Hindi Story: बिपोद दा हमेशा ही विपदा (परेशानी) में रहे। बिपोद दा का पूरा नाम बिपोद दास है। शुरुआती दिनों में बिपोद दा को कोई परेशानी नहीं थी। बिपोद दा बहुत सीधे -साधे थे । गांव में लोग बाग यह कहते थे बिपोद दा “गोरु अछे गोरु !” एकदम गाय की तरह। बिपोद दा की दो बहन एक भाई भी थे। बिपोद को पढ़ने-लिखने का खूब शौक था । इस वजह से वह सारा दिन पढ़ाई में डूबे रहते थे पर इस बात में भी तब विराम लग गया जब दसवीं के एग्जाम शुरू हुए थे तीसरा पेपर देने के बाद अचानक बिपोद को लगा कि मुझे अब एग्जाम ड्रॉप कर देना चाहिए क्योंकि उनका तीसरा पेपर अच्छा नहीं गया ।
मगर बिपोद दा के पिता ने उन्हे सलाह दी कि एग्जाम में बैठो ताकि क्वेश्चन पेपर तो तुम्हें मिल जाए । अगले साल जिससे तुम इसी पेपर के आधार पर तैयारी कर सको । बिपोद दा ने पिता की बात मान ली और उन्होंने सारे पेपर दिये और हर पेपर में वह थोड़ा बहुत लिख कर बैठे रहते। रिजल्ट आया तो बिपोद दा थर्ड डिवीजन से पास हो गये। बिपोद दा को यह बात एकदम हजम नहीं हुई वह विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि वह पास कैसे हो गए? वह तो पास हो ही नहीं सकते हैं । विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि वह पास कैसे हो गये, वह सोचते मैंने तो कुछ लिखा ही नहीं था और जो लिखा था वह इतना नहीं था कि मैं पास हो जाऊं । बिपोद दा ने स्कूल में एक अर्जी डाली कि मेरी कॉपी फिर से चेक की जाए ,मैं पास नहीं हो सकता। यहां तक की कोर्ट से भी एक नोटिस स्कूल को भेजवाया तब कुछ मित्रगण बिपोद दा के बारे में यह कहने लगे कि बिपोद दा गोरु ना, झागोल (गधा) अच्छे। वह यही सोच रहे थे कि लोग पास होने के लिए कॉपी चेक करवाते है और यह है कि फेल होने के लिए कॉपी चेक करवा रहा है ।
यह बिपोद दा के ऊपर पहली विपदा आयी थी । आखिरकार पेपर चेक होने के बाद बिपोद दा को फेल घोषित किया गया । फेल होने का बिपोद दा के ऊपर कोई खास फर्क नहीं पड़ा उल्टा वह फेल होने पर बहुत खुश हुए l उन्होंने दुबारा से तैयारी शुरु कर दी। बिपोद दा अगले साल फर्स्ट क्लास पास हुए थे । बिपोद दा ने इसी तरह पढ़ते हुए फर्स्ट क्लास से ग्रेजुएशन पूरा किया। आगे क्या करते , नौकरी ढूंढते ,जाहिर सी बात थी फिर कई सरकारी नौकरियों के एग्जाम दिए पर वही साढे सात बटा जीरो l कहीं सेलेक्शन नहीं हुआ। बिपोद दा बहुत परेशान हुए खूब चिंतित हुए । कोई छोटी-मोटी नौकरी वो करना नहीं चाह रहे थे ।
फिर चास (खेती) से थोड़ा बहुत घर चलता था। वो भी अब थोड़ा बहुत ही हो पा रहा था। इधर नौकरी न मिलने पर बिपोद दा ने पिता के साथ खेतों में जाना शुरु किया। उन्हें इस बात की शंका थी कि पिता जी अकेले चास नहीं कर पा रहे हैं उसके हाथ बटाने से खेती अच्छी होगी और वो नौकरी का प्रयास भी कर पाएंगे।
पिता नाविक और बिपोद दा खेती में लगे रहते । सही तरीके से सिंचाई, खाद देने के बाद भी खेती नहीं हो पा रही थी। केले के पेड़ भी लगाए थे । केले के हरे मुलायम पत्तों पर खूब काली डस्ट बैठ जाती । बिपोद दा ने एक दो केले के पत्तों की साफ सफाई करना शुरु किया। वो हर दिन सुबह सफाई करके जाते मगर अगले दिन सुबह फिर डस्ट मिलता।
एक बार एक ख़ाली बाल्टी मे आधा पानी भर खेतों में छोड़ कर चले गये अगले दिन देखा तो पानी के ऊपर भी खूब मोटी डस्ट की परत जम गयी है । बिपोद दा को इससे दो बातों की जानकारी मिली। पहली यह कि डस्ट रात को ही ज़्यादा आती है जिसकी वजह से पौधों को ठीक से पोषण नहीं मिल रहा । उपज सही से नहीं हो पाती। प्रकाश संश्लेषण ,वह प्रक्रिया है जिसमें पेड़ पौधे CO2, H2O और प्रकाश की मदद से क्लोरोफिल की उपस्थिति में अपना भोजन तैयार करते हैं इस प्रक्रिया के द्वारा पेड़ पौधों को ऊर्जा प्राप्त होती है और वे जीवित रह सकते हैं। यही क्रिया सही से नहीं हो पाती इसलिए पौधों का विकास सही रूप से नहीं हो पाता । सही समय पर पौधों को सही पोषण न मिलने के कारण खेती सही से नहीं हो पाती थी। बिपोद दा इसकी जानकारी के लिए खूब घूमने लगे। खैर जो कारण पता चला वो चौकाने वाला था। दरअसल रानीगंज,दुर्गापुर,अंडाल, मेजिया,जमुरिया में छोटी बड़ी मिलाकर सरिया बनाने के करीब सौ से ऊपर प्लांट थे। इन सब की वजह से पूरे रानीगंज शहर से लेकर ग्रामीण इलाके तक आयरन स्पंज और कोयले का डस्ट ,धूल फैलता जा रहा था।
गांव के किसान मजदूरों के घर से लेकर छोटे कारोबारियों के घरों की बाहर की दीवालों से लेकर ,घर के अंदर तक डस्ट फैल गया था। हर खूबसूरत घर की दिवार काली पड़ चुकी थी। हर वृक्ष के हरे पत्ते काले पड़ चुके थे । शहर मे घूमते हर शख्श की कमीज की कॉलर डस्ट से बुरी तरह मैली रहती। शहर का हर व्यक्ति मुँह में रुमाल,डस्टर ,बांध घूमने लगा। दरअसल इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेट (ESP) उपकरण का एक टुकड़ा है जिसका उपयोग धूल के कणों को पकड़ने के लिए किया जाता है जो विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित या मुक्त होते हैं। ई.एस.पी का उद्देश्य इन कणों को उस वातावरण में निष्कासित होने से बचाना है जहां वे प्रदूषण का कारण बन सकते हैं। स्टील प्लांट के चिमनियों के नीचे लगे ई.एस.पी जो आयरन डस्ट को पूरी तरह जला कर छाई में तब्दील कर चिमनी के नीचे क्लैक्ट करता है बिजली बचाने के लिए स्टील प्लांट वाले ई.एस.पी की मोटर को बंद कर दिया करते थे जिससे डस्ट बाहर डायरेक्ट निकाल दिया करते। यह डस्ट दूर- दूर तक फैल जाता। जिधऱ हवा का रुख रहता डस्ट उधर जा गिरता। यह कार्य ज्यादातर रात की पाली में होती ।
सरिया कम्पनी के मालिक को इससे कोई लेना देना नहीं था उन्हें सिर्फ प्रोडक्शन से लेना देना था। वो दूर दराज अच्छी जगहों पर फार्म हॉउस में रहते थे।
बिपोद दा पूरी तरह शोध करने के बाद और अपनी तरफ से पूरी संतुष्टि करने के बाद गांव के मुखिया के पास गये और मुखिया को अपनी पूरी बात बताई। मुखिया उनकी पूरी बात सुन हंसा और बोला, “पृथ्वी में अब कौन सी ऐसी जगह रह गई है जहां प्रदूषण नहीं है। तमाम मोबाइल के टावर लगने के बाद अब गोरैया और चील जैसे पक्षी कहां दिखते हैं?वैसे भी अब इंसानो की जिंदगी ही कितनी रह गई है?
“इस तरह तो पूरे गांव की खेती बर्बाद हो जायेगी ।” बिपोद दा बोले l
“तुम जिस गांव की बात कर रहे हो। उसी गांव के तमाम लोग इसी कम्पनियों में क़ाम कर रहे है । उन्हें तो डस्ट,धूल नहीं दिख रहा।” मुखिया ने जवाब दिया l
“तो क्या हम सब किसान खेती छोड़ कर अब सरिया कम्पनी में लग जाये।.” विपोद दा बोले l
“तो क्या हम कम्पनी बंद करवा दें । लोगों को रोजगार चाहिए शुद्ध हवा नहीं । ” मुखिया बोले
” मैं कंपनी बंद करवाने की बात नहीं कर रहा कंपनी को सिस्टम से चलाने की बात कर रहा हूं सरकार ने कंपनी चलाने के लिए कई नियम बनाए हैं जिसे कंपनी कदाचित फॉलो नहीं कर रही है।” बिपोद दा बोले l
” ठीक अच्छे अमि चेस्टा कोरबो। किन्तु अमि जानी कुछु होबे न “(मै प्रयास करूंगा। मगर मैं जानता हूँ कुछ नहीं होगा।)l मुखिया ने जवाब दिया l
इस बातचीत के बाद भी कुछ करवाई नहीं हुई। दरअसल मुखियाँ ,एम.एल.ए ,सब अच्छी तरह जानते थे। स्पंज आयरन की इंडस्ट्री से डस्ट तो उड़ेगा ही। लाख जतन कर लें, शत प्रतिशत डस्ट फ्री प्लांट नहीं हो सकता। और सेठ इसके लिए पैसे भी दे रहा है । यह पैसे, एम.एल.ए के पास जाता। एम.एल.ए इन पैसो को सबमे बाँट देता,लोकल नेता,मुखिया,पल्यूशन बोर्ड आदि तक ताकि प्लांट आराम से चलता रहे।
मगर बिपोद दा ने गांव के घर जा जा कर लोगों के जागरूक किया। और लोगों को ले जाकर प्लांट के बाहर धरना दिया। खूब हो हल्ला किया,पर कम्पनी के ई .डी ने प्रशासन से यह कहा कि इसे लेकर वही लोग विरोध कर रहे हैं, जिन्हें काम नहीं मिलता। ‘
क्योंकि कुछ ग्रामीण-मजदूर कंपनी के पक्ष में खड़े हो गए क्योंकि उनकी रोजी-रोटी स्टील प्लांट से चल रही थी। बस इसी बात का ईडी ने फायदा उठा लिया।
बिपोद दा की बात नहीं मानी गयी। बिपोद दा भी समझ गये कि इतना आसान नहीं है सिस्टम से लड़ना । बिपोद दा इस विपदा को छोड़ पीछे हट गये। बिपोद दा के बारे मुखियाँ ने भी यही संदेश पहुँचा दिया कि “यह तुम सब की रोजी रोटी छीनना चाहता है । इसमें तो एक पागल पन छाया है ।”
बिपोद दा अपनी पढ़ाई में लगे रहे। एक के बाद एक एग्जाम देते रहे। अंतत बिपोद दा का चयन हुआ और उन्हें पॉल्युशन बोर्ड में नौकरी मिल गयी।
इसी बीच मुखिया को खूब जोर की खांसी शुरु हुई। खांसी न रुकने की स्थिति में उन्हें हार कर डॉक्टर के पास जाना पड़ा । कई तरह के टेस्ट के बाद पता चला कि लंग्स में जमे डस्ट की वजह से उन्हें कैसर हो गया है और अब वो भी आखरी स्टेज पर है । मुखिया यह सोचने पर मजबूर हो गया कि काश उस दिन बिपोद की बात मान ली होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता ।
मुखिया ने पार्टी के एम.एल.ए से मदद मांगी।
एम.एल.ए ने सेठ से मदद मांगी। सेठ ने पल्ला झाड़ लिया क्योंकि सेठ जानता था कि एक मुखिया जायेगा तो दूसरा आ जायेगा।
मुखिया को उस दिन यह बात समझ में आ गयी कि जो आज उनके साथ हुआ है ,भविष्य में उसकी पुनरावृत्ति न हो। मुखिया बिपोद दा के पास गये। ठीक उसी तरह जिस तरह बिपोद एक दिन मुखिया के पास आये थे ।
