sahi soch
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एक बार एक व्यक्ति अपने दो पुत्रें को एक प्रदर्शनी दिखाने ले गया। टिकट खिड़की पर टिकटों का मूल्य इस प्रकार लिखा था-छह वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क प्रवेश। छह से बारह वर्ष तक के बच्चों के लिए पांच रुपए। बारह वर्ष से अधिक उम्र वालों के लिए दस रुपए।

उस व्यक्ति ने टिकट बेचने वाले को पच्चीस रुपए देते हुए कहा, छोटा लड़का सात साल, बड़ा लड़का तेरह साल, एक टिकट मेरा। टिकट देते हुए बुकिंग क्लर्क ने कहा कि वह कैसा अजीब आदमी है। अगर चाहता तो कम से कम दस रुपए बचा सकता था।

छोटे को छह साल का बताता और बड़े को बारह साल का। उसे एक-एक साल का अंतर पता नहीं लगने वाला था। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि बेशक उसे पता नहीं चलता लेकिन बच्चों को तो उनकी उम्र पता है और वह नहीं चाहता कि वे इस बुरी बात से सीख लेकर आगे भी इसी तरह की बेईमानी करना सीखें।

सारः सद्गुणों की नींव व्यक्तित्व में बचपन से ही पड़ती है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)