुलजान, तूने ऐसा कैसे कहा ?’ नसरुद्दीन ने गुस्से से पूछा ।
नसरुद्दीन के इस गुस्से में सच्चाई थी। गुलजान को विश्वास हो गया। वह अपनी कही बात पर खेद प्रकट करती हुई उसके पास आ बैठी । नसरुद्दीन ने अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए ।
‘सुनो, हमारे यहाँ का रिवाज है कि जिस लड़की को चूमते हैं, उसे कोई-न-कोई तोहफ़ा देते हैं। एक हफ्ते से ज़्यादा हो गया। हर रात तुम मुझे चूमते हो, लेकिन तुमने अभी तक तार का एक टुकड़ा तक नहीं दिया। ‘ गुलजान ने शिकायत भरे लहजे में कहा।
मेरे पास पैसा नहीं था। आज तुम्हारे अब्बा ने मुझे पैसे दिए हैं। मैं कल ही तुम्हारे लिए एक बढ़िया तोहफा लाऊँगा। बताओ तुम्हें क्या पसंद है? मोती, रूमाल या बिल्लौर जड़ी अंगूठी ? ‘
‘कुछ भी सही, तुम्हारा जो भी तोहफ़ा हो, वही बहुत है। मैं तो तुम पर उसी वक्त निछावर हो गई थी, जब पहली बार बाज़ार में तुम हमारे पास आए थे। जब तुमने उस बदमाश सूदखोर जाफ़र को भगाया था, मेरा प्यार और भी बढ़ गया था।’
नसरुद्दीन गुलजान से और सटकर बैठ गया। उसने अपना हाथ बढ़ाया और हथेली से उसका उभरा हुआ नर्म गुदगुदा सीना थाम लिया। उसकी साँस रुक गई। उस पर जादू सा छा गया।
तभी उसकी आँखों के आगे चिंगारियाँ उड़ने लगीं। उसका गाल झनझना उठा।
‘बदतमीज ?’ गुलजान ने टोककर कहा, ‘यही क्या कम बात है कि मैं लाज शर्म छोड़कर बिना बुर्के के तुम्हारे सामने आ जाती हूँ। तुम अपने लंबे हाथ उधर क्यों बढ़ाते हो, जिधर तुम्हें नहीं बढ़ाने चाहिए । ‘
‘मेहरबानी करके यह बता दो कि यह किसने तय किया है कि हाथ किधर बढ़ाने चाहिएं, किधर
नहीं? अगर तुमने सबसे बड़े आलिम डुब्न तुफ़ैल की किताबें पढ़ी होतीं?’
‘खुदा का शुक्र है कि मैंने ऐसी गंदी किताबें नहीं पढ़ीं। ‘गुलजान क्रुद्ध होकर बीच में ही बोल पड़ी, ‘ मैं इज़्ज़त की हिफाजत करती हूँ, जो हर शरीफ़ लड़की को करनी चाहिए।’
वह उसके पास से तेज़ी से चली गई। जीने की सीढ़ियाँ उसके धीमे क़दमों से चरमराईं और फिर बारजे की झिरीदार खिड़की से रोशनी आती दिखाई देने लगी।
मैंने उसके मन को ठेस पहुँचाई। मैं बहुत बड़ा बेवकूफ़ हूँ। कोई बात नहीं। कम-से-कम यह पता तो लग गया कि उसका स्वभाव कैसा है। अगर वह इस तरह मेरे तमाचा मार सकती है तो किसी और के भी जड़ सकती है। वह बहुत ही वफ़ादार बीवी साबित होगी। जिस तरह शादी से पहले वह मेरे तमांचे मार सकती है, अगर शादी के बाद इसी तरह दूसरों के भी तमाचे मार सके तो मुझे बड़ी तसल्ली होगी ।
‘ पंजे के बल चलकर वह बारजे तक पहुँचा । उसने हल्के से पुकारा, ‘गुलजान! गुलजान । ‘
खुशबू, अँधेरा और ख़ामोशी । नसरुद्दीन उदास हो उठा। और इतनी धीमी आवाज़ में एक प्यार भरा गीत गाने लगा कि नयाज के कानों तक उसकी आवाज़ न पहुँच पाए ।
वह गाता रहा। लेकिन गुलजान ने न तो कुछ कहा और न सामने ही आई। उसे विश्वास था कि ऐसा प्यार भरा गीत सुनकर कोई भी लड़की बैठी नहीं रह सकती। वह ज़रूर सुन रही होगी । उसका अनुमान सही था। कुछ देर बाद झिलमिली थोड़ी सी खुली ।
‘आओ,’ गुलजान से फुसफसाकर कहा, ‘लेकिन धीरे से आना। कहीं अब्बा जाग न जाएँ।’
वह जीना चढ़कर ऊपर पहुँचा और उसके पास जा बैठा। वे दोनों बातें करने लगे।
