bujurgon ka aasheervaad Moral Story
bujurgon ka aasheervaad Moral Story

पुराने समय में एक सुंदर राज्य था, पूपापुर। वहाँ के राजा थे राजदेव। दूर-दूर तक उनकी कीर्ति फैली थी। बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी सम्मान से उनका नाम लेते थे। इसलिए कि राजा राजदेव अपनी प्रजा को बहुत चाहते थे। पंपापुर को उन्होंने बिल्कुल स्वर्ग जैसा बना दिया था।

एक बार की बात, राजा राजदेव का जन्मदिन था। सारी राजधानी को किसी दुल्हन की तरह सजाया गया। शाम के समय जन्मदिन का भव्य समारोह था।

सभी लोग एक से एक बेशकीमती उपहार राजा को भेंट करने के लिए लाए। लेकिन राजा का प्रिय दरबारी उजागरमल अभी तक नहीं आया था। राजा राजदेव ने उसके बारे में पूछा, तो किसी ने कहा, ”महाराज, उजागरमल कंजूस है। इसीलिए टाल गया है।”

सुनकर मंत्री और सेनापति जोर से हँस पड़े। उजागरमल के सामने तो उनकी कुछ चलती नहीं थी। इसलिए पीठ पीछे उसकी किरकिरी हो, तो उन्हें अच्छा लगता था।

कुछ देर बाद उजागरमल तेजी से आता दिखाई दिया। उसके पीछे-पीछे एक सेवक टोकरा भर आम लिए हुए था। देखकर सभी दरबारी हँसने लगे। बोले, ”उजागरमल, तुम्हें राजा को उपहार देने के लिए कुछ और नहीं मिला?”

राजा राजदेव भी मन ही मन हँस रहे थे। उजागरमल की बातों से हमेशा उनका मनोरंजन होता था। सोच रहे थे, देखें भला उजागरमल आज क्या कहता है?

इतने में पास आकर उजागरमल बोला, ”महाराज, आपके जन्मदिन पर क्या भेंट दूँ, कुछ सोच नहीं पा रहा था। हर चीज छोटी और मामूली लगती थी। तभी याद आया, गाँव में मेरे दादा के दादा के हाथ का लगाया एक आम का पेड़ है। उस पेड़ के आमों का स्वाद और खुशबू लाजवाब है। दूर-दूर तक उनकी सुगंध फैलती है। अब उस पेड़ पर आम तो कम लगते हैं, पर उनका स्वाद और खुशबू वैसी ही है। आपके जन्मदिन के लिए यही उपहार मुझे जँचा। दौड़ा-दौड़ा गाँव गया और वहीं से सीधा चला आ रहा हूँ। आप ये आम खाएँ, तो मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।”

राजा ने एक आम खुद लिया और बाकी दरबारियों में बँटवा दिए। सबने वे सिंदूरी आम खाए, तो ‘वाह-वाह’ कर उठे। उन आमों का स्वाद तो अनोखा था ही, खुशबू भी मन को तृप्त करने वाली थी।

”जन्मदिन पर मुझे एक से एक अच्छे उपहार मिले, पर सबसे बेशकीमती उपहार उजागरमल का ही था। इसलिए कि इसमें बुजुर्गों का आशीर्वाद शामिल है। और दुनिया में इससे बढ़कर कुछ और नहीं है।” कहकर राजा राजदेव ने अपने गले का हार उतारा और उजागरमल के गले में डाल दिया। सभी दरबारी जो उजागरमल का मजाक उड़ा रहे थे, अब सिर नीचा किए बैठे थे।