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गृहलक्ष्मी की कहानियां : टू एग्जाम पेपर
Stories of Grihalaxmi

गृहलक्ष्मी की कहानियां : वो अपनी सहेली जो बगल में थी उससे कहा, रिम्पी हमारे पास सैकेंड एग्जाम पेपर है। एक मैं टीचर को दे देती हूं। उसने कहा, नहीं-नहीं, प्रियांजली मत देना। 
तुम इसे अपने पास रखोगी तो तुम्हारे पास दो एग्जाम पेपर कलेक्ट हो जाएंगे। उसकी बातों के भ्रमजाल में मैं फंस गई, ये सब गलत लगते हुए भी हमने वो पेपर टीचर को नहीं दिए। मेरा बाल्यमन उसकी बातों में आ गया। तभी मैम ने डस्टर को टेबल पर लगाते हुए जोर-जोर से चिल्लाई किसके पास दो पेपर गया है, क्योंकि एक पेपर हमारे पास कम है। इस पर सभी छात्रों ने जवाब दिया हमारे पास नहीं है। इस पर टीचर ने डांटा यदि नहीं दोगे तो पता चलने पर बहुत ही मार पड़ेगी। इस पर मैंने डर के मारे अपनी सीट से निकल पेपर लेकर टीचर को देते हुए बोली कि हमारे पास है। 
इस पर टीचर ने हमें बहुत डांटा और कहा कि इतनी देर से मैं चिल्ला रही थी तो तुम कहां थी? इस पर मैं घबराई सी खड़ी रही, मुझे बहुत ही शॄमदगी महसूस हुई।

गृहलक्ष्मी की कहानियां : टू एग्जाम पेपर
Stories of Grihalaxmi

1- बेटा तू रो क्यों रहा है?

उस वक्त मैं तीसरी कक्षा में पढ़ता था। ऌगॢमयों की छुट्टियां मनाने के लिए मैं शिमला गया था तब चाचा जी छोटा शिमला में रहते थे और वे एसएसवी ऑफिस में कार्यरत थे। एक बार मेरी टांग में फुंसी निकल आई। उस दिन दोपहर को जब चाचाजी लंच करने आए और दादी अम्मा ने उनसे कहा कि वो अपनी डिस्पैंसरी में इसे दिखा लाए क्योंकि इसकी टांग में फुंसी हो गई है। चाचाजी मुझे चैकअप करवा कर घर की सीढ़ियों तक छोड़कर वापिस लौट गए।
मेरे मन को लगा कि यहां मेरा घर नहीं है और पुन: उनके ऑफिस पहुंच गया। मैं रो रहा था तो एसएसवी के एक ट्रक ड्राईवर ने मुझसे पूछा कि क्या बात है? बेटा तू क्यों रो रहा है। मैंने कहा कि मेरा घर ढल्ली में है मुझे वहां जाना है। उन्होंने मुझे ढल्ली पहुंचाकर पूछा कि बता तेरा घर कहां है? वहां मैं असंख्य मकानों की भीड़ देखकर रो पड़ा। मैंने कहा कि घर शिमला में है।
उन लोगों ने मुझे शिमला पहुंचा दिया। शिमला तो हिमाचल प्रदेश की राजधानी है वहां तो जहां देखो भवन ही भवन है। तभी एक पुलिस वाले की नजर मेरे पर पड़ी वो मेेरे चाचा जी को जानता था। उन एसएसवी वालों ने मुझे उस पुलिस वाले के पास छोड़ दिया। पुलिस वाले ने तब फोन करके मेरे चाचा जी को सारा वाक्या बताया। मैं चाचाजी के आने का इंतजार कर रहा था। वो आए बड़े प्यार से मुझे घर ले गए। दादी मां मुझे देखकर खुश हो गई।

गृहलक्ष्मी की कहानियां : टू एग्जाम पेपर
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2- पूरा मुंह कला

तब मैं छोटी बच्ची थी। जब मेरा भाई पैदा हुआ तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुझे वो बहुत अच्छा लगता था। मेरी मां नजर न लगे इसके लिए उसके माथे पर काजल से काला टीका लगा देती थी। एक रोज भैया बीमार हो गया। उसे दस्त लगने लगे और बुखार भी हो गया था। ‘न जाने मेरे लाल को किसकी नजर लग गई।’ मां रोते हुए बोली। उसकी रात जब मां सो रही थी तो मैंने चुपके से काजल की डिबिया खोलकर सोते हुए भैया के पूरे चेहरे पर मल दिया। सुबह मां ने उसका पूरा मुंह काला देखा तो वे सन्न रह गई। ‘गुड्डी, तूने यह किया?’ मां ने मुझसे पूछा तो मैंने हां कहा। उन्होंने कारण पूछा तो मैंने कहा, ‘मां ताकि भैया को अब किसी की नजर नहीं लगे।’ मेरा जवाब सुन मां को हंसी आ गई। उन्होंने मुझे गले लगा लिया। बचपन की वो शरारत आज भी गुदगुदा जाती है।

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