Hindi Immortal Story: बलवानपुर का राजा था हठीसिंह। वह बड़ा ही वीर था और प्रतापी था। आसपास के राजा उसका नाम सुनकर काँपते थे। कहते हैं, उसने छप्पन राज्यों को जीता था। इसलिए दूर-दूर तक लोग उसे छप्पनिया राजा कहकर पुकारते थे। चारों तरफ उसके नाम का डंका पिटता। इसलिए उसके घमंड और अहंकार का कोई ठिकाना नहीं था। गुस्सा तो उसकी नाक पर धरा रहता था। और जरा सी बात पर किसी को मृत्युदंड देने, यहाँ तक कि हाथी के पैरों तले कुचलवाने में भी उसे देर नहीं लगती थी। इसलिए दरबारी उसके गुस्से के मारे थर-थर काँपते थे।
एक बार की बात, राजा हठीसिंह अपने दरबार में बैठा था। सभी दरबारी गंभीर चेहरा बनाकर बैठे थे, ताकि राजा हठीसिंह को उनकी किसी बात से गुस्सा न आ जाए। खासकर दरबारियों की हँसी से तो वह बहुत चिढ़ता था। इसलिए उसके दरबार में सब होंठ सीकर बैठते थे।
दरबारी बड़ी देर से मन ही मन खीज रहे थे, पर लाचार थे। सोच रहे थे राजा हठीसिंह दरबार बर्खास्त करे, तो वे चैन की साँस लें। इतने में गेरुए कपड़े पहने एक साधु बाबा आए। राजा को आशीर्वाद देते हुए बोले, “राजा, मैं हिमालय की कंदराओं से आ रहा हूं। वहीं मुझे सब कुछ पता चल गया। पर अब सब ठीक हो जाएगा राजा! तुम चिंता न करो।”
“क्या ठीक हो जाएगा साधु बाबा?” हठीसिंह ने चिढ़कर कहा, “मुझे तो किसी बात की चिंता नहीं है। भला राजा हठीसिंह जैसे प्रतापी राजा का चिंता करने से क्या वास्ता?”
साधु बाबा ने गंभीर होकर कहा, “बीमार आदमी अपनी बीमारी नहीं जानता राजा। किसी दूसरे को ही उसका इलाज करना पड़ता है।”
“क्या कह रहे हैं आप?” राजा हठीसिंह का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
लेकिन साधु शांत। बिल्कुल शांत। बोला, “राजा, तुम्हारे दरबार में ऐसा सन्नाटा है, जैसे यह राजदरबार न हो, मरघट हो। कोई दरबारी बिना तुम्हारी इच्छा के एक शब्द बोलने का साहस नहीं कर सकता। और न यहाँ किसी के हँसने या बात करने की ही आवाज आती है। सब इस कदर डरकर बैठे हैं जैसे तुम कोई शेर हो और इन्हें खा जाओगे। तुम्हीं बताओ, क्या ये स्वस्थ आदमी के लक्षण हैं राजा? तुम निश्चय ही बीमार हो। और तुम्हारी बीमारी इधर हद से ज्यादा बढ़ गई है।”
इस पर राजा हठीसिंह का चेहरा गुस्से के मारे लाल हो गया। आँखों से अंगारे निकलने लगे। कोई और होता तो यह बात कहने पर वह फाँसी पर चढ़ा देता या कम से कम धक्के मारकर तो बाहर निकाल ही देता। पर भला साधु से वह क्या कहे?
दरबारी भी साँस रोककर बैठे थे कि देखें, अब आगे क्या होता है! राजा हठीसिंह साधु को सजा दिए बगैर यों ही जाने न देगा।
पर नहीं। थोड़ी देर में राजा का गुस्सा खुद-ब-खुद धीरे-धीरे उतरने लगा। फिर उसका चेहरा शांत, एकदम शांत हो गया। गहरे दुख और पछतावे से भरकर बोला, “साधु बाबा, आज तक मुझसे किसी ने सच्ची बात नहीं कही थी। सब मुझसे डरते थे, इसलिए सिर्फ चापलूसी करते थे। आपने आज सच्ची बात कहकर मुझे उबार लिया। पर अब कृपया रास्ता भी बताए। कैसे मैं अपने गुस्से से छुटकारा पाऊँ?”
“रास्ता तो तुझे खुद निकालना पड़ेगा राजा।” साधु बाबा ने कहा, “हाँ, मैं हिमालय की कंदराओं से आ रहा हूं। वहीं से एक पीला फूल मैं साथ ले आया हूं। इसे अपने पास रखना, शायद इससे तुझे थोड़ी मदद मिल जाए।”
कहकर साधु बाबा चले गए।
राजा ने उसी समय दरबार बर्खास्त कर दिया। अपने महल में आकर सोचने लगा, ‘ओह, क्या से क्या हो गया? साधु बाबा ने मेरे घमंड की सारी परतों को चीर दिया। आज मुझे सच्चाई साफ नजर आ रही है। मेरे दरबारी मेरी हालत पर किस कदर हँस रहे होंगे। साधु बाबा ने भी कितनी कड़वी सच्चाई मेरे सामने रख दी कि मैं बीमार हूं, बीमार! ओह, मैं अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए क्या करूँ…क्या करूँ?’ तुरंत राजा को साधु बाबा द्वारा दिए गए हिमालय पर्वत के फूल की याद आ गई। सोचने लगा, ‘देखूं, हिमालय पर्वत के इस फूल से मुझे क्या मदद मिलती है?’
उसने इस फूल को उठाया तो हैरान रह गया। उस पर सुंदर लाल अक्षरों में लिखा था, ‘महाराज, साधु बाबा ने ठीक कहा है, अपना अभिमान छोड़ दीजिए। रास्ता निकल आएगा।’
राजा कुछ समझ नहीं पाया। घबराकर उसने आँखें बंद कर लीं। अगले ही क्षण आँखें खोलीं तो लगा हिमालय पर्वत से लाया गया साधु बाबा का वह पीला फूल हँस रहा है। उस पर लिखे लाल अक्षर गायब हो चुके थे।
फिर तो राजा हठीसिंह ने पंपापुर के उस फूल को बहुत सँभालकर रख लिया। जब भी वह बेचैन होता, उस फूल को उठाकर देख लेता। उसमें उसे जरूरी संदेश मिल जाता।
एक बार राजा हठीसिंह के दरबार में एक दरबारी किसी बात पर बड़े जोर से हँस पड़ा। राजा हठीसिंह अब काफी बदल गया था। फिर भी उस दरबारी के हँसने पर वह चिढ़ गया और उसने उसे फाँसी की सजा दे दी। लेकिन घर आया तो राजा परेशान था। इसी परेशानी में उसका हाथ हिमालय पर्वत के उस पीले फूल की ओर चला गया। उसने उस फूल को उठाकर देखा। उस पर सुंदर, लाल अक्षरों में लिखा था, ‘क्रोध न करें राजा, साधु बाबा की बात याद करें।’ राजा ने उसी समय तुरंत एक विशेष दूत को भेजकर उस दरबारी की सजा खत्म करा दी।
इससे चारों ओर राजा का नाम होने लगा। उसकी उदारता की चर्चा होने लगी। धीरे-धीरे राजा एकदम विनम्र हो गया। राजा खुश तो रानी, चाकर और दरबारी भी खुश।
फिर एक दिन साधु बाबा आए। बोले, “लाओ राजा, हिमालय के शिखरों से लाया गया वह पीला फूल। अब तेरे जैसे कई दूसरे बीमारों का इलाज करना है।”
सुनकर राजा हठीसिंह खिलखिलाकर हँस दिया। उसने खुशी-खुशी साधु बाबा को हिमालय पर्वत का वह पीला फूल लौटा दिया। और उसे छोड़ने के लिए खुद द्वार तक आया। इसके बाद किसी ने हठीसिंह को किसी पर गुस्सा करते नहीं देखा।
ये कहानी ‘शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Shaurya Aur Balidan Ki Amar Kahaniya(शौर्य और बलिदान की अमर कहानियाँ)
