बस और अब नहीं—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Reality of Women Story
Reality of Women Story-Bas or Ab Nahi

Reality of Women Story: सत्रह बर्ष की सलोनी दो बर्ष की बेटी का हाथ थामे और आठ महीने के पेट के साथ अपने पिता के मरने पर उसके लिए रोने मायके आई है। दिल कहता है बाप था तेरा, जरा तो संवेदना दिखा, इन आंखों से दो आंसू तो इस रिश्ते के लिए गिरा दे, पर दिमाग तो कुछ और ही कहता है, कैसा पिता ?किस का पिता? जो मां से तीस वर्ष बड़ा था, हमेशा दारू पीकर घर में हंगामा करता, मां को मारता पीटता। क्योंकि एक उम्रदराज इंसान की पत्नी यदि थोड़ी सी भी अच्छी दिखती है तो उसे हमेशा संशय बना रहता है कि कहीं वो उसे धोखा तो नहीं दे रही।

पास में ही सलोनी की मां तारा बैठी रो रही है, कोई नहीं कह सकता कि वह मरने वाले की पत्नी हैं, तारा सलोनी की बड़ी बहन जैसी ही लगती है।

सलोनी के दिमाग में इस समय भी हजार सवाल चल रहें हैं कि ऐसी भी मां-बाप की क्या मजबूरी होती है जो अपनी ही बेटी को आंख बंद कर किसी के भी साथ, कितनी ही उम्र का हो,कैसा भी हो, बस ब्याह करके अपना फर्ज तो निभा लेते हैं पर उस मासूम को जिंदगी भर का दुख दे देते हैं।

क्या बेटी का कोई आत्मसम्मान नहीं होता, क्या उसका स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं होता, क्या बेटी के रूप में जन्म लेना ही धरती पर इतना बड़ा अपराध है? यह सब सोचते सोचते सलोनी अपने बीते हुए बर्षो में चली गई। अभी तो उसका बचपन भी अच्छे से नहीं बीता था, किशोरावस्था में कदम ही रखा था, न जाने कितने सवाल उसके मन में थे, जिनके जवाब में अभी उसे मिलने थे। सलोनी पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी। उसने अपनी मां को तिल तिल मरते हुए देखा था, नर्क जैसी जिंदगी जीते हुए देखा था, रात को जब भी उसका शराबी बाप पीकर लौटता तो नशे में धुत होकर उसकी मां को और उसको बहुत मारता।शराब के लिए पैसे न मिलने पर घर में कोहराम मचाता।

खुद सलोनी के साथ भी तो उसके बाप ने ऐसा ही किया थोड़े से रुपयों की खातिर उसे उम्र में अठ्ठारह बरस बड़े आदमी से ब्याह दिया, क्योंकि उस शराबी आदमी को सिर्फ अपना कर्जा उतारने के लिए पैसा चाहिए था।

वह एक बार अपने पिता को देखती है तो एक बार अपने पति को,
उसका मन घृणा से भर जाता , उसे मर्द जाता से नफरत होने लगती है, वह मन ही मन सोचती है कि क्या एक लड़की किसी भी मर्द के लिए सिर्फ एक शरीर है, एक सामान है, खुद उसकी कोई इच्छाएं नहीं होती, क्या वो जिंदगी को अच्छे से जीना नहीं चाहती।तभी उसकी नजर पास बैठी मां पर जाती है, उसे अपनी मां में अपना अक्स नजर आता है, सोचती है “बस अब और नहीं……”
जो उसके और उसकी मां के साथ हुआ वो उसकी बेटी के साथ कभी नहीं होगा, कोई सलोनी अब अपनी मर्जी के खिलाफ विवाह के नाम पर अनचाहे बंधन में नहीं बंधेगी।

मन में ऐसा दृढ़ निश्चय करते हुए अपनी बेटी का हाथ मजबूती से पकड़ते हुए सलोनी अपने और अपनी बेटी के आत्मसम्मान के लिए अपने बाप के शव पर दो फूल चढ़ा आगे बढ़ जाती हैं।

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