prachetaon ko vardan
prachetaon ko vardan

Bhagwan Vishnu Katha: राजा पृथु के वंश में बर्हिषद् नामक एक तपस्वी राजा हुए । बर्हिषद् बड़े वीर, धर्मात्मा और कर्मकाण्डी थे । उन्होंने प्रजापति का पद प्राप्त कर इतने यज्ञ करवाए कि सारी पृथ्वी उनके फैलाए हुए कुशों से पट गई । इसी कारण वे ‘प्राचीनबर्हि’ नाम से भी विख्यात हुए । उन्होंने समुद्र की पुत्री शतदुति से विवाह किया । शतदुति के गर्भ से उन्हें प्रचेता नाम के दस पुत्र प्राप्त हुए । वे बड़े धर्मज्ञ एक नाम और आचरण वाले थे । जब पिता प्राचीनबर्हि ने उन्हें विवाह कर संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया, तो वे उनकी आज्ञा मानकर योग्य पत्नियों की इच्छा मन में लिए तपस्या करने चल पड़े । चलते-चलते वे एक सरोवर पर जा पहुँचे । सरोवर को अनेक सुंदर वृक्षों और लताओं ने घेर रखा था । हंस और भँवरे मधुर स्वर में कलरव कर रहे थे । इस मनोहारी दृश्य को देख वे भाव-विभोर हो गए । इतने ही में भगवान् शिव अपने पार्षदों के साथ सरोवर से बाहर निकले । उन्हें सहसा अपने सामने देख प्रचेताओं को बड़ा कुतूहल हुआ और उन्होंने मस्तक हुए शिवजी को प्रणाम किया ।

शिवजी प्रसन्न होकर बोले -“पुत्रो ! तुम जिस अभिलाषा से यहाँ आए हो उसे मैं भली-भांति जानता हूँ । तुम भगवान् विष्णु के चरण-कमलों में ध्यान लगाकर कठोर तपस्या करो । तुम्हें अभीष्ट फल प्राप्त होगा ।”

फिर भगवान् शिव ने प्रचेताओं को भगवान् विष्णु का प्रिय स्तोत्र बताया और उन्हें आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गए । प्रचेता उस सरोवरकेजल में खड़े होकर कठोर तप करने लगे । उन्हें तप करते हुए दस हजार वर्ष बीते, तो भगवान् विष्णु प्रकट हुए । प्रचेताओं ने विभिन्न प्रकार से उनकी स्तुति की ।

प्रसन्न होकर भगवान् विष्णु बोले -“पुत्रो ! तुममें परस्पर बड़ा प्रेम है और स्नेहवश तुम एक ही धर्म का पालन कर रहे हो । तुम्हारे इस आदर्श सौहार्द से मैं अति प्रसन्न हूँ । जो पुरुष संध्या के समय तुम्हारा स्मरण करेगा, उसका अपने भाइयों से अगाध प्रेम होगा तथा सभी जीवों के प्रति मित्रता का भाव हो जाएगा । तुमने प्रसन्न मन से पिता की आज्ञा स्वीकार की है, इससे तुम्हारा यश समस्त लोकों में फैल जाएगा । शीघ्र ही तुम्हें एक प्रसिद्ध पुत्र प्राप्त होगा, जो अपनी संतानों से तीनों लोकों को पूर्ण कर देगा । पुत्रो कण्डु ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए इन्द्र द्वारा भेजी गई अप्सरा प्रग्लोचा से एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई थी । प्रप्लोचा अपनी उस कन्या को वन में ही छोड़कर स्वर्ग लौट गई थी । तभी से वृक्षों ने उसका पालन-पोषण किया है । तुम उस सुंदर कन्या से विवाह कर लो । तुम सब एक ही स्वभाव और एक ही धर्म का पालन करने वाले हो, इसलिए वह कन्या तुम सभी की पत्नी होगी । तुम लाखों वर्षों तक अनेक दिव्य सुख पाकर अंत में मुझमें लीन हो जाओगे ।”

इस प्रकार प्रचेताओं को वर देकर भगवान् विष्णु अपने लोक लौट गए । तब प्रचेताओं ने जल से बाहर निकलकर देखा कि सम्पूर्ण पृथ्वी को ऊँचे-ऊँचे वृक्षों ने ढक लिया है । यह देखकर वे अत्यंत कुपित हुए और मुख से भयंकर लपटें निकालकर वृक्षों को भस्म करने लगे । तब ब्रह्माजी ने उन्हें समझा-बुझाकर शांत किया । ब्रह्माजी की आज्ञा से वृक्षों ने कण्डु मुनि और प्रग्लोचा की पुत्री मारिषा का विवाह प्रचेताओं के साथ कर दिया । मारिषा के गर्भ से ही ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति ने, भगवान् शिव की अवज्ञा के कारण अपना पूर्व शरीर त्यागकर, नया जन्म लिया ।

दस लाख वर्षों तक पृथ्वी का भोग करने के बाद प्रचेताओं को भगवान् विष्णु के वरदान का स्मरण हो आया । तब अपनी पत्नी मारिषा और पृथ्वी का राज्य दक्ष प्रजापित को सौंपकर वे उस स्थान पर जा पहुँचे जहाँ पूर्व समय में उन्होंने कठोर तप किया था । वहाँ देवर्षि नारद ने उन्हें भगवान् विष्णु की विभिन्न लीलाओं का वर्णन किया, जिसे सुनकर प्रचेता धन्य हो गए । बाद में उन्होंने भगवान् विष्णु का ध्यान कर समाधिलीन हो उनके परम- धाम को प्राप्त किया ।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)