Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय की बात है, प्रजापति बनने से पूर्व रुचि नामक युवक ने अपने लिए न तो किसी घर या महल की स्थापना की और न ही कभी किसी आश्रम की । वह मोह और अहंकार का त्याग कर सदा एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरता रहता था । वह दिन में केवल एक बार भोजन करता और रात्रि होने पर कहीं भी विश्राम कर लेता था । इस प्रकार वह समस्त प्रकार की आसक्तियों और भोगों से विरक्त होकर ऋषि-मुनियों की भाति जीवन बिता रहा था ।
एक दिन पितृों ने प्रकट होकर रुचि को विवाह करने का परामर्श दिया । पितृों की इच्छा पूर्ण करने के लिए उसने विवाह करने का निश्चय कर लिया । वह विवाह करने की इच्छा से स्थान-स्थान पर भ्रमण करने लगा । किंतु उसे कोई अपनी कन्या देने को सहमत नहीं हुआ । उसे चिंता सताने लगी । उसका मन बड़ा व्याकुल हो गया । तब उसने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने का निश्चय कर घोर तप आरम्भ कर दिया । इस प्रकार तपस्या करते हुए सौ वर्ष बीत गए । उसके तप के तेज से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जल उठा । अंततः ब्रह्माजी वहाँ प्रकट हुए और उसे मनोवांछित वर माँगने के लिए कहा ।
रुचि वर माँगते हुए बोला – “भगवन् ! आप मुझे ऐसा वरदान प्रदान कीजिए, जिससे कि मेरी निर्धनता और वृद्धावस्था समाप्त हो जाए, साथ ही मुझे एक सुंदर और सुशील पत्नी प्राप्त हो जिससे कि मैं अपने पितृों की अभिलाषा पूरी कर उन्हें सुखी कर सकूँ ।”
ब्रह्माजी बोले – “वत्स ! मैं तुम्हें प्रजापति के पद पर सुशोभित होने का वर देता हूँ । तुमसे प्रजा की सृष्टि और श्रेष्ठ संतानों की उत्पत्ति होगी । इसके बाद शुभ कर्मों को भोगकर जब तुम अपने पद का त्याग करोगे तब मेरी कृपा से तुम्हें परम ज्ञान और सिद्धि प्राप्त होगी । अब तुम विवाह की इच्छा से पितृों का पूजन करो । वे प्रसन्न होकर तुम्हें मनोवांछित पत्नी और पुत्र प्रदान करेंगे ।”
इस प्रकार रुचि को वरदान देकर ब्रह्माजी वहाँ से अंतर्धान हो गए । तत्पश्चात् रुचि ने पितृों का तर्पण किया और स्तोत्र पाठ द्वारा उनकी स्तुति करते हुए उन्हें पुष्प और चंदन अर्पित करने लगा । तभी वहाँ पितृ प्रकट हुए और वर माँगने के लिए कहा । वह बोला – “हे पितृगण ! ब्रह्माजी ने मुझे प्रजा की सृष्टि करने का कार्यभार सौंपा है । अतः मैं दिव्य गुणों से सम्पन्न एक श्रेष्ठ पत्नी चाहता हूँ, जिससे कि उत्तम संतान की उत्पत्ति हो सके और मैं ब्रह्माजी की इच्छानुसार सृष्टि कर सकूँ । आप मेरी ये इच्छा पूरी करने की कृपा करें ।”
पितृ बोले – “वत्स ! इसी स्थान पर तुम्हें सुंदर और श्रेष्ठ गुणों से सम्पन्न एक कन्या प्राप्त होगी । वह तुम्हारी पत्नी बनकर एक बालक को जन्म देगी । वह बालक अपने बल-पराक्रम से पृथ्वी को अपने अधिकार में कर तेरहवें मन्वंतर का स्वामी बनेगा । तुम्हारे नाम पर ही वह ‘रौच्य’ नाम से तीनों लोकों में प्रसिद्ध होगा । पुत्र! तुम प्रजापति के पद पर सुशोभित होकर चार प्रकार की प्रजा (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) की सृष्टि करोगे । तत्पश्चात् ज्ञान और सिद्धि प्राप्त करोगे ।”
इसके बाद पितृगण वहाँ से अदृश्य हो गए । तभी वहाँ प्रम्लोचा नामक एक अप्सरा प्रकट हुई । उसके साथ एक सुंदर युवती भी थी । वह रुचि से बोली – “यह कन्या मेरी पुत्री मालिनी है । इसके पिता वरुण देव के पुत्र महात्मा पुष्कर हैं । तुम इसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करो । इसके गर्भ से तेरहवें मन्वंतर का स्वामी रौच्य मनु उत्पन्न होगा ।” इसके बाद प्रग्लोचा ने मालिनी को रुचि के हाथ में सौंप दिया ।
रुचि ने तत्क्षण ऋषि-मुनियों को बुलवाकर मालिनी के साथ विधिवत् विवाह किया । कुछ समय के बाद मालिनी के गर्भ से रौच्य का जन्म हुआ जो रौच्य मनु के नाम से तेरहवें मनु पद पर आसीन हुआ ।
ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)
