Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय की बात है, द्रविड़ नामक देश में सत्यव्रत नामक एक परम वीर, पराक्रमी और तेजस्वी राजा राज्य करते थे । वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे । उनका मन सदा विष्णु भक्ति में लीन रहता था ।
एक दिन वे कृतमाला नामक नदी में जल तर्पण कर रहे थे । तभी उनकी अंजलि में एक छोटी-सी मछली आ गई । दयावश सत्यव्रत ने उसे पुन: नदी में डाल दिया । यह देखकर वह मछली अत्यंत करुण स्वर में बोली – “हे राजन ! आप बड़े दयालु हैं । आप भली-भांति जानते हैं कि जल में रहने वाले विशालकाय जन्तु अपनी जाति के छोटे जन्तुओं को खा जाते हैं । फिर आप मुझे यहाँ क्यों छोड़ रहे हैं? मैं उनके भय से व्याकुल होकर आपकी शरण में हूँ । अतः मुझ तुच्छ प्राणी की रक्षा कीजिए ।”
मछली की करुण याचना सुनकर सत्यव्रत बोले “हे मत्स्य ! निश्चित रहो । मेरी शरण में आने वाले कभी निराश नहीं लौटते । मैं वचन देता हूँ कि तुम्हारी रक्षा करूँगा । तुम जैसी छोटी मछली के लिए मेरे कमण्डलु में ही इतना स्थान है कि तुम निश्चित होकर इसमें रह सकती हो । तुम्हें किसी अन्य स्थान पर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।” यह कहकर सत्यव्रत ने मछली की रक्षा करने का संकल्प लिया और उसे अपने कमण्डलु में स्थान दे दिया ।
किंतु मछली का आकार एक ही रात में इतना बढ़ गया कि कमण्डलु उसके लिए पर्याप्त न रहा । वह सत्यव्रत से बोली – “राजन ! आपने कमण्डलु का स्थान मेरे लिए निर्धारित किया था, किंतु यह मेरे लिए अत्यंत छोटा है । मैं इसमें नहीं रह सकती । आप मेरे लिए कोई बड़ा स्थान निर्धारित करें जहाँ मैं सुखपूर्वक रह सकूँ ।”
राजा सत्यव्रत ने मछली को कमण्डलु से निकालकर एक बड़े कलश में रख दिया । किंतु कुछ ही क्षणों में उसका आकार इतना बढ़ गया कि वह कलश भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा । वह पुन: सत्यव्रत से बोली – “राजन ! यह स्थान भी मेरे लिए अत्यंत छोटा है । मैं यहाँ भी सुखपूर्वक नहीं रह सकती । कृपया कोई बड़ा स्थान प्रदान कर मेरी रक्षा कीजिए ।”
राजा सत्यव्रत ने मछली को एक विशाल सरोवर में डाल दिया । किंतु कुछ ही क्षणों में उसका आकार इतना बढ़ गया कि सरोवर भी उसके लिए छोटा पड़ने लगा । तब वह पुन: प्रार्थना करते हुए बोली – “ हे राजन! यह सरोवर भी मेरे लिए अत्यंत छोटा है । अतः आप मुझे किसी बड़े जलस्रोत में डाल दें, जिससे कि मैं वहाँ सुखपूर्वक रह सकूँ ।”
मछली का आकार अत्यंत शीघ्रता से बढ़ रहा था, यह देखकर सत्यव्रत बड़े आश्चर्यचकित थे । किंतु उन्होंने कुछ बोले बिना उसे सरोवर में से निकालकर समुद्र में छोड़ दिया । समुद्र में प्रवेश करते ही मछली ने महामत्स्य का आकार धारण कर लिया और सत्यव्रत के निकट आकर बोली – “राजन ! आपने मेरी रक्षा करने का वचन दिया था, फिर मुझे समुद्र में इन हिंस जलचरों के मध्य क्यों छोड़ दिया? मुझे यहाँ मत छोड़िए ।”
तब राजा सत्यव्रत अत्यंत लज्जित होकर बोले – “हे महामत्स्य ! मैं मूर्ख हूँ जो यह जानकर भी कि यह सम्पूर्ण सृष्टि भगवान् विष्णु द्वारा रचित है, वे ही इसके पालनकर्ता रक्षक और संहारक हैं, मैं गर्व से आपको शरण देने का संकल्प कर बैठा । संसार में भगवान् विष्णु की इच्छा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है । भगवन् ! मत्स्य का अवतार धारण कर मुझे ज्ञान देने वाले आप कौन हैं, जिसने पल भर में विशाल आकार धारण कर लिया है । ऐसी दिव्य शक्ति वाला जलचर मैंने आज तक न कहीं देखा था और न ही उसके बारे में सुना था । आप अवश्य सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु हैं । सृष्टि का कल्याण करने के लिए ही आप समय-समय पर अवतार लेते हैं । यद्यपि आपके सभी अवतार प्राणियों के कल्याण मात्र के लिए होते हैं, तथापि मैं आपके इस मत्स्य अवतार का उद्देश्य जानने को उत्सुक हूँ?“
तब मत्स्य अवतारी भगवान् विष्णु प्रसन्न होकर बोले – “हे सत्यव्रत ! प्रलय का समय आ गया है । आज से सातवें दिन भूलोक आदि सभी लोक प्रलय के समुद्र में डूब जाएँगे । उस समय तुम्हारे पास एक विशालकाय नौका आएगी । तुम पृथ्वी के सभी जीवों के सूक्ष्म शरीरों और छोटे-बड़े अन्नादि के बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ उस विशालकाय नौका पर सवार हो जाना । जब प्रचण्ड वेग से आँधी चलने के कारण नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं इसी मत्स्य स्वरूप में प्रकट होकर यहाँ आऊँगा और तुम वासुकि नाग द्वारा उस नाव को मेरे सींग के साथ बाँध देना । इसके बाद प्रलय के अंत तक मैं नाव को खींचता हुआ समुद्र में विचरण करूँगा ।”
यह कहकर भगवान् मत्स्य अंतर्धान हो गए और सत्यव्रत बड़ी अधीरता से प्रलयकाल की प्रतीक्षा करने लगे ।
ठीक सातवें दिन मेघ भयंकर वर्षा करने लगे और समुद्र का जल किनारों को तोड़कर बड़े वेग से आगे की ओर बढ़ने लगा । देखते-ही-देखते सारी पृथ्वी जल में डूब गई । तब सत्यव्रत ने भगवान् नारायण का स्मरण किया । तभी वहाँ एक नाव आ गई । वे समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों और अन्नादि के बीजों को लेकर सप्तर्षियों के साथ उसमें सवार हो गए ।
जब समुद्र की भीषण लहरों से वह नाव डगमगाने लगी तो सत्यव्रत भगवान् विष्णु का स्मरण करने लगे । तभी भगवान् विष्णु मत्स्यरूप में प्रकट हो गए । सत्यव्रत ने वह नाव वासुकि नाग द्वारा भगवान् मत्स्य के विशाल सींग के साथ बाँध दी और उनसे दिव्य ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना की । तब भगवान् विष्णु ने नाव सहित समुद्र में विचरण करते हुए सत्यव्रत को ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग से पूर्ण दिव्य पुराण का उपदेश दिया । मत्स्यरूपी भगवान् विष्णु ने इस काल में सत्यव्रत को जो उपदेश दिया उसे मत्स्यपुराण कहा जाता है । भगवान् विष्णु की कृपा से सत्यव्रत बाद में वैवस्वत नाम से सूर्यदेव के घर उत्पन्न हुए और सातवें मनु के पद पर आसीन हुए ।
इधर जब प्रलय का समय आया और ब्रह्माजी चिरनिद्रा में सो गए, तो उनके मुख से उत्पन्न चारों वेद जल में गिर गए । भगवान् विष्णु पहले से ही इस घटना के विषय में जानते थे, इसलिए उन्होंने मत्स्य अवतार धारण कर उन वेदों को अपने मुख में सुरक्षित रख लिया और प्रलय की समाप्ति पर उन्हें पुन: ब्रह्माजी को लौटा दिया ।
ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)
