बंधन - गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bandhan-Grehlakshmi ki Kahaniya

दफ्तर से लौटते हुए रात हो गयी तो राधा ने टैक्सी ले ली। टैक्सी में बैठते ही राधा ने देखा कि ड्राइवर हट्ठा-कट्ठा नौजवान था।
एकबारगी तो उसने सोचा कि वह इस टैक्सी को छोड़कर दूसरी टैक्सी ले लें, पर रात का वक्त था और उस ड्राइवर के सामने वह स्वयं को कमजोर नहीं दर्शाना चाह रही थी। ड्राइवर सावधानी पूर्वक गाड़ी चला रहा था। हाईवे आने वाला था, जहाँ  पहले भी कई आपराधिक घटनाएं घट चुकी थी, इसलिए राधा और भी सतर्क हो गयी।

हाईवे पर पहुँचते ही दो बाईक पर सवार चार युवकों ने टैक्सी रुकवानी चाही। ड्राइवर ने किसी तरह कटते-कटाते गाड़ी को आगे निकाल लिया। शिकार हाथ से निकलते देख बाइक सवार बदमाशों ने गोली चला दी, जो ड्राइवर की बाँह छीलती हुई निकल गई। ड्राइवर का दाहिना हाथ जख्मी हो गया था। एक हाथ से ही गाड़ी चलाते हुए उसने सुनसान रास्ता पार कर लिया बदमाशों का खतरा टल चुका था। राधा हिम्मत कर जोर से बोली- ‘गाड़ी रोको।’
राधा ने अपना दुपट्टा फाड़ और आदेशात्मक लहजे में राधा ने कहा- ‘अपना हाथ इधर लाओ’
फिर उसने ड्राइवर की बाँह दुपट्टे से साफ किया और दुपट्टे से ही उसके जख्म पर पट्टी लगा दी। भावावेश में उसके मुँह से बस यही निकला- “घबराओ मत भैया !”
ड्राइवर भी बोला- “बहन, इसी राखी के बंधन ने आज मुझमें इतनी शक्ति दी कि मैं अपनी बहन की लाज बचा सका। ईश्वर सभी भाईयों को यह शक्ति दे।

Leave a comment