जाड़े के दिन थे। भयंकर बरसात हो रही थी। एक निर्धन वृद्धा जो छोटे-मोटे काम करके गुजारा करती थी, वह अपनी झोपड़ी में सो रही थी। एकाएक उसने एक जोरदार आवाज सुनी। वह उठी और तेजी से पास की नदी की ओर दौड़ी। उसका अनुमान था कि आवाज उधर से ही आई है।
नदी किनारे पहुँच कर उसने देखा कि भयंकर बरसात से उस पर बना पुल टूट गया है। तभी उसे ध्यान आया कि यह समय एक रेलगाड़ी के आने का है। वह परेशान हो उठी। वह रेलगाड़ी को दूर से ही रोकने का उपाय सोचने लगी। वह जिस इलाके में रहती थी, वहाँ दूर-दूर तक चारों ओर उजाड़ था। बस्ती उस स्थान से कोसों दूर थी। वृद्धा ने सोचा कि प्रकाश द्वारा ड्राइवर को सूचना दी जा सकती है।
वह दौड़ती हुई अपनी झोपड़ी पहुँची और बेटी को किसी भी तरह प्रकाश की व्यवस्था करने को कहा। लेकिन गरीबी के कारण घर में कोई दूसरा ऐसा सामान नहीं था जिसे जलाकर वह रोशनी करे और ड्राइवर को सावधान करे। अचानक वृद्धा की नजर अपनी चारपाई पर पड़ी। उसने जल्दी से अपनी बेटी की मदद से चारपाई को तोड़-ताड़ कर रेलवे लाइन पर रख दिया और जला दिया। दूर से रेलगाड़ी आती नजर आई। ड्राइवर ने वीरान जंगल में प्रकाश देखकर शंका की तथा रेलगाड़ी रोक दी।
जब रेलगाड़ी रुकी और ड्राइवर ने टूटा पुल देखा तो वह उस बूढ़ी अम्मा के प्रति सम्मान से भर गया। ट्रेन के यात्रियों में यह बात आग की तरह फैल गई कि उस वृद्धा ने अपने घर की एकमात्र चारपाई को तोड़कर हजारों लोगों की जान बचाई। वृद्धा को कई लोगों ने कई तरह की मदद के लिए हाथ बढ़ाए लेकिन उसने कहा कि मैं इतने छोटे इनाम को नहीं ले सकती। आप लोग कभी किसी की मदद कर देना वही मेरे लिए सबसे बड़ा इनाम होगा।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
